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Sunday, 22 December, 2024
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भारी नुकसान के बाद, गारमेंट हब का तमिलनाडु सरकार को संदेश- प्रवासियों की लगातार आवाजाही रुकनी चाहिए

तमिलनाडु के उद्योग मंत्री थंगम थेन्नारसु ने बुधवार को दिप्रिंट को बताया कि उनकी सरकार ऐसे किसी भी प्रस्ताव पर विचार करने को तैयार है जो श्रमिकों और उद्योग दोनों के लिए 'फ़ायदे का सौदा' हो.

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तिरुपुर: पिछले डेढ़ साल से बार-बार हो रहे लॉकडाउन का भार तमिलनाडु के तिरुपुर में एक होजरी फैक्ट्री मे काम करने वाले बिहारी मजदूर मजार हुसैन के लिए असहनीय सा हो चला है. हुसैन उन दो लाख प्रवासी श्रमिकों की आबादी का हिस्सा हैं जो तमिलनाडु के परिधान निर्यात वाले इंजन को गति देने के लिए ‘ईंधन’ का काम करते है. एक साल से ज़्यादा समय तक की महामारी के कारण होने वाली बंदी, आपूर्ति आदेश (सप्लाइ ऑर्डर) रद्द होने और भारी नुकसान झेलने के बाद अगर कोई एक ऐसी बात है जिसपर हुसैन जैसे अन्य श्रमिक और कारखानों के मालिक भी सहमत हैं, तो वह यह है कि प्रवासी श्रमिकों की लगातार आवाजाही रुकनी चाहिए.

जैसे-जैसे तीसरी लहर की आशंका के बारे में सार्वजनिक चर्चा बढ़ती जा रही है, इन कारखानों के मालिक और कामगार अपने काम में एक और व्यवधान की संभावना से कांप जाते हैं.

दर्जी का काम करने वाले 38-वर्षीय हुसैन कहते हैं, ‘मैं इन लॉकडाउन के कारण तीन बार घर जाना -आना कर चुका हूं और कितनी बार मुझे यह आवाजाही करनी होगी? मैं हमेशा के लिए अपने गांव में नहीं रह सकता, लेकिन अगर यहां कोई काम नहीं होता है और लगातार बंदी रहती है तो मैं यहां भी तो नहीं रह सकता.

इनमें से किसी भी लॉकडाउन में हुसैन या बिहार के उनके किसी साथी कामगार को उनका वेतन नहीं मिला. एम.के.स्टालिन सरकार द्वारा अपना पहला बजट पेश किए जाने से पूर्व तिरुपुर एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष, राजा एम. षणमुगम ने उनसे ऐसी विशेष सहायता की मांग कि हैं जो प्रवासी श्रमिकों की व्यग्र होकर घर वापसी की समस्या समाप्त कर सके.

उनके अनुसार, प्रवासी श्रमिकों के लिए तिरुपुर जिले में हीं लगभग एक लाख घरों का निर्माण किया जाना चाहिए, ताकि हर बार लॉकडाउन होने पर, प्रवासी श्रमिक अपना सामान समेट कर अपने गांव वापस न चले जायें.

षणमुगम कहते हैं, ‘अगर उनके पास यहां स्थाई घर होगा तो वे अपने परिवार को भी तिरुपुर ले आयेंगे. यह हम दोनों के लिए फ़ायदे की स्थिति होगी. उनके पास उनका परिवार और एक स्थाई घर होगा. जबकि हमारे पास प्रशिक्षित करने के लिए एक बड़ा श्रमिक बल होगा.’

तमिलनाडु के उद्योग मंत्री थंगम थेन्नारसु ने बुधवार को दिप्रिंट को बताया कि उनकी सरकार ऐसे किसी भी प्रस्ताव पर विचार करने को तैयार है जो श्रमिकों और उद्योग दोनों के लिए ‘फ़ायदे का सौदा’ हो.

