नई दिल्ली: पहलगाम आतंकी हमले के बाद कश्मीर की अपनी यात्रा के दौरान, जिसमें 26 लोगों की जान चली गई थी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को बताया गया कि कश्मीर में 60 से अधिक स्पॉट है — जिन्हें अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद पर्यटकों के लिए खोला गया था, जहां पर्याप्त सुरक्षा तैनाती नहीं है और वह “असुरक्षित” हैं और इसलिए आगे ऐसे किसी भी हमले को रोकने के लिए उन्हें पर्यटकों के लिए बंद कर दिया जाना चाहिए. दिप्रिंट को इस बारे में जानकारी मिली है.
सुरक्षा प्रतिष्ठान के सूत्रों के अनुसार, सरकार पहले ऐसे किसी भी स्पॉट तक पहुंच को बंद करने के लिए “इच्छुक” नहीं थी क्योंकि यह कश्मीर घाटी में “सब ठीक है” वाले कथन के खिलाफ था. हालांकि, केंद्र सरकार अब पहलगाम हमले के बाद, अब यह इन स्पॉट्स पर पर्यटकों की पहुंच को सीमित करने पर सहमत हो गई है.
एक सूत्र ने कहा कि संभावना है कि इन जगहों के बाद में “बारी-बारी देख संभल कर” खोला जाएगा.
गौरतलब है कि बैसरन घाटी — एक फेमस पिकनिक स्पॉट जहां सैकड़ों पर्यटक प्रतिदिन घोड़े पर सवार होकर घास के मैदान में आते हैं — अपने आप में अकेली ऐसी खूबसूरत जगह है. परंपरागत रूप से, यह केवल टूरिस्ट सीज़न के दौरान लगभग ढाई महीने के लिए, मई के मध्य से जुलाई तक खुलता था. हालांकि, 2020 से यह जगह साल भर खुली रहती है और रोज़ाना 1,000 से ज़्यादा टूरिस्ट यहां आते हैं, कई स्रोतों ने दिप्रिंट से इस बात की पुष्टि की है.
यह मोदी सरकार द्वारा गुरुवार शाम को सर्वदलीय बैठक में विपक्षी नेताओं से कही गई बात से उलट है. इसमें कहा गया है, “लोकल टूर ऑपरेटर्स ने प्रशासन को सूचित किए बिना पर्यटकों के लिए रास्ता खोल दिया था, जिसके कारण क्षेत्र में सुरक्षाकर्मियों की तैनाती नहीं थी”. बैठक में विपक्षी नेताओं ने घटनास्थल पर सुरक्षाकर्मियों की पूरी तरह से अनुपस्थिति को लेकर सरकार से सवाल किया था.
सुरक्षा प्रतिष्ठान के एक सूत्र ने कहा, “बीते कुछ साल से सरकार उदार रही है, इस बात पर जोर देते हुए कि सभी जगह खुली रहनी चाहिए और पर्यटकों के लिए आसानी होनी चाहिए क्योंकि किसी भी स्थान को घेरने से गलत संदेश जाएगा. इनमें वह जगह भी शामिल हैं, जहां पर्यटकों के बड़ी संख्या में आने की स्थिति में पर्याप्त सुरक्षा तैनाती नहीं है.”
सूत्र ने कहा कि कई मौकों पर सरकार के समक्ष इन स्पॉट्स को बंद करने की चिंता जताई गई है.
सूत्र ने कहा, “इन सभी स्थानों पर सीज़न के दौरान तैनाती होती है. हमले के बाद, इन्हें पर्यटकों के लिए बंद करने का फैसला लिया गया है और यह सही भी है.”
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‘चिट्टीसिंहपोरा एक भूला हुआ सबक’
दिप्रिंट द्वारा प्राप्त आंकड़ों के अनुसार, इस समय कश्मीर घाटी में 120 से अधिक आतंकवादी मौजूद हैं. उनमें से 60 विदेशी आतंकवादी हैं, जो मुख्य रूप से लश्कर-ए-तैयबा से जुड़े हैं.
