लखनऊ: बीते दिनों लखनऊ में एंटी- प्रोटेस्टर्स के होर्डिंग्स लगाने के मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने लिया स्वत: संज्ञान लेते हुए लखनऊ और कमिश्नर से पूछा है किस कानून के तहत ये पोस्टर्स लगाए गए. इस मामले में आज छुट्टी के दिन सुनवाई होगी. पहले ये सुनवाई सुबह 10 बजे होनी थी लेकिन सरकार के वकील के न पहुंचने के कारण अब दोपहर तीन बजे होगी .
दरअसल चीफ जस्टिस गोविंद माथुर की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने इस मामले का स्वतः संज्ञान लेकर लखनऊ के प्रशासन से सवाव पूछे हैं. पिछले दिनों एंटी सीएए प्रोटेस्ट के बाद हिंसा के आरोपियों की फोटो व पोस्टर लखनऊ में सड़क किनारे लगाए गए.
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इन होर्डिंग्स में सार्वजनिक और निजी सम्पत्तियों को हुए नुकसान की डिटेल्स हैं.इसके अलावा ये भी लिखा है कि सभी से नुकसान की भरपाई की जाएगी.हाईकोर्ट का मानना है कि सार्वजनिक स्थान पर संबंधित व्यक्ति की अनुमति बिना उनका फोटो या पोस्टर लगाना गलत है और यह राइट टू प्राइवेसी (निजता के अधिकार) का उल्लंघन है
बीती 19 दिसम्बर को लखनऊ में एंटी सीएए प्रोटेस्ट के दौरान हिंसा हुई थी. इस दौरान कई स्थानों पर तोड़फोड़ और आगजनी भी हुई .100 से अधिक आरोपियों के खिलाफ मुकदमे दर्ज हुए. सूत्रों की मानें तो योगी सरकार के आदेश पर लखनऊ जिला प्रशासन ने ये पोस्टर लगाए. सीएम योगी भी कई बार प्रदर्शकारियों से हर्जाना वसूलने की बात कह चुके हैं. इन पोस्टर्स में पूर्व आईपीएस एसआर दारापुरी, सोशल एक्टिविस्ट व कांग्रेस नेता सदफ जफर, थिएटर आर्टिस्ट दीपक कबीर के भी नाम हैं
दि प्रिंट से बातचीत में एसआर दारापुरी ने कहा, ‘ सरकार हमारी लिंचिंग कराना चाहती है. हमारे फोटो, एड्रेस को सार्वजनिक किया गया. ये किस कानून के तहत किया गया. मैंने होम सेक्रेटरी और डीजीपी को उसी दिन पत्र लिखकर कहा था कि ये हमारी निजता के अधिकार का हनन है. कोई कैसे किसी के होर्डिंग बिना कोर्ट की इजाजत के शहर मेॆ लगा सकता है.’