थेन्नारसु ने कहा कि, ‘तीसरी लहर की अप्रत्याशित घटना होने पर हमारा मुख्य ध्यान लोगों को सुरक्षित रखने के लिए वायरस के प्रसार को रोकने पर हीं होगा. फिर भी, इसके साथ-साथ, हम उद्योग की सुरक्षा पर भी पूरा-पूरा ध्यान देंगे.’

तमिलनाडु के उद्योग मंत्री ने हमें बताया कि दूसरी लहर के दौरान सरकार सभी हितधारकों के साथ लगातार संपर्क में थी और उसने यह सुनिश्चित किया कि उद्योग का काम पूरी तरह से रुक न जाए. उन्होंने यह भी बताया कि हमने कारखानों को 20 प्रतिशत श्रमिक क्षमता के साथ काम करने की अनुमति दी थी, जिसे कोविड की लहर की गंभीरता कम होने के साथ धीरे-धीरे बढ़ाया गया.

थेन्नारासु ने यह भी कहा कि सरकार ने कारखाने के मालिकों को उनके श्रमिकों के लिए टीकाकरण अभियान चलाने की विशेष अनुमति भी दी है.

‘दूसरी लहर ज्यादा हानिकारक थी’

वारसा इंटरनेशनल गारमेंट फ़ैक्टरी के सिलाई वाले अनुभाग में, अपने काम के प्रति उत्सुक श्रमिकों को एक साफ-सुथरी पंक्ति में बैठाया जाता है. सोमवार को जब दिप्रिंट ने इस परिसर का दौरा किया तो कमरा खचाखच भरा हुआ था.

हालांकि, सिर्फ़ एक महीने पहले ही, यह कारखाना अपने उत्पादन लक्ष्य को पूरा करने के लिए संघर्ष कर रहा था और इसका केवल 10 प्रतिशत कार्य बल हीं काम पर आ पा रहा था. यह सब इस साल मार्च – अप्रैल में शुरू हुई कोविड की दूसरी लहर का परिणाम था जिसके कारण कई जगहों पर सख़्त लॉकडाउन लगाया गया था. तिरुपुर में, अप्रैल के अंत और जून के मध्य के बीच लगभग छह सप्ताह तक सारा कारोबार बंद रहा. उस बंदी के दुष्परिणाम अब भी महसूस किए जा रहे हैं.

तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई से लगभग 400 किलोमीटर की दूरी पर स्थित तिरुपुर भारत के टेक्सटाइल हब के रूप में जाना जाता है और यह भारत से दुनिया के बाकी हिस्सों में बुने हुए कपड़े (निटवेर) के निर्यात में अधिकतम हिस्सा रखता है. षणमुगम ने कहा कि तिरुपुर क्लस्टर के रूप में जाना जाने वाला यह उद्योग लगभग छह लाख श्रमिकों को रोजगार देता है, जिनमें दो लाख प्रवासी श्रमिक, ज्यादातर बिहार और उत्तर प्रदेश के, भी शामिल हैं.

दूसरे लॉकडाउन के दौरान करीब 90 फीसदी प्रवासी कामगार चले गए। इनमें से सिर्फ 60-70 फीसदी ही लौटे हैं। | मनीषा मंडल/ दिप्रिंट

उन्होंने आगे कहा कि कि अप्रैल के मध्य में आसन्न लॉकडाउन और कोविड की दूसरी लहर के बारे में उड़ती अफवाहों ने इन दो लाख कर्मचारियों में से लगभग 90 प्रतिशत को उनके गांवों में वापस भेजने का काम किया. उनके अनुसार मई के मध्य में कारखानों के दुबारा खुलने के बाद से उनमें से केवल 60 से 70 प्रतिशत ही वापस लौटे हैं.

षणमुगम कहते हैं, “हमारे लिए पहली लहर की तुलना में दूसरी लहर बहुत अधिक हानिकारक थी. हम मौसमी उत्पादों का निर्माण करते हैं और यदि हमारा मौसम चला जाता है सारा-का-सारा बाहर भेजे जाना वाला माल (शिपमेंट) बेकार हो जाता है.‘

इसका कारण बताते हुए षणमुगम कहते हैं, ‘पहले लॉकडाउन के दौरान पूरी दुनिया एक समान स्थिति का सामना रही थी, इसलिए दुनिया भर में आपसी समझ और आपसी सहयोग के साथ दुबारा काम शुरू हुआ. परंतु कोविड की दूसरी लहर के दौरान भारत अलग-थलग पड़ा था, जबकि बाकी दुनिया ठीक-ठाक काम कर रही थी.’

