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Sunday, 3 November, 2024
होमदेशUP में 'लव जिहाद' के पांच में से तीन मामले पुराने, नए कानून के तहत उन पर मुकदमा चलाना ‘असंवैधानिक’

UP में ‘लव जिहाद’ के पांच में से तीन मामले पुराने, नए कानून के तहत उन पर मुकदमा चलाना ‘असंवैधानिक’

पांच में से तीन मामलों में कथित अपराध कानून लागू होने से पहले हुए थे जिसका मतलब है कि विवादास्पद कानून के तहत उन पर मुकदमा चलाना असंवैधानिक है.

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नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से तथाकथित ‘लव जिहाद’ को अवैध बनाने के लिए अध्यादेश पारित किए जाने के बाद से अगले 10 दिनों में राज्य पुलिस ने ‘विवाह के लिए जबरन धर्मांतरण’ से जुड़े पांच मामले दर्ज किए हैं.

लेकिन पांच में से तीन मामलों में कथित अपराध कानून लागू होने से पहले हुए थे जिसका मतलब है कि विवादास्पद कानून के तहत उन पर मुकदमा चलाना असंवैधानिक है.

उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म परिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश, 2020 पर राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने 28 नवंबर को हस्ताक्षर किए थे. ‘जबरन’ और ‘धोखा’ देकर धर्म परिवर्तन कराने के खिलाफ यह अध्यादेश मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार की तरफ से चार दिन पहले ही तैयार किया गया था.

आम बोलचाल में ‘एंटी-लव जिहाद कानून’ कहे जाने वाले इस कानून के तहत महिलाओं को प्रेम जाल में फंसाकर और झूठे वादे करके शादी के लिए धर्मांतरित कराना साजिश की श्रेणी में आता है. यह धर्मांतरण को गैर-जमानती अपराध बनाता है और दोषी पाए गए व्यक्ति को अधिकतम 10 साल की जेल का प्रावधान है.

कानूनी विशेषज्ञों ने दिप्रिंट को बताया कि जब तक कोई शिकायत स्पष्ट रूप से यह उल्लेख नहीं करती कि घटना नया कानून लागू होने के बाद ही हुई है, पुलिस इसके तहत कार्रवाई नहीं कर सकती. सुप्रीम कोर्ट ने अपने तमाम फैसलों के जरिये यह व्यवस्था स्पष्ट की है कि नागरिक कानूनों के विपरीत, खासकर टैक्स आदि से संबंधित कानूनों के विपरीत दंड संहिता के मामलों में पिछली तारीखों से अमल नहीं हो सकता.

यूपी राज्य विधि आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) आदित्य नाथ मित्तल ने दिप्रिंट को बताया, ‘नए अध्यादेश की उन धाराओं को 28 नवंबर के बाद दर्ज होने वाले मामलों में ही जोड़ा जाना चाहिए, इससे पहले के मामले में नहीं. अगर कोई उन धाराओं को पुराने मामलों में जोड़ता है, तो पूरी संभवना है कि ये धाराएं अदालत में खारिज हो जाएंगी.’

राज्य के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (कानून-व्यवस्था) प्रशांत कुमार ने कहा कि निर्देश स्पष्ट हैं— कानून का दुरुपयोग नहीं किया जाएगा. उन्होंने इस पर सहमति जताई कि पहले के मामलों में इसे लागू नहीं किया जा सकता.

उन्होंने दिप्रिंट से कहा, ‘अगर किसी को लगता है कि कुछ गलत हुआ है और उसे गलत तरह से फंसाया गया है तो हम कार्रवाई करेंगे. गलती को सुधारने के उपाय किए जाएंगे.’


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मामले

यूपी पुलिस ने बरेली में कथित रूप से जबरन धर्मांतरण या ‘लव जिहाद’ के दो मामले दर्ज किए हैं और सीतापुर, मुरादाबाद और मऊ में एक-एक केस दर्ज हुआ है.

पहला मामला 2 दिसंबर को बरेली में सामने आया, जहां एक पिता की तरफ से दायर शिकायत में उवैस अहमद नामक एक शख्स पर उसकी बेटी को इस्लाम धर्म अपनाने के लिए ‘विवश करने, फुसलाने और झांसा देने’ का सहारा लेने का आरोप लगाया गया था. कानून को राज्यपाल की मंजूरी मिलने के कुछ ही घंटों बाद यह शिकायत दर्ज कराई गई थी.

