अलीगढ़: भ्रामक सोच, गलत धारणाओं, मोदी सरकार के प्रति विश्वास में कमी और असुरक्षा जैसे अन्य कारण अलीगढ़ में वैक्सीन के प्रति हिचकिचाहट बढ़ा रहे हैं, जिसमें दोनों समुदाय—मुस्लिम और हिंदू—के लोग कह रहे हैं कि वे कोविड-19 वैक्सीन नहीं लगवाना चाहते हैं.
यह स्थिति तब है जब भारत बायोटेक की कोवैक्सीन का सेफ्टी ट्रायल, जो नवंबर में शुरू हुआ था, अभी जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज (जेएनएमसी) में चल रहा है, जो शहर में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) परिसर का हिस्सा है.
यहां तक कि एएमयू के 18 प्रोफेसरों की मौत, जिनमें से 16 ने पहली खुराक तक नहीं ली थी, भी इस क्षेत्र को वास्तविकता बताने में कुछ नहीं कर पाई है.
दिप्रिंट ने रविवार को अलीगढ़ शहर के विभिन्न हिस्सों का जायजा लिया और दोनों समुदायों और सभी आयु वर्ग के लोगों से बात करके यह जानने की कोशिश कि वे टीकाकरण क्यों नहीं करवाना चाहते हैं.
कुछ लोगों को लगता है कि टीके के कारण मौत हो जाती है, जबकि अधिकांश अन्य लोग अभी भी यही सोचते हैं कि महामारी एक ‘अफवाह’ के सिवाए कुछ नहीं है.
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‘कोविड एक अफवाह, इंजेक्शन के बाद सिर्फ 1% जिंदा बचते हैं’
अलीगढ़ में कई लोगों के लिए तो कोविड महामारी ही अपने आप में एक धोखा है.
इनमें मुक्तिधाम श्मशान घाट में काम करने वाले 42 वर्षीय अवधेश कुमार भी शामिल हैं. उनका मानना है कि कोविड महज एक ‘अफवाह’ है जिसे मीडिया और राजनेताओं की तरफ से ‘टीआरपी और वोट’ के लिए फैलाया गया है.
अवधेश ने कहा, ‘कोविड एक अफवाह है. ऊपर वाले के भरोसे ही हमें आज तक कुछ नहीं हुआ. कुछ होगा तो देखा जाएगा, सुई तो बिलकुल नहीं लगवाएंगे.
अवधेश कुमार ने महामारी के दौरान करीब 100 कोविड पीड़ितों के शवों का अंतिम संस्कार किया है. यह पूछे जाने पर कि वह अब भी इसे अफवाह क्यों मानते हैं, उन्होंने कहा, ‘लोग मर रहे हैं क्योंकि वे अस्पताल जाते हैं. पता नहीं डॉक्टर उनके साथ क्या करते हैं कि वे मर जाते हैं. कौन जाने ये यह हर किसी को इंजेक्शन लेने के लिए मजबूर करने की रणनीति हो.
उनके परिवार में पत्नी और तीन बच्चों, सभी वयस्क, में से किसी ने भी टीका नहीं लिया है.
श्मशान में उनके सहयोगी 24 वर्षीय देवेंद्र कुमार की राय भी कुछ इसी तरह की है.
देवेंद्र ने कहा, ‘मैंने तो अपनी पत्नी और अन्य रिश्तेदारों को भी आगाह किया है कि कोई भी यह टीका न लगाए.’
उन्होंने कहा, ‘वे टीवी पर दिखाते हैं कि इंजेक्शन के बाद 30 मिनट तक निगरानी के लिए एक कमरे में बैठाया जाता है ताकि यह देखा जा सके कि कुछ गलत हो रहा है या नहीं. इससे पता चलता है कि डॉक्टर और मोदी सरकार साइड इफेक्ट के बारे में सुनिश्चित नहीं हैं. हम जानते हैं कि खुराक लेने वालों में से 99 प्रतिशत बीमार पड़ते हैं और मर जाते हैं. सिर्फ 1 फीसदी ही जिंदा रहते हैं, मैं कोई खतरा कैसे मोल ले सकता हूं?’
