नई दिल्ली: केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने फिर एक बार नेहरू पर निशाना साधते हुए कहा कि हमारे देश के आंतरिक मुद्दे (कश्मीर मुद्दे) को संयुक्त राष्ट्र में ले जाना कोई गलती नहीं बल्कि एक बड़ी भूल थी, एक ऐतिहासिक भूल!
लोकसभा के शीतकालीन सत्र के दौरान जम्मू-कश्मीर आरक्षण संशोधन अधिनियम 2023 और जम्मू कश्मीर पुनर्गठन संशोधन विधेयक 2023 पर बहस के दौरान जवाब देते हुए शाह ने कहा, ये विधेयक 70 वर्षों से जिन पर अन्याय हुआ, अपमानित हुए और जिनकी अनदेखी की गई, उनको न्याय दिलाने का बिल है.
उन्होंने कहा, “मुझे खुशी है कि जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक 2023 पर पूरी चर्चा और बहस के दौरान, किसी भी सदस्य ने विधेयक के ‘तत्व’ का विरोध नहीं किया.”
शाह ने कहा, “नेहरू के समय में जो गलतियां हुई थीं, उसका खामियाजा वर्षों तक कश्मीर को उठाना पड़ा.”
उन्होंने कहा, “पहली और सबसे बड़ी गलती- जब हमारी सेना जीत रही थी, पंजाब का क्षेत्र आते ही सीजफायर कर दिया गया और पीओके का जन्म हुआ. अगर सीजफायर तीन दिन बाद होता तो आज पीओके भारत का हिस्सा होता. दूसरा- UN में भारत के आंतरिक मसले को ले जाने की गलती की.”
विधेयकों में से एक का उद्देश्य जम्मू और कश्मीर आरक्षण अधिनियम, 2004 में संशोधन करना है. इसे अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों के सदस्यों के लिए व्यावसायिक संस्थानों में नियुक्ति और प्रवेश में आरक्षण प्रदान करने के लिए बिल बनाया जा रहा है. दोनों विधेयक लोकसभा में पारित हो गए हैं.
इस दौरान गृह मंत्री ने कश्मीर को लेकर कुछ आंकड़े पेश किए जिसमें उन्होंने बताया कि तत्कालीन राज्य से 370 हटाने के बाद से केंद्र शासित प्रदेश में 2023 में पथराव की एक भी घटना नहीं हुई है.
शाह ने कहा, ‘‘जो कहते हैं धारा 370 हटने से क्या हुआ? 5-6 अगस्त, 2019 को इनकी (कश्मीरी) वर्षों से न सुनी जाने वाली आवाज़ को मोदी जी ने सुना और आज उनको उनका अधिकार मिल रहा है.’’
उन्होंने कहा, ‘‘कश्मीर के लोगों को अपने ही देश में उन्हें शरणार्थी बनना पड़ा. आंकड़ों के मुताबिक, 46,631 परिवार और 1,57,967 लोग अपने ही देश में विस्थापित हो गए. ये बिल उनको अधिकार देने का है, उनको प्रतिनिधित्व देने का है.’’
नाम लिए कांग्रेस नेताओं पर गांधी परिवार पर निशाना साधते हुए गृहमंत्री ने कहा, ‘‘आप तो मूल से ही कटे हो, मूल के साथ संपर्क ही नहीं है, तो कैसे मालूम होगा कि जम्मू कश्मीर में बदलाव क्या हुआ. इंग्लैंड में छुट्टी मनाकर जम्मू कश्मीर में बदलाव नहीं मालूम पड़ेगा.’’
नेशनल कॉन्फ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने कहा कि दिल्ली में बैठे एक नेता द्वारा लिए गए फैसले से केंद्र शासित प्रदेश के लोग खुश नहीं हैं और आगामी विधानसभा चुनाव में ये साफ भी हो जाएगा.
अब्दुल्ला ने कहा, ‘‘यह बंधन दिल्ली और जम्मू-कश्मीर के एक व्यक्ति के बीच नहीं था, यह इस राज्य के साथ एक देश के बीच का बंधन था. अगर वो सोचते हैं कि इस बंधन को नुकसान पहुंचाना बधाई का पात्र है, तो उन्हें एक-दूसरे को बधाई देने दें.’’
उन्होंने आगे कहा, ‘‘सच्चाई यह है कि जम्मू-कश्मीर के लोग और लद्दाख 5 अगस्त, 2019 को उठाए गए कदमों से खुश नहीं हैं. यह कारगिल (एलएएचडीसी चुनाव) में साबित हुआ था. यह डीडीसी (जिला विकास परिषद) चुनावों में साबित हुआ था और अगर वे यहां विधानसभा चुनाव कराते हैं, तो यह फिर से साबित होगा.’’
शाह ने कहा कि एक तरह से कश्मीर में तीन युद्ध हुए! 1947 में पाकिस्तान ने कश्मीर पर आक्रमण किया, इस दौरान 31,000 से अधिक परिवार विस्थापित हुए.
‘‘1965 और 1971 के युद्धों के दौरान 10,065 परिवार विस्थापित हुए थे. 1947, 1965 और 1969 के इन तीन युद्धों के दौरान कुल 41,844 परिवार विस्थापित हुए थे. यह विधेयक उन लोगों को अधिकार देने, उन लोगों को प्रतिनिधित्व देने का एक प्रयास है!’’
