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Monday, 23 December, 2024
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अहमदाबाद के परिवार के दो सदस्य ‘सांस की तकलीफ’ से मरे, लेकिन अस्पताल ने नहीं दी कोविड रिपोर्ट

विष्णु चव्हाण और उसकी मां, जिनमें कोविड जैसे लक्षण थे, की मृत्यु अस्पताल में 8 दिनों के भीतर हो गई. लेकिन उनके परिवार का जांच या परीक्षण कभी नहीं किया गया.

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अहमदाबाद: पिछले शनिवार 30 मई को अहमदाबाद के नरोदा के मजदूर वर्ग पठान चॉल में शोक का माहौल था. वहां 25 साल के विष्णु चव्हाण की मौत हो गई थी.

चव्हाण के परिवार का दुःख दोगुना हो गया क्योंकि विष्णु की मां 50 वर्षीय गायत्रीबेन की एक सप्ताह पहले ही मृत्यु हो गई थी.

लेकिन वहां कोई रिश्तेदार या पड़ोसी विलाप नहीं कर रहे थे यहां तक कि विष्णु की 24 वर्षीय विधवा सोनाली की भी देखभाल नहीं कर रहे थे रहे थे, जो कि खबर सुनने के बाद से बार-बार बेहोश हो रही थी. स्थानीय लोग भी दूर भाग रहे थे, क्योंकि कोरोना जैसे लक्षणों के कारण मां और बेटे दोनों की मृत्यु हो गई थी. लेकिन उनके टेस्ट की पुष्टि अहमदाबाद सिविल अस्पताल द्वारा कभी नहीं की गई, जहां उनकी मृत्यु हुई थी, जिसे गुजरात उच्च न्यायालय ने ‘कालकोठरी’ कहा था.

सोनाली चव्हाण ने कहा कि उनके प्रियजनों की मौत से भी ज्यादा दुखदायी उनके प्रियजनों का न आना था.

सोनाली ने कहा, ‘हमें पता होना चाहिए कि हम पॉजिटिव हैं या नहीं, हमें खुद को क्वारेंटाइन करना चाहिए या नहीं, लेकिन कोई भी हमारी जांच करने या हमसे बात करने के लिए नहीं आया है. उसकी दो बेटियां है एक 6 साल की और दूसरी 3 साल की, मोबाइल फोन के साथ खेलती रहती हैं और चार महीने का बेटा उसकी गोद में था. विष्णु की दादी उसके पीछे बैठी थी, वह सुन नहीं सकती थी, लेकिन सबकुछ देख रही थी.

कुछ ही क्षण बाद विष्णु के पिता पृथ्वीराज चव्हाण श्मशान घाट से अपने सिर मुंडवाकर घर वापस आ गए, ठीक पांच घंटे बाद जब दिप्रिंट ने उनसे अहमदाबाद सिविल अस्पताल में मुलाकात की थी. उन्होंने निजी सुविधाओं के न मिलने के बाद अपने बेटे को अस्पताल पहुंचाया था.

पृथ्वीराज ने कहा, ‘विष्णु सिविल अस्पताल में नहीं जाना चाहता था, क्योंकि उनकी मां का निधन एक सप्ताह पहले वहां हो गया था और हमें कोई रिपोर्ट नहीं मिली थी.’

गायत्रीबेन की मौत

विष्णु चव्हाण अपने घर से कढ़ाई का काम करके प्रति माह 10,000 रुपये कमाता था. लेकिन पिछले दो महीनों से, पूरा परिवार घर पर बंद था और जीवित रहने के लिए अपनी बचत पर निर्भर था.

गायत्रीबेन को मधुमेह और कोविड -19 लक्षण था.  उन्हें खांसी और सांस लेने में तकलीफ थी और परिवार ने उसे 22 मई को अहमदाबाद सिविल अस्पताल में भर्ती कराया.

पृथ्वीराज ने कहा, ‘अगले दिन, हमें कहा गया कि हम उनके गहने लेने अस्पताल जाएं. वह इस दुनिया में नहीं रहीं.’

सोनाली ने कहा कि उन्हें मौत का कारण नहीं बताया गया था और उन्हें केवल छह घंटे के इंतजार के बाद शरीर सौंप दिया गया था, लेकिन डिस्चार्ज फाइल के बजाय सिर्फ डेथ स्लिप दिया गया था.

