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Friday, 22 November, 2024
होमदेशपवित्र स्नान के लिए 15 मिनट, हरिद्वार में कोविड अस्पताल- अगले साल कुंभ मेले का ऐसे होगा आयोजन

पवित्र स्नान के लिए 15 मिनट, हरिद्वार में कोविड अस्पताल- अगले साल कुंभ मेले का ऐसे होगा आयोजन

हरिद्वार में 1,000 बेड वाला एक कोविड-19 अस्पताल और 150 बेड की गैर-कोविड सुविधा की व्यवस्था की जा रही है. दीपक ने बताया कि इसके अतिरिक्त बस स्टैंड और सीमावर्ती क्षेत्रों में ‘बॉर्डर पोस्ट अस्पताल’ भी बनाए जाएंगे.

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नई दिल्ली: उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने सोमवार को कहा कि कोविड-19 महामारी के कारण सामने आने वाली तमाम व्यावहारिक दिक्कतों के बावजूद अगले साल हरिद्वार में कुंभ मेले का आयोजन अपने ‘दिव्य रूप’ में होगा. यह मेला 11 मार्च से 27 अप्रैल तक चलने वाला है.

कुंभ मेला अधिकारी दीपक रावत ने दिप्रिंट से बातचीत में कहा कि अब मुख्य प्राथमिकता 31 दिसंबर तक सड़कों और पुलों का निर्माण पूरा करना है और साथ ही घाटों खासकर हर की पौड़ी का सौंदर्यीकरण किया जाना है. नौ नए घाट, आठ पुल और सड़कों के निर्माण पर काम चल रहा है.

दीपक रावत ने कहा, ‘कुंभ मेला कैसे आयोजित किया जाएगा और इसका सही स्वरूप क्या होगा, इस पर फैसला 15 फरवरी को राज्य सरकार और यह धार्मिक आयोजन कराने वाले अखाड़ों की शीर्ष इकाई अखाड़ा परिषद के बीच एक बैठक में होगा.

हरिद्वार में 1,000 बेड वाला एक कोविड-19 अस्पताल और 150 बेड की गैर-कोविड सुविधा की व्यवस्था की जा रही है. दीपक ने बताया कि इसके अतिरिक्त बस स्टैंड और सीमावर्ती क्षेत्रों में ‘बॉर्डर पोस्ट अस्पताल’ भी बनाए जाएंगे.

अभी 91 लाख से अधिक केस और 1.3 लाख से अधिक मौतों के साथ भारत में दुनिया में कोविड-19 मामलों में दूसरे स्थान पर है. उत्तराखंड में 71,000 से अधिक कोविड-19 मामले आए हैं और 1,100 के करीब मौतें हुई हैं.


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दिप्रिंट यहां आपको बता रहा है कि कुंभ मेला क्या है, इसका कितना महत्व है और एक महामारी के बीच इस धार्मिक आयोजन की तैयारियां कैसी चल रही हैं.

कुंभ मेले के पीछे किवदंती

बेहद प्रसिद्ध हिंदू धार्मिक आयोजनों में से एक कुंभ मेला 12 वर्षों के दौरान चार बार आयोजित किया जाता है. मेला स्थल पवित्र नदियों वाले चार तीर्थ स्थानों के बीच बदलता रहता है—हरिद्वार में गंगा नदी पर, उज्जैन में शिप्रा के तट पर, नासिक में गोदावरी और प्रयागराज में गंगा, जमुना और सरस्वती के संगम पर इसका आयोजन होता है.

धारणा है कि कुंभ मेले के दौरान गंगा में डुबकी लगाने से सभी पाप धुल जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति के लिए यह सबसे शुभ समय होता है.

हिंदू किवदंती के मुताबिक, देवताओं और राक्षसों के बीच ‘समुद्र मंथन से निकले रत्न’ अमृत से भरे पवित्र कुंभ (घड़े) के लिए युद्ध हुआ था. कहा जाता है कि इसके बाद हिंदू देवता विष्णु ने इस पर दावा जता रहे राक्षसों से पवित्र कुंभ ले लिया.

