नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश के चार टियर-2 शहरों – आगरा, कानपुर, प्रयागराज और वाराणसी – के नगर निगम बुनियादी ढांचा विकास परियोजनाओं के लिए बाजार से धन जुटाने के लिए इस साल के अंत तक नगरपालिका बांड जारी करेंगे.
इसके साथ, उत्तर प्रदेश भारत के कुछ राज्यों में से एक बन जाएगा और छह शहरों वाला एकमात्र उत्तरी राज्य बन जाएगा – अन्य दो शहर लखनऊ और गाजियाबाद हैं जिन्होंने 2020 और 2021 में नगरपालिका बांड जारी किए – जहां बांड के माध्यम से बाजार से धन जुटाए जाएंगे.
नगर निगम बांड ऋण जुटाने के साधन हैं जो नगर निगमों द्वारा सीवर सिस्टम, जल आपूर्ति प्रणाली, स्कूल और अन्य नागरिक बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए बाजार से धन जुटाने के लिए जारी किए जाते हैं.
बांड जारी करते समय, नागरिक निकाय निवेशकों को एक निर्दिष्ट ब्याज दर का वादा करते हैं और एक समय अवधि बताते हैं जब मूलधन ब्याज के साथ वापस कर दिया जाएगा. इसके लिए सिविक एजेंसियों को निवेशकों को पैसे का भुगतान करने के लिए एक अकाउंट बनाना होगा या अपने नियमित राजस्व स्रोत के एक हिस्से को रोक के रखना होगा.
यूपी सरकार के अधिकारियों ने दिप्रिंट को बताया कि बांड इनीशिएटिव से नगर निगमों में बड़े वित्तीय सुधार हुए हैं, पारदर्शिता और जवाबदेही आई है.
कानपुर नगर निगम के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, “कुछ साल पहले तक, कोई इन शहरों के बारे में बाज़ार से पैसा जुटाने के बारे में सोच भी नहीं सकता था. हम धन के लिए हमेशा राज्य सरकार पर निर्भर थे.”
यूपी सरकार के अधिकारियों के अनुसार, राज्य का ध्यान शहरी विकास, बुनियादी ढांचे के विकास और उन्नयन, और बुनियादी नागरिक प्रशासन और सेवा-संबंधित मुद्दों को हल करने पर है.
शहरी विकास विभाग के प्रमुख सचिव अमृत अभिजात ने दिप्रिंट को बताया, ‘यूपी सरकार का मानना है कि म्युनिसिपल बॉन्ड इनोवेटिव इंफ्रा प्रोजेक्ट्स के वित्तपोषण और लंबी अवधि की योजना के लिए एक विश्वसनीय स्रोत के रूप में उभरेंगे.’
उन्होंने कहा, “हम केवल पैसे के लिए नहीं जा रहे हैं. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि ऐसी संरचना स्थापित की जाए जो सुव्यवस्थित हो और अकाउंट बुक तर्कसंगत हो. अच्छी क्रेडिट रेटिंग पाने के लिए, आपको वित्तीय रूप से विवेकपूर्ण होना होगा.”
जबकि नागरिक निकाय जो राशि जुटाने की योजना बना रहे हैं वह बहुत अधिक नहीं है – जल आपूर्ति और अन्य आवश्यक सेवा परियोजनाओं के लिए 50 करोड़ रुपये से 100 करोड़ रुपये के बीच – सरकारी अधिकारियों ने कहा कि इस प्रक्रिया से वित्त प्रबंधन के तरीके में बदलाव लाया है.
अभिजात ने बताया, “बॉन्ड जारी करने के लिए, सभी वार्षिक खातों और बैलेंस शीट का ऑडिट करना होगा, परिसंपत्ति-मूल्यांकन करना होगा और सेवा स्तर के बेंचमार्क और बैंक बैलेंस को क्रम में रखना होगा. इससे नगर निगम प्रशासन बेहतर होता है,”
“अब तक, शहरी स्थानीय निकायों द्वारा संपत्ति मानचित्रण नहीं किया जा रहा था. एक बार अभ्यास पूरा हो जाने पर, निगम बेहतर वित्तीय स्थिति में होंगे.”
