अमृतसर: अमृतसर के 29-वर्षीय तेजपाल सिंह को अपनी सेना की वर्दी पर गर्व था. यह भारतीय सेना की गहरे जैतून के हरे रंग या वर्दी नहीं थी, बल्कि उनके रूसी कमांडरों द्वारा जारी की गई हल्के हरे रंग की वर्दी थी.
रूस के सैन्य कैंप से अपनी रेगुलर वीडियो कॉल पर अपने नए अंदाज़ को दिखाते हुए उन्होंने अपनी पत्नी परमिंदर कौर से कहा, “मैं आखिरकार वर्दी में हूं.” जब सिंह को यूक्रेन के युद्धग्रस्त ज़ापोरिज्जिया क्षेत्र के टोकमक शहर में ले जाया गया, तो उनका संपर्क टूट गया. आखिरी बार उन्होंने 3 मार्च को उनसे बात की थी. वे उस महीने रूस-यूक्रेन युद्ध में एक विदेशी भूमि पर एक विदेशी देश के लिए लड़ते हुए मारे गए थे.
सिंह सिर्फ सेना में भर्ती होना चाहते थे, लेकिन वे कभी सफल नहीं हो पाए. अग्निपथ योजना की शुरुआत जिसके तहत 75 प्रतिशत भर्तियां केवल चार साल के लिए ही हो सकती हैं, ने उनके इस सपने को तोड़ कर रख दिया. जब तक उन्हें पता नहीं चला कि रूसी सेना उन्हें भर्ती कर लेगी. उन्हें बस मॉस्को जाना था.
सिंह संघर्ष में मारे गए दो भारतीय नागरिकों में से एक थे, जिनकी मृत्यु की पुष्टि विदेश मंत्रालय ने 11 जून को की थी. विदेश मंत्रालय ने इस साल मार्च में दो और मौतों की सूचना दी थी. 100 से ज़्यादा भारतीय कथित तौर पर ‘सहायक’ के तौर पर रूसी सेना में शामिल हो गए हैं और मॉस्को उन्हें भारत लौटने की अनुमति नहीं दे रहा है. MEA ने मांग की है कि भारतीयों को वापस भेजा जाए और आगे की सभी भर्तियां रोक दी जाएं. विदेश मंत्रालय ने 12 जून को एक बयान में कहा, “ऐसी गतिविधियां हमारी साझेदारी के अनुरूप नहीं होंगी.”
कई भारतीयों का आरोप है कि उन्हें रूसियों के साथ अग्रिम मोर्चे पर लड़ने के लिए धोखा दिया गया, जबकि उन्हें बताया गया था कि वे रसोइया और सहायक के तौर पर काम करने के लिए देश जा रहे हैं.
लगभग 30 भारतीय पुरुषों ने मदद के लिए भारतीय दूतावास से संपर्क किया है. इनमें सिंह का एक दोस्त भी शामिल है.
परमिंदर कौर ने कहा, “वे वही दोस्त है जिसने मुझे बताया कि तेजपाल अब हमारे बीच नहीं है. वे अब भारत लौटने की कोशिश भी कर रहा है.” उनके दो बच्चे — छह साल का बेटा और दो साल की बेटी — अमृतसर में परिवार के छोटे से घर में रूसी सेना की वर्दी में अपने पिता की तस्वीर के सामने एक-दूसरे के साथ खेल रहे हैं. ड्राइंग रूम में तस्वीर के बगल में सिंह के छोटे भाई की तस्वीर टंगी है, जिनकी 2019 में दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई थी.
सिंह के परिवार का कहना है कि वे अपनी मर्ज़ी से रूस गए थे. वे 20 दिसंबर को थाईलैंड गए, 12 जनवरी को मॉस्को पहुंचे और तीन दिन बाद रूसी सेना में भर्ती हुए. परिवार को 9 जून को उनकी मौत के बारे में पता चला.