दूसरे सूत्र ने कहा कि आतंकवादियों की मौजूदगी को देखते हुए, पर्यटकों के लिए दूर-दराज के असुरक्षित स्थानों पर जाना उचित नहीं है.
सूत्र ने कहा, “इसके अलावा, पिछले कुछ साल में आतंकवादी घटना नहीं होने का मतलब यह नहीं है कि ऐसा नहीं हो सकता. क्षेत्र में आतंकवादियों की मौजूदगी के कारण हमेशा जोखिम बना रहता है. वह हमेशा हमला करने के मौके की तलाश में रहते हैं और पहलगाम में यही हुआ.”
उन्होंने कहा कि बैसरन को इसलिए चुना गया क्योंकि वहां सेना की कोई खास मौजूदगी नहीं है.
उक्त सूत्र ने कहा, “आतंकवादियों ने पर्यटकों की अच्छी खासी आबादी और बिना सुरक्षा वाले स्थान की पहचान करने के लिए एक रेकी की. कुछ हफ्तों तक उस स्थान का दौरा किया और इस तरह वह बैसरन घाटी पर पहुंचे. आमतौर पर, अगर वहां सुरक्षा बल मौजूद है, तो इससे आतंकवादियों को दूर रखने में मदद मिलती है. आतंकवादियों को पता था कि यह एक सही जगह है क्योंकि यहां कोई सुरक्षा बल मौजूद नहीं है और इलाके की वजह से किसी भी तरह की मदद पहुंचने में कम से कम एक घंटा लगेगा.”
तीसरे सूत्र ने बताया कि मार्च 2000 में चिट्टीसिंहपुरा नरसंहार के बाद — जब तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन की भारत यात्रा की पूर्व संध्या पर 35 सिखों की निर्मम हत्या कर दी गई थी — घाटी में किसी भी वीवीआईपी यात्रा के दौरान सुरक्षा तैनाती के लिए स्पष्ट मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) लागू की गई थी.
उक्त सूत्र ने कहा, पूरे क्षेत्र में हाई अलर्ट घोषित किया जाता है. हालांकि, यह निश्चित रूप से एक चूक है कि बैसरन घाटी जैसे व्यस्त टूरिस्ट स्पॉट में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं की गई, खासकर जब अमेरिकी उपराष्ट्रपति जे.डी.वेंस भारत की यात्रा पर थे.
सूत्र ने आगे कहा, “चिट्टीसिंहपुरा नरसंहार के बाद से घाटी के प्रमुख पर्यटन स्थलों सहित प्रमुख स्थानों पर विशेष सुरक्षा तैनाती के स्पष्ट निर्देश हैं. इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि तैनाती करके आतंकवादियों को दूर रखा जाए. यह निश्चित रूप से एक चूक थी कि इस क्षेत्र में तैनाती नहीं की गई थी, यह देखते हुए कि इस स्थान पर रोज़ाना 1,000 से अधिक लोग आते हैं.”
जैसा कि दिप्रिंट ने पहले रिपोर्ट की थी कि पुलिस और केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) की पहली टीम को पहलगाम में बैसरन घाटी तक पहुंचने में एक घंटे का समय लगा क्योंकि यह इलाका बहुत ही खराब था, तब तक खून-खराबा खत्म हो चुका था.
इलाके में आतंकवादी गतिविधि और पर्यटकों पर हमले की संभावना के बारे में पहले से खुफिया जानकारी होने के बावजूद भी घटनास्थल पर सुरक्षा नहीं थी.
मंगलवार को पुलिस नियंत्रण कक्ष को घटना के बारे में दोपहर 2:45 बजे एक महिला से पहला फोन आया, जिसके बाद 45 कर्मियों की एक टीम को वहां भेजा गया. हमले का जवाब देने वाली पहली टीम ने 7 किलोमीटर के हिस्से में से 2.5 किलोमीटर की दूरी ऑल-टेरेन वाहनों (एटीवी) और बाइक से तय की, जबकि बाकी की दूरी पैदल ही तय की क्योंकि बैसरन की ओर जाने वाले रास्ते पर वाहनों को चलाना मुश्किल था.
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)
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