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Tuesday, 7 May, 2024
होमदेशतिहाड़ जेल के 4 अधिकारी निलंबित, यासीन मलिक की SC में पेशी को लेकर लापरवाही का आरोप

तिहाड़ जेल के 4 अधिकारी निलंबित, यासीन मलिक की SC में पेशी को लेकर लापरवाही का आरोप

डीजी (जेल) का कहना है कि यासीन मलिक ने तिहाड़ जेल के अधिकारियों से कहा कि उसे सुप्रीम कोर्ट में उपस्थित होने की जरूरत है क्योंकि वह कई मामलों में खुद का प्रतिनिधित्व कर रहा है.

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नई दिल्ली: जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (जेकेएलएफ) के कमांडर यासीन मलिक के बिना कोर्ट समन के सुप्रीम कोर्ट में पेश होने के एक दिन बाद, जेल महानिदेशक (डीजी) ने तिहाड़ जेल के चार अधिकारियों को निलंबित कर दिया है.

तिहाड़ के सूत्रों के मुताबिक, निलंबित चार अधिकारियों में एक उपाधीक्षक, दो सहायक अधीक्षक और एक हेड वार्डर शामिल हैं.

एक वरिष्ठ जेल अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया, “प्रथम दृष्टया, यह पाया गया कि यह निलंबित जेल अधिकारियों की ओर से एक गंभीर तकनीकी और निर्णय की कमी थी.”

यह कार्रवाई सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता द्वारा केंद्रीय गृह सचिव अजय भल्ला को लिखे पत्र के बाद हुई, जिसमें अदालत में मलिक की उपस्थिति को एक बड़ी सुरक्षा चूक बताया गया था. इस बीच, डीजी (जेल) संजय बेनीवाल ने भी जेल उप महानिरीक्षक (मुख्यालय) राजीव सिंह की अध्यक्षता में जांच का आदेश दिया, जिसकी रिपोर्ट तीन दिनों के भीतर सौंपी जाएगी.

कश्मीरी अलगाववादी नेता मलिक, आतंकी फंडिंग मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद वर्तमान में दिल्ली की तिहाड़ जेल में आजीवन कारावास की सजा काट रहे हैं. शुक्रवार को अपने पत्र में, मेहता ने कहा कि न तो अदालत ने मलिक को व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने के लिए बुलाया था, न ही इसके लिए सुप्रीम कोर्ट के किसी प्राधिकारी से कोई अनुमति ली गई थी.

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दिप्रिंट से बात करते हुए डीजी बेनीवाल ने कहा, “यह अधिकारियों की ओर से एक बड़ी निर्णय त्रुटि थी. जांच जारी है और अगर और लोग जिम्मेदार पाए गए तो उनके खिलाफ भी कार्रवाई की जाएगी. हम भविष्य में ऐसी किसी भी घटना से बचने के लिए समाधान खोजने का भी प्रयास कर रहे हैं. मलिक की पेशी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए होनी थी. कोई अदालती आदेश नहीं था.”

उन्होंने कहा, “प्रिंटेड नोटिस अस्पष्ट था और मलिक ने जेल अधिकारियों से कहा कि उसे अदालत में पेश करने की जरूरत है क्योंकि वह खुद का वकील है. जेल कर्मचारियों ने उस नोटिस की जांच नहीं की जो सामान्य प्रारूप में था और कैदी की भौतिक उपस्थिति की मांग करने वाला अदालत का आदेश नहीं था.

उन्होंने कहा, “इन अधिकारियों की ओर से कर्तव्य में बड़ी लापरवाही हुई है और यह एक व्यवस्थित विफलता है.”

मलिक केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) द्वारा दायर एक अपील की सुनवाई के दौरान शुक्रवार को शीर्ष अदालत में पेश हुए, जिसमें जम्मू की एक अदालत द्वारा पिछले सितंबर में पारित दो आदेशों को चुनौती दी गई थी, जिसमें दो अलग-अलग मामलों में उनकी भौतिक उपस्थिति के लिए कहा गया था – चार भारतीय वायु सेना (आईएएफ) कर्मियों की हत्या, और 1989 में जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री मुफ्ती मुहम्मद सईद की बेटी रुबैया सईद का अपहरण.

सुप्रीम कोर्ट ने इस साल अप्रैल में इन आदेशों पर रोक लगा दी.

सॉलिसिटर जनरल के पत्र में कहा गया है कि गृह मंत्रालय (एमएचए) द्वारा मलिक के संबंध में आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 268 के तहत एक आदेश पारित किया गया था, जो सरकार को सुरक्षा चिंताओं या सार्वजनिक हित के आधार पर गंभीर अपराधों के दोषियों को जेल से हटाने से इनकार करने की अनुमति देता है.

मेहता ने लिखा, ”यह या तो सीआरपीसी की धारा 268 के तहत आदेश का सामना कर रहे किसी दोषी को जेल से बाहर लाने के लिए माननीय सुप्रीम कोर्ट की अनुमति नहीं है, न ही इसके लिए आदेश प्राप्तकर्ता की अनिवार्य व्यक्तिगत उपस्थिति की आवश्यकता है.” उन्होंने आगे कहा कि जेल अधिकारियों को हर रोज ऐसे सैकड़ों पत्र मिलते हैं.

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़नें के लिए यहां क्लिक करें)

(संपादन: अलमिना खातून)


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