30 वर्षीय फल विक्रेता राहुल सोमकर का भी मानना है कि वैक्सीन से मौत हो सकती है. उन्होंने कहा, ‘मेरे परिवार ने मुझे इसके खिलाफ आगाह किया है. कसम खाई है हम सबने की सरकार अगर जबर्दस्ती भी करेगी, हम तब भी नहीं लगवाएंगे.’
कचरा बीनने वाले और कभी-कभी ई-रिक्शा चलाने वाले राजकुमार का भी यही मानना है, जो अपने परिवार का एकमात्र कमाऊ सदस्य है.
उसने कहा, ‘मुझे अपनी बहनों और छोटे भाई के लिए पैसा कमाना है. मेरी मां दिव्यांग है. मुझे कौन गारंटी देगा कि मैं वैक्सीन लगने के बाद मरूंगा नहीं? मैंने ऐसी कहानियां सुनी हैं कि कई लोग खुराक लेने के बाद मर गए हैं, सरकार सच नहीं बोल रही है.
‘जीवन में कभी इंजेक्शन नहीं लिया, अब भी नहीं लेंगे’
रिक्शा चलाने वाले 62 वर्षीय सुंदर लाल ने कहा कि आखिरी सांस तक टीका नहीं लगवाएंगे. उन्होंने कहा, जिंदगी में कभी सुई नहीं लगवाया, अब क्यों लगवाऊं?’
ऐसा कहने वाले सुंदर लाल अकेले नहीं हैं. दिप्रिंट से बातचीत के दौरान 60 से 75 आयु वर्ग के कम से कम 10 अन्य लोगों ने भी इसी तरह की राय जताई.
72 वर्षीय अब्दुल शकूर ने कहा, ‘कुछ दिन बचे हैं बस जिंदगी के, कौन-सा वैक्सीन से जीवन बढ़ जाएगा.’
कुछ अन्य लोगों का मानना है कि टीकाकरण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा खुद को ‘भगवान’ के रूप में पेश करने की एक चाल है जो ‘सुई’ से सभी को ठीक कर सकते हैं.
मोहम्मद फारूक ने कहा, ‘मोदी भगवान बनने की कोशिश कर रहे हैं. अगर हम यह खुराक ले लें तो क्या हम इस कोविड से पूरी तरह बच जाएंगे? नहीं, क्या हम अमर हो जाएंगे? नहीं, वह एक जादूगर हैं जो इस कोशिश में हैं कि हम भ्रम की स्थिति पर भरोसा करें.’
पान की दुकान चलाने वाली 38 वर्षीय सलमा ने कहा, ‘नमाज़ पढ़ते हैं रोज, काफी है.’
35 वर्षीय नूरजहां ने कहा, ‘अगर यह कोविड और टीका असली है, तो मुझे एक बात बताओ कि पश्चिम बंगाल, यूपी में चुनाव क्यों हुए? कुंभ मेला क्यों आयोजित किया गया था? यह सब एक बड़ा मजाक है और मूर्ख लोग इसके झांसे में आ रहे हैं और टीका ले रहे हैं और ये सब कब्र पर जाकर खत्म होता है.’
40 वर्षीय मोहम्मद सलीम और मुस्लिम समुदाय के कुछ अन्य लोगों ने टीका न लगवाने का एक और कारण बताया—इससे प्रजनन क्षमता खत्म होने का डर है.
इस बीच, पूरे शहर में लॉकडाउन के बावजूद लोग बिना मास्क लगाए और सोशल डिस्टेंसिंग की परवाह न करते हुए आराम से गली-कूचों में घूम रहे हैं. सरकारी डाटा के मुताबिक, अलीगढ़ में अभी 1440 सक्रिय कोविड मामले हैं और 92 लोगों की मौत हो चुकी है.
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