दिप्रिंट के पास मौजूद इस मामले की प्राथमिकी में अपराध की तारीख का उल्लेख नहीं है और केवल अहमद पर लड़की के परिवार को धमकी देने का आरोप लगाया गया है. हालांकि, अहमद का दावा है कि वह जून में लड़की की शादी होने के बाद से उसके संपर्क में नहीं था इसलिए प्राथमिकी की कानूनी वैधता सवालों के घेरे में है.

बरेली में ही दर्ज दूसरा मामला एक वैवाहिक विवाद का है, जहां एक हिंदू महिला ने अपने मुस्लिम पति पर उसे शादी का लालच देकर ‘लव जिहाद’ का आरोप लगाया है. उसने 27 नवंबर को बलात्कार समेत आईपीसी की विभिन्न धाराओं में मामला दर्ज कराया. पति के साथ रहने के लगभग एक साल बाद महिला पुलिस के पास गई, जब उसने कथित तौर पर शादी का पंजीकरण कराने से इनकार कर दिया था. इस मामले में पुलिस ने नए ‘एंटी-लव जिहाद’ अध्यादेश की धाराएं जोड़ने से इनकार कर दिया क्योंकि कथित अपराध इसके लागू होने के पहले ही हुआ था.

लेकिन सीतापुर और मुरादाबाद में इसी तरह के मामलों में यह अध्यादेश अमल में लाया गया. 5 दिसंबर को, सीतापुर में धर्मांतरण विरोधी कानून के तहत पुलिस ने 19 वर्षीय एक महिला का अपहरण करने के आरोप में सात लोगों को गिरफ्तार किया. यहां, लड़की के पिता की तरफ से की गई शिकायत के आधार पर मामला कथित अपराध के दो दिन बाद और कानून लागू होने से दो दिन पहले यानी 26 नवंबर को दर्ज कराया गया था.

मुरादाबाद में एक मुस्लिम युवक और उसके भाई को 6 दिसंबर को उस वक्त गिरफ्तार किया गया था, जब उसने और एक 22 वर्षीय हिंदू युवती ने जिले के कांठ क्षेत्र में अपनी शादी पंजीकृत कराने की कोशिश की. महिला का यह कहना कि उसने पांच महीने पहले ही अपनी मर्जी से शादी कर ली थी, पुलिस को स्पष्ट तौर पर नए कानून की धाराएं लागू करने से रोकता है.

मऊ की घटना संभवत: एकमात्र ऐसा केस है जो नए अध्यादेश के दायरे में आती है. यहां 14 व्यक्तियों को 30 नवंबर को शादी की पूर्व संध्या पर 27 वर्षीय एक लड़की के अपहरण के आरोप में गिरफ्तार किया गया है.

स्थानीय पुलिस का क्या कहना है

बरेली के दूसरे केस को लेकर भ्रम की स्थिति बनी हुई है, मीडिया रिपोर्ट में इसे ‘लव जिहाद’ से जुड़े मामले के रूप में पेश किया जा रहा है लेकिन पुलिस इस बात पर जोर दे रही है कि वे नए कानून के प्रावधानों को लागू नहीं कर सकते क्योंकि कथित घटना इसके प्रभावी होने से पहले हुई थी. लेकिन जिले के दूसरे मामले या सीतापुर और मुरादाबाद में मामलों के साथ ऐसा नहीं है.

सीतापुर (उत्तर) के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक राजीव दीक्षित ने टिप्पणी करने से इनकार कर दिया. जब दिप्रिंट ने उनसे संपर्क किया तो उनका कहना था, ‘मैं इस पर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहता.’

एसएसपी मुरादाबाद के जनसंपर्क अधिकारी ने इस बात से इनकार किया कि पुलिस ने पुराने मामलों में नए अध्यादेश की धाराएं जोड़ी हैं. यह कहे जाने पर कि जिले में पांच माह पुराने अंतर-धार्मिक विवाह से संबंधित मामले में प्राथमिकी दर्ज की गई है, तो उन्होंने कहा, ‘हमें 28 नवंबर के बाद शिकायत मिली.’

बरेली जोन के उप महानिरीक्षक राजेश पांडे ने भी कानून की धाराएं पूर्व के मामले में जोड़े जाने की बात से इनकार किया. उन्होंने कहा, ‘अध्यादेश अमल में आने के बाद अगर जबरन धर्म परिवर्तन कराने की कोई कोशिश हो रही है तभी किसी महिला या पुरुष की शिकायत पर विचार किया जाएगा.’