सिंह का भारत छोड़ना युवाओं, खासकर पंजाब और हरियाणा के युवाओं की हताशा को दर्शाता है, जो कनाडा, अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और अब रूस में अच्छे मौकों की तलाश में देश छोड़कर जाना चाहते हैं. यह ‘कनाडा ड्रीम’ का विकल्प है.
कई भारतीयों का आरोप है कि उन्हें रूसियों के साथ अग्रिम मोर्चे पर लड़ने के लिए धोखा दिया गया, जबकि उन्हें बताया गया था कि वे रसोइया और सहायक के रूप में काम करने के लिए रूस जा रहे हैं.
पंजाब पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, “रूस एक ऐसा मौका है जहां युवा काम की तलाश में जाते हैं और वहां रहने की कीमत बहुत सस्ती है. वे इसके लिए कई ट्रैवल एजेंसियों की मदद लेते हैं, लेकिन न तो एजेंट और न ही नौकरी के लिए आवेदन करने वाला व्यक्ति वास्तव में यह समझता है कि वे क्या कर रहे हैं.”
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सेना में जाने का सपना
अमृतसर में पुलिस अधिकारी ने कहा कि युवा केवल दो हफ्ते की ट्रेनिंग के बाद युद्ध में शामिल होने से जुड़े जोखिम के बारे में नहीं जानते हैं.
तेजपाल सिंह एक लंबे कद के व्यक्ति थे, जिनका शरीर सुगठित था. किशोरावस्था से ही उनके परिचित और मित्र उनकी तारीफ करते थे और उन्हें कहते थे कि वे सेना के लिए एकदम परफेक्ट हैं. सिंह को इस सपने पर विश्वास था, लेकिन भारतीय सेना में शामिल होने के लिए वर्षों तक प्रयास करने के बावजूद कोई परिणाम नहीं निकला.
उनकी पत्नी ने कहा, “उन्होंने तीन-चार बार सेना में शामिल होने की कोशिश की, लेकिन किस्मत नहीं बदली. फिर कोविड आया और भर्तियां बंद हो गईं, जिसके बाद अग्निपथ योजना की घोषणा की गई. इससे सेना में शामिल होने का उनका सपना टूट गया.”
हालांकि, सिंह ने उम्मीद नहीं खोई. जब रूस-यूक्रेन युद्ध छिड़ा, तो उन्होंने घटनाक्रम पर बहुत बारीकी से नज़र रखना शुरू कर दिया, यहां तक कि कौर को वीडियो भी दिखाए और इसके पीछे की राजनीति के बारे में बताया. सिंह पहले तीन साल तक साइप्रस में रहे थे और संघर्ष ने उन्हें रोमांचित कर दिया था. 2023 में जब उन्हें पता चला कि रूसी सशस्त्र बलों के लिए भर्ती कर रहे हैं, तो वे तुरंत जाना चाहते थे, लेकिन इसमें परिवार की मर्ज़ी नहीं जुड़ी थी.
उनके चाचा सतविंदर सिंह ने कहा, “महीनों तक, वो कहता रहा कि मैं सेना में शामिल होने के लिए यूक्रेन जाना चाहता हूं. हमने उसे हतोत्साहित किया और कहा कि वहां स्थिति खतरनाक है, लेकिन उसने हमारी बात नहीं सुनी.”
2023 में सिंह ने सोशल मीडिया पर रूस में काम करने वाले भारतीयों से संपर्क किया. उन्होंने वीडियो कॉल पर रूस के बारे में अच्छी बातें कहीं, अच्छी सैलरी की बात की और इसमें शामिल जोखिमों को कम करके आंका. कौर ने कहा, “जिन भाड़े के सैनिकों के साथ वो संपर्क में थे, उन्होंने तेजपाल से कहा कि रूस में सब कुछ सुरक्षित है और चिंता न करें. वे अच्छी कमाई कर रहे थे और कुछ समय से उन्हें कोई नुकसान नहीं पहुंचा था.”
