अलीगढ़: अलीगढ़ अवैध शराब त्रासदी के पीछे के संदिग्ध लोग, कथित रूप से शराब अपराध के धंधे में 15 साल पहले शामिल हुए थे. पुलिस सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि पहले उन्होंने अलीगढ़ समेत बहुत से ज़िलों में, हरियाणा से शराब की तस्करी शुरू की, जहां वो उत्तर प्रदेश से कहीं ज़्यादा सस्ती है.
लेकिन पिछले साल, उन्हें कथित रूप से मजबूरन अपनी योजना बदलनी पड़ी, जब फरवरी में हरियाणा ने देसी शराब पर आबकारी शुल्क में 22 प्रतिशत का इज़ाफा कर दिया. उसके बाद 5 रुपए प्रति क्वार्टर कोविड सेस लगा दिया गया. अलीगढ़ पुलिस सूत्रों ने बताया कि इसके साथ ही कार्टेल के इस धंधे में मुनाफा कम हो गया.
सूत्रों ने आगे कहा कि इसके बाद अभियुक्तों ने, ख़ुद अपनी शराब बनाने का काम शुरू कर दिया- और धोखाधड़ी से उसे सरकार द्वारा स्वीकृत ब्राण्ड के नाम से बेचने लगे. त्रासदी होने से पहले तक वो 100 प्रतिशत मुनाफा बना रहे थे.
अलीगढ़ के मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) के अनुसार, 35 लोगों की मौत ज़हरीली शराब से होने की पुष्टि हुई है, जिसका संबंध इस कार्रवाई से बताया जा रहा है. सीएमओ ने कहा कि अन्य 71 मौतों के पीछे भी, इस कारण की जांच की जा रही है, लेकिन अभी उसकी मेडिकल पुष्टि का इंतज़ार है.
पूछताछ में एक मुख्य अभियुक्त विपिन यादव ने कथित तौर पर पुलिस को बताया है कि एथनॉल के एक बैच में, जिसकी उसने शराब बनाने के लिए तस्करी की, मेथाइल एल्कोहल मिला हुआ था, जिसका सेवन ख़तरनाक है और एक मात्रा से अधिक लेने पर जानलेवा हो सकता है.
यादव उन तीन मुख्य अभियुक्तों में से एक है, जिनकी अभी तक गिरफ्तारी हुई है. पुलिस ने अन्य की पहचान अनिल चौधरी और ऋषि शर्मा के रूप में की है.
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जहां चौधरी और शर्मा इस ‘कार्टेल’ के सरग़ना थे, वहीं यादव कथित रूप से तस्करी का काम करता था.
दो अन्य- मुनीष शर्मा (ऋषि का भाई) और नीरज चौधरी (अनिल चौधरी का भतीजा)- को भी अभियुक्त बनाया गया है.
मामले की जांच के सिलसिले में अलीगढ़ पुलिस ने, अभी तक 17 एफआईआर दर्ज की हैं, 61 लोगों को गिरफ्तार किया है और 7,000 लीटर से अधिक शराब बरामद की है. इस रैकेट के खिलाफ कार्रवाई न करने के लिए 14 पुलिसकर्मी निलंबित किए गए हैं, और शराब की तीन अवैध फैक्ट्रियां बंद की गई हैं.
उन पर यूपी आबकारी अधिनियम और आईपीसी की धारा 272 (खाद्य या पेय में मिलावट), 273 (हानिकारक खाद्य या पेय पदार्थ की बिक्री), 304 (लापरवाही से मौत), 420 (धोखेबाज़ी), 467 (जालसाज़ी), 468 (धोखेबाज़ी की नीयत से जालसाज़ी), और 307 (हत्या का प्रयास) के तहत मुक़दमा दर्ज किया गया है.
अलीगढ़ पुलिस कमिश्नर गौरव दयाल ने कहा, ‘फिलहाल हम इन अपराधियों पर ग़ुण्डा एक्ट और राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून लगाने की तैयारी कर रहे हैं. पुलिस इन क़ानूनों के तहत अभियुक्तों के खिलाफ, अलग से एफआईआर दर्ज करने की तैयारी कर रही है.’
