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Tuesday, 7 May, 2024
होमदेश'लोगों को जेल भेजने की बजाय जागरूकता फैलाएं', इलाहाबाद हाईकोर्ट की लॉकडाउन के समय दर्ज मामलों पर टिप्पणी

‘लोगों को जेल भेजने की बजाय जागरूकता फैलाएं’, इलाहाबाद हाईकोर्ट की लॉकडाउन के समय दर्ज मामलों पर टिप्पणी

गुजरात हाईकोर्ट ने 33 प्रवासियों को दी ज़मानत, कहा ये अपराधी नहीं हैं, कोविड संकट के थे शिकार.

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नई दिल्ली: पिछले कुछ दिनों में गुजरात और इलाहबाद, दोनों हाईकोर्ट्स ने कोविड-19 वैश्विक महामारी में लगाए गए देशव्यापी लॉकडाउन के दौरान, दर्ज किए गए मामलों के प्रति नर्म रुख़ अपनाया है.

19 जून को इलाहबाद हाईकोर्ट ने अधिकारियों को सलाह दी थी कि लॉकडाउन गाइडलाइन्स तोड़ने वाले लोगों को जेल में डालने की बजाय, मौजूदा हालात के बारे में लोगों के बीच जागरूकता फैलाएं, उधर 23 जून को गुजरात हाईकोर्ट ने 33 प्रवासियों को ज़मानत दे दी, जिनके लिए उसने कहा कि वो अपराधी नहीं थे, बल्कि संकट का ‘शिकार’ थे.

गुजरात हाईकोर्ट अहमदाबाद में काम कर रहे प्रवासी मज़दूरों की ओर से दाख़िल ज़मानत याचिकाएं सुन रहा था, जो 18 मई से जेल में थे. उन्हें इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट-अहमदाबाद (आईआईएम-ए) के बाहर, पुलिस के साथ हिंसक झड़प के बाद गिरफ्तार किया था.

प्रवासियों पर आईपीसी की कई धाराओं के तहत मुक़दमा दर्ज किया गया था, जिनमें दंगा फैलाने, एपिडेमिक डिजीज एक्ट, गुजरात पुलिस अधिनियम, आपदा प्रबंधन अधिनियम, और लोक संपत्ति नुकसान निवारण अधिनियम की धाराएं शामिल थीं.

लॉकडाउन के दौरान प्रवासियों की तकलीफों को देखते हुए, न्यायमूर्ति परेश उपाध्याय ने कहा, ‘नोट किया जाता है कि लॉकडाउन के दौरान, जब याचिकाकर्ताओं के पास कोई काम नहीं था, कोई पैसा नहीं था, कोई भोजन नहीं था, ऐसा हालात में उनकी घर वापसी का इंतज़ाम करने की बजाय, उन्हें जेल भेज दिया जाता है. याचिकाकर्ता पीड़ित ज़्यादा हैं, और अपराधी तो क़तई नहीं हैं’.

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कोर्ट ने हर याचिकाकर्ता को 500 रुपए के निजी मुचलके पर ज़मानत दे दी.


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‘लोगों को जेल भेजने की बजाय जागरूकता फैलाएं’

इलाहबाद हाईकोर्ट ने अथॉरिटीज़ को सलाह दी है, कि कोविड-19 लॉकडाउन तोड़ने पर लोगों को जेल भेजने की बजाय, मौजूदा हालात के बारे में जागरूकता फैलाएं.

कोर्ट एक याचिका की सुनवाई कर रहा था, जिसमें सात लोगों पर आईपीसी की धारा 188 (किसी लोक सेवक का आदेश न मानना), और 269 (लापरवाही का काम जिससे जानलेवा बीमारी के संक्रमण की संभावना हो) के तहत दायर मुकदमों को ख़ारिज करने की याचना की गई थी.

न्यायमूर्ति सुनीता अग्रवाल और सौमित्रा दयाल की खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा, ‘हमारी राय में ज़्यादा उचित ये रहेगा, कि लोगों को जेलों या हवालातों में डालने की बजाय, जिनमें पहले से ही बहुत भीड़ है, उनके बीच जागरूकता और चेतना फैलाई जाए’.

पुलिस का आरोप था कि याचिकाकर्ता, सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों का पालन किए बिना आगरा में जमा हुए थे लेकिन याचिकाकर्ताओं का कहना था, कि वो ग़रीबों के बीच खाने के पैकेट्स बांट रहे थे, और उनके आसपास काफी लोग जमा हो गए थे.

फिर कोर्ट ने कहा कि हर किसी को लॉकडाउन के नियमों का पालन करना है, लेकिन नियम तोड़ने वालों को पकड़कर रखने से ‘कोरोना संकट और गहरा सकता है’.

याचिकाकर्ताओं को आगरा के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) के सामने, एक हलफनामा देने के लिए कहा गया, कि वो कोविड-19 के सभी नियमों और प्रोटोकोल्स का पालन करेंगे, और भविष्य में उन्हें नहीं तोड़ेंगे. एसएसपी से कहा गया कि उनसे हलफनामे लेने के बाद, आवश्यक कार्रवाई को अंजाम दें.

कोर्ट ने ये भी कहा कि याचिकाकर्ताओं को ‘अपने आपको बदलने का एक मौक़ा’ मिलना चाहिए, और उसने अधिकारियों से कहा कि पुलिस रिपोर्ट दाख़िल होने तक उन्हें गिरफ्तार न किया जाए.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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