शाह ने कहा कि कुछ लोग पूछ रहे थे कि विस्थापित कश्मीरी पंडितों को आरक्षण देने से क्या होगा? ‘‘कश्मीरी पंडितों को आरक्षण देने से कश्मीर की विधानसभा में उनकी आवाज़ गूंजेगी और अगर फिर विस्थापन की स्थिति आएगी तो वो उसे रोकेंगे.’’
शाह ने कहा कि पिछड़ा वर्ग आयोग को 70 वर्षों से संवैधानिक मान्यता नहीं दी, नरेंद्र मोदी सरकार ने पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक मान्यता दी थी.
काका कालेलकर की रिपोर्ट को रोक कर रखा. मंडल कमीशन की रिपोर्ट को लागू नहीं किया और जब लागू करने की बात हुई तो राजीव गांधी ने इसका विरोध किया.
जब आतंकवाद ने अपना शिकंजा कस लिया, जब हर किसी को निशाना बनाकर भगाया जाने लगा, तो कई लोगों ने इस पर अपनी तथाकथित चिंताएं व्यक्त कीं! कई लोगों ने पीड़ितों की खराब स्थिति पर घड़ियाली आंसू बहाए, कई लोगों ने उन्हें अच्छे शब्दों से सांत्वना दी, लेकिन मोदी जी एकमात्र व्यक्ति हैं जिन्होंने वास्तव में पीड़ितों के आंसू पोंछे हैं!
1994-2004 की अवधि के दौरान आतंकवाद की कुल 40,164 घटनाएं दर्ज की गईं. 2004-2014 की अवधि के दौरान आतंकवाद की कुल 7,217 घटनाएं हुईं.
विशेष रूप से 2014-2023 की अवधि के दौरान, नरेंद्र मोदी सरकार के तहत, आतंकवाद की कुल लगभग 2,000 घटनाएं दर्ज की गई हैं; यह आतंकवाद की घटनाओं में पहले की तुलना में 70% की कमी दर्शाता है!
इसलिए मैं सही कह रहा था कि अलगाववाद का मूल कारण, आतंकवाद का मूल कारण और कुछ नहीं बल्कि धारा 370 थी!
मोदी के नेतृत्व वाली सरकार के सत्ता में आने के बाद जम्मू-कश्मीर में अभूतपूर्व परिवर्तन देखा गया!
शाह ने कहा, ‘‘हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि जम्मू कश्मीर को पहला मल्टीप्लेक्स सिनेमा मोदी सरकार में ही मिला! अब, घाटी में 100 से अधिक फिल्मों की शूटिंग हो रही है…और 100 से अधिक मूवी थिएटरों के लिए बैंक ऋण प्रस्ताव प्रक्रिया में हैं!’’
पूरे देश में सिर्फ गरीब लोगों का पांच लाख तक के इलाज का खर्च सरकार उठाती है, लेकिन जम्मू-कश्मीर में सभी व्यक्तियों का पांच लाख तक के इलाज़ का खर्च सरकार उठाती है.
विधेयकों में से एक का उद्देश्य जम्मू और कश्मीर आरक्षण अधिनियम, 2004 में संशोधन करना है. इसे अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों के सदस्यों के लिए व्यावसायिक संस्थानों में नियुक्ति और प्रवेश में आरक्षण प्रदान करने के लिए बिल बनाया जा रहा है.
विधेयक में “कमजोर और वंचित वर्गों (सामाजिक जातियों) के नाम को “अन्य पिछड़ा वर्ग” में बदलने और परिणामगत संशोधन के लिए आरक्षण अधिनियम की धारा 2 में संशोधन करने का प्रावधान है.
कांग्रेस के ढेर सारे मित्र Backward Class की बात करते हैं, लेकिन पहले अपना इतिहास तो देखो. पिछड़ों का सबसे बड़ा विरोध और Backward Class को रोकने का काम कांग्रेस पार्टी ने किया है. पिछड़ा वर्ग आयोग को 70 वर्षों से संवैधानिक मान्यता नहीं दी, नरेंद्र मोदी सरकार ने पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक मान्यता दी.
पहले जम्मू में 37 सीटें थीं, अब 43 हैं. कश्मीर में पहले 46 थीं, अब 47 हैं और पीओके में 24 सीटें हमने रिज़र्व रखी हैं, क्योंकि पीओके हमारा है.
अन्य विधेयक में “कश्मीरी प्रवासियों”, “पाकिस्तान के कब्जे वाले जम्मू और कश्मीर के विस्थापित लोगों” और अनुसूचित जनजातियों को उनके राजनीतिक अधिकारों के साथ-साथ केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर की विधानसभा में उनके समग्र सामाजिक और आर्थिक विकास के लिए प्रतिनिधित्व प्रदान करने का प्रावधान है.
इसके जरिए जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 में नई धारा 15ए और 15बी को सम्मिलित करने का प्रयास है, ताकि जम्मू-कश्मीर विधानसभा के लिए दो से अधिक सदस्यों को नामांकित किया जा सके, जिनमें से एक महिला “कश्मीरी प्रवासियों” के समुदाय से होगी और एक सदस्य पाकिस्तान अधिकृत जम्मू और कश्मीर से “विस्थापित व्यक्तियों” से होगा.
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