तिरुपुर वस्त्र उद्योग ने वित्तीय वर्ष 2020-21 में लगभग 25,000 करोड़ रुपये का कुल कारोबार दर्ज किया, जो कि 2019-20 में दर्ज किए गए कारोबार, 27,000 करोड़ रुपये, से थोडा हीं कम है.


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षणमुगम ने कहा, ‘यह स्थिति काफी अच्छी थी, ख़ासकर यह देखते हुए कि हमारा काम लगभग तीन महीने तक बंद था. परंतु, दूसरी लहर से कारोबार पर बहुत अधिक असर पड़ेगा.’

अब, एक संभावित तीसरी लहर की चर्चाओं ने कारखाने के मालिकों और श्रमिकों दोनों को चिंतित कर दिया है.

‘जब मेरे पास बिल्कुल पैसे नहीं बचे तो में वापस चला गया’

तिरुपुर वापस आने के एक महीने के बाद भी हुसैन नौकरी खोजने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. वह एक अनौपचारिक कर्मी (कैश़ूअल वॉर्कर) हैं और घर वापस लौटने पर उनकी नौकरी छूट गई. इस इलाक़े के व्यवसायों पर कोविड के कारण काम करने की 5 बजे की समय सीमा उनकी नौकरी की तलाश को और भी कठिन बना रही है.

श्रमिक इस बात को लेकर भी आशंकित हैं कि वे किस कंपनी में दुबारा शामिल हों, क्योंकि वे सब एक ऐसी जगह की तलाश में हैं जो किसी और लॉकडाउन के मामले में उनका साथ दे. दूसरी तरफ, कई कारखानों के मालिक मौजूदा स्थायी कर्मचारियों के साथ हीं काम चला रहे हैं और किसी अन्य श्रमिक को काम पर नहीं ले रहे हैं, ताकि तालाबंदी के दौरान हुए नुकसान की भरपाई की जा सके.

हुसैन कहते हैं, ‘मुझे अपना वह बोनस भी नहीं मिला, जो मुझे पहले लॉकडाउन के समय मिलने वाला था. मैं एक होस्टल से दूसरे होस्टल में घूमता रहा और फिर जब मेरे पास बिल्कुल पैसा नहीं बचा तो मैं अपने घर वापस चला गया. अमीर लोगों को तो लॉकडाउन के कारण किसी तरह की समस्या का सामना नहीं करना पड़ता, हम प्रवासी कामगार हीं हैं जिन्हें इसका असल खामियाजा भुगतना पड़ रहा है.’

मजार हुसैन (सबसे दाहिनी ओर), अन्य प्रवासी कामगारों के साथ, जो दूसरी लहर के दौरान तिरुप्पुर छोड़ चुके थे, लेकिन अब वापस आ गए हैं | मनीषा मंडल/ दिप्रिंट

बिहार के सीतामढ़ी जिले के एक साथी कार्यकर्ता, 22 वर्षीय राजू कुमार, तीसरे लॉकडाउन के बारे में चल रही चर्चाओं की वजह से अभी से चिंतित है. लगभग 200-300 रुपये प्रति दिन की दैनिक मजदूरी (उनका कहना है कि पिछले एक साल में लगातार आवाजाही से मजदूरी की दर भी प्रभावित हुई है) के साथ, वह बिल्कुल नहीं जानते कि अगर कोई तीसरी लहर आई तो वह कैसे जिंदा बचेंगे.