यूपी सरकार एक वित्तीय मध्यस्थ स्थापित करने की संभावना भी तलाश रही है, जो अन्य शहरी स्थानीय निकायों, विशेष रूप से छोटे शहरों और कस्बों को बाजार से धन जुटाने में सहायता कर सकती है.
अभिजात ने कहा, “हम गुजरात, तमिलनाडु आदि राज्यों द्वारा किए गए काम के आधार पर उत्तर प्रदेश वित्त प्राधिकरण या इसी तरह की संस्था स्थापित करने की संभावना तलाश रहे हैं, ताकि शहरों को नगरपालिका बांड जारी करने में मदद मिल सके.”
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अधिकांश शहरों, विशेषकर टियर-2 और टियर-3 शहरों में नागरिक बुनियादी ढांचे का विकास, भारत में तेजी से हो रहे शहरीकरण के साथ तालमेल नहीं बिठा पाया है.
नगर निगम के वित्त और शासन विशेषज्ञों ने दिप्रिंट को बताया कि शहरी विकास पर नए सिरे से ध्यान केंद्रित करने से लंबे समय में शहरों को मदद मिलेगी.
नगर पालिकाओं के वित्तीय स्वास्थ्य पर बड़े पैमाने पर काम करने वाले बेंगलुरु स्थित थिंक-टैंक जनाग्रह के मुख्य कार्यकारी अधिकारी श्रीकांत विश्वनाथन ने दिप्रिंट को बताया, “यूपी जैसे बड़े और तेजी से शहरीकरण वाले राज्यों में, यह एक सकारात्मक संकेत है कि उन्होंने शहरी विकास पर ध्यान देना शुरू कर दिया है, जो पहले नहीं था. पिछले कुछ वर्षों में, हमने देखा है कि राज्य शहरीकरण और शहरी विकास को अधिक गंभीरता से ले रहा है.”
बांड इनीशिएटिव का दूसरा पहलू
आयुक्त के मुताबिक आगरा नगर निगम (एएमसी) ने सितंबर तक ग्रीन म्युनिसिपल बांड (पर्यावरण-अनुकूल परियोजनाओं को वित्तपोषित करने के लिए) जारी करने की तैयारी के तहत एसेट वैल्युएशन एक्सरसाइज के दौरान पिछले एक साल में 5,000 करोड़ रुपये की संपत्ति की पहचान की है.
एएमसी ने 270 करोड़ रुपये की जल आपूर्ति-सह-सौर ऊर्जा परियोजना के लिए बांड के माध्यम से बाजार से 50 करोड़ रुपये जुटाने की योजना बनाई है. एएमसी कमिश्नर अंकित खंडेलवाल ने दिप्रिंट को बताया कि इस कवायद से वित्तीय पारदर्शिता आई है और खातों का ऑडिट तीसरे पक्ष द्वारा किया जा रहा है.
“नगरपालिका बांड की तैयारी से निगम को लेखांकन प्रणाली को सुव्यवस्थित करने और वित्तीय पारदर्शिता लाने में मदद मिली है, क्योंकि हमें अपने खातों का ऑडिट कराना था. इससे हमें कमियों को पहचानने और उन्हें दूर करने में मदद मिली है. नगरपालिका संपत्ति का मूल्यांकन, जिसे पहले कभी निर्धारित नहीं किया गया था, हम अपनी भविष्य की परियोजनाओं की योजना कैसे बनाते हैं और अपने राजस्व को बढ़ावा देने के तरीकों की तलाश में एक बड़ी भूमिका निभाए.”
निगमों के वरिष्ठ अधिकारियों ने दिप्रिंट को बताया कि आगरा की तरह, कानपुर और प्रयागराज जल आपूर्ति परियोजनाओं के लिए क्रमशः 100 करोड़ रुपये और 50 करोड़ रुपये जुटाएंगे.
कानपुर नगर निगम के उन्हीं अधिकारी ने कहा, “हमें अपने खाते को मेनटेन करने का तरीका बदलना पड़ा, क्योंकि उनका ऑडिट किसी तीसरे पक्ष द्वारा किया जाना था. यह एक कठिन प्रक्रिया थी. चूंकि हमारी जल आपूर्ति परियोजना है, हमें जल विभाग के खातों को भी व्यवस्थित करना था. इसने प्रणाली को अधिक जवाबदेह और पारदर्शी बना दिया है.”
