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Friday, 15 November, 2024
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सुप्रीम कोर्ट के सात पूर्व जजों ने प्रशांत भूषण के खिलाफ अवमानना का नोटिस वापस लेने का समर्थन किया

बयान में शीर्ष अदालत से भूषण के खिलाफ 'न्याय, निष्पक्षता और सुप्रीम कोर्ट की मर्यादा को कायम रखते हुए' अवमानना का मामला वापस लेने को कहा गया है.

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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट के सात पूर्व न्यायाधीशों ने 131 अन्य सामाजिक कार्यकर्ताओं, कानूनविदों, वकीलों के साथ एक बयान जारी कर प्रशांत भूषण का समर्थन किया है जिन्हें बीते हफ्ते शीर्ष अदालत ने अवमानना का नोटिस भेजा था.

बुधवार को जस्टिस रुमा पाल, जीएस सिंघवी, एके गांगुली, गोपाला गौडा, आफताब आलम, जे चेलमेश्वर और विक्रमजीत सेन ने समर्थन वाले बयान पर हस्ताक्षर किया जिसे 27 जुलाई को जारी किया गया था.

बयान में शीर्ष अदालत से भूषण के खिलाफ ‘न्याय, निष्पक्षता और सुप्रीम कोर्ट की मर्यादा को कायम रखते हुए’ अवमानना का मामला वापस लेने को कहा गया है.

131 हस्ताक्षरकर्ताओं में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश मदन बी लोकुर और स्वराज इंडिया के अध्यक्ष योगेंद्र यादव शामिल हैं. इसमें शीर्ष अदालत से भूषण के खिलाफ अवमानना की ​​कार्यवाही शुरू करने के अपने फैसले पर पुनर्विचार करने का आग्रह किया गया है.

दिल्ली के पूर्व मुख्य न्यायाधीश ए.पी.शाह, पटना हाई कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश अंजना प्रकाश, इतिहासकार रामचंद्र गुहा, लेखिका अरुंधति रॉय, सामाजिक कार्यकर्ता हर्ष मंदर और वकील इंदिरा जयसिंग सहित कई अन्य लोगों ने भी इस बयान पर हस्ताक्षर किए.


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दो ट्वीट्स को लेकर भूषण को भेजा गया अवमानना को नोटिस

न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा की अगुवाई वाली शीर्ष अदालत की एक खंडपीठ ने भूषण और ट्विटर को 22 जुलाई को भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीशों पर किए दो ट्वीट्स के लिए नोटिस जारी किया था.

पीठ ने कहा था कि ट्वीट ‘न्यायिक प्रशासन को तिरस्कार के तौर पर पेश करता है’.

27 जून के एक ट्वीट में, भूषण ने पिछले छह वर्षों के दौरान लोकतंत्र के ‘विनाश’ में ‘सुप्रीम कोर्ट की भूमिका’ के बारे में लिखा था, और इसमें ‘अंतिम 4 सीजेआई की भूमिका’ का भी उल्लेख किया था. 29 जून को उनके दूसरे ट्वीट में सीजेआई एसए बोबडे के हार्ले डेविडसन बाइक पर बैठने को लेकर टिप्पणी की गई थी. उन्होंने बिना हेलमेट और फेस मास्क के बाइक चलाने के लिए सीजेआई से सवाल किया था, जबकि ‘उन्होंने सुप्रीम कोर्ट को लॉकडाउन मोड में रखा हुआ हैं’.

सुनवाई के दौरान, ट्विटर के वकील ने खुद ही ट्वीट हटाने के लिए एक दिशा-निर्देश मांगा. लेकिन बाद में वकील ने अपने क्लाइंट्स को अदालत की ‘प्रथम दृष्टया’ राय के मद्देनज़र उचित उपाय करने की सलाह दी. अवमानना ​​नोटिस के 72 घंटे के भीतर, ट्विटर द्वारा भूषण के ट्वीट को रोक दिया गया.

दो दिन बाद, उसी पीठ ने भूषण के खिलाफ एक और अवमानना ​​मामले में तेजी लाने का फैसला किया जो लगभग एक दशक से लंबित है. यह मामला 2009 का है जब भूषण ने तहलका पत्रिका को एक साक्षात्कार दिया था जिसमें उन्होंने तत्कालीन सीजेआई एस.एच. कपाड़िया पर गंभीर आरोप लगाया था कि शीर्ष जज ने स्टरलाइट कंपनी में शेयर रखने के बाद भी उस मामले में सुनवाई की.

यह शिकायत वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने की, जो स्टरलाइट मामले में एमिकस क्यूरी थे.


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‘संवैधानिक भूमिका’ निभाने में सुप्रीम कोर्ट की अनिच्छा को लेकर जताई चिंता

कार्यकर्ताओं और न्यायाधीशों के बयान ने सुप्रीम कोर्ट की ‘संवैधानिक भूमिका निभाने में ‘अनिच्छा’ और राज्य द्वारा लोगों के मूलभूत अधिकारों के उल्लंघन के बारे में चिंता व्यक्त की’.

इसमें कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट प्रतिकार के डर के बिना सार्वजनिक चर्चा के लिए खुला होना चाहिए.

बयान में कहा गया, ‘न्यायपालिका की आलोचना का उपयोग अवमानना ​​की शक्ति के अंधाधुंध उपयोग से नहीं किया जाना चाहिए, सर्वोच्च न्यायालय और शिक्षाविदों और अधिवक्ताओं द्वारा इस सिद्धांत को मान्यता दी गई है.’

समर्थन वाले बयान में कहा गया है, ‘भूषण के खिलाफ अवमानना ​​कार्यवाही की शुरुआत, जिन्होंने अपने ट्वीट में इन चिंताओं में से कुछ को स्पष्ट किया था, इस तरह की आलोचना को उनके द्वारा ही नहीं, बल्कि भारतीय लोकतांत्रिक और संवैधानिक सेट-अप में सभी हितधारकों द्वारा की जा रही है’.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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