नई दिल्ली : दिल्ली सरकार बनाम उपराज्यपाल विवाद में सुप्रीम कोर्ट का फैसला दिल्ली की आम आदमी पार्टी के हक में आने पर पार्टी ने मोदी सरकार पर तीखा हमला बोला और इसे दिल्ली की जनता की जीत बताया है और साथ ही केजरीवाल का भव्य स्वागत किया है.
आम आदमी पार्टी ने कहा कि, ‘जिस तरह से Modi Govt सरकारों को अस्थिर करके लोकतंत्र को अंधेरे में धकेल रही थी, वहां SC ने रोशनी दिखाने का काम किया है. 2014 से चल रही दिल्ली के लोगों की लड़ाई, CM @ArvindKejriwal जीत गए.’
आम आदमी पार्टी की सरकार के नेता गोपाल राय, सौरभ भारद्वाज और आतिशी ने एक लाइव प्रेस कॉन्फ्रेस कर ये बातें कही.
आप के अपने हैंडल से ट्वीट किया है, ‘Supreme Court ने Modi Govt के गाल पर जड़ा करारा तमाचा‼️ मोदी सरकार द्वारा LG- Home Ministry के माध्यम से Delhi Govt के अधिकारी को हड़पने का काम किया था.’
‘जब-जब देश पर विपत्ति आएगी, संविधान को ताक पर रखा जाएगा, तब-तब एक Institution है जो व्यवस्था स्थापित करेगा, देश को बचाएगा—उच्चतम न्यायालय. ये फैसला याद रखा जाएगा.’
उन्होंन कहा कि माननीय सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दिल्ली की जनता जो फैसला लेगी वो पूरी अफसरशाही, पूरी सरकार पर बाध्य है. पीएम मोदी से सहन नहीं हुआ कि कोई और लोगों का विश्वास जीतता है लेकिन जीत लोगों की हुई.
सीएम केजरीवाल ने इसको लेकर आज 2 बजे बैठक बुलाई है. आगे की रणनीति अब तय की जाएगी.
आप ने कहा, ‘Delhi की जनता के हक़ छीनने के लिए Supreme Court ने Modi Govt को करारा तमाचा मारा है. दिल्ली की जनता CJI चंद्रचूड़ जी के आगे नतमस्तक है, उन्होंने जनता का हक़ वापस लौटाया है.
गोपाल राय ने कहा कि, ‘अगर Modi Govt लोकतांत्रिक तरीके से चुनी हुई सरकार की शक्तियां छीनेगी तो SC संविधान बचाने के लिए खड़ी है. आज SC ने लोकतंत्र-संविधान को बचाया है. LG साहब के पास केवल कागज़ देखने का अधिकार है, उस पर निर्णय लेने का अधिकार नहीं है.’
‘LG साहब Land, Law & Order, Police को छोड़कर चुनी हुई दिल्ली सरकार द्वारा लिए सभी निर्णयों को मानने के लिए बाध्य हैं.’
आप ने कहा है, ‘आज Supreme Court का Landmark फ़ैसला आया है- Modi सरकार द्वारा पैराशूट से भेजे LG साहब Boss नहीं है. अफसरों की ट्रांसफर-पोस्टिंग की शक्ति दिल्ली सरकार के पास होगी. इस फैसले से मोदी सरकार और BJP को सीख लेनी चाहिए.’
इसके अलावा आप के हैंडल पर अरविंद केजरीवाल और एलजी वीके सक्सेना की फोटो ट्वीट करते केजरीवाल को हीरो और एलजी को जीरो बताया है.
इस जीत के बाद आप नेताओं ने अरविंद केजरीवाल का भव्य स्वागत किया है. केजरीवाल इस जीत के बाद दिल्ली के सचिवालय पहुंचे थे.
वहीं सीएम अरविंद केजरीवाल ने ट्वीट कर कहा, ‘दिल्ली के लोगों के साथ न्याय करने के लिए माननीय सुप्रीम कोर्ट का तहे दिल से शुक्रिया. इस निर्णय से दिल्ली के विकास की गति कई गुना बढ़ेगी. जनतंत्र की जीत हुई.’
