नई दिल्ली: गुजरात हाई कोर्ट ने अहमदाबाद के सिविल अस्पताल के प्रशासन को सोमवार को चेताया कि वो जजों के किसी भी दिन औचक निरीक्षण के लिए तैयार रहें. यह अस्पताल राज्य में कोविड-19 सुविधाओं का मुख्य सरकारी केंद्र है लेकिन अदालत ने पिछली सुनवाई में इसे ‘काल-कोठरी‘ के समान बताया था.
जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस इलेश जे वोरा की बेंच ने कहा, ‘हमने चेताया है. सिविल अस्पताल के अधीक्षक और गुजरात के स्वास्थ्य विभाग के अन्य अधिकारी सिविल अस्पताल में किसी सुबह हमारी उपस्थिति के लिए तैयार रहें.’ ‘यह अहमदाबाद में सिविल अस्पताल के कामकाज के संबंध में सभी विवादों को समाप्त कर देगा.’
बेंच ने राज्य सरकार को ये भी निर्देश दिया है कि वो स्वतंत्र डॉक्टरों की एक कमिटी बनाए जो अस्पताल की स्थिति की जांच करे.
सोमवार को अदालत द्वारा कड़े शब्दों में दिए गए आदेश पर राज्य के अधिकारियों ने तत्काल सुनवाई के लिए कहा था. शुक्रवार को पारित आदेश में सिविल अस्पताल की ‘दयनीय’ स्थिति पर अदालत ने टिप्पणी की थी.
शुक्रवार के आदेश में अस्पताल के सेवारत एक 25 वर्षीय रेजिडेंट डॉक्टर द्वारा एक गुमनाम पत्र और अस्पताल में एक जिम्मेदार ‘चिकित्सा अधिकारी’ द्वारा तैयार की गई एक रिपोर्ट पर ध्यान दिया गया था.
रिपोर्ट में अहमदाबाद के कोविड-19 अस्पतालों में मौजूदा शिकायतों और संभावित समाधानों के बारे में बताया गया. अदालत ने तब तीन वरिष्ठ चिकित्सा अधिकारियों के एक दल को इस पर ध्यान देने का निर्देश दिया था.
अधिकारियों ने अब पत्र में किए गए दावों की प्रामाणिकता को चुनौती दी है, और यह भी दावा किया है कि तीन सदस्यीय टीम ने रिपोर्ट में उठाए गए मुद्दों की जांच की, और सभी आरोपों को गलत पाया.
अदालत ने, हालांकि, इसे स्वीकारने से इनकार कर दिया और इसके बजाय दो या तीन स्वतंत्र डॉक्टरों की एक और समिति का गठन करके अधिकारियों को पत्र में लगाए गए आरोपों पर गौर करने को कहा.
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राज्य ने यह भी दावा किया था कि अदालत के आदेश ने ‘सिविल अस्पताल में आम आदमी के विश्वास को हिला दिया’, जिसके लिए दो-न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि सरकार को विश्वास में लेने का एकमात्र तरीका उनके लिए जिम्मेदार अधिकारियों को पकड़ना है. अदालत ने स्वास्थ्य मंत्री नितिन पटेल को ‘सिविल अस्पताल के प्रशासन और कामकाज पर कड़ी निगरानी रखने के लिए कहा.’
सिविल अस्पताल में जाने से लोग मना कर रहे हैं
अदालत के आदेश के अनुसार, सरकार की याचिकाकर्ता मनीषा लवकुमार द्वारा उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार को एक पत्र सौंपा गया था, जिसमें पत्र और रिपोर्ट में दावों की प्रामाणिकता पर सवाल उठाया गया.
सोमवार सुबह पेश किए गए नोट पर, पीठ ने उसी दिन शाम 4 बजे मामले की सुनवाई की.
नोट में कहा गया है कि दोनों दस्तावेज मई के पहले सप्ताह से सोशल मीडिया पर चल रहे थे और सिविल अस्पताल की सच्ची तस्वीर को चित्रित नहीं करते हैं. इसने जोर दिया कि अदालत के पत्र और रिपोर्ट पर ध्यान से कोविड-19 टास्क फोर्स को ‘गंभीर रूप से डीमोरलाइज’ कर दिया है, और इससे मरीजों में ‘भय और चिंता’ पैदा हुई है.
इसमें कहा गया कि सिविल अस्पताल में भर्ती होने से अब मरीज मना कर रहे हैं.
सरकार ने ये भी कहा कि उन्हें अपनी बात कहने का मौका दिए बिना ही ये आदेश जारी कर दिया गया. इसलिए उसने पत्र और रिपोर्ट में किए गए दावों का मुकाबला करने के लिए अदालत को ‘प्रामाणिक समकालीन सामग्री’ प्रस्तुत करने की मांग की. इसने अपने रुख को पुख्ता करने के लिए दिल्ली के विशेषज्ञों की एक रिपोर्ट का भी दावा किया.
अन्य बातों के साथ, इसने अस्पताल में उपलब्ध सुविधाओं की जानकारी अदालत को दी, और यह तथ्य भी कि उप मुख्यमंत्री (और स्वास्थ्य मंत्री नितिन पटेल) अब तक निरीक्षण के लिए दो महीने में पांच बार सिविल अस्पताल का दौरा कर चुके हैं. कहा गया कि प्रमुख सचिव (स्वास्थ्य) डॉ जयंती रवि अब तक 20 बार अस्पताल का दौरा कर चुके हैं.
अस्पताल की सुविधाओं की तस्वीरों को भी पेश किया गया है.
निशुल्क इलाज, निजी अस्पताल भी आए आगे
अपने आवेदन में, राज्य सरकार ने अदालत को यह भी सूचित किया कि वार्ड बॉय और नर्सों को उनके मनोबल को बढ़ाने के लिए हर दिन 15 मिनट के लिए ‘प्रेरक ब्रीफिंग’ दी गई थी, और कहा कि उन्हें परामर्श सत्र और विश्राम अभ्यास भी कराए गए. इसने सिविल अस्पताल में सभी गतिविधियों पर सीएम द्वारा नज़र रखने के लिए एक कॉल सेंटर, शिकायत डेस्क, सीसीटीवी कैमरे और एक मॉनिटर रूम के होने की बात अदालत को बताई.
राज्य सरकार ने अदालत को यह भी आश्वासन दिया कि उसके आदेश को ध्यान में रखते हुए, निजी अस्पतालों से भी बात की जा रही है और उनमें से कई ने आवश्यकता होने पर कोविड-19 रोगियों के इलाज के लिए अपनी सहमति दी थी. उन्होंने कहा कि उनकी दरों पर भी फिर से बातचीत की जा रही है और जल्द ही अदालत को सूचित किया जाएगा.
इसने अदालत को सूचित किया कि कुछ अस्पताल कोविड-19 उपचार मुफ्त प्रदान कर रहे थे, जबकि जिन निजी अस्पतालों को चुना गया है, वे केवल अधिकारियों द्वारा निर्धारित की गई शुल्क ही लेंगे.
शुक्रवार को पारित अदालत के अधिकांश निर्देशों का भी जवाब दिया गया कि इसका पहले से ही अनुपालन किया जा रहा है या इसपर काम किया जा रहा है.
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