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Monday, 25 November, 2024
होमदेशतीसरी डेडलाइन भी बीती, CAA में देरी के खिलाफ प्रधानमंत्री मोदी का दरवाजा खटखटाएंगे बंगाल BJP के नेता

तीसरी डेडलाइन भी बीती, CAA में देरी के खिलाफ प्रधानमंत्री मोदी का दरवाजा खटखटाएंगे बंगाल BJP के नेता

सीएए 2019 में संसद ने पारित कर दिया था, लेकिन केंद्र सरकार ने अभी तक इस पर अमल सुनिश्चित करने के नियम नहीं बनाए हैं. इसके लिए निर्धारित तीसरी डेडलाइन भी 9 जनवरी को बीत गई.

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कोलकाता: पश्चिम बंगाल में मतुआ समुदाय का एक प्रभावशाली संगठन अखिल भारतीय मतुआ महासंघ नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) लागू करने में तेजी लाने के अनुरोध के साथ एक प्रतिनिधिमंडल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के पास भेजने की तैयारी कर रहा है.

प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व गायघाट से भाजपा विधायक सुब्रत ठाकुर करेंगे, जो केंद्रीय मंत्री शांतनु ठाकुर के भाई हैं. मतुआ समुदाय के इन दोनों प्रमुख नेताओं ने पार्टी की तरफ से चुनाव लड़ा था. विधायक सुब्रत ठाकुर ने दिप्रिंट को बताया कि एक बार कोविड की स्थिति में थोड़ा सुधार हो जाए फिर इस पर बैठक की जाएगी.

हालांकि, सीएए को संसद में 2019 में ही पारित कर दिया गया था. लेकिन इसे लागू किए जाने के संबंध में केंद्र सरकार ने अभी तक नियम नहीं बनाए हैं. 9 जनवरी को इस संबंध में तीसरी डेडलाइन भी बीत गई लेकिन गृह मंत्रालय की ओर से इस पर कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है कि क्या डेडलाइन चौथी बार बढ़ाई गई है.

नागरिकता संशोधन अधिनियम के तहत बांग्लादेश से आए हिंदू समुदाय के अनुसूचित जाति के मतुआ शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता देने का वादा किया गया था. यह समुदाय पश्चिम बंगाल की राजनीति में एक अहम भूमिका निभाता है क्योंकि कम से कम 35 विधानसभा क्षेत्रों में इसकी अच्छी-खासी आबादी है, और 2019 के लोकसभा चुनावों के समय से ही यह समुदाय भाजपा का समर्थन कर रहा है.

राज्य के सीमावर्ती जिलों उत्तरी और दक्षिणी 24 परगना, नादिया आदि में बड़ी संख्या में बसा मतुआ समुदाय सीएए पर अमल न होने से काफी चिंतित है. केंद्रीय मंत्री शांतनु ठाकुर, जो महासंघ के अध्यक्ष भी हैं, ने 16 जनवरी को कोलकाता के पास स्थित संगठन के मुख्यालय ठाकुरनगर में समुदाय के नेताओं के साथ बंद कमरे में बैठक की थी.

पिछले रविवार को भाजपा के राज्य मुख्यालय में आयोजित एक प्रेस कांफ्रेंस में पार्टी प्रवक्ता शमिक भट्टाचार्य ने कहा था, ‘सीएए लागू करने में देरी हुई है. यह 2024 में लोकसभा चुनाव से पहले पश्चिम बंगाल में प्रभावी होगा.’

विवादास्पद सीएए के तहत मुस्लिम-बहुल पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से आए छह अल्पसंख्यक समुदायों को भारतीय नागरिकता देने की प्रक्रिया तेज करने का वादा किया गया है. हालांकि, आलोचक इसे भेदभावपूर्ण मानते हैं और इसके पारित होने के बाद देश के विभिन्न हिस्सों में विरोध-प्रदर्शन शुरू हो गया था.


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‘हम अपने लोगों के प्रति जवाबदेह हैं’

पिछले एक हफ्ते से शांतनु ठाकुर न केवल मतुआ समुदाय के सदस्यों के साथ बैठकें कर रहे हैं, बल्कि उन असंतुष्ट भाजपा नेताओं से भी मिल रहे हैं जिनके नाम पार्टी की नवगठित राज्य समिति से गायब हैं.

उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘चार दिन पहले हमारी एक बैठक हुई थी. हम अभी कम से कम दो और बैठकें करेंगे. साथ ही कोविड की स्थिति थोड़ी सुधरने का इंतजार करेंगे और फिर सीएए को जल्द से जल्द लागू करने के संबंध में अखिल भारतीय मतुआ महासंघ का एक प्रतिनिधिमंडल नरेंद्र मोदी और अमित शाह से मिलकर उन्हें ज्ञापन सौंपेगा. हमने एक लंबा इंतजार किया है, लेकिन अभी भी अनिश्चितता बनी हुई है और हम अपने लोगों के प्रति जवाबदेह हैं.’

पिछले साल फरवरी में अमित शाह पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव से एक माह पहले मतुआ समुदाय का समर्थन हासिल करने के उद्देश्य से ठाकुरनगर गए थे, जहां उन्होंने वादा किया था कि जैसे ही केंद्र सरकार अपना कोविड टीकाकरण कार्यक्रम पूरा कर लेती है और देश एक बार इस वायरस से मुक्त हो जाए, फिर सीएए को लागू कर दिया जाएगा.

भाजपा ने राज्य विधानसभा चुनाव के घोषणापत्र में भी सत्ता में आने पर पहली कैबिनेट बैठक में इसे लागू करने का वादा किया था, लेकिन पार्टी चुनाव हार गई.

पश्चिम बंगाल भाजपा के नेताओं की तरफ से सीएए लागू करने की मांग उठने से भी पार्टी नेताओं की मुश्किलें बढ़ गई हैं. राज्य में पार्टी के शरणार्थी प्रकोष्ठ ने 10 जनवरी को इस संबंध में एक प्रेस नोट जारी किया था.

इसमें सीएए लागू करने में अब कोई देरी न करने की मांग करते हुए कहा गया था, ‘अब जबकि केंद्र सरकार कृषि बिलों को निरस्त कर चुकी है, शरणार्थी समुदाय को चिंता है कि सीएए बिल को लागू किया भी जाएगा या नहीं.’

पश्चिम बंगाल भाजपा के शरणार्थी प्रकोष्ठ के संयोजक डॉ. मोहित रॉय ने दिप्रिंट से कहा, ‘नियम बनाने में महीनों नहीं लगते. बल्कि कुछ दिन ही लगते हैं और जितनी देरी की जा रही वो चिंताजनक है, 80 प्रतिशत शरणार्थी पश्चिम बंगाल में रहते हैं और वे हमसे सवाल पूछते हैं जिनका हमारे पास कोई जवाब नहीं होता.’

उन्होंने कहा, ‘वे पासपोर्ट जैसे कानूनी दस्तावेज हासिल करने के लिए अपनी नागरिकता का इंतजार कर रहे हैं. हमने इस संबंध में गृह मंत्री को कुछ सुझाव भी भेजे हैं जिन्हें नियमों में शामिल किया जा सकता है.’

‘अमल पर देरी से बंगाल भाजपा में गुटबाजी बढ़ी’

सेंटर फॉर स्टडीज इन सोशल साइंसेज में पॉलिटिकल साइंटिस्ट मैदुल इस्लाम ने दिप्रिंट को बताया कि सीएए लागू करने में हो रही देरी की वजह से पश्चिम बंगाल भाजपा में गुटबाजी बढ़ी है.

उन्होंने कहा, ‘यह आरएसएस का पसंदीदा प्रोजेक्ट है लेकिन नागरिकता देने के लिए चुने गए देशों और धर्मों के लिहाज से ये बिल भेदभावपूर्ण है. अगर देशभर में विरोध जारी रहे तो केंद्र के लिए इसे लागू करना मुश्किल हो सकता है क्योंकि यह एनआरसी (नागरिकों के राष्ट्रीय रजिस्टर) से भी जुड़ा है.’

कोलकाता के बंगबासी कॉलेज में पॉलिटिकल साइंस के एसोसिएट प्रोफेसर उदयन बंद्योपाध्याय ने दिप्रिंट से कहा, ‘सीएए संविधान के अनुच्छेद 7 का उल्लंघन करता है और प्रकृति में संविधानेतर है.’

उन्होंने कहा, ‘कोई यह अनुमान नहीं लगा सकता कि इस देरी का पश्चिम बंगाल में राजनीतिक असर क्या होगा लेकिन असम में एनआरसी को लगे झटके के भाजपा के लिए ऐसा करना मुश्किल जरूर होगा.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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