सोनाली ने कहा, ‘वे अगले दिन अस्पताल लौटे, उनकी कोविड-19 रिपोर्ट के बारे में पूछताछ की. लेकिन बताया गया कि रिपोर्ट तैयार नहीं थी.’ सोनाली ने कहा, ‘हमारे रिश्तेदार तब पूछताछ करने के लिए प्रयोगशाला में गए और कहा गया कि लाखों मरीज हैं, हम आपके लिए परीक्षण करने के लिए यहां नहीं हैं.’

यह विचार करते हुए कि क्या गायत्रीबेन की कोविड-19 की मृत्यु हो गई और क्या उन्हें खुद का परीक्षण करना चाहिए था, परिवार के सदस्य अगले दिन अस्पताल गए, लेकिन उन्हें वापस भेज दिया गया.

विष्णु का टेस्ट

कुछ दिनों बाद विष्णु को खांसी हुई और सांस लेने में कठिनाई महसूस होने लगी. चूंकि वे जानते थे कि विष्णु सिविल अस्पताल में नहीं जाना चाहते थे, इसलिए परिवार उन्हें पास के निजी अस्पतालों में ले गया.

पृथ्वीराज ने कहा, ‘हम उसे आनंद सर्जिकल अस्पताल ले गए, लेकिन उन्होंने 1 लाख रुपये जमा करने के लिए कहा. माया टॉकीज के पास एक अन्य अस्पताल ने उन्हें यह कहते हुए मना कर दिया कि मरीज का परीक्षण नहीं किया गया है, जबकि एक अन्य ने कहा कि अस्पताल में बेड या मशीनें नहीं हैं.

आनंद सर्जिकल अस्पताल उन 45 निजी अस्पतालों में शामिल है, जिनका अहमदाबाद म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन (एएमसी) के साथ समझौता हुआ है. लेकिन इसके निदेशक डॉ यश ​​संघवी ने समझाया, ‘अगर आपके पास एएमसी से पत्र है, तो हम रोगी का मुफ्त में इलाज करते हैं, लेकिन अगर नहीं है तो पेड वार्ड में भर्ती करना होगा, जहां 10-15 दिन के उपचार के लिए 1.5 लाख रुपये तक लग जाते हैं. इसलिए हमें राशि जमा करने का अनुरोध करना होता है.’

परिवार ने अंततः उन्हें बापूनगर जनरल अस्पताल में भर्ती कराया, जो कि एक कर्मचारी राज्य बीमा निगम द्वारा संचालित अस्पताल था, जहां विष्णु को एक बिस्तर दिया गया था. लेकिन परिवार का आरोप है कि उन्हें पर्याप्त उपचार नहीं दिया गया था और उनके आग्रह के बाद ही उन्हें ऑक्सीजन प्रदान की गई थी.

सोनाली ने कहा, ‘अहमदाबाद सिविल अस्पताल ले जाने से पहले बमुश्किल कुछ मिनटों के लिए उन्हें ऑक्सीजन दिया गया था.’

बापूनगर जनरल अस्पताल में एक स्टाफ सदस्य ने कहा, ‘मुझे नहीं पता कि उन्हें जाने के लिए क्यों कहा गया था, हमारे 250 बेड के अस्पताल में ऑक्सीजन की आपूर्ति है.’

दिप्रिंट ने विष्णु के मामले के बारे में सवालों के साथ ईमेल के माध्यम से बापूनगर जनरल अस्पताल के उप निदेशक दीपक कुमार चौरसिया के पास पहुंचने का प्रयास किया लेकिन इस रिपोर्ट के प्रकाशित होने तक कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली.

पृथ्वीराज ने कहा, ‘अंत में, परिजन गंभीर हालत में विष्णु को अहमदाबाद सिविल अस्पताल ले गए और डॉक्टरों ने चेस्ट कम्प्रेशन किया. लेकिन कुछ मिनट बाद उनकी मृत्यु हो गई.

पड़ोस में कोई परीक्षण या स्क्रीनिंग नहीं

परिवार को अब भी यकीन नहीं है कि विष्णु कोरोना पॉजिटिव था, क्योंकि उसकी मां की बीमारी के समान लक्षणों के कारण ही उसकी मृत्यु के बाद भी स्वैब का परीक्षण नहीं किया गया था.

सोनाली की भाभी (जो कि उसी इलाके में रहती हैं) वैशाली राठौड़ ने कहा, ‘हम उनके घर जाना चाहते हैं, लेकिन हम नहीं जा सकते, (अगर हम बीमार हो गए तो) हम निजी अस्पतालों में जमा राशि का भुगतान नहीं कर सकते.’