कैसे हुई त्रासदी
28 मई को अलीगढ़ में ज़हरीली शराब से कई लोगों के मरने की ख़बर आई और पुलिस ने अपनी जांच शुरू कर दी.
30 मई तक यादव को गिरफ्तार कर लिया गया. चौधरी को अगले दिन हिरासत में लिया गया. 9 दिन की तलाश के बाद 6 जून को, शर्मा को बुलंदशहर से गिरफ्तार कर लिया गया.
लेकिन, इस बीच ज़हरीली शराब से मरने वालों की संख्या बढ़ती रही.
4 जून को अलीगढ़ के जावन और अकराबाद इलाक़ों में, ग्रामीणों और ईंट-भट्टा मज़दूरों ने, गंगा नहर में शराब की पेटियां देखीं- जिन्हें कथित रूप से छापेमारी कर रही पुलिस टीमों की, आंख में धूल झोंकने के लिए फेंका गया था- और उन्होंने उसे पी लिया.
28 मई से 5 जून के बीच हुई 106 मौतों के पीछे, ज़हरीली शराब पर शक किया जा रहा है. पोस्टमॉर्टम जांच में पुष्टि हुई कि 35 मामलों में मौत का कारण ज़हर था.
दिप्रिंट से बात करते हुए अलीगढ़ के सीएमओ, प्रताप भानु सिंह कल्याणी ने कहा कि वो ‘मौतों की संख्या 35 बता रहे हैं, क्योंकि ऑटोप्सी के दौरान इन शवों में ज़हरीली शराब के अवशेष पाए गए और जब शवों को काटकर खोला गया, तो उनमें एल्कोहल की गंध आ रही थी’. उन्होंने आगे कहा, ‘हम सभी 106 शवों की विसरा रिपोर्ट्स का इंतज़ार कर रहे हैं, और इन फॉरेंसिक रिपोर्ट्स के आधार पर ही हम अपनी अंतिम राय देंगे’.
पुलिस सूत्रों ने कहा कि यादव ने अपनी पूछताछ के दौरान उन्हें बताया कि उसे तस्करी किए गए बैच में मेथाइल एल्कोहल की मौजूदगी के बारे में, 27 मई को सूचित किया गया. कथित रूप से उसने उस समय तय किया कि अब बहुत देर हो चुकी है, इसलिए कुछ नहीं किया.
मेथाइल एल्कोहल के बारे में पूछे जाने पर सीएमओ कल्याणी ने कहा कि इससे शरीर में तेज़ी के साथ फार्मल्डिहाइड (एक प्रकार की गैस) बनती है, जिससे आंखों की नस ख़राब होने से अंधापन हो सकता है और किडनी, लंग्स तथा पाचन प्रणाली प्रभावित हो सकती है. उन्होंने आगे कहा कि यदि उपभोग अधिक मात्रा में हो, तो इससे मौत भी हो सकती है.
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‘कैसे काम करता था कार्टेल’
शराब बनाने के काम के लिए अभियुक्तों ने कथित रूप से फैक्ट्रियां लगाईं और दूसरे राज्यों से एथनॉल की तस्करी शुरू कर दी. पुलिस ने बताया कि ये फैक्ट्रियां पिछले साल से चल रहीं थीं.
ये एल्कोहल धोखाधड़ी से ‘गुड ईवनिंग’ ब्राण्ड के नाम से बेचा जाता था. वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) कलानिधि नैथानी ने बताया कि गुड ईवनिंग को फिलहाल उत्तर प्रदेश में पूरी तरह चलन से बाहर कर दिया गया है.