स्थायी नौकरी वालों के लिए स्थिति थोड़ी कम गंभीर है

कमाल अहमद, जो मूल रूप से लखनऊ के रहने वाले हैं, पिछले आठ साल से तिरुपुर में काम कर रहे हैं. नेताजी अपैरल पार्क की एक फैक्ट्री में दर्जी के रूप मे कार्यरत अहमद दूसरे लॉकडाउन के बाद अभी-अभी वापस लौटे हैं. पहले लॉकडाउन के दौरान उनकी पत्नी और बच्चे उनके साथ तिरुपुर में रुके थे. लेकिन बाद में पैसे की तंगी के कारण उनके परिवार को यह सुनिश्चित करने के लिए भी संघर्ष करना पड़ा कि उन्हें दो शाम का भोजन मिल सके. इसलिए जब दूसरी बार बंदी हुई तो अहमद इस तंगहाली का जोखिम दुबारा उठाने को तैयार नहीं थे और इसी वजह से वे अपने परिवार के साथ लखनऊ वापस चले गये.

उन्होंने बताया कि कारखाने के मालिक ने उनके घर पर रहने और लौटने दोनों स्थिति में उनका साथ दिया. वे कहते हैं, ‘दूसरी लहर के दौरान मेरे पास पैसों की कमी हो गई थी, लेकिन कारखानेवालों ने मेरी पूरी मदद की. इसलिए जैसे हीं मैं वापस आया, मैं तुरंत काम पर आ गया.’ उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें दोनों टीके लग गये हैं.

लेकिन उनका कहना है कि पैसों की जबरदस्त कमी के कारण एक महीने पहले तिरुपुर लौटने के बाद से वह अपने घर पर कोई भी पैसा नहीं भेज पा रहे हैं.

‘बंदी का विकल्प अब नहीं रहा’

इसे एक अत्यंत संघर्षपूर्ण दौर बताते हुए, षणमुगम ने कहा कि कई ब्रांड अपने ऑर्डर रद्द कर रहे हैं, जबकि बंदरगाहों पर कंटेनर की भारी कमी की वजह से कई सामानों की डिलीवरी समुद्र की बजाए हवाई मार्ग से करनी पद रही है जो कि 10 गुना अधिक महंगा पड़ता है.

तिरुपुर में एक कारखाने में श्रमिक | मनीषा मंडल | दिप्रिंट

29 वर्षीय विनीता रमेश, जो बच्चों के कपड़ों (किड्स वेयर) का निर्यात करने वाली गोमाथा इंटरनेशनल के प्रमुखों मे से एक हैं, ने बताया कि दूसरी लहर के दौरान हुए काम के छह सप्ताह के नुकसान के कारण वे समय पर ऑर्डर पूरा करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं.

इस बारे में और बताते हुए बे कहती हैं, ‘इस बार की बंदी के दौरान, हमारे कई नियमित ग्राहकों ने वियतनाम और चीन की ओर रुख कर लिया. कपड़ों के समय पर नहीं पहुंचने और कंटेनरों की कमी के कारण बंदरगाहों पर लगी भीड़भाड़ के कारण एक अतिरिक्त दबाव भी है.‘

कोविड की तीसरी लहर की आशंका के बावजूद, वर्तमान हालात में एक और बंदी का विचार इस व्यापार के मालिकों और श्रमिकों दोनों के लिए अस्वीकार्य है.

षणमुगम कहते हैं, ‘कारखाने बंद करना अब कोई विकल्प नहीं है. काम फिर से शुरू करना बहुत कठिन होता है, जिसमें कम-से-कम पांच से छह सप्ताह लग जाते हैं.‘

षणमुगम के अनुसार सरकार को अब अपना ध्यान ज्यादा से ज्यादा लोगों को टीका लगाने पर देना चाहिए. वे यह भी कहते हैं कि महामारी के कारण घर से काम करना ‘सामान्य बात’ हो गयी है जिसके कारण फॉर्मल वेयर की तुलना में कैश़ूअल वेयर की मांग बढ़ रही है. उनके अनुसार इस उद्योग को अपने कारोबार को फिर से मजबूती के साथ खड़ा करने के लिए इस बदलाव का फायदा उठाना चाहिए.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें )

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