दिसंबर 2023 में परिवार का दावा है कि उन्होंने सिंह को अन्य चीज़ों से ध्यान हटाने के लिए थाईलैंड जाने दिया. हालांकि, वहां पहुंचने के बाद उन्होंने अपनी पत्नी को बताया कि वे वापस नहीं आएंगे क्योंकि वे मॉस्को जा रहे हैं. जनवरी में वे मॉस्को पहुंचे और सेना में भर्ती हो गए. कौर ने कहा कि 16 जनवरी को उनकी ट्रेनिंग शुरू हुई थी.
कौर ने कहा, “वहां पहुंचने पर वो काफी खुश थे. उन्होंने गर्व से सेना की वर्दी में अपनी तस्वीर भेजी और हमें बताया कि ट्रेनिंगी शुरू हो गई है. उन्होंने दो हफ्ते तक ट्रेनिंग की.”
अमृतसर में पुलिस अधिकारी ने कहा कि युवा केवल दो हफ्ते की ट्रेनिंग के बाद युद्ध में शामिल होने से जुड़े जोखिम के बारे में नहीं जानते हैं.
उन्होंने कहा, “वे यह नहीं समझते कि मोर्चे पर लड़ने से पहले कितने सालों की ट्रेनिंग की ज़रूरत होती है. उन्हें बिना ज़्यादा सोचे-समझे युद्ध में झोंक दिया जाता है.”
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हताशा
सिंह के दो बच्चे अरमानदीप और गुरनाज़ इतने छोटे हैं कि उन्हें यह भी नहीं पता कि उनके पिता की मृत्यु हो गई है. वे कौर के पास दौड़ते हुए हंसते हैं, जबकि कौर अपने पति की तस्वीर अपने हाथों में लिए बैठी हैं.
जनवरी में सिंह के मॉस्को पहुंचने के बाद, वे 3 मार्च तक अपने परिवार के साथ लगातार संपर्क में थे. तभी उन्होंने उन्हें बताया कि उनका फोन अब छीन लिया जा रहा है, क्योंकि वे मोर्चे की ओर जा रहे हैं और वे 10 दिनों तक संपर्क में नहीं रह पाएंगे.
हालांकि, 10 दिन महीने में बदल गए और उनके परिवार की चिंता बढ़ने लगी. कौर ने यूक्रेन में अपने परिचितों को फोन किए, लेकिन उन्होंने सिंह के ठिकाने के बारे में उन्हें नहीं बताया, जैसे कि वे किसी अग्रिम चौकी पर हैं और आश्वासन दिया कि वे जल्द ही उनसे संपर्क करेंगे.
जून तक कौर हताश हो गईं और उन्होंने अपने पति के सहकर्मियों पर सच्चाई बताने का दबाव डाला. उनमें से एक ने आखिरकार स्वीकार किया कि सिंह की मार्च में ही हत्या हो गई थी.
कौर ने कहा, “सबसे बुरी बात यह है कि यह खबर हमारे पास उचित चैनलों के ज़रिए नहीं आई. हमें उनके ठिकाने के बारे में जानने के लिए भीख मांगनी पड़ी.”
अगर सिंह भारतीय सेना में सेवा करते हुए मारे गए होते, तो उनके शव को तिरंगे में लपेटकर घर लाया जाता.
उन्होंने कहा, “मैं बस यही चाहती हूं कि उनका शव भारत वापस लाया जाए. अगर उनका शव नहीं तो उनकी वर्दी…उनका सामान…कुछ और. ताकि हम उन्हें अलविदा कह सकें.”
कौर ने रूस में भारतीय दूतावास से संपर्क किया है और उन्हें सिंह की पहचान के लिए ज़रूरी दस्तावेज़ भी भेजे हैं. दूतावास ने तीन-चार दिनों में फोन करने का वादा किया है. वे उस फोन कॉल और अपने पति के—इंतज़ार में हैं.
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