पुलिस ने बताया कि उनका मुनाफा 100 प्रतिशत से भी अधिक था. उप-महानिरीक्षक (डीआईजी) मनोज कुमार ने बताया, ‘जो शराब वो बनाते थे, उसकी लागत 1,500 रुपए प्रति पेटी थी, जिसे वो 3,600 रुपए प्रति पेटी के हिसाब से बेंचते थे. अगर वो क़ानूनी तरीक़े से चलते, तो उन्हें एक पेटी की लागत 3,000 रुपए आती और उन्हें उसे 3,600 रुपए प्रति पेटी पर बेचना पड़ता’. उन्होंने आगे कहा, ‘इस तरह अपनी ख़ुद की शराब बनाकर वो 100 प्रतिशत अतिरिक्त मुनाफा कमा रहे थे’.
एसएसपी ऑफिस के मुताबिक़, अलीगढ़ शहर में शराब की अनुमानित 545 दुकानें हैं, जिनमें से 212 पर देसी शराब बेची जाती है. पुलिस ने बताया कि इनमें से 50 पंजीकृत दुकानें, ‘कार्टेल’ की ओर से चलाई जा रहीं थीं. ये पूछे जाने पर कि क्या इन दुकानों की, पहले कभी जांच हुई है, एसएसपी ऑफिस ने कहा कि इस घटना से पहले, उनपर छापा नहीं मारा गया था.
अलीगढ़ के एसएसपी ऑफिस ने दिप्रिंट को बताया कि मौजूदा जांच के अंतर्गत पुलिस ने पांच राज्यों के अंदर देसी शराब की 200 दुकानों पर छापे मारे हैं. अलीगढ़ में छापों के दौरान 7,476 लीटर अवैध शराब, बोतलों के 5,723 नक़ली ढक्कन, 3,200 नक़ली पैकेजेज़ और शराब बनाने के लिए 1,000 लीटर स्पिरिट की बरामदगी की गई.
जिन तीन फैक्ट्रियों पर छापा डालकर उन्हें बंद किया गया, उनमें से एक अकराबाद के अधौन गांव में बताई जा रही है. जब दिप्रिंट ने इस फैक्ट्री का दौरा किया तो गांव वासियों ने कहा कि 2020 की शुरुआत के बाद से, उन्हें वहां कोई गतिविधि नहीं देखी.
उनका कहना है कि 2020 की शुरुआत तक फैक्ट्री में बैटरियां बनाई जाती थीं.
एक किसान ने, जिसका खेत फैक्ट्री के ठीक सामने है बताया, ‘मैं अपनी पूरी ज़िंदगी से इस खेत पर काम कर रहा हूं. अगर मैंने यहां कोई गतिविधि देखी होती, तो आपको बता देता. अब मुझसे और सवाल मत कीजिए’.
हिस्ट्री-शीटर्स?
उत्तर प्रदेश पुलिस सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि चौधरी और शर्मा पहले भी ज़हरीली शराब, अपहरण, हत्या के प्रयास, और निचली जातियों के उत्पीड़न जैसे गंभीर अपराओं का सामना कर चुके हैं, लेकिन उन्हें क्लीन चिट दे दी गई थी.
पुलिस के एक सूत्र ने कहा, ‘2008 में चौधरी पर ज़हरीली शराब के एक मामले में, ग़ुण्डा एक्ट, एक्साइज़ एक्ट, और ट्रेडमार्क एक्ट की उपयुक्त धाराओं के तहत मुक़दमा दर्ज किया गया था. लेकिन, 2011 में जांच के दौरान पुलिस ने केस से उसका नाम हटा दिया और उसे क्लीन चिट दे दी गई’.
सूत्रों के अनुसार, 2005 और 2009 में मुनीष पर आईपीसी की धारा 364 (अपहरण) और 307 (हत्या का प्रयास) के तहत मुक़दमा दर्ज किया गया. 2017 में मुनीष और ऋषि पर एससी-एसटी एक्ट के तहत मामला दर्ज हुआ. सूत्रों ने बताया कि सभी मामलों में, एक फाइनल रिपोर्ट पेश की गई, जिसमें उन्हें अपराध का आरोपी नहीं बनाया गया.
