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मंगलवार, 13 मई, 2025
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एक गुरुद्वारा, एक मदरसा और एक कैथोलिक स्कूल: पुंछ की हर गली में पाकिस्तानी हमलों के निशान मौजूद

पाकिस्तान की ओर से की गई भीषण गोलाबारी में पुंछ में तीन दर्जन से ज़्यादा घर और वाहन क्षतिग्रस्त हो गए.

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पुंछ: गुरुद्वारा साहिब के प्रमुख सबर सिंह दरवाज़ा बंद कर रहे थे, तभी पीछे की दीवार से एक गोला आकर गिरा, लेकिन भागने से पहले उन्होंने पवित्र ग्रंथ को संभाल लिया. दरवाज़े और खिड़कियां टूट गए और पीछे की दीवार मलबे में तब्दील हो गई.

प्रार्थना वाले कमरे में चारों तरफ से छर्रे उड़कर आए, फिर भी जिस जगह गुरु ग्रंथ साहिब रखे गए थे, वह जगह अछूती रही. 55 साल के सिंह ने नुकसान की ओर इशारा करते हुए कहा, “वहां सब कुछ धुआं था. गोला सबसे पहले पास के छोटे मंदिर के किनारे पर लगा और फिर हमारे गुरुद्वारे पर लगा, लेकिन रब की कृपा से गुरु ग्रंथ साहिब अछूता रहा.”

यह 7 मई की सुबह थी. सुबह की गुरुबाणी के बाद श्रद्धालु गुरुद्वारे से बाहर निकले ही थे. पुंछ में सीमा पार से गोलाबारी की यह पहली घटना थी जिसने पूरे देश का ध्यान खींचा. विदेश मंत्रालय (एमईए) की ब्रीफिंग के दौरान भी विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने गुरुद्वारे और सिख समुदाय पर हमले का कम से कम दो बार ज़िक्र किया था.

लेकिन यह सिर्फ गुरुद्वारा ही नहीं था. पाकिस्तान की ओर से की गई भीषण गोलाबारी की चपेट में एक मदरसा, एक कैथोलिक स्कूल और तीन दर्जन से ज़्यादा घर और वाहन भी आए थे. 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकी हमले के जवाब में ऑपरेशन सिंदूर के तहत भारतीय सशस्त्र बलों द्वारा किए गए सटीक हमलों के बाद 6 और 7 मई की दरमियानी रात को पाकिस्तान ने एलओसी पर ड्रोन, गोले और दूसरे हथियारों का इस्तेमाल करते हुए कई हमले किए.

11 मई को संघर्ष विराम की घोषणा के पहले तक पुंछ शहर तबाह हो चुका था. कई निवासी-साथ ही शहर में घूमने आए विजिटर्स और प्रवासी मज़दूर-सुरक्षित स्थानों पर चले गए और अभी तक वापस नहीं लौटे हैं. सिंह और उनकी पत्नी भी अपने बच्चों और नाती-नातिनों को जम्मू ले गए, लेकिन दंपति वापस नहीं गए.

वह हाथ जोड़कर कहते हैं, “अगर हम चले जाते, तो गुरु ग्रंथ साहिब की देखभाल कौन करता?”

6 और 7 मई को, ऑपरेशन सिंदूर के तहत भारत द्वारा किए गए सटीक हमलों के बाद पाकिस्तान ने नियंत्रण रेखा पर ड्रोन, गोले और अन्य हथियारों का उपयोग करके कई हमले किए | फोटो: सूरज सिंह बिष्ट/दिप्रिंट
6 और 7 मई को, ऑपरेशन सिंदूर के तहत भारत द्वारा किए गए सटीक हमलों के बाद पाकिस्तान ने नियंत्रण रेखा पर ड्रोन, गोले और अन्य हथियारों का उपयोग करके कई हमले किए | फोटो: सूरज सिंह बिष्ट/दिप्रिंट

यह भी पढ़ें: 5 मिनट के फर्क में पैदा हुए जुड़वां बच्चों की पुंछ में मौत, पिता को ज़िंदा रखने के लिए मां ने छिपाई बात


‘हमारा वक्त अभी नहीं आया था’

बलबीर सिंह और उनका 13 सदस्यीय परिवार — जिसमें उनकी मां, तीन भाई और उनके बच्चे शामिल थे — नीचे वाले फ्लोर पर सो रहे थे, जब उनके घर को निशाना बनाकर तीन जोरदार विस्फोटों ने उन्हें चौंका दिया. 9 मई की सुबह, कम से कम तीन गोले उनके तीन मंजिला घर पर गिरे. एक गोला ऊपरी दो मंजिलों की छत को चीरता हुआ ज़मीन पर गिरा.

लेकिन, कोई घायल नहीं हुआ. सिंह अपनी जान बचने का श्रेय किस्मत को देते हुए कहते हैं, “हमारा वक्त अभी नहीं आया था.” अब, उनके घर का एक हिस्सा मलबे में दबा हुआ है.