विष्णु जब कुंभ को स्वर्ग ले जा रहे थे, इसका अमृत चार स्थानों—हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक—पर गिर गया. स्वर्ग की यात्रा 12 दिनों तक चली, जिसे 12 मानव वर्षों के बराबर माना जाता है. यही कारण है कि इन चार स्थलों पर 12 वर्षों में कुंभ मेला लगता है.

अकाल, प्लेग, महामारी और दो विश्व युद्धों के बीच मेले का आयोजन

चार कुंभ मेलों में से अर्ध कुंभ का आयोजन हर छह साल में प्रयागराज या हरिद्वार में किया जाता है. पूर्ण कुंभ मेला हर 12 साल में चार पवित्र स्थलों (नासिक, उज्जैन, हरिद्वार या प्रयागराज) में से किसी एक जगह आयोजित किया जाता है. और अंत में, प्रयागराज में 12 पूर्ण कुंभ मेलों के बाद 144 वर्षों में एक बार महाकुंभ आयोजित होता है.

कुंभ मेले का पहला लिखित उल्लेख भगवत पुराण में मिलता है. मेले के बारे में एक और प्रमुख उल्लेख ह्वेन सांग ने किया है जो एक चीनी यात्री था और 629-645 ईसवी के बीच हर्षवर्धन के शासनकाल के दौरान भारत आया था.

1903 में 4,00,000 के करीब लोग कुंभ में शामिल हुए थे वहीं 110 साल बाद 2013 में यहां जुटे श्रद्धालुओं का आंकड़ा 12 करोड़ के पार पहुंच गया था. पिछले साल इलाहाबाद में अर्ध कुंभ मेले में 4 फरवरी को शाम 5 बजे तक 5 करोड़ श्रद्धालुओं ने गंगा में डुबकी लगाई थी.

मेला अकाल, प्लेग और हैजा जैसा महामारियों और दो विश्व युद्धों के बीच भी बदस्तूर जारी रहा है.

कुंभ मेले में नागा साधु काफी ध्यान आकृष्ट करते हैं. वे शाही स्नान में हिस्सा लेने वालों में सबसे आगे रहते हैं और कुंभ मेला के उद्घाटन के मौके पर उनकी पवित्र डुबकी इस धार्मिक आयोजन के मुख्य आकर्षण में शामिल है.

हरिद्वार में 2021 का कुंभ मेला

2021 का कुंभ मेला 11 साल के अंतराल के बाद हरिद्वार में होगा. यह आखिरी बार 2010 में आयोजित किया गया था.

इंडियन एसोसिएशन ऑफ एपिडेमियोलॉजिस्ट के उपाध्यक्ष और एक जनस्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ. जुगल किशोर ने दिप्रिंट से कहा कि जब तक टीका नहीं आ जाता और कोरोनोवायरस पर काबू नहीं पा लिया जाता, इस तरह के धार्मिक आयोजनों को टाला जाना चाहिए और इस पर खर्च होने वाले धन और संसाधनों को कोविड-19 राहत के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है.

डॉ. किशोर ने कहा, ‘हम इन्हें तो अगले साल या भविष्य में कभी भी मना सकते हैं. मौजूदा हालात में क्या इससे कोई मदद मिलेगी? कोविड-19 अभी खत्म होने का नाम नहीं ले रहा और तब तक इस तरह के आयोजन करना उचित नहीं है.’

उन्होंने यह भी कहा कि सभी तैयारियां एक तरफ हैं और जमीनी हकीकत और वास्तव में योजनाएं कैसे अमल में आती हैं इसमें बहुत अंतर होता है. उन्होंने कहा, ‘आप अभी कुंभ मेले का प्रबंधन कर रहे हैं, लेकिन बाद में क्या होगा, इस पर कौन ध्यान देता है?’

मेला 2022 में होने वाला था, लेकिन ‘शुभ मुहूर्तों’ के कारण इसे पहले ही आयोजित किया जा रहा है. 2021 कुंभ मेले की तैयारियों में शामिल अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के प्रमुख महंत नरेंद्र गिरि ने कहा, ‘100 से अधिक सालों के बाद कुंभ मेले का आयोजन समय पूर्व हो रहा है. यह खास शुभ मुहूर्तों के कारण हो रहा है.’

गