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Sunday, 26 October, 2025
होमदेशपंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट के 76 वकीलों को मिला ‘सीनियर’ का टैग, बार काउंसिल और बार एसोसिएशन आमने-सामने

पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट के 76 वकीलों को मिला ‘सीनियर’ का टैग, बार काउंसिल और बार एसोसिएशन आमने-सामने

सुप्रीम कोर्ट ने नए चयन दिशानिर्देश लागू करने को कहा था, कुछ महीने बाद HC की अधिसूचना पर कानूनी समुदाय में मतभेद पैदा हुए.

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चंडीगढ़: पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट की अधिसूचना, जिसमें 76 वकीलों को ‘सीनियर एडवोकेट’ का दर्जा दिया गया, इसने कानूनी समुदाय में तीव्र विवाद खड़ा कर दिया है. इस बीच राज्य के बार काउंसिल ने सिलेक्शन की प्रक्रिया पर सवाल उठाए हैं, जबकि बार एसोसिएशन ने इसे एक “मील का पत्थर” करार दिया है.

पंजाब और हरियाणा बार काउंसिल ने गुरुवार को हाईकोर्ट की 20 अक्टूबर की अधिसूचना में “भाई-भतीजावाद और पक्षपात” की शिकायतों के बाद आपात बैठक बुलाई. काउंसिल ने हाईकोर्ट से चयन प्रक्रिया की विस्तृत जानकारी भी मांगी है.

इसके एक दिन बाद, पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट बार एसोसिएशन ने चीफ जस्टिस शील नागू को पत्र लिखकर “दीर्घकालिक प्रतीक्षित” निर्णय के लिए आभार व्यक्त किया और इसे न्यायालय की “प्रतिभा, योग्यता और पेशेवर उत्कृष्टता को मान्यता देने” की प्रतिबद्धता बताया.

ये विरोधाभासी रुख इस सिलेक्शन प्रक्रिया को विवादास्पद बना देता है, खासकर तब जब एक ही अधिसूचना में असामान्य रूप से बड़ी संख्या में वकीलों को सीनियर एडवोकेट बनाया गया.

2024 में 210 आवेदकों में से हाईकोर्ट ने 76 वकीलों को ‘सीनियर एडवोकेट’ का दर्जा दिया, जिनमें पांच महिलाएं भी शामिल हैं.

सत्ता और अधिकार क्षेत्र

1961 के एडवोकेट्स एक्ट के तहत स्थापित बार काउंसिल दोनों निकायों में अधिक शक्तिशाली है. एक स्वायत्त, संसदीय-संस्थापित “कॉर्पोरेट निकाय” के रूप में इसके पास नियामक शक्तियां और महत्वपूर्ण कार्य हैं. काउंसिल वकीलों को प्रैक्टिस लाइसेंस देती है, पंजाब, हरियाणा और चंडीगढ़ में सभी वकीलों का रजिस्टर रखती है और अनुशासन संबंधी मामलों का निपटारा करती है.

बार एसोसिएशन एक गैर-कानूनी, स्वैच्छिक निकाय है, जो हाईकोर्ट वकीलों के साझा हितों का प्रतिनिधित्व करता है और उनके लिए आंदोलन करता है.

दोनों निर्वाचित निकाय हैं, लेकिन काउंसिल का इलेक्टोरल कॉलेज पंजाब, हरियाणा और चंडीगढ़ में पंजीकृत सभी वकीलों को शामिल करता है.

वहीं एसोसिएशन केवल पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में प्रैक्टिस करने वाले वकीलों के बीच चुनी जाती है. इसलिए काउंसिल का मतदाता समूह एसोसिएशन से बड़ा है.

आरोप और सवाल

गुरुवार की बैठक में बार काउंसिल के सदस्यों ने ‘भाई-भतीजावाद और पक्षपात’ के आरोपों को लेकर बढ़ती चिंता व्यक्त की और कहा कि सीनियर एडवोकेटों के चयन में उचित प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया.

सदस्यों ने यह भी बताया कि काउंसिल को हाईकोर्ट और जिला अदालतों में प्रैक्टिस करने वाले वकीलों से शिकायतें मिली हैं, जिसमें कहा गया है कि “कई योग्य उम्मीदवारों को छोड़ दिया गया जबकि कई गैर-योग्य उम्मीदवारों को चयनित किया गया.”

