scorecardresearch
Saturday, 14 December, 2024
होमदेशUP सरकार ने कार्यवाहक DGP के रिटायर होने पर दूसरे को दिया प्रभार, स्थायी को लेकर अभी स्थिति साफ नहीं

UP सरकार ने कार्यवाहक DGP के रिटायर होने पर दूसरे को दिया प्रभार, स्थायी को लेकर अभी स्थिति साफ नहीं

स्थायी डीजीपी की नियुक्ति में समय लगेगा क्योंकि पिछले साल मुकुल गोयल को हटाने पर निकाय द्वारा आपत्ति जताए जाने के बाद सरकार को यूपीएससी को अधिकारियों का नया पैनल विचार के लिए भेजना है.

Text Size:

लखनऊ: अपने कार्यवाहक पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) डी.एस. चौहान के शुक्रवार को सेवानिवृत्त होने के साथ ही उत्तर प्रदेश सरकार ने उसी दिन आर.के. विश्वकर्मा को डीजीपी का प्रभार सौंप दिया. विश्वकर्मा आईपीएस के वरिष्ठता सूची में दूसरे स्थान पर हैं, जिससे वह राज्य के लगातार दूसरे कार्यवाहक डीजीपी बन गए हैं.

हालांकि शुक्रवार को जारी सरकार के बयान में ‘कार्यवाहक डीजीपी’ शब्द का उल्लेख नहीं है, लेकिन इसमें कहा गया है कि डीजीपी के पद का अतिरिक्त प्रभार डीजी (पुलिस भर्ती और पदोन्नति बोर्ड) विश्वकर्मा को पद पर स्थायी नियुक्ति तक सौंपा जा रहा है.

मुकुल गोयल को पिछले साल पद से हटाए जाने के बाद से राज्य में स्थायी डीजीपी नहीं है. विश्वकर्मा खुद 31 मई को सेवानिवृत्त होने वाले हैं.

इस दिन राज्य के पांच वरिष्ठ अधिकारियों का तबादला भी हुआ, जिनमें से दो को ‘स्पेशल डीजी’ के रूप में पदोन्नत किया गया- यह प्रथा पूर्व मुख्यमंत्री मायावती की सरकार द्वारा शुरू की गई थी, जिसका शासन कानून और व्यवस्था के सख्त कार्यान्वयन के लिए जाना जाता था.

स्थायी डीजीपी के नाम अभी भेजे जाने हैं

राज्य सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों के अनुसार राज्य के लिए स्थायी डीजीपी के पद पर नियुक्ति के लिए संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) को आईपीएस अधिकारियों के नामों का एक पैनल अभी तक नहीं भेजा है.

1987 बैच के आईपीएस अधिकारी मुकुल गोयल को मई 2022 में ‘सरकारी कर्तव्य की अवहेलना, विभागीय कार्यों में रुचि की कमी’ और कथित अकर्मण्यता का हवाला देते हुए पद से हटाने के बाद योगी आदित्यनाथ सरकार ने यूपीएससी को लगभग 38 आईपीएस अधिकारियों की एक सूची भेजी थी. यह सूचि पिछले साल सितंबर में विचार के लिए भेजी गई थी.

हालांकि, यूपीएससी ने पूछा कि गोयल को पहले स्थान पर क्यों हटाया गया और सरकार से मई 2022 तक पद के लिए पात्र सभी अधिकारियों की सूची भेजने को कहा- जब गोयल को हटा दिया गया था.

जबकि मीडिया रिपोर्टों में कहा गया था कि सरकार ने गोयल को हटाने की व्याख्या की थी, लेकिन इस पर कोई आधिकारिक बात नहीं कही गई था.

इस बीच, गृह मंत्रालय के दिशानिर्देशों के अनुसार, एक अधिकारी को डीजीपी के पद पर विचार करने के लिए 30 साल की सेवा पूरी करनी होगी.

एक सीनियर अधिकारी ने दिप्रिंट से कहा, ‘सरकार को उन सभी अधिकारियों की एक सूची भेजनी है जिन्होंने 30 साल की सेवा पूरी कर ली है और कम से कम छह महीने की सेवा बाकी है. यूपी सरकार ने उन सभी अधिकारियों की एक सूची भेजी थी, जो 1 सितंबर 2022 तक दोनों शर्तों को पूरा करते थे.’

लेकिन संशोधित सूची अभी तक यूपीएससी को नहीं भेजी गई है.

ऐसी अफवाहें भी थीं कि सरकार डी.एस. चौहान को सेवा विस्तार देना चाहती थी, लेकिन ऐसा भी नहीं हुआ.


यह भी पढ़ें: स्क्रिप्ट तैयार लेकिन प्रोडक्शन रुका? योगी की फिल्म सिटी को नहीं मिला अब तक कोई खरीदार, बातचीत जारी


अधिक नियुक्तियां

योगी सरकार ने ‘स्पेशल डीजी’ नामक गैर-कैडर पद बनाकर 1990 बैच के कम से कम दो वरिष्ठ आईपीएस अधिकारियों के साथ पांच वरिष्ठ आईपीएस अधिकारियों का तबादला कर दिया है. यूपी के पूर्व डीजीपी सुलखान सिंह ने दिप्रिंट को बताया कि गैर-कैडर पद वे हैं जिनका भारतीय पुलिस सेवा नियमों (कैडर) की अनुसूची में उल्लेख नहीं है.

