नई दिल्ली: दिल्ली दंगों के बाद एक हफ्ते से छोटे भाई की तलाश में भटक रहे जीवन वाहिद टाकिया (24 साल) दिल पर पत्थर रखकर मंगलवार को गुरू तेग बहादुर (जीटीबी) अस्पताल पहुंचे. जब उनका भाई घायलों में नहीं मिला तो वो मुर्दाघर पहुंचे, लेकिन यहां के पत्थर दिल कर्मचारियों ने उन्हें लावारिस लाशें तक दिखाने से मना कर दिया.
साधारण कपड़ों में जीटीबी में भटक रहे टाकिया छोटे-मोटे काम करते हैं. उनकी दयनीय हालत पर तरस खाने के बजाए जीटीबी अस्पताल के कर्मचारियों ने उन्हें कहा कि लाशे यहां से शिफ्ट कर दी गईं हैं.
मुर्दाघर वालों ने उन्हें लाश तो नहीं दिखाई लेकिन पर्ची पर उन्हें राम मनोहर लोहिया अस्पताल तक पहुंचने का आधा-अधूरा रास्ता ज़रूर बता दिया. इस बारे में जब दिप्रिंट ने मुर्दाघर में मौजूद कर्मचारियों से बात की तो उन्होंने कहा, ‘हमारे पास अब कोई लाश नहीं है. हमने सब लाशों को राम मनोहर लोहिया भेज दिया.’
हालांकि, उन्होंने ये नहीं बताया कि लाशों को आरएमएल क्यों भेजा गया है. लापरवाह रवैया अपनाते हुए उनमें से एक ने कहा कि लाश दिखाना उनका नहीं पुलिस का काम है. वहां मौजूद किसी व्यक्ति ने अपना नाम नहीं बताया और आगे की जानकारी के लिए वरिष्ठ डॉक्टर एन के अग्रवाल ने बात करने को कहा.
अधिकारी ने लाशों को आरएमएल भेजे जाने की बात नकारी
मुश्किल से हुई मुलाकात में अग्रवाल ने कहा कि वो मीडिया से बातचीत करने के लिए अधिकृत नहीं है. हांलाकि, मुर्दाघर में मौजूद कर्मचारियों के उलट उन्होंने ये जानकारी दी कि अभी वहां दो लाशें मौजूद हैं. उन्होंने बताया कि ये वो लाशें हैं जो रविवार को नाले से निकाली गई थी.
उन्होंने कहा, ‘वैसे तो लाशों की शिनाख़्त करवाना पुलिस का काम है लेकिन हम भी दिखा देते हैं, आप चले जाइए मुर्दाघर वाले आपको लाशें दिखा देंगे.’ दरअसल, इसके पहले जीवन पुलिस थाने होकर आए थे. भाई का पता करने जब वो वहां पहुंचे तो दिल्ली पुलिस ने उन्हें जीटीबी अस्पताल जाकर पता लगाने को कहा.
मुर्दाघर पहुंचने पर कर्मचारियों ने डॉक्टर अग्रवाल का संदेश देने पर जीवन को मुर्दाघर में जाने को कहा. अंदर का मंज़र दरवाज़े से देख के जीवन कांप गए. बड़ी मुश्किल से अंदर गए. उन्होंने कांपते हाथों से दो लावारिस लाशों के चेहरे से कपड़ा हटाकर देखा. उन्हें राहत मिली की इनमें से कोई भी उनका भाई नहीं था.
हालांकि, इस राहत के बावजूद लाशों के देख सकते में पड़े जीवन अभी भी इस चिंता में थे कि उनका भाई कहां होगा.
उन्होंने कहा, ‘मेरा परिवार ग़ाज़ियाबाद में रहता है. उस दिन घर वाले रिज़वान को समझा रहे थे कि उसे कुछ काम करना चाहिए. इसी पर बकझक हुई और वो घर से निकल गया.’
जीवन ने आगे कहा कि उनके बड़े भाई शहनवाज़ की रिज़वान से ज़ाफराबाद में मुलाकात हुई.
जीवन ने कहा, ‘शहनवाज़ भाई ने रिज़वान को घर लौटने को कहा, लेकिन वो नहीं माना और तब से ही वो लापता है.’
जीवन ने कहा कि परिवार को इसकी आशंका है ज़ाफरबाद के दंगों ने उनके भाई की जान ले ली. उन्होंने कहा, ‘मेरे पिता अब्दुल वाहीद कैंसर पीड़ित हैं. उन्हें एक बार दिल का दौरा भी पड़ चुका है. ऐसे में परिवार वालों ने छोटे बेटे के लापता होने की ख़बर पिता को इस लहज़े में बताई है जिससे उन्हें ये न लगे कि उनके बेटे की मौत की भी आशंका जताई जा रही है.’
कटे हाथ और धड़
ज़ाफराबाद के नाले से जो तीन लाशें आई थीं उनमें से एक को पहचान लिया गया है. बाकी की दो लावारिश लाशों को पहचानने के लिए लोग किश्तों में यहां पहुंच रहे हैं. अस्पताल के मेडिकल सुपरीटेंडेंट डॉक्टर सुनील कुमार ने कहा, ‘मौत के आंकड़ों में कोई तब्दीली नहीं आई है. अभी तक 38 लोगों की मौत हुई है.’
जानकारी हासिल करने के सिलसिले में दिप्रिंट जब यहां के चीफ़ मेडिकल ऑफ़िसर के ऑफ़िस में मौजूद था तब पुलिस और पी राम की बातचीत में पता चला कि अस्पताल में एक हाथ और और धड़ भी आए हैं. पुलिस और राम की बातचीत में ये निकलकर सामने आया कि जब तक पूरे शरीर का पता नहीं चल जाता इन्हें मृतकों में नहीं गिना जाएगा.
मरने वालों की संख्या कितनी है, कितनी लाशों की शिनाख्त हुई- इन सवालों से इतर जीवन टाकिया का जीवन थम सा गया है. भाई की लाश न मिलने से जो राहत मिली वो तो मिली ही पर उसके लापता होने और उसकी सुरक्षा को लेकर उनके दिल में अब भी आशंका बनी हुई है और वे उस पल का मलाल करते हैं जब उनकी अपने छोटे भाई से तकरार हुई और वो घर की सुरक्षा से बाहर निकल दंगों में फंस गया.