मुंबई : फिल्म अभिनेत्री दीपिका पादुकोण ने बुधवार को ‘ऑफ द कफ’ कार्यक्रम में बात करते हुए कहा, यह उचित नहीं है कि केवल बॉलीवुड हस्तियों से ही सार्वजनिक मंचों पर सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर खुलकर बात की जाये. व्यवसायी या खिलाड़ी उनसे यह अपेक्षा नहीं की जाती है.
दिप्रिंट के एडिटर-इन-चीफ शेखर गुप्ता के साथ मुंबई में ‘ऑफ द कफ’ कार्यक्रम में बात करते हुए दीपिका ने कहा कि वह अपना दृष्टिकोण वहां रखती हैं, जहां बदलाव के लिए कोई उम्मीद हो.
33 वर्षीय अभिनेत्री ने कहा, ‘सही है या गलत मैं नहीं जानती लेकिन व्यवसायियों और क्रिकेटरों से ये सवाल कभी नहीं पूछे जाते हैं. कृपया रतन टाटा जी से आरे के बारे में पूछें. मैं वास्तव में जानना चाहती हूं कि उनका इस मुद्दे पर क्या कहना है.’
दीपिका ने कहा, ‘हमें सार्वजनिक मंचों पर बुलाया जाता है और सभी विषयों पर हमसे विचार रखने को कहा जाता है. आपको कुछ क्रिकेटरों से मीटू मूवमेंट के बारे में पूछना चाहिए. मैं ऐसा नहीं देख पा रही हूं कि यदि मैं अपने आप को एक मंच पर एक्सपोज़ करती हूं, तो आप मुझसे जो भी प्रश्न चाहे पूछ सकते हैं. लेकिन केवल एक फिल्म स्टार के लिए ही क्यों? क्या हम सभी जिम्मेदार नागरिक नहीं हैं और क्या हम सभी की राय नहीं है?’
अभिनेत्री ने कहा, ‘मुझे ऐसे तरीके से काम करना पसंद है जहां मैं बदलाव देख सकती हूं. मैं अपनी ऊर्जा को मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता में लगाती हूं.’
एक सवाल के जवाब में कि प्रभावशाली अभिनेताओं ने देशभर में मॉब लिंचिंग जैसे मुद्दों पर बात क्यों नहीं की, दीपिका ने कहा कि वह इस तरह से काम करना पसंद करती हैं जहां वह बदलाव देख सकती हैं और अगर उन्हें यही सब करना है तो अभिनय बंद कर देना चाहिए और एक एक्टिविस्ट की भूमिका में आ जाना चाहिए.
आरे विवाद के बारे में दीपिका ने सवाल किया कि वे लोग चले गए हैं. 2,000 से अधिक पेड़ काट दिए गए हैं और सुप्रीम कोर्ट ने तब हस्तक्षेप किया, जब हमारे पास चार पेड़ बचे हैं. अगर मैं कुछ कहूं तो क्या अब स्थिति बदलने वाली है?
उन्होंने कहा, इस तरह की स्थितियों पर प्रतिक्रिया देने का सभी का तरीका अलग है और पद्मावत मामला भी उसी का एक उदाहरण है.
पद्मावत घटना भी ऐसी ही जहां लोग मेरे सिर को काटने और मेरी नाक काटने की धमकी दे रहे थे, क्या आपने मुझसे कोई प्रतिकूल प्रतिक्रिया देखी? दूसरों ने जवाब दिया क्योंकि जवाब देने का यह अन्य तरीका है. सभी को एक ही तरह से जवाब नहीं देना चाहिए. इसका मतलब यह नहीं है कि मेरे पास कोई दृष्टिकोण नहीं है. मुझे लगता है कि हर किसी का सोचने का अपना अलग तरीका होता है.
‘मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता पर फिल्म का बनाना पसंद करूंगी’
दीपिका ने चिंता और अवसाद के साथ अपनी लड़ाई के बारे में खुलकर बात की है, उन्होंने कहा कि मानसिक स्वास्थ्य के बारे में जागरूकता बढ़ाना उनके दिल के करीब है और वह किसी दिन इस विषय पर फिल्म बनाना पसंद करूंंगी.
‘मैं इस मुद्दे पर फिल्म बनाना पसंद करूंगी. किसी ऐसे व्यक्ति, जिसने इसका अनुभव किया है. मैं उसी की तलाश कर रही हूं. लेकिन, मुझे ऐसे लोगों की ज़रूरत है जो मानसिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी काम करते हैं, बारीकियों को समझते हैं, उनकी व्याख्या कर सकते हैं.’
दीपिका ने मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों से निपटने के लिए ‘लिव लव लाफ फाउंडेशन’ की स्थापना की है.
पादुकोण ने कहा, मानसिक स्वास्थ्य जटिल समस्या है क्योंकि यह शारीरिक रोगों जैसे शारीरिक लक्षणों को प्रकट नहीं करता है और भारत मानसिक स्वास्थ्य की अपनी समझ में अभी भी बहुत ही नवजात अवस्था में है.
दीपिका ने कहा, उन्होंने अपने अनुभव को उन लोगों के साथ साझा करने का फैसला किया है, जो इससे जूझ रहे हैं क्योंकि वह खुद लंबे समय से एंग्ज़ाइटी और अवसाद से जूझ रही थीं.
पादुकोण ने कहा, ‘अक्सर परिवार के लोग मदद मांगना बंद कर देते हैं, अपने मामले का जिक्र करते हुए उन्होंने बताया कि सिर्फ उनकी मां थीं जिन्होंने उनकी समस्याओं का निदान किया, लेकिन वह भी बहुत बाद में.
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