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Wednesday, 20 November, 2024
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TMC के 25 साल- पार्टी और इसकी प्रमुख ममता बनर्जी को बंगाल में क्या चीज पॉपुलर बनाती है

टीएमसी 2011 से पश्चिम बंगाल में सत्ता में है. 1 जनवरी, 1998 को स्थापित, नंदीग्राम और सिंगुर भूमि अधिग्रहण आंदोलन राज्य के सीपीआई (एम) शासन को खत्म करने में टीएमसी के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ थे.

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कोलकाता: ममता बनर्जी ने ट्वीट कर बताया कि उनकी पार्टी ने इस सप्ताह 25 साल पूरे किए. उन्होंने लिखा, ‘आज के दिन, 25 साल पहले, टीएमसी वजूद में आई थी. मैं वर्षों से हमारे संघर्षों और लोगों को सशक्त बनाने, अन्याय से लड़ने और लोगों को उम्मीदों को जगाने में निभाई गई भूमिका को याद करती हूं. मां, माटी, मानुष की शक्ति में विश्वास करने के लिए मैं सभी को हृदय से बधाई देती हूं. (मां, मिट्टी, लोग).’

इस यात्रा के अपने उतार-चढ़ाव रहे हैं, लेकिन संस्थापक और चेयरपर्सन, बनर्जी खुद दृढ़ और मजबूत बनी रहीं हैं. तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) की स्थापना 1 जनवरी, 1998 को ऐसे समय में हुई थी जब बनर्जी को एहसास हुआ कि उन्हें बंगाल में सीपीआई(एम) शासन के खिलाफ अपनी लड़ाई को आगे बढ़ाने के लिए कांग्रेस से अलग होना होगा.

उन्होंने मतदाताओं की राजनीतिक नब्ज टटोलने के लिए 11वीं लोकसभा के अंत और 12वीं लोकसभा से पहले का समय चुना, क्योंकि उन्हें उन लोगों से प्रशंसा मिली थी जिन्होंने उनके काम को देखा था. महीनों बाद 1998 के लोकसभा चुनावों में पार्टी ने सात सीटों पर जीत हासिल की.

टीएमसी लॉन्च के दिन, बनर्जी ने कहा था, ‘पश्चिम बंगाल में एक मूक क्रांति हो रही है. लोग इतिहास लिखने की कगार पर हैं. एक नया राजनीतिक युग शुरू होगा. उसी दिन, उन्होंने पार्टी के लोगो का स्केच बनाया- घास पर दो पौधे, जो ‘घास की जड़’ या तृणमूल को दर्शाता है.

दिप्रिंट से बात करते हुए, पूर्व नौकरशाह और अब तृणमूल सांसद जवाहर सरकार ने उस समय को याद किया जब ममता बनर्जी ने चुनाव आयोग को टीएमसी का लोगो सौंपा था.

सरकार ने कुछ महीने पहले पश्चिम बंगाल में मुख्य निर्वाचन अधिकारी के रूप में कार्यभार संभाला था और मध्यावधि चुनाव के लिए मंच पहले ही तैयार हो चुका था क्योंकि पीएम (यूपीए के आई. के गुजराल) ने इस्तीफा दे दिया था.

सरकार ने कहा, ‘एमएस. गिल उस समय भारत के चुनाव आयुक्त थे. लोगो को मंजूरी देने से पहले उन्होंने मुझे कांग्रेस में विभाजन के बारे में सवाल भेजे थे.’

उन्होंने कहा: ‘वह जानना चाहते थे कि क्या ममता के एक्शन ने कांग्रेस के भीतर वाकई और महत्वपूर्ण विभाजन किया है क्योंकि उनके पास तब केवल कुछ मुट्ठी भर समर्थक थे. कांग्रेस इसे कमतर करके दिखा रही थी. इसलिए, हमें गहराई तक जाना पड़ा और उनकी नई पार्टी की ताकत का वास्तविक अनुमान लगाना पड़ा. माहौल पूरी तरह से जोशीला था और ममता बनर्जी ने एक नई पार्टी का लोगो हासिल कर लिया, हालांकि उन्होंने कांग्रेस के रंग और नाम (आंशिक रूप से) का इस्तेमाल किया. यह उल्लेखनीय था कि कैसे वह सीधे अपने खिलाफ सभी बाधाओं के साथ राजनीतिक लड़ाई में कूद पड़ीं.’

