scorecardresearch
Friday, 8 November, 2024
होमदेशबस्तर में 90 प्रतिशत लोग मानते हैं माओवाद का अंत गोली से नहीं बातचीत से होगा

बस्तर में 90 प्रतिशत लोग मानते हैं माओवाद का अंत गोली से नहीं बातचीत से होगा

स्थानीय गैर-सरकारी संस्था सीजी नेट द्वारा करवाये गए इस सर्वेक्षण में बस्तर और देश के कुल 3760 लोगों ने अपना मत दिया है. इनमें 76% लोगों ने हिंदी, 18% लोगों ने गोंडी और 6% लोगों ने हल्बी भाषा में मत देकर अपने विचार व्यक्त किए.

Text Size:

रायपुर : माओवाद का केंद्र बन चुके बस्तर क्षेत्र के 90 प्रतिशत से अधिक लोगों का कहना है कि यह एक राजनैतिक समस्या है जिसका समाधान भी सियासी गलियारे से ही निकलेगा. लोगों का कहना है कि नक्सली समस्या के अंत के लिए पुलिस, नक्सली और जनता को एक साथ आना पड़ेगा.

पिछले डेढ़ महीने के दौरान हिंदी के अलावा स्थानीय गोंडी और हल्बी भाषा में किये गए एक ई जनमत सर्वेक्षण में बस्तर के करीब 92% प्रतिशत लोगों का कहना है की मध्यभारत में माओवाद एक राजनीतिक समस्या है, जिसका हल बातचीत के जरिये ही निकलेगा. हालांकि, 8 प्रतिशत लोगों ने इस समस्या को एक क़ानून व्यवस्था का मामला माना है. इन लोगों का कहना है कि माओवाद का समाधान पुलिस और मिलिट्री की मदद से ढूंढा जाना चाहिए.

यह ई-सर्वेक्षण पिछले तीन साल से कुछ स्थानीय लोगों और समाजसेवियों द्वारा क्षेत्र में शांति प्रक्रिया का एक मॉडल तलाशने की कवायद के तहत किया गया, जिसकी अवधि स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त से गांधी जयंती 2 अक्टूबर के बीच थी. स्थानीय गैर सरकारी संस्था सीजी नेट द्वारा करवाये गए इस सर्वेक्षण में बस्तर और देश के कुल 3760 लोगों ने अपना मत दिया है. इनमें 76% लोगों ने हिंदी, 18% लोगों ने गोंडी और 6% लोगों ने हल्बी भाषा में मत देकर अपने विचार व्यक्त किए.


यह भी पढ़ें : छत्तीसगढ़ में नक्सलियों के किले को ढहाने के लिए सरकार ने कसी कमर, 2020 के अंत तक गढ़ में खुलेंगे 8 नए पुलिस कैंप


बस्तर के दरभा ब्लॉक से गंगाराम बारसे ने ई-सर्वेक्षण मैं गोंडी में कहते हैं ‘पक्ष विपक्ष की बातों से ऊपर ऊठकर, बस्तर में शांति के लिए सभी बात करें. सभी पक्षों को एक साथ मिलकर इसका हल जल्द ढूंढ़ना चाहिए.’ नारायणपुर जिले के सेतै दुग्गा के अनुसार सभी पक्षों को एक प्लेटफार्म पर आना चाहिए. अपनी गोंडी बोली में दुग्गा कहते हैं, ‘पुलिस, जनता और नक्सली तीनों एक मंच में आएं.

अब बस्तर को शांति की ज़रुरत है. जबतक सभी पक्ष एक मंच पर आकर अपनी बात नही रखते इसका समाधान मुश्किल है और ग्रामीण पिसते ही चले जाएंगे.’ ऐसा ही कुछ बस्तर के ग्राम-बड़ेकिलेपाल निवासी मोसूराम पोयाम ने हिंदी में कहा. पोयाम कहते हैं, ‘समाज और ग्रामवासी बैठकर इस समस्या को सुलझा सकते हैं सिर्फ पुलिस बल से यह समस्या हल नहीं होगी. बैठकर बात करने से ही हिंसा हटेगी नहीं तो नहीं हटेगी.’

‘नई शांति प्रक्रिया’ के बैनर तले हो रहे ई सर्वेक्षण के सूत्रधार, एनजीओ सीजी नेट के प्रणेता और वरिष्ट पत्रकार शुभ्रांषु चौधरी कहते हैं, ‘कब तक ऐसा चलता रहेगा. जनता डर के साये में रहने को मजबूर है. अब शांति प्रक्रिया के एक मॉडल की खोज आवश्यक है. इसी कारणवश जनता से सीधी बात के माध्यम से ई-सर्वेक्षण किया गया है. चौधरी कहतें हैं, ‘इसी कड़ी में ऑनलाइन कार्यक्रम बस्तर डायलॉग 6 का भी आयोजन किया गया, जिसमें कोलंबिया, फिलीपींस, नेपाल और आंध्र प्रदेश के लोगों ने उनके यहां की शांति प्रक्रिया और उससे छत्तीसगढ़ क्या सीख ले सकता है उस पर चर्चा की.

share & View comments