नई दिल्ली: पिछले वर्षों में गिरावट के बाद, इंजीनियरिंग कोर्सेज विशेष रूप से कंप्यूटर साइंस, इलेक्ट्रॉनिक्स और मैकेनिकल की मांग फिर से बढ़ रही है. दिप्रिंट द्वारा प्राप्त अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एआईसीटीई) के डेटा से ये जानकारी मिलीं. इसी अवधि में इंजीनियरिंग के लिए प्लेसमेंट भी बढ़े हैं.
यही कारण है कि परिषद ने इस महीने की शुरुआत में नए इंजीनियरिंग कॉलेजों पर रोक हटाने का फैसला किया है, जिसका मतलब है कि एकेडेमिक ईयर 2023-24 से और अधिक इंजीनियरिंग कॉलेजों को खोलने की अनुमति दी जाएगी.
कॉलेज के छात्रों के बीच कंप्यूटर साइंस और इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग मुख्य पसंद बने हुए हैं, जबकि इसकी तुलना में मैकेनिकल और सिविल में छात्र कम इंटरेस्ट ले रहे हैं.
सभी इंजीनियरिंग कोर्सेज में कुल प्रवेश प्रतिशत भी पिछले पांच वर्षों में बढ़ा है. 2017-18 में 35,50,947 सीटों में से 18,95,452 सीटें भरी गईं, जिससे एडमिशन प्रतिशत 53% हो गया. 2021-22 में 29,76,777 सीटों में से 17,59,885 सीटे भरी गई, जिससे एडमिशन प्रतिशत 59% हो गया.
एआईसीटीई के एक वरिष्ठ अधिकारी ने अपना नाम न छापने के शर्त पर दिप्रिंट को बताया कि परिषद ने पिछले साल एक आंतरिक सर्वेक्षण किया था और पाया कि इंजीनियरिंग की मुख्य पाठ्यक्रमों की मांग बढ़ रही थी, इसी कारण से यह महसूस किया गया कि नए इंजीनियरिंग पाठ्यक्रमों पर से प्रतिबंध हटा लिया जाना चाहिए.
दिप्रिंट द्वारा एक्सेस की गई आंतरिक रिपोर्ट के अनुसार, अधिकांश कोर इंजीनियरिंग शाखाओं में प्रतिशत 2021-22 में पांच साल के ऊंचे स्तर पर पहुंच गया है.
एआईसीटीई के आंकड़ों के मुताबिक 2017-18 में कंप्यूटर साइंस में एडमिशन का प्रतिशत 63 फीसदी था, जो 2018-19 में 69 फीसदी और 2019-20 में 79 फीसदी हो गया. लेकिन 2020-21 में यह प्रतिशत घटकर 77 हो गया और फिर 2021-22 में उछलकर 84 हो गया.
इसी तरह, मैकेनिकल इंजीनियरिंग में एडमिशन प्रतिशत 2017-18 में 47 था, जो 2018-19 में घटकर 43 रह गया. 2019-20 और 2020-21 में यह 40 और 36 प्रतिशत तक नीचे चला गया. जबकि 2021-22 में 45.9 तक बढ़ गया.
इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग के लिए एडमिशन प्रतिशत 2017-18 में 47.6 प्रतिशत, 2018-19 में 50 प्रतिशत था और फिर 2020-21 में 55.3 से नीचे जा रहा था जो 2019-20 में फिर से बढ़कर 56.6 प्रतिशत हो गया. 67.3 पर, प्रवेश प्रतिशत 2021-22 में पांच साल के उच्च स्तर पर था.
डेटा सिविल और इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग जैसी अन्य शाखाओं में भी एडमिशन प्रतिशत में गिरावट और फिर बढ़त देखी गई.
अधिकारियों ने कहा कि एडमिशन प्रतिशत में वृद्धि इसलिए हुई क्योंकि प्रतिबंध के कारण सीट की संख्या कम हो गई और यह देखा गया कि अधिक छात्र मुख्य शाखाओं में प्रवेश पाने के इच्छुक हैं.
एआईसीटीई ने 2020 में नए इंजीनियरिंग कॉलेज खोलने पर रोक लगा दी थी क्योंकि यह देखा गया था कि इंजीनियरिंग की मांग कम थी और सीटें खाली थीं. हालांकि, अब ऐसा नहीं है जैसा कि एआईसीटीई ने पिछले साल अपने आंतरिक अध्ययन में देखा था.
एआईसीटीई के सदस्य सचिव राजीव कुमार ने दिप्रिंट को बताया, ‘पहले मांग कम नहीं थी लेकिन आपूर्ति अधिक थी. हमें मांग और आपूर्ति के मुद्दे की समीक्षा करने की आवश्यकता थी और इसलिए प्रतिबंध लागू किया गया था.’
हालांकि, काउंसिल ने संस्थानों से कोर कोर्स के साथ-साथ आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और मशीन लर्निंग जैसे उभरते क्षेत्रों में पाठ्यक्रम चालू करने का भी आग्रह किया है.
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प्लेसमेंट की बढ़ती संख्या
एआईसीटीई की रिपोर्ट बताती है कि 2021-22 वह भी समय था जब 2017-18 से पिछले पांच वर्षों में छात्रों का प्लेसमेंट प्रतिशत सबसे अधिक था.
2017-18 में उस वर्ष उत्तीर्ण 15,73,142 छात्रों में से 7,16,370 को रखा गया, जिससे प्लेसमेंट 45 प्रतिशत हो गया. 2021-22 में पास आउट हुए 10,66,921 में से 8,22,819 को प्लेसमेंट दिया गया – प्लेसमेंट प्रतिशत में 77 प्रतिशत का सुधार हुआ.
आंकड़ों के मुताबिक 2020-21 में 67 फीसदी के मुकाबले 2021-22 में इंजीनियरिंग कोर्स में 77 फीसदी छात्रों का प्लेसमेंट हुआ. 2019-20 में प्लेसमेंट प्रतिशत 59.6 प्रतिशत था, जो 2018-19 के 50 प्रतिशत से थोड़ा अधिक था. 2017-18 में 45 प्रतिशत के साथ प्लेसमेंट सबसे कम था.
एआईसीटीई के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न बताने के शर्त पर दिप्रिंट को बताया कि प्लेसमेंट प्रतिशत का बढ़ना भी एक कारण था कि मोरेटोरियम की जांच कर रही समिति ने इसे हटाने का फैसला किया.
एआईसीटीई के सदस्य सचिव राजीव कुमार ने दिप्रिंट को बताया, ‘हितधारकों के बीच एक धारणा बनाई जा रही थी कि इंजीनियरिंग शिक्षा अब प्रासंगिक या आवश्यक नहीं थी और इसे बदलने की आवश्यकता थी. जब हमने देखा कि मुख्य क्षेत्रों में इंजीनियरिंग पाठ्यक्रमों की मांग है, तो क्यों न रास्ते बनाए जाएं.
परिषद के सूत्रों ने यह भी कहा कि कोर पाठ्यक्रमों को खोलना आवश्यक था क्योंकि ‘आत्मनिर्भर भारत’ बनाने के लिए देश को ऐसे इंजीनियरों की आवश्यकता है जो सिविल, मैकेनिकल, इलेक्ट्रॉनिक्स और अन्य प्रमुख क्षेत्रों में काम कर सकें.
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