परिवार ने दावा किया कि मौत के बाद एएमसी से उनके पास कोई नहीं आया. निवासियों ने कहा कि पड़ोस में एक और कथित कोरोना मरीज की मौत हो गई थी, लेकिन महामारी की शुरुआत के बाद से कोई स्क्रीनिंग नहीं हुई थी.

एक निवासी ने कहा, जो कि नाम नहीं बताना चाहते थे, ‘कोई भी हमारे तापमान और लक्षणों की जांच करने के लिए नहीं आया. सैनिटाइज़ भी नहीं किया गया है.’

बुधवार 3 जून को सोनाली अपने बच्चों के साथ पुणे में अपनी मां के घर के लिए रवाना हुई और वहां पहुंचने पर सबसे पहला काम उन्होंने एक निजी प्रयोगशाला में जाकर खुद का परीक्षण करवाया. शुक्रवार सुबह तक परिणाम आने की उम्मीद है.

उसने कहा, ‘मुझे केवल अपनी स्थिति पता होने के बाद ही राहत मिलेगी.’

अस्पताल और एएमसी का स्पष्टीकरण

हालांकि, दिप्रिंट ने चव्हाण परिवार के मामले में कोविड लक्षणों के साथ दो मौतें, और रिपोर्टों की कमी के बारे अहमदाबाद सिविल अस्पताल और एएमसी के अधिकारियों से डॉक्टरों से पूछा.

अहमदाबाद सिविल अस्पताल के पूर्व चिकित्सा अधीक्षक,डॉ एमएम प्रभाकर, जो अब विशेष कर्तव्य पर एक अधिकारी के रूप में तैनात हैं, ने समझाया, ‘रिपोर्ट केस पेपर में दी गई है. यदि रिपोर्ट आने से पहले व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है, तो हम इसे एक ‘संदिग्ध मामले’ के रूप में लिखते हैं और यदि व्यक्ति गंभीर स्थिति में आता है, तो हमारी प्राथमिकता उसे स्थिर करना है. रिपोर्ट बाद में आती है.’

सिविल अस्पताल के चिकित्सा अधिकारी डॉ संजय कपाड़िया ने कहा कि केस के कागजात और प्रयोगशाला रिपोर्ट मेडिकल रिकॉर्ड विभाग को जाते हैं और परिवार उसे पाने के लिए विभाग से संपर्क कर सकता है.

परिवार या आस-पड़ोस के बारे में पूछे जाने पर कि उनका परीक्षण या क्वारंटाइन नहीं किया गया है, तो
डॉ प्रभाकर ने कहा कि क्योंकि यह एक तृतीयक देखभाल अस्पताल है, एएमसी को मौतों की सूचना दी जाती है, जिनका काम कांटेक्ट ट्रेसिंग करना है या रिश्तेदारों को क्वारंटाइन करने के लिए कहना है.

इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के परीक्षण दिशानिर्देशों में कहा गया है कि सभी उच्च जोखिम वाले रोगसूचक रोगियों के संपर्क में आने वालों का संपर्क में आने के पांचवे और दसवे दिन परीक्षण किया जाना है.

यह पूछे जाने पर कि चव्हाण के मामले में ऐसा क्यों नहीं हुआ, एएमसी में स्वास्थ्य के चिकित्सा अधिकारी डॉ भाविन सोलंकी ने कहा, स्वैब उनका किया जाता हैं जिनमें लक्षण दिखते हैं. अन्यथा, असिम्पटोमैटिक रोगियों का हमें नमूने लेने की आवश्यकता नहीं है.’

लेकिन दिप्रिंट द्वारा सूचित किए जाने पर कि विष्णु चव्हाण में उनकी मां की मृत्यु के बाद लक्षण दिखने शुरू हो गए थे और यहां तक ​​कि उनका परीक्षण होना चाहिए था उन्होंने संवाददाता से उनके परिवार का विवरण भेजने के लिए कहा.

दिप्रिंट टिप्पणी के लिए गुजरात के स्वास्थ्य आयुक्त जयप्रकाश शिवहरे से संपर्क करना चाहा, लेकिन उन्होंने कॉल या संदेश का जवाब नहीं दिया.

4 जून तक, गुजरात ने कोविड-19 मामलों और 1,122 मौतों की पुष्टि की है, जिनमें से अहमदाबाद में लगभग 72 प्रतिशत मामलों (13,063) और 81 प्रतिशत मौतों (910) की पुष्टि हुई है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें )

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