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Thursday, 21 November, 2024
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अयोध्या फैसले के बाद ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर बनारस में आंदोलन की हुई घोषणा

अयोध्या में बाबरी मस्जिद के साथ ही उन तमाम मस्जिदों को परिवर्तित करने की मांग उठने लगी जहां पूर्व में कथित तौर पर मंदिर रहे थे, या मंदिर होने का दावा और विवाद था.

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वाराणसी: अयोध्‍या के बाद अब वाराणसी के ज्ञानवापी मस्जिद का मामला गरमाने लगा है. कानूनी दांव-पेंच के बीच बुधवार को काशी विश्वनाथ ज्ञानवापी मुक्ति आंदोलन की घोषणा की गई है. इसकी घोषणा समाजवादी पार्टी में चाचा-भतीजे के बीच टकराव के बाद शिवपाल सिंह यादव के साथ उनकी पार्टी (प्रगतिशील समाजवादी पार्टी) में शामिल हुए सुधीर सिंह ने की है.

आंदोलन की घोषणा से पहले मंगलवार को सुधीर सिंह ने वाराणासी में सिविल जज की कोर्ट में ज्ञानवापी परिसर को हिंदुओं को सौंप देने की मांग करने को लेकर एक वाद भी दाखिल किया जिसमें कहा गया है कि, ‘ज्ञानवापी मस्जिद पहले भगवान शिव का मंदिर था जिसे मुगल आक्रमणकारियों ने ध्वस्त कर मस्जिद बना दिया था, इसलिए हम हिंदुओं को उनके धार्मिक आस्था एवं राग भोग, पूजा-पाठ, दर्शन, परिक्रमा, इतिहास, अधिकारों को संरक्षित करने हेतु अनुमति दी जाए. इस पर सुनवाई की तारीख अभी तय नहीं हुई है.’

शुक्रवार की शाम 7 बजे अस्सी घाट से श्रीकाशी विश्वनाथ ज्ञानवापी मुक्ति आंदोलन की घोषणा करते हुए सुधीर सिंह ने कहा कि, ‘जो काशी विश्वनाथ मंदिर है वो वहीं पर स्थित है जहां पर ज्ञानवापी मस्जिद स्थित है, पहले मदिर वहीं पर था जिसे मुगल आक्रमणकारियों ने तोड़कर मस्जिद बना दिया.’ सुधीर सिंह कहते हैं कि मस्जिद के परिसर में कुआं है उस कुएं में द्वादश ज्योतिर्लिंग है जो उसके अंदर तोड़कर फेंका गया है.

सुधीर सिंह ने बुधवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में ऐलान किया कि ज्ञानवापी मुक्ति आंदोलन के प्रथम चरण में महाशिवरात्रि के दिन काशी के सभी हिंदुओं से अपने घरों पर शाम आठ से साढ़े आठ जबे तक हर-हर महादेव संग घंटा-घड़ियाल बजाने और शंखनाद की अपील की. बता दें कि ज्ञानवापी परिक्षेत्र में काशी विश्वनाथ मंदिर और मस्जिद दोनों हैं. इससे जुड़े विवाद की सुनवाई वर्ष 1991 से जिले की अदालत में चल रही है.

सुधीर सिंह कहते हैं, ‘आगामी रविवार को हम मुस्लिम धर्म गुरु मुफ्ती बनारस मौलाना बातिल और शहर काज़ी के यहां जाकर उनसे इस आंदोलन में साथ देने की अपील करेंगे और उनसे कहेंगे कि ये हिंदुओं का मंदिर है और कोई साधारण मंदिर नहीं है, ये काशी विश्वनाथ का मंदिर है. ज्ञानवापी मस्जिद की जमीन को मंदिर को सौंप दिया जाए. और इस आंदोलन में वह हमारा साथ दें.’

प्रेस नोट/ रिज़वाना तबस्सुम

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सुधीर सिंह की अपील के बारे में ज्ञानवापी मस्जिद की एडमिनिस्ट्रेटिव कमिटी के सदस्य, अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद, वाराणसी के जॉइंट सेक्रटरी एस. एम. यासीन बताते हैं कि, वो (सुधीर सिंह) जो कुछ भी कह रहे हैं वो कानून की नज़र में ‘खिलाफ-ए-कानून’ है. इस पर जिला प्रशासन को, हुकूमत-ए-हिंद को और यूपी सरकार को इसका संज्ञाण लेना चाहिए.

सैयद यासीन कहते हैं, ‘हमारा एतराज़ प्रशासन से है, हमने एसएसपी को लिखा भी है कि, ‘शांतिपूर्ण ढंग से जो लोग प्रदर्शन कर रहे थे, वो तो देशद्रोही हो गए और जो आदमी खुलेआम सांप्रदायिकता फैला रहा है उसके खिलाफ क्या होगा. वो (सुधीर सिंह) कुछ भी कहें हमें उनके ऊपर तीखी टिप्पणी करने का कोई अधिकार नहीं है, हम सीधे जिला प्रशासन और हुकूमत से बात करते हैं.’

ज्ञानवापी और विश्वनाथ मंदिर के इस मामले पर वाराणसी जिले के सामाजिक कार्यकर्ता बल्लभ पाण्डेय कहते हैं कि, ‘बनारस कबीर की, तुलसी की, रैदास की, शिव की और बिस्मिल्लाह खान की धरती रही है, यहां पर इस तरह के कृत्य बहुत ही शर्मनाक है, ये केवल राजनीतिक स्टंट हैं, लोग हाइलाइट होने के लिए कुछ भी कर रहे हैं, निश्चित रूप से बनारसवासियों को इसे नकारना चाहिए. प्रशासन को भी इसे स्वत: संज्ञाण में लेना चाहिए कि जो मामला कोर्ट में है और जिस मामले पर 1991 का एक फैसला आ चुका है कि राम मंदिर के अलावा किसी भी धर्मस्थान का नया मुकदमा नहीं होगा. इन चीजों को ध्यान में रखते हुए प्रशासन को कारवाई करनी चाहिए, चाहे वो कितना भी बड़ा नेता हो.