उन्होंने कहा, ‘कैडर पद वे हैं जो शीर्षक से आईपीएस नियमों की अनुसूची में सूचीबद्ध हैं. अन्य सभी पद जो राज्य सरकार सृजित कर सकती है, गैर-कैडर पद हैं.’

दिप्रिंट से बात करते हुए, पूर्व डीजीपी और राज्यसभा सदस्य बृजलाल ने कहा कि ये पद राज्य की स्वीकृत शक्ति समाप्त होने के बाद वरिष्ठ अधिकारियों को समायोजित करने के लिए बनाए गए हैं.

एडीजी (कानून व्यवस्था) प्रशांत कुमार और एडीजी (अपराध) मनमोहन कुमार बशाल को स्पेशल डीजी के पद पर पदोन्नत किया गया है और पूर्व की जिम्मेदारियां बढ़ा दी गई हैं.

कुमार अब स्पेशल डीजी (कानून और व्यवस्था) और स्पेशल डीजी (अपराध) हैं और उनके पास महानिदेशक (अर्थशास्त्र अपराध शाखा) का अतिरिक्त प्रभार भी है.

एडीजी (अपराध) के पद पर कार्यरत बाशाल को अब विशेष डीजी (यूपी पावर कॉरपोरेशन) बनाया गया है.

डीजी (सीबी-सीआईडी) के पद पर कार्यरत वरिष्ठ अधिकारी विजया कुमार को डीजी (सतर्कता) का अतिरिक्त प्रभार दिया गया है.

डीजी (जेल प्रशासन एवं सुधार) आनंद कुमार को डीजी (निगम प्रकोष्ठ) नियुक्त किया गया है जबकि एस.एन. साबत, जो  डीजी (यूपी पावर कॉरपोरेशन) के पद पर कार्यरत थे, को डीजी (जेल प्रशासन एवं सुधार) नियुक्त किया गया है.

‘मायावती सरकार में आखिरी बार बने थे स्पेशल डीजी’

पूर्व डीजीपी सुलखान सिंह ने कहा कि गैर-कैडर पद सृजित करने और उन पर आईपीएस अधिकारी नियुक्त करने का चलन पूर्व मुख्यमंत्री व समाजवादी पार्टी के मुखिया दिवंगत मुलायम सिंह यादव ने शुरू किया था.

मुलायम सिंह सरकार में यह चलन 1991 में शुरू हुआ था, जब डीजीपी की तर्ज पर अतिरिक्त डीजीपी (स्मॉल स्टेट) का पद सृजित किया गया था. इसने एडीजी रैंक के अधिकारी को डीजीपी (स्मॉल स्टेट) के समान वेतनमान देने में सक्षम बनाया. उस समय दो तरह के डीजीपी हुआ करते थे- डीजीपी (स्मॉल स्टेट) और डीजीपी (बिग स्टेट).

उन्होंने कहा, ‘चूंकि यूपी एक बड़ा राज्य है और बहुत सारे डीजी नियुक्त नहीं किए जा सकते हैं, इसलिए यह सुनिश्चित करने का एक तरीका था कि जूनियर होने के बावजूद एडीजी के रूप में नियुक्त अधिकारियों को एक डीजीपी (स्मॉल स्टेट) के समान वेतनमान मिले.’

उन्होंने आगे कहा, ‘बाद में, मायावती ने स्पेशल डीजी नियुक्त करने की प्रवृत्ति शुरू की. इससे यह सुनिश्चित हुआ कि जो लोग अपने करियर में डीजी नहीं बन पाएंगे और एक जूनियर पद पर सेवानिवृत्त होने की संभावना है, वे भी डीजी के समान वेतनमान प्राप्त करने में सक्षम हैं.’

पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह, 1974 बैच के अधिकारी, 18 जून 2007 को मायावती सरकार द्वारा ‘स्पेशल डीजी’ के पद पर पदोन्नत होने वाले पहले व्यक्ति थे. उन्हें चार दिन बाद यूपी डीजीपी के रूप में नियुक्त किया गया था. मायावती सरकार के दौरान 1977 बैच के 13 अधिकारियों को स्पेशल डीजी के पद पर प्रोन्नत किया गया था.

योगी के पहले कार्यकाल में डीजीपी के रूप में कार्य करने वाले सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी ओ.पी. सिंह ने दिप्रिंट को बताया कि स्पेशल डीजी पदों का सृजन करके अधिकारियों की नियुक्ति ‘वेतनमान के संदर्भ में एक प्रकार की पदोन्नति’ थी.

उन्होंने कहा, ‘यह प्रणाली मध्य प्रदेश में प्रचलित है जहाँ सरकार कई विशेष महानिदेशकों की नियुक्ति करती रही है. यह आईएएस अधिकारियों के पूल से अतिरिक्त मुख्य सचिव (एसीएस) के पद सृजित करने जैसा है. इसलिए, जबकि केवल एक मुख्य सचिव होता है, कई अतिरिक्त मुख्य सचिव हो सकते हैं. इसी तरह, जब केवल एक डीजीपी होगा, कई विशेष डीजी हो सकते हैं.’

योगी सरकार ने कई अतिरिक्त मुख्य सचिवों को भी नियुक्त किया है जो मुख्य सचिव के समान वेतनमान का आनंद लेते हैं.

(संपादन: ऋषभ राज)

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़नें के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: क्या हमारी न्यायपालिका अब अपराधियों को सुधारने की जगह दंडित करने के फ़लसफ़े की ओर मुड़ गई है?


 

share & View comments