सरकार ने कहा, ‘चुनाव कराने के लिए नियुक्त गए एक नौकरशाह के रूप में, सरकार को अपने काम के हिस्से के रूप में राजनीतिक दलों पर कड़ी नजर रखनी होगी. ‘मुझे राज्य चुनाव कार्यालय में ममता बनर्जी से पूछना याद है कि वह इतने सारे तत्वों से कैसे निपटेंगी – उनकी पूर्व पार्टी, कांग्रेस, उनके कट्टर प्रतिद्वंद्वी, सीपीआई (एम) – कोई ठिकाना नहीं, कोई मदद नहीं, कोई फंडिंग नहीं, कोई संरचना नहीं. और उन्होंने बस जवाब दिया, ‘हमें विश्वास है, इसलिए देखें कि क्या होता है’. बाकी इतिहास है. 25 साल बाद, यहां मैं पूरी तरह से अलग भूमिका में हूं, अब उनके पक्ष में हूं.’

दिलचस्प बात यह है कि भाजपा नेता और पूर्व सांसद दिनेश त्रिवेदी टीएमसी के संस्थापक सदस्यों में से एक थे और राज्यसभा में प्रवेश करने वाले पार्टी के पहले नेता थे.


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त्रिवेदी ने याद किया, ‘जब टीएमसी की स्थापना हुई थी, तो इरादा एक ऐसे राज्य में कानून और लोकतंत्र स्थापित करने का था जो भ्रष्टाचार और हिंसा से तंग आ चुका था. हम टीएमसी में कहेंगे ‘बदला नोय, बोडोल चाय’ (हम बदला नहीं चाहते, हम बदलाव चाहते हैं).’

उन्होंने कहा: ‘बंगाल में दुनिया की सबसे अच्छी प्रतिभा है. बंगाली अत्यधिक सुसंस्कृत और शांतिप्रिय होते हैं. वे किसी झमेले में नहीं पड़ना चाहते. हमने इसी विचारधारा से शुरुआत की थी, आखिरकार देश हश्र देख रहा है. टीएमसी पटरी से उतर गई और मैं पार्टी से अलग हो गया. हमने बंगाल के लोगों द्वारा हमें दिया गया सबसे बड़ा अवसर खो दिया.’

त्रिवेदी, जिन्होंने कहा कि वह अभी भी पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री का बहुत सम्मान करते हैं, ने दिप्रिंट को बताया कि टीएमसी में रहते हुए बनर्जी के साथ उनके घनिष्ठ संबंध के दौरान वह हमेशा चाहते थे कि वह राज्य के विकास के लिए केंद्र के साथ मिलकर काम करें.

उन्होंने कहा, ‘दो चरण हैं, सत्ता के पहले संघर्ष, और दूसरा चरण सत्ता के बाद का है. शक्ति को पचाना कठिन है. जिस क्षण आप सत्ता में आते हैं, आप चाटुकारों और माफियाओं से घिरे होते हैं और जो लोग अच्छा चाहते हैं, उन्हें बाहर कर दिया जाता है.’

कांग्रेस से टूटना

1970 के मध्य से, पश्चिम बंगाल कांग्रेस का नेतृत्व प्रिय रंजन दास मुंशी, सुब्रत मुखर्जी और सौमेन मित्रा जैसे गांधी परिवार के वफादारों ने किया था, जो अपने राजनीतिक उत्थान के लिए या तो इंदिरा गांधी, संजय गांधी, या राजीव गांधी को श्रेय देते हैं. सितंबर 1985 में, मुंशी को प्रदेश कांग्रेस कमेटी का प्रमुख नियुक्त किया गया. इस समय के दौरान, बनर्जी ने सोमनाथ चटर्जी को हराकर जादवपुर निर्वाचन क्षेत्र से सांसद के रूप में एक वर्ष पूरा कर लिया था. इस अवधि के दौरान पश्चिम बंगाल कांग्रेस पर पकड़ रखने वाले एक अन्य प्रमुख व्यक्ति प्रणब मुखर्जी थे.

