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Friday, 22 November, 2024
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SC ने इलाहाबाद HC परिसर से मस्जिद हटाने के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका खारिज की

न्यायमूर्ति एमआर शाह की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि उन्हें इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नजर नहीं आता.

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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें हाईकोर्ट परिसर से एक मस्जिद को हटाने का निर्देश दिया गया था.

न्यायमूर्ति एमआर शाह की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि उन्हें इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नजर नहीं आता.

बता दें कि हाईकोर्ट ने सोमवार को तीन महीने के भीतर इलाहाबाद हाईकोर्ट के परिसर से एक मस्जिद को हटाने का निर्देश दिया है.

शीर्ष अदालत ने मस्जिद हटाए जाने का विरोध करने वाले याचिकाकर्ताओं को बताया कि संरचना एक खत्म हो चुके पट्टे (लीज) पर ली गई संपत्ति पर है और वे अधिकार के रूप में इसे कायम रखने का दावा नहीं कर सकते.

याचिकाकर्ताओं, वक्फ मस्जिद हाई कोर्ट और उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने नवंबर 2017 के इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती दी थी. हाईकोर्ट ने उन्हें मस्जिद को परिसर से बाहर करने के लिए तीन महीने का समय दिया था.

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को उनकी याचिका खारिज कर दी.

न्यायमूर्ति एम आर शाह और न्यायमूर्ति सीटी रविकुमार की पीठ ने हालांकि, याचिकाकर्ताओं को मस्जिद के लिए पास में किसी जमीन के आवंटन को लेकर उत्तर प्रदेश सरकार को एक प्रतिवेदन करने की अनुमति दी.

पीठ ने याचिकाकर्ताओं को बताया कि भूमि एक पट्टे की संपत्ति थी जिसे समाप्त कर दिया गया था. वे अधिकार के तौर पर इसे कायम रखने का दावा नहीं कर सकते.

पीठ ने कहा, ‘हम याचिकाकर्ताओं द्वारा विचाराधीन निर्माण को गिराने के लिए तीन महीने का समय देते हैं और यदि आज से तीन महीने के भीतर निर्माण नहीं हटाया जाता है, तो हाईकोर्ट सहित अधिकारियों के लिए उन्हें हटाने या गिराने का विकल्प खुला रहेगा.’

मस्जिद की प्रबंधन समिति की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि मस्जिद 1950 के दशक से है और इसे इस तरह हटाने के लिए नहीं कहा जा सकता.

उन्होंने कहा, ‘2017 में सरकार बदली और सब कुछ बदल गया. नई सरकार बनने के 10 दिन बाद एक जनहित याचिका दायर की जाती है. जब तक वे हमें जमीन उपलब्ध कराते हैं, तब तक हमें वैकल्पिक स्थान पर जाने में कोई समस्या नहीं है.’

हाईकोर्ट की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने कहा कि यह पूरी तरह से धोखाधड़ी का मामला है.


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