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कानूनी स्थिति

उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म परिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश की धारा 3 में विवाह के लिए जबरन या विवाह के जरिये धर्मांतरण को गैरकानूनी माना गया है.

धारा 6 में कहा गया है कि ‘किसी खास उद्देश्य’ के लिए ‘जबरन धर्मांतरण’ या इसके उलट स्थिति में हुआ विवाह अमान्य होगा.

धारा 11 ‘इस अध्यादेश के तहत आने वाले’ अपराध के लिए आपराधिक कार्रवाई की अनुमति देता है. और किसी अन्य आपराधिक कानून की ही तरह, धारा 12 के तहत इसमें भी यह साबित करना धर्मांतरण कराने या धर्मांतरण में मदद करने वाले की ही जिम्मेदारी होगी कि धर्मपरिवर्तन धोखे में रखकर या जबरन नहीं कराया गया है, न कि धर्म परिवर्तन करने वाले की.

लेकिन अभी दर्ज तीनों मामलों में कानून लागू होने के पहले की घटनाओं में इसे लागू करना संविधान के अनुच्छेद 20 के खिलाफ जाता है.

अनुच्छेद 20 (1) कहता है, ‘अपराधों के लिए दोषसिद्धि के संबंध में संरक्षण— किसी व्यक्ति को उस अपराध को छोड़कर किस अन्य कृत्य के लिए आरोपित नहीं किया जा सकता है, जो अपराध होने के समय प्रभावी कानून के उल्लंघन की श्रेणी में आता हो और न ही उससे ज्यादा सजा या जुर्माना लगाया जा सकता है जो कि अपराध के समय लागू कानून से अधिक हो.

कोई कानून पूर्वव्यापी रूप से केवल तब लागू किया जा सकता है यदि इसे ऐसे संशोधित किया गया हो कि अभियुक्त को किसी तरह का लाभ मिल सके या फिर स्पष्ट रूप से इसे इस तरह लागू किए जाने का उल्लेख हो.

सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता सौरभ कृपाल ने गिरफ्तारियों को ‘निंदनीय’ करार दिया.

कृपाल ने कहा, ‘मैग्ना कार्टा के समय से ही कानूनन ऐसे किसी कृत्य के लिए किसी अधिनियम के तहत कार्यवाही को प्रतिबंधित किया गया है जो कि उसके अमल में आने से पहले अपराध नहीं था. कानून के इस सबसे बुनियादी सिद्धांत को हमारे संविधान के अनुच्छेद 20 द्वारा एक गारंटीशुदा मौलिक अधिकार के रूप में शामिल किया गया है.’

उन्होंने कहा, ‘तब तो कोई भी नागरिक भयमुक्त जीवन जीने के लिए स्वतंत्र नहीं होगा जब उसका कोई भी कृत्य कभी भी भविष्य में अपराध घोषित होने की आशंका बनी हुई हो.’ साथ ही जोड़ा कि ये अध्यादेश लागू होने से पहले हुए किसी विवाह या धर्मांतरण के लिए किसी पर मुकदमा चलाने का कोई भी प्रयास गैरकानूनी ही नहीं असंवैधानिक भी है.

अधिवक्ता ज्ञानंत सिंह ने भी इससे सहमति जताते हुए कहा कि यूपी पुलिस ने जो किया है वह निश्चित तौर पर ‘स्थापित न्याय व्यवस्था के एकदम खिलाफ है.’

इसी साल जून में जस्टिस संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच ने तेलंगाना में पिछले साल नौ साल के बच्चे के बलात्कार और हत्या के दोषी को मौत की सजा देने से इनकार कर दिया था. यह अपराध ऐसे मामलों में मौत की सजा का प्रावधान करने के लिए संसद द्वारा पोक्सो अधिनियम के संशोधन किए जाने के करीब दो महीने पहले किया गया था.

ज्ञानंत सिंह ने कहा, ‘यह निर्णय सर्वोच्च न्यायालय के कई फैसलों में से एक है जो इस मुद्दे पर कानून को स्पष्ट करता है. किसी दंडात्मक कानून के प्रावधानों पर अमल के लिए अपराध होने की तारीख बेहद महत्वपूर्ण है.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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