9 अगस्त, 1997 को, बनर्जी ने कोलकाता के नेताजी इनडोर स्टेडियम के बाहर तृणमूल कांग्रेस के गठन की घोषणा की, जबकि अंदर एआईसीसी पूर्ण सत्र का आयोजन चल रहा था. बनर्जी को आमंत्रित नहीं किया गया था क्योंकि कांग्रेस नेताओं के साथ उनकी अनबन स्पष्ट हो गई थी. उनकी जन रैली, कांग्रेस के महत्वपूर्ण इवेंट से टकराते हुए, अधिक भीड़ खींची. उन्होंने कहा कि वह कांग्रेस जैसे फ्रंटल संगठनों की इकाइयां भी बनाएंगी और संकेत दिया था कि तृणमूल अखिल भारतीय बनने की तुलना में अधिक क्षेत्रीय होगी.

उन्होंने पंकज बनर्जी को तृणमूल कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष और तमनाश घोष और ज्योतिप्रिया मल्लिक को तृणमूल युवा कांग्रेस का कार्यकारी अध्यक्ष नामित किया.

ममता: बियॉन्ड 2021 पुस्तक के लेखक जयंत घोषाल ने कहा, ‘जब से बनर्जी ने अपनी पार्टी बनाने के लिए कांग्रेस से इस्तीफा दिया है, तब से हावड़ा ब्रिज के नीचे बहुत पानी बह चुका है. और जो पार्टी कभी देश में खड़ी एक विशाल वृक्ष थी, वह लगातार मुरझाकर राष्ट्रीय राजनीति में ठूंठ बन गई है. बंगाल में पार्टी को पुनर्जीवित करने के लिए, उन्हें बनर्जी के साथ गठबंधन करना चाहिए था, लेकिन उन्होंने उन्हें निशाना बनाने का फैसला किया और उन पर भाजपा के साथ नाता रखने का आरोप लगाया, जिसने जनता की राय को तेजी से कांग्रेस के खिलाफ कर दिया.

घोषाल के अनुसार, यह बनर्जी ही हैं जो 2024 में मोदी ब्रिगेड के खिलाफ विपक्षी एकता में गोंद साबित हो सकती हैं.

घोषाल ने कहा, लेकिन कांग्रेस के साथ विभाजन के बावजूद, टीएमसी प्रमुख के घर में कोलकाता और नई दिल्ली के आवासों पर पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की तस्वीरें हैं.

घोषाल ने याद किया, ‘बनर्जी के लिए राजीव का पहला इनाम उन्हें पश्चिम बंगाल युवा कांग्रेस अध्यक्ष नियुक्त करना था. लेकिन वह इस प्रगति से अनभिज्ञ थीं, और उन्हें समाचार एजेंसी पीटीआई के माध्यम से पता चला, जिसने राजीव का उल्लेख किया था. इस दौरान, उन्होंने संयुक्त राष्ट्र और ऐसे अन्य वैश्विक निकायों के तहत कई अंतरराष्ट्रीय युवा मंचों में भाग लेने के लिए विदेश में तत्कालीन कांग्रेस युवा अध्यक्ष आनंद शर्मा के साथ यात्रा पर थीं.’

घोषाल ने कहा कि राजीव गांधी ने संसद में बनर्जी की लड़ाई की भावना की झलक देखी थी, जहां दोनों 1984 में सांसद थे. वह बनर्जी को अपने साथ राजनीतिक अभियान की जीप में ले जाते थे.

कहा जाता है कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री के अभी भी पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के साथ मधुर संबंध हैं. जब सोनिया कथित तौर पर 2021 में स्वास्थ्य कारणों से अमेरिका की यात्रा पर जाने वाली थीं, तो उन्होंने ‘बनर्जी को फोन किया और मिलने का अनुरोध किया’. कहा जाता है कि बनर्जी ने अपने सभी आधिकारिक काम रद्द कर दिए और दिल्ली के लिए उड़ान भरी. सोनिया से उनके आवास पर मुलाकात की.