उन्हें क्लीन चिट देने के आधार के बारे में पूछने पर, पुलिस सूत्रों ने कहा कि उनकी पहुंच केस फाइलों तक नहीं है और इसलिए उन्हें कारण की जानकारी नहीं है.
एसएसपी ऑफिस ने कहा कि पुलिस ने ऐसे 465 लोगों की एक सूची तैयार की है, जो अलीगढ़ में पिछले एक दशक में, ज़हरीली शराब से जुड़े मामलों में नामित थे, लेकिन सबूत न मिलने की वजह से छोड़ दिए गए. ऑफिस ने कहा कि उनकी फिर से जांच की जाएगी.
राजनीतिक रसूख़ की झलक
चौधरी और शर्मा दोनों को स्थानीय स्तर पर ताक़तवर बताया जाता है.
इसी साल, चौधरी की पत्नी ममता चौधरी ने आरएलडी उम्मीदवार के तौर पर ज़िला पंचायत चुनाव जीता, जबकि शर्मा ने प्रखंड विकास पार्षद (बीडीसी) चुनावों में जीत हासिल की. उसकी पत्नी रेणु पहले अलीगढ़ के जावन से ब्लॉक प्रमुख थी, और बीजेपी से जुड़ी हुई थी.
उत्तर प्रदेश युवा कांग्रेस उपाध्यक्ष गौरंग देव चौहान ने कहा, ‘शर्मा और चौधरी दोनों को कई मौक़ों पर डीएम के साथ देखा गया है, जिनके साथ उनके अच्छे रिश्ते थे’.
दिप्रिंट ने कई फोन कॉल्स और व्हाट्सएप संदेशों के ज़रिए इन आरोपों पर टिप्पणी के लिए अलीगढ़ डीएम चंद्र भूषण सिंह से संपर्क किया, लेकिन इस ख़बर के छपने तक उनकी ओर से कोई जवाब नहीं मिला था.
लेकिन, अलीगढ़ कमिश्नर गौरव दयाल ने इस आरोप को ख़ारिज किया और कहा कि डीएम ने सभी अभियुक्तों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की है. उन्होंने फोन पर दिप्रिंट से कहा, ‘चौधरी और शर्मा दोनों राजनीतिक पार्टियों से जुड़े थे और डीएम के लिए सामान्य बात है कि ऐसे नेताओं से मिले जुले और बात करें, जो ज़िले में ताक़तवर स्थिति में हैं’.
गौरंग ने कहा कि ऐसा संभव नहीं है कि क्रमिक सरकारों की सहायता के बिना ये कार्टेल 15 साल तक काम करता रहा. उन्होंने आगे कहा कि कई अवसरों पर मुख्य अभियुक्त बीजेपी नेताओं के साथ. फोटोग्राफ्स में नज़र आ चुके हैं.
समाजवादी पार्टी नेता ज़मीरुल्लाह ख़ान का दावा था कि ये ‘कार्टेल एक खुला हुआ रहस्य था’. उन्होंने आगे कहा, ‘क्या आपको लगता है कि पुलिस या मौजूदा प्रशासन की सहायता के बिना वो इतने लंबे समय तक काम करते रहे? हर कोई जानता था कि वो क्या कर रहे थे, लेकिन सब उनकी करतूतों से आंखें फेर लेते थे’.
अलीगढ़ बीजेपी प्रमुख ऋषिपाल जाट ने कहा कि ऋषि शर्मा या उसकी पत्नी पार्टी के सक्रिय सदस्य नहीं थे. उन्होंने कहा, ‘1,166 बीडीसी पार्टी के साथ जुड़े हुए हैं. क्या आपको लगता है कि हम हर बीडीसी सदस्य के पूरे जीवन के बारे में जानते होंगे? यदि कोई व्यक्ति दूर से भी बीजेपी के साथ जुड़ा होता है, तो मीडिया रातों-रात उसे एक पुराना नेता बता देता है’.
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