बनारस स्थित ज्ञानवापी मस्जिद | फोटो: रिज़वाना तबस्सुम

क्या है प्लेसेज़ ऑफ़ वर्शिप (स्पेशल प्रोविज़न) एक्ट, 1991?

नब्बे के दशक की शुरुआत में राम जन्मभूमि आंदोलन प्रखर रूप से सामने आया. 1991 के लोकसभा चुनाव के दौरान तमिलनाडु के श्रीपेरुम्बुदुर में एक चुनावी सभा के दौरान, लिट्टे के आत्मघाती हमले में राजीव गांधी की हत्या कर दी गई. इसके बाद नरसिंह राव जून 1991 में प्रधानमंत्री पद पर आसीन हुए.

यह वो समय था, जब रामजन्मभूमि आंदोलन अपने चरम पर था. अयोध्या में बाबरी मस्जिद के साथ ही उन तमाम मस्जिदों को परिवर्तित करने की मांग उठने लगी जहां पूर्व में कथित तौर पर मंदिर रहे थे, या मंदिर होने का दावा और विवाद था. ऐसे समय में नरसिंह राव की सरकार ने सांप्रदायिक उन्माद को शांत करने के लिए एक कानून बनाना आवश्यक समझा और वह कानून था, प्लेसेज़ ऑफ़ वर्शिप एक्ट यानी उपासना स्थल अधिनियम.

तत्कालीन गृह मंत्री, शंकरराव चव्हाण ने 10 सितंबर 1991 में लोकसभा में बहस के दौरान इस बिल को भारत के प्रेम, शांति और आपसी भाईचारे के महान संस्कारों का एक सूचक बताया और कहा कि ‘सभी धर्मों के प्रति सहिष्णुता हमारी महान सभ्यता का चरित्र है.’

यह एक्ट 15 अगस्त 1947 तक अस्तित्व में आए हुए किसी भी धर्म के पूजा स्थल को एक आस्था से दूसरे धर्म में परिवर्तित करने और किसी स्मारक के धार्मिक आधार पर रखरखाव पर रोक लगाता है.

यह एक्ट मान्यता प्राप्त प्राचीन स्मारकों पर लागू नहीं होगा. यह अधिनियम से उत्तर प्रदेश के अयोध्या में स्थित राम जन्म भूमि-बाबरी मस्जिद और उक्त स्थान या पूजा स्थल से संबंधित किसी भी वाद, अपील या अन्य कार्यवाही के लिए लागू नहीं होता है. यानी इस अधिनियम या कानून को अयोध्या विवाद से अलग रखा गया, क्योंकि यह माना गया कि इसका विवाद 1947 से पहले से चल रहा है. इस अधिनियम ने स्पष्ट रूप से अयोध्या विवाद से संबंधित घटनाओं को वापस करने की अक्षमता को स्वीकार किया. यह कानून जम्मू-कश्मीर को छोड़कर पूरे भारत के लिए था.


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गौरतलब है कि अयोध्या में राम मंदिर पर आए फैसले के बाद अब द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद के पुरातात्विक को लेकर खुदाई की मांग उठने लगी है. इसी कड़ी में ज्ञानवापी मस्जिद परिसर का पुरातात्विक सर्वेक्षण कराने की अपील प्राचीन मूर्ति स्वयंभू ज्योतिर्लिंग भगवान विश्वेश्वरनाथ की ओर से सिविल जज (सीनियर डिवीजन-फास्ट ट्रैक कोर्ट) की अदालत में प्रार्थना पत्र देकर की गई थी.

यह सुनवाई सिविल जज (सीनियर डिवीजन-फास्ट ट्रैक) आशुतोष तिवारी की अदालत में चल रही है. इससे पूर्व सोमवार को इस मामले की सुनवाई के दौरान विपक्षियों की ओर से सिविल जज की अदालत में सुनवाई के क्षेत्राधिकार को लेकर प्रार्थना पत्र दिया था. अदालत ने इसपर सुनवाई के लिए 20 फरवरी की तिथि मुकर्रर की थी. तीन दिन बाद गुरुवार को प्रार्थना पत्र को लेकर सुनवाई शुरू होने के बाद मामले की सुनवाई की अगली तिथि 25 फरवरी तय की गई है.

(लेखिका स्वतंत्र पत्रकार हैं)

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2 टिप्पणी

  1. मस्जिद उपासना स्थल नहीं है इसलिए इस केस में सुनवाई होगी,स्वतंत्र पत्रकार को यह भी पता नहीं कि मस्जिद में ख़ुदा है कि कहीं और तब मस्जिद में कौन है जिसकी उपासना की जाती मूर्ख पत्रकार हाहाहाहाहा।

  2. मंदिर उपासना स्थल है, अलग-अलग मंदिरों में अलग-अलग देवी-देवताओं की उपासना की जाती है, लेकिन मस्जिद में कोई खुदा नहीं होता जिसकी उपासना होगी मस्जिद को उपासना स्थल कहना भी पाप है,स्वतंत्र पत्रकार को यह पता होना चाहिए कि मंदिर और मस्जिद के बारे में और जानकारी प्राप्त करें।

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