घोषाल ने कहा, ‘दिलचस्प बात यह है कि जब वह 1997 में कांग्रेस छोड़ने की योजना बना रही थीं, तब सोनिया गांधी ने उन्हें अपने फैसले पर पुनर्विचार करने के लिए फोन किया था.’

उन्होंने कहा: ‘जब बनर्जी के साथ तत्कालीन पश्चिम बंगाल कांग्रेस प्रमुख सौमेन मित्रा के बीच झड़प हुई तो इस दौरान सीताराम केसरी और प्रणब मुखर्जी ने उनका समर्थन किया था, यही वह समय था जब उन्होंने कांग्रेस से बाहर निकलने का मन बना लिया. वह घोर वामपंथी विरोधी थीं. प्रणब मुखर्जी पश्चिम बंगाल के सीपीआई (एम) के तत्कालीन मुख्यमंत्री ज्योति बसु के करीबी थे, और इसी तरह राज्य के अन्य कांग्रेसी नेता भी. बनर्जी अपनी लड़ाई जारी रखना चाहती थीं और उन्होंने ऐसा किया.’

टीएमसी के लिए टर्निंग पॉइंट

दिलचस्प बात यह है कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री हमेशा भाजपा के विरोध में नहीं रही हैं. 1997 में कांग्रेस से अलग होने और टीएमसी के गठन के बाद, बनर्जी ने भाजपा के साथ गठबंधन किया और रेल मंत्री के रूप में पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी के मंत्रिमंडल का भी हिस्सा थीं.

2001 में तहलका के पर्दाफाश को लेकर वाजपेयी कैबिनेट छोड़ने के बाद, बनर्जी ने पश्चिम बंगाल चुनाव के लिए कांग्रेस के साथ गठबंधन किया. टीएमसी ने 226 सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन केवल 60 जीत पाई. 2003 के पंचायत चुनावों में इसका प्रदर्शन लगातार गिरता रहा, जहां इसने 713 जिला परिषदों में से केवल 16 पर जीत हासिल की.

राजनीतिक पंडितों ने बनर्जी को खारिज कर दिया था जब पार्टी ने 2004 के लोकसभा चुनावों में केवल उनकी सीट जीती थी. बाद में अगले साल, इसने कोलकाता नगर निगम पर भी नियंत्रण खो दिया.

इससे पहले, नवंबर 2006 में, तत्कालीन सीपीआईएम सरकार द्वारा टाटा मोटर्स की नैनो कार परियोजना के खिलाफ अधिग्रहित 400 एकड़ जमीन को किसानों को वापस करने की मांग के लिए सिंगूर जाते समय बनर्जी को रास्ते में रोक दिया गया था. यह उनके लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ.

बनर्जी की अगुवाई में 2007 के नंदीग्राम आंदोलन, एक रासायनिक हब के लिए भूमि अधिग्रहण के खिलाफ उनकी लड़ाई ने पार्टी को नया जीवन दिया.

टीएमसी विधायक मदन मित्रा, जो बनर्जी के पक्ष में थे, जब उन्हें सिंगुर में रोका गया था, ने कहा, ‘विरोध जीने का एक तरीका था और ममता बनर्जी कभी भी सामने से नेतृत्व करने से नहीं कतराएंगी. वह कार्यकर्ताओं में जोश और धैर्य का संचार करेगी.’

टीएमसी प्रमुख कोलकाता के एस्प्लेनेड में एक अस्थायी मंच पर बैठीं और भूमि अधिग्रहण के विरोध में 25 दिनों तक भूख हड़ताल पर रहीं. उन्होंने 28 दिसंबर को तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह का फोन आने के बाद अपनी हड़ताल वापस ले ली.

2011 में, टीएमसी ने पश्चिम बंगाल में 34 साल के सीपीआई (एम) के शासन को खत्म कर ऐतिहासिक जीत दर्ज की और 20 मई को बनर्जी ने पश्चिम बंगाल की पहली महिला मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लीं. 2016 और 2021 के चुनावों में जीत हासिल करने के बाद से टीएमसी राज्य में सत्ता में है.