काउंसिल ने चीफ जस्टिस नागू को पत्र लिखकर मुख्य बिंदुओं पर जानकारी मांगी है—सिलेक्शन के लिए अपनाई गई प्रक्रिया; पुराने या नए नियमों का पालन हुआ या नहीं और क्या यह प्रक्रिया इंदिरा जयसिंग के मामले के फैसले के अनुरूप थी; प्रत्येक उम्मीदवार को कितने अंक दिए गए और मूल्यांकन के मानदंड क्या थे; क्या कोर्ट के निर्णय से पहले अंक वेबसाइट पर प्रकाशित किए गए; क्या उन उम्मीदवारों को माना गया जिन्होंने हाल के वर्षों में कोई केस नहीं दाखिल किया या उपस्थित नहीं हुए, या जिन्होंने पिछले दो सालों में लगभग उपस्थित नहीं हुए; क्या अधिसूचना जिले और उप-प्रभागीय बार एसोसिएशनों को भेजी गई; और एससी/एसटी व महिला उम्मीदवारों के लिए अपनाए गए मानदंड.

काउंसिल इस मुद्दे पर अगली बैठक 31 अक्टूबर को करेगी.

‘पारदर्शी और मेरिट-आधारित’

चीफ जस्टिस को पत्र में बार एसोसिएशन के सचिव गगनदीप जम्मू ने बिलकुल अलग रुख अपनाया.

उन्होंने लिखा, “यह लंबे समय से प्रतीक्षित फैसला केवल पूरे कोर्ट की सामूहिक समझदारी ही नहीं दर्शाता, बल्कि चीफ जस्टिस शील नागू की प्रतिभा, योग्यता और पेशेवर उत्कृष्टता को मान्यता देने की ईमानदार प्रतिबद्धता को भी दिखाता है.”

पत्र में कहा गया, “इतने बड़े पैमाने पर योग्य सदस्यों को सीनियर एडवोकेट का दर्जा देने से पेशे के सभी स्तरों में वकीलों में गर्व, प्रेरणा और उत्साह की नई भावना उत्पन्न हुई है.”

जम्मू ने विभिन्न कानूनी क्षेत्रों—सिविल, क्रिमिनल, संविधानिक और अन्य विशेष शाखाओं को ध्यान में रखते हुए “आपकी लॉर्डशिप की सोच” की प्रशंसा की और चयन प्रक्रिया को “समावेशी और प्रतिनिधित्वकारी” बताया.

उन्होंने कहा, “सीनियर एडवोकेटों के चयन के लिए समिति (Committee for Designation of Senior Advocates) और पूरे कोर्ट द्वारा की गई पारदर्शी और मेरिट-आधारित आकलन ने कानूनी समुदाय के बीच संस्थागत प्रक्रिया और न्यायिक प्रशासन की निष्पक्षता में विश्वास को और मजबूत किया.”

बार एसोसिएशन ने हाईकोर्ट के इस कदम की “गहरी सराहना” की और इसे लंबे समय से लंबित मामले को “सही निष्कर्ष” तक पहुंचाने वाला बताया. इसे एक “मील का पत्थर” करार दिया गया, जो “वकालत के मानक को ऊंचा करेगा” और युवा सदस्यों को प्रेरित करेगा.

सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देश

यह विवाद उस पृष्ठभूमि में उभरा है जब सुप्रीम कोर्ट ने मई इस वर्ष संशोधित दिशानिर्देश जारी किए थे. न्यायमूर्ति अभय एस. ओका, उज्जल भुयान और एस.वी.एन. भट्टी की पीठ ने 2017 से लागू पॉइंट-आधारित मूल्यांकन प्रणाली को समाप्त कर दिया, यह बताते हुए कि साढ़े सात वर्षों के अनुभव ने दिखाया कि वकीलों की क्षमता और अनुभव को अंक प्रणाली के माध्यम से “तर्कसंगत या वस्तुनिष्ठ रूप से” आंका जाना संभव नहीं है.

अदालत ने इसलिए हाईकोर्ट्स को निर्देश दिया कि वे चार महीनों के भीतर अपने मौजूदा नियमों को नए नियमों के अनुसार संशोधित करें.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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