धराली: सामने पहाड़ पर बसे मुखवा गांव से धराली का नज़ारा साफ दिखता है — बादल फटने से हुई तबाही का पूरा दृश्य आंखों के सामने है. धराली का पूरा बाज़ार पानी में डूबा पड़ा है, एक भी इमारत नज़र नहीं आती. दो मंज़िला मकान बहकर भागीरथी नदी के किनारे आ पहुंचा है, जिसकी सिर्फ दूसरी मंज़िल का कुछ हिस्सा और छत मलबे में से बाहर झांक रहे हैं.
राष्ट्रीय आपदा मोचन बल (एनडीआरएफ) और सेना के जवान मलबा, चट्टानें और मिट्टी हटाकर राहत-बचाव का काम कर रहे हैं, लेकिन गांववाले अब भी सदमे में हैं. किसी ने अपने परिवार को खोया है, तो किसी का घर और रोज़गार उजड़ गया है.
38 साल के धराली निवासी सुरेश पंवार ने कहा, “हम दोपहर का खाना खा रहे थे तभी बाढ़ आ गई. हम ऊंची जगह भागे और देखा कि बाज़ार डूब रहा है. दूसरी लहर में हमारा घर भी पानी में आ गया.”
सोशल मीडिया पर वायरल हुआ वीडियो, जिसमें पानी सब कुछ बहा ले जा रहा था, बस शुरुआत थी. पहली तेज़ लहर के बाद पानी कई बार लौटकर आया.
पंवार ने बताया कि उनकी सब्ज़ियों की खेती और सेब के बागीचे बाढ़ में बह गए. ज़्यादातर खेत नीचे नदी किनारे थे. अब बस कुछ सेब के पेड़ बचे हैं, जो उनकी एकमात्र आमदनी का ज़रिया हैं.
उन्होंने कहा, “हमारी सब्ज़ियां बहुत टिकाऊ होती हैं, जल्दी खराब नहीं होतीं. यहां आलू, ब्रोकोली, पत्ता गोभी, मटर और राजमा उगाते हैं.” उनका अनुमान है कि सब्ज़ियों का 5 लाख रुपये से ज्यादा का नुकसान हुआ है. उत्तरकाशी का यह इलाका ‘रेड रॉयल’ किस्म के सेब के लिए मशहूर है.
पंवार ने अपने दादा के बनवाए दो मंज़िला लकड़ी-सीमेंट के घर को छोड़ने का फैसला किया है, जो अब मिट्टी और मलबे में दब चुका है. हालांकि, बाढ़ के अगले दिन उनके परिवार को हेलिकॉप्टर से मटली पहुंचा दिया गया था, लेकिन वे खुद पीछे रह गए ताकि जो सामान बचा है, उसे इकट्ठा कर सकें.
पंवार ने कहा, “अगर यहां फिर बाढ़ आई, तो हम बच नहीं पाएंगे.” उन्होंने बताया कि 2013, 2017 और अब 2025 में भी बाढ़ आई, “लेकिन तब इतना नुकसान नहीं हुआ था. इस बार सिर्फ बाज़ार वाले इलाके में ही 50-60 लोगों की जान गई है.”
पंवार ने अपने घर के बगल की जगह दिखाई, जहां उनके चाचा का घर था. अब वहां सिर्फ मिट्टी और मलबा है, घर का कोई निशान नहीं. अपने चचेरे भाई का ज़िक्र करते हुए पंवार ने कहा, “वो बाज़ार में राशन लेने गया था; अभी उसका शव मिला है.”
भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी) के डिप्टी इंस्पेक्टर जनरल परमिंदर सिंह ने दिप्रिंट को पहले बताया था कि बादल फटने की घटना 5 अगस्त को करीब दोपहर 1:30 बजे हुई और आईटीबीपी के जवान उसी दिन शाम 4:30 बजे धराली पहुंच गए थे.
‘धमाके जैसी आवाज़ थी’
ज्यादातर बचे हुए गांववाले ऊंची जगहों पर चले गए हैं और मंदिर के पास डेरा डाले हुए हैं, जहां सरकार ने राशन रखा है. स्थानीय नेता, ITBP और उत्तराखंड पुलिस की मदद से यहां चावल, आलू, चाय, खाना पकाने का तेल, जूते, गद्दे और तौलिए बांट रहे हैं.
राजत पंवार बाढ़ के समय इसी मंदिर में थे. उन्होंने कहा, “धमाके जैसी आवाज़ आई थी. आज भी उस आवाज़ से डर लगता है.”
उन्होंने कहा कि वे ऊंची जगह की ओर भागे और देखा कि उनके परिवार का होटल पानी में डूब रहा है. “मुझे लगा मेरा परिवार डूब जाएगा, लेकिन वे सुरक्षित थे. मैंने कुछ सहपाठियों और अपनी मौसी के बेटे को खो दिया.”

होटल और सेब के बागीचे खोने के बाद अब उनके पास न तो परिवार का पेट भरने का साधन है, न सिर पर छत डालने का. आंखों में आंसू भरते हुए उन्होंने सरकार से गुहार लगाई, “किसी तरह का ठिकाना और रोज़गार दीजिए. कुछ परिवारों में तो कमाने वाला ही चला गया है. सरकार को हर परिवार से कम से कम एक व्यक्ति को स्थायी काम देना चाहिए, चाहे सरकारी नौकरी न हो, ताकि घर का खर्च चल सके.”
‘पड़ोसी गांव एक-दूसरे को अपना मानते हैं’
धराली से करीब 7 किलोमीटर दूर हर्षिल में 18 साल के श्रीकांत रावत अपने परिवार के होटल में मेहमानों की देखभाल में लगे हैं. रावत धराली में रिश्तेदारों के यहां एक स्थानीय त्योहार में आए थे, तभी धराली और हर्षिल में सेना के कैंप पर बादल फटने से आई बाढ़ ने कहर बरपाया.
रावत ने कहा, “मैंने अपनी आंखों से सब देखा.” वे मंदिर की ओर जा रहे थे, तभी घाटी से तेज़ रफ्तार में बाढ़ का पानी उतर आया. “कुछ लोगों ने सब कुछ खो दिया. गांव के लोगों के पास होता ही क्या है? बस थोड़ा सोना-चांदी, खेत, गाय-बैल…अब उनके लिए सब खत्म हो गया.”
रावत ने कहा कि बाढ़ लहरों में आई, और हर लहर ने पलक झपकते ही जो भी सामने आया उसे बहा दिया. जब वे हर्षिल लौटे तो देखा कि उनका गांव भी बर्बाद हो चुका है. नदी किनारे बने नए-नए रिसॉर्ट भी बह गए थे.
रावत ने कहा, “हमारे लिए पास-पास के गांव एक ही गांव जैसे हैं.” उन्होंने बताया कि हर्षिल में तो लोग किसी तरह संभाल रहे हैं, लेकिन धराली को ज्यादा मदद की जरूरत है, जहां लोग बिना बिजली और साफ पानी के रह रहे हैं.
रावत के अनुसार धराली में 50 से 80 लोगों की मौत हुई हो सकती है. यह आंकड़ा उन्होंने स्थानीय ठेकेदारों से बात करके लगाया है, जिनमें से कई अपने यहां काम करने वाले प्रवासी मजदूरों का हिसाब नहीं दे पा रहे हैं. फिलहाल इन लोगों को ‘लापता’ माना जा रहा है.
उन्होंने कहा, “गांव वाले कह रहे हैं कि हमें शव दिखाओ, क्योंकि हर किसी के मन में उम्मीद है कि वे अपने प्रियजनों से फिर मिलेंगे.”
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