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काम जो किया

इंडियन पॉलिटिकल एक्शन कमेटी (IPAC) द्वारा 2021 के विधानसभा चुनावों से पहले जारी एक रिपोर्ट कार्ड के अनुसार, जो राज्य में पिछले 10 वर्षों में पार्टी के शासन को लेकर TMC के राजनीतिक अभियान में मदद कर रहा है, बंगाल की GDP 4.1 लाख रुपये से 6.9 लाख करोड़ रु. बढ़ी है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि एक लोकप्रिय योजना कन्याश्री के तहत 67.29 लाख से अधिक लड़कियों को उनकी शिक्षा के लिए 6,720 करोड़ रुपये की वित्तीय सहायता प्रदान की गई है. सरकार की सबूज साथी योजना ने छात्रों को 84 लाख साइकिलें प्रदान की हैं. साथ ही, 1.4 करोड़ परिवारों को स्वास्थ्य शाथी योजना से मदद मिली है, जिसके तहत प्रति वर्ष 5 लाख रुपये तक का स्वास्थ्य बीमा दिया जाना है.

राजनीतिक विश्लेषक बिश्वनाथ चक्रवर्ती के अनुसार, पश्चिम बंगाल के बढ़ते कर्ज के बोझ के बावजूद, इन योजनाओं ने टीएमसी को अपरिहार्य (बहुत जरूरी) बना दिया है. उन्होंने कहा, ‘कोई भी राजनीतिक दल नहीं है जो ममता बनर्जी द्वारा डिजाइन किए गए इन सोपों से मेल खा सके. वित्तीय बोझ को अलग रखते हुए, लोग स्पष्ट रूप से ऐसी योजनाओं के कारण टीएमसी को वोट देते हैं, बशर्ते कि भ्रष्टाचार पर लगाम लगाई जाए.’

लेकिन 25 साल बाद भी बनर्जी की क्या चीज लोगों छूती हैं? टीएमसी सांसद सुखेंदु शेखर रे ने दावा किया कि यह ‘जमीनी स्तर पर उनके अथक जुड़ाव की वजह से है. वह न केवल बंगाल में बल्कि पूरे देश में असहाय, दबे-कुचले लोगों की आवाज हैं. वह पहले दिन से आम आदमी की राजनीति कर रही हैं, वह लोगों भावनाओं के लिए लड़ती हैं. उनके सिंगूर आंदोलन की वजह से देश की शीर्ष अदालत ने पुराने भूमि अधिग्रहण कानून को अमान्य घोषित कर दिया.

टीएमसी: तब, अभी और आगे क्या?

राजनीतिक पर्यवेक्षक जयंत घोषाल के अनुसार, तृणमूल कांग्रेस की स्थापना के बाद से इसमें कोई बड़ा बदलाव नहीं हुआ है, ‘पार्टी के हर पहलू को लेकर ममता के शब्द आखिरी होते हैं. वह रणनीति तय करती हैं और जिम्मेदारियां बांटती हैं.’

हालांकि, 2019 के बाद से, उनके भतीजे और पार्टी के सांसद अभिषेक बनर्जी को टीएमसी के राजनीतिक गतिविधियों में फ्रंट पर दिखे हैं. यह अभिषेक ही थे जिन्होंने 2021 के राज्य विधानसभा चुनावों के लिए, उस साल लोकसभा चुनाव के बाद राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर को लेकर आए.

घोषाल ने कहा, ‘अब, एक स्पष्ट बदलाव है, अभिषेक पार्टी के मामलों को देखते हैं और बनर्जी राज्य के शासन को देखती हैं. दोनों साथ बैठते हैं, राजनीतिक रणनीति बनाते हैं. पार्टी के भविष्य को ध्यान में रखते हुए अभिषेक को तृणमूल प्रमुख द्वारा खुद तैयार किया जा रहा है. बनर्जी 2024 में एक बड़ी भूमिका निभाएंगीं.’

(संपादन : इन्द्रजीत)

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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