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा
कोर्ट ने कहा कि दिल्ली भले ही पूर्ण राज्य न हो, लेकिन इसके पास कानून बनाने के अधिकार हैं.
अदालत ने कहा, ‘यह निश्चित करना होगा कि राज्य का शासन केंद्र के हाथ में न चला जाए. हम सभी जज इस बात से सहमत हैं कि ऐसा आगे कभी न हो.’
सीजेआई ने कहा, ‘निर्वाचित सरकार को प्रशासन चलाने की शक्तियां मिलनी चाहिए अगर ऐसा नहीं होता तो यह संघीय ढांचे के लिए बहुत बड़ा नुकसान है.’
अदालत ने कहा, ‘अधिकारी जो अपनी ड्यूटी के लिए तैनात हैं उन्हें मंत्रियों की बात सुननी चाहिए अगर ऐसा नहीं होता है तो यह सिस्टम में बहुत बड़ी खोट है. निर्वाचित सरकार में उसी के पास प्रशासनिक व्यस्था होनी चाहिए. अगर चुनी हुई सरकार के पास ये अधिकार नही रहता तो फिर ट्रिपल चेन जवाबदेही की पूरी नही होती.’
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘प्रशासनिक मुद्दों में केंद्र की प्रधानता संघीय व्यवस्था, प्रतिनिधि लोकतंत्र के सिद्धांत को खत्म कर देगी.’
इसने आगे कहा, ‘उन मामलों में केंद्र सरकार की शक्ति जहां केंद्र और राज्य दोनों कानून बना सकते हैं, यह सुनिश्चित करने के लिए सीमित है कि शासन उसके द्वारा नहीं लिया जाता है.’
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘दिल्ली सरकार की कार्यकारी शक्ति उन सभी प्रविष्टियों तक फैली हुई है जिन पर उसे कानून बनाने की शक्ति है.’
ये था मामला
गौरतलब है कि मई 2021 में तीन-जजों की पीठ ने केंद्र सरकार के अनुरोध पर मामलो को एक बड़ी पीठ को भेज दिया था.
14 फरवरी, 2019 को सर्वोच्च अदालत की दो-न्यायाधीशों की पीठ ने सेवाओं पर राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (जीएनसीटीडी) और केंद्र सरकार की शक्तियों के सवाल पर एक विभाजित फैसला सुनाया था और मामले को तीन-जजों की पीठ के पास भेज दिया था.
न्यायमूर्ति अशोक भूषण ने फैसले में कहा था कि दिल्ली सरकार के पास प्रशासनिक सेवाओं पर कोई अधिकार नहीं है. हालांकि उस समय न्यायमूर्ति एके सीकरी ने कहा था कि नौकरशाही के शीर्ष अधिकारियों (संयुक्त निदेशक और ऊपर) के अधिकारियों का स्थानांतरण या पोस्टिंग केवल केंद्र के द्वारा ही की जा सकती है और अन्य नौकरशाहों से संबंधित मामलों के लिए मतभेद की स्थिति में केंद्र सरकार और उपराज्यपाल का विचार मान्य होगा.
फरवरी 2019 के फैसले से पहले, सुप्रीम कोर्ट की पांच-जजों की संविधान पीठ ने 4 जुलाई, 2018 को राष्ट्रीय राजधानी के शासन के लिए व्यापक मानदंड निर्धारित किए थे. इस ऐतिहासिक फैसले में सर्वसम्मति से कहा गया था कि दिल्ली को एक राज्य का दर्जा नहीं दिया जा सकता, लेकिन उपराज्यपाल की शक्तियों को यह कहते हुए कम कर दिया था कि उनके पास ‘स्वतंत्र निर्णय लेने की शक्ति’ नहीं है और उन्हें निर्वाचित सरकार की सहायता और सलाह पर कार्य करना होगा.
इसने उपराज्यपाल के अधिकार क्षेत्र को भूमि, पुलिस और सार्वजनिक व्यवस्था से संबंधित मामलों तक सीमित कर दिया था और अन्य सभी मामलों पर कहा था कि एलजी को मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह पर कार्य करना होगा.
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