अपने घरों की रखवाली करने के लिए पुंछ में रुके कुछ निवासियों ने 8 और 9 मई की रात को भयानक बताया. पाकिस्तान की ओर से गोलाबारी तेज़ और लगातार हो रही थी, जिसने एक ही रात में दो दर्जन से अधिक घरों को नुकसान पहुंचाया.

सिंह के लिए अपने घर की मरम्मत की लागत बहुत अधिक होगी. मज़दूर चले गए हैं. शहर खाली हो गया था. ज़्यादातर लोग अपने वक्त का इंतज़ार कर रहे थे — यह पक्का करने के लिए कि शांति सच में बनी रहे, कि अब कोई और गोलाबारी नहीं होगी.

सिंह ने कहा, “भारत-पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव के बीच अब दोबारा मकान बनवाने का खर्च कौन उठाएगा? चाहे अपनी जान से, अंग-अंग से या संपत्ति से – इसका खर्च आम नागरिकों को उठाना होगा. खासकर वो लोग जो सीमा के पास रहते हैं.” जबकि उनकी दादी आंगन के एक कोने में बैठकर प्रार्थना कर रही हैं.

10 मई को संघर्ष विराम की घोषणा से पहले तक पुंछ शहर तबाह हो चुका था | फोटो: सूरज सिंह बिष्ट/दिप्रिंट
10 मई को संघर्ष विराम की घोषणा से पहले तक पुंछ शहर तबाह हो चुका था | फोटो: सूरज सिंह बिष्ट/दिप्रिंट

मदरसा, कैथोलिक स्कूल

पुंछ के जामिया जिया-उल-उलूम मदरसे में शेफ हकीम दीन बच्चों के लिए दोपहर का खाना बना रहे थे, तभी उन्होंने जोरदार धमाका सुना. वे ऊपर की ओर भागे और छत में एक गहरा गड्ढा देखा और मलबे में उस्ताद मोहम्मद कारी पड़े थे. उन्हें एक छर्रा लगा था. पांच बच्चे डेस्क पर बेहोश पड़े थे, कुछ खून से लथपथ ज़मीन पर गिरे हुए थे.

मदरसे में मौजूद सभी लोग जल्दी से इकट्ठा हुए और घायलों को अस्पताल पहुंचाया. कारी बच नहीं पाए. पांचों बच्चों का अभी इलाज चल रहा है.

मदरसे के सामने हरी-भरी घाटी की ओर इशारा करते हुए दीन ने कहा, “गोला वहीं से आया था.”

दो किलोमीटर दूर, क्राइस्ट स्कूल का एक हिस्सा मलबे में दबा हुआ है. पड़ोस में सन्नाटा पसरा हुआ है. स्कूल जाते वक्त 13 वर्षीय जुड़वां भाई-बहनों की मौत और कई छात्रों के घायल होने की वजह से पूरा समुदाय पलायन कर गया है. एक किलोमीटर और नीचे, एक दुकान मलबे में तब्दील हो गई है. कुछ ही मीटर की दूरी पर एक छत ढह गई है.

पुंछ की हर गली, गली और सड़क पर इस संघर्ष के निशान मौजूद हैं. शहर में जान-माल के नुकसान की कई कहानियां हैं. हालांकि, संघर्ष को रोकने के लिए एक अस्थायी समझौता किया गया है, लेकिन निवासियों का कहना है कि इस संघर्ष ने जो आघात पहुंचाया है, उससे उबरने में सालों लगेंगे.

गुरुद्वारे के अलावा, एक मदरसा, एक कैथोलिक स्कूल और तीन दर्जन से अधिक घर और वाहन पाकिस्तान की ओर से की गई भीषण गोलाबारी में क्षतिग्रस्त हो गए | फोटो: सूरज सिंह बिष्ट/दिप्रिंट
गुरुद्वारे के अलावा, एक मदरसा, एक कैथोलिक स्कूल और तीन दर्जन से अधिक घर और वाहन पाकिस्तान की ओर से की गई भीषण गोलाबारी में क्षतिग्रस्त हो गए | फोटो: सूरज सिंह बिष्ट/दिप्रिंट

शहर में छाए सन्नाटे को चीरती हुई एकमात्र आवाज़ पुंछ नदी की है, जिसका हिंसक प्रवाह आपदा के बाद की शांति को तोड़ देता है. झेलम की एक सहायक नदी पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर से होकर पाकिस्तान में प्रवेश करती है. कभी ‘मिनी कश्मीर’ के नाम से मशहूर यह खूबसूरत घाटी अब खून-खराबे और नुकसान का मूक प्रतीक बन गई है.

किसी ने बुदबुदाया, “इस पहाड़ियों के पीछे से आते हैं गोले.”

पहाड़ियां, शहर की पीड़ा की मूक दर्शक हैं. अपनी पत्नी और बच्चों को वापस लाने के लिए डोडा के लिए निकलने वाले मोहम्मद इमरान ने कहा, “इन वादियों ने सब देखा है”.

(इस ग्राउंड रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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