प्रयागराज ने शहर में जल आपूर्ति पाइपलाइन बिछाने की योजना के साथ-साथ दो सौर ऊर्जा परियोजनाओं का भी प्रस्ताव रखा है.
अधिकारियों ने कहा कि वाराणसी नगर निगम, जिसका वार्षिक बजट लगभग 700 करोड़ रुपये है, ने एक बजट होटल के निर्माण सहित तीन परियोजनाओं का प्रस्ताव राज्य सरकार को मंजूरी के लिए भेजा है.
चेतावनी
जबकि विशेषज्ञों का कहना है कि नगर निगम बांड धन जुटाने का एक अच्छा तरीका है, यह नगर निगमों के वित्तीय स्वास्थ्य में सुधार करने का एकमात्र तरीका नहीं है, जो धन के लिए बड़े पैमाने पर राज्य सरकारों पर निर्भर हैं.
विश्वनाथन ने दिप्रिंट को बताया, “एक बार जब नगर निगम बाज़ार में भाग लेना शुरू कर देते हैं, तो यह उन्हें अधिक जवाबदेह बनाता है. लेकिन नगरपालिका बांड लेखांकन प्रणाली को ठीक करने का एकमात्र तरीका नहीं है. उन्हें सिर्फ इसके लिए बांड जारी नहीं करना चाहिए. ऐसा इसलिए होना चाहिए क्योंकि नगरपालिका बांड किसी विशेष परियोजना के वित्तपोषण के लिए सबसे उपयुक्त हैं,”
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 2023-24 का केंद्रीय बजट पेश करते हुए कहा था कि केंद्र शहरों को नगरपालिका बांड जारी करने के लिए प्रोत्साहित करेगा. उन्होंने कहा था, “संपत्ति कर प्रशासन सुधारों और शहरी बुनियादी ढांचे पर रिंग-फेंसिंग उपयोगकर्ता शुल्क के माध्यम से, शहरों को नगरपालिका बांड के लिए अपनी साख में सुधार करने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा.”
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ अर्बन अफेयर्स की प्रोफेसर देबोलिना कुंडू ने दिप्रिंट को बताया कि नगर पालिकाओं के पास “निवेशकों को मूलधन वापस करने का दायित्व है, जिसके लिए उनके राजस्व का सबसे आकर्षक स्रोत बांड चुकाने से जुड़ा होता है”. उन्होंने कहा, “प्राकृतिक आपदा या महामारी जैसी स्थिति होने पर यह किसी शहर, खासकर टियर-2 या टियर-3 के लिए एक बड़ी चुनौती पैदा कर सकता है.”
कुंडू ने बताया कि लंबे समय में, बांड जारी करना “निगमों के वित्तीय स्वास्थ्य को खतरे में डाल सकता है”, जिनके पास आम तौर पर अपने संसाधनों का कम हिस्सा होता है और राज्य निधि पर उच्च निर्भरता होती है, जो “नगर निगम की समग्र स्थिति को प्रभावित करती है”.
विशेषज्ञों के अनुसार, राज्य सरकारों को सक्रिय भूमिका निभाने की आवश्यकता है, क्योंकि एक स्थायी बांड बाजार के लिए जुटाई गई राशि बहुत अधिक होनी चाहिए.
इसके लिए एक राज्य-स्तरीय शहरी बुनियादी ढांचा वित्तपोषण इकाई की आवश्यकता है जो इन शहरों की ओर से बांड जारी कर सके. विश्वनाथन ने दिप्रिंट को बताया, “बाजार से पैसा जुटाने में शहरों की सहायता के लिए एक विशेषज्ञ इकाई बेहतर होगी, क्योंकि टियर-2 और टियर-3 शहर स्थायी रूप से ऐसा करने में सक्षम नहीं होंगे.”
कुंडू ने बताया कि तमिलनाडु और कर्नाटक जैसे राज्यों में पूल्ड फाइनेंसिंग और वित्तीय मध्यस्थों का गठन किया गया है जो कम ब्याज दरों पर कुछ छूट प्रदान करके छोटे शहरों को पूंजी बाजार तक पहुंचने की सुविधा प्रदान करते हैं.
(संपादनः शिव पाण्डेय)
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