नई दिल्ली: जीवाश्म ईंधन पर काफी ज्यादा निर्भर दुनिया की छह बड़ी अर्थव्यवस्थाओं को वित्तीय तौर पर अगले कुछ दशकों में कई बिलियन डॉलर का नुकसान हो सकता है. इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर सस्टेनेबल डेवलेपमेंट (आईआईएसडी) की हालिया रिपोर्ट में यह अनुमान लगाया गया है.
बूम एंड बस्ट: द फिस्कल इंप्लिकेशंस ऑफ फासिल फ्यूल्स फेस-आउट इन सिक्स लार्ज इमर्जिंग इकोनामीस शीर्षक से आई रिपोर्ट के अनुसार ब्राजील, रूस, भारत, इंडोनेशिया, चीन और दक्षिण अफ्रीका जैसे देश जीवाश्म ईंधन से आने वाले राजस्व पर काफी निर्भर है.
रिपोर्ट के अनुसार, ‘इस आर्थिक निर्भरता के कारण ब्रिक्स देशों में अगले कुछ दशकों में राजस्व अंतर काफी होगा, वो भी तब जब दुनियाभर में जीवाश्म ईंधन से स्वच्छ ऊर्जा की तरफ बढ़ा जा रहा है ताकि ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक रोक जा सके.’
अध्ययन में पाया गया है कि 2050 तक, ब्रिक्स देशों (ब्राजील, चीन, भारत, इंडोनेशिया, रूस, दक्षिण अफ्रीका) में कुल जीवाश्म ईंधन राजस्व व्यापार-सामान्य परिदृश्य से 570 बिलियन अमेरिकी डॉलर कम हो सकता है जहां सरकारें सबसे खराब जलवायु प्रभावों से बचने के लिए जीवाश्म ईंधन को चरणबद्ध ढंग से कम करने में विफल रहती हैं.’
स्टडी के अनुसार 2050 तक ब्रिक्स देशों में जीवाश्म ईंधन से आने वाले राजस्व में 570 बिलियन अमेरिकी डॉलर की कमी हो सकती है. इसके अनुसार भारत (178 बिलियन डॉलर), चीन (140 बिलियन डॉलर) और रूस (134 बिलियन डॉलर) में राजस्व का ये अंतर सबसे ज्यादा हो सकता है.
बीते कुछ समय से दुनियाभर के देश वैश्विक स्तर पर मिलकर जीवाश्म ईंधन से स्वच्छ ऊर्जा की तरफ बढ़ने की दिशा में काम करने को लेकर प्रतिबद्धता जताते रहे हैं. भारत भी बीते कुछ सालों में स्वच्छ ऊर्जा के क्षेत्र में लगातार काम कर रहा है और वैश्विक तापमान को न बढ़ने को लेकर अपनी प्रतिबद्धता जता चुका है.
रिपोर्ट में बताया गया है कि 2019 में ब्राजील ने जीवाश्म ईंधन से सबसे ज्यादा 51.3 अमेरिकी डॉलर राजस्व के रूप में जुटाए हैं. ये ब्राजील के जीडीपी का 2.7 प्रतिशत के बराबर है.
वहीं उसके बाद चीन, भारत, इंडोनेशिया, रूस और दक्षिण अफ्रीका है. रूस की अर्थव्यवस्था जीवाश्म ईंधन से होने वाली कमाई पर काफी निर्भर है लेकिन रिपोर्ट के अनुसार रूस और यूक्रेन युद्ध के परिदृश्य में होने वाले प्रभावों का इसमें आकलन नहीं किया गया है.
इस रिपोर्ट को तारा लान और एंड्रिया गिउलिओ माइनो ने मिलकर तैयार किया है, जो आईआईएसडी से जुड़े हैं.
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राजस्व पर बढ़ सकता है दबाव
आईआईएसडी की रिपोर्ट के अनुसार जीवाश्म ईंधन के उत्पादन और खपत से रूस को 34 प्रतिशत सरकारी राजस्व हासिल होता है वहीं भारत को 18 प्रतिशत, इंडोनेशिया को 16 प्रतिशत राजस्व मिलता है. ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका और चीन के लिए ये आंकड़ा क्रमश: 8 प्रतिशत, 6 प्रतिशत और 5 प्रतिशत है.
आईआईएसडी की रिपोर्ट तैयार करने वाले लेखकों का कहना है कि ये राजस्व न केवल ‘अविश्वसनीय है बल्कि अनिश्चित’ भी है.
आईआईएसडी के सीनियर एसोसिएट और इस रिपोर्ट के लीड ऑथर तारा लान ने कहा, ‘जलवायु परिवर्तन के विनाशकारी प्रभावों को कम करने के लिए दुनियाभर में जीवाश्म ईंधन के उत्पादन और खपत को कम करना होगा. वरना इससे राजस्व पर दबाव बढ़ेगा.’
उन्होंने कहा, ‘उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं के लिए अधिक लचीला और आर्थिक रूप से टिकाऊ ऊर्जा प्रणालियों के निर्माण के लिए काफी अवसर है क्योंकि वे डीकार्बोनाइज की तरफ बढ़ रहे हैं लेकिन उन्हें सार्वजनिक राजस्व में कमी से बचने के लिए आगे की योजना बनानी चाहिए जो गरीबी उन्मूलन और आर्थिक विकास पर प्रगति को उलट सकती है.’
उन्होंने कहा, ‘ऊर्जा की बढ़ती कीमतों और मांग से जीवाश्म ईंधन उत्पादन और खपत से भारी राजस्व उत्पन्न हो रहा है. ऊर्जा ट्रांजीशन को फंड देने के लिए इन अस्थायी, अल्पकालिक अप्रत्याशित लाभों पर कर लगाया जाना चाहिए, जो बदले में, ऊर्जा आपूर्ति को बढ़ावा देगा, हरित रोजगार सृजित करेगा, आर्थिक विकास में योगदान देगा और अंततः, सरकारी राजस्व में वृद्धि करेगा.’
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राजस्व की भरपाई कैसे हो
जीवाश्म ईंधन पर लगातार कम होती निर्भरता के कारण दुनियाभर के देशों को हो रही राजस्व की कमी ने इसके विकल्पों की तरफ देखने को मजबूर किया है.
रिपोर्ट के अनुसार राजस्व संकट से बचने के लिए जीवाश्म ईंधन पर दी जा रही सब्सिडीज को कम किया जाना चाहिए जिसमें टैक्स इंसेंटिव देना भी शामिल है.
आईआईएसडी के अध्ययन के अनुसार जिन देशों में जीवाश्म ईंधन पर सब्सिडी ज्यादा है वहां सरकारी बजट पर ज्यादा बोझ पड़ता है. ऐसे देशों में जीवाश्म ईंधन पर दी जा रही सब्सिडी को हटाकर सरकारी बजट पर पड़ रहे असर को कम किया जा सकता है.
रिपोर्ट के अनुसार जीवाश्म ईंधन पर सबसे ज्यादा बजट चीन का है जिसने 2020 में 28.1 बिलियन डॉलर सब्सिडी दी है. उसके बाद इंडोनेशिया (13.2 बिलियन डॉलर) और भारत (10 बिलियन डॉलर) सबसे ज्यादा सब्सिडी देते हैं.
वहीं राजस्व संकट से बचने के लिए दूसरा उपाय इकोनॉमिक डाईवर्सिफिकेशन का सुझाया गया है जिससे टैक्स बेस का विस्तार होगा. और तीसरा उपाय राजस्व डाईवर्सिफिकेशन का है.
साथ ही ये भी कहा गया है कि ब्रिक्स देशों पर जीवाश्म ईंधन के कारण पड़ रहे प्रभावों को लेकर और भी विस्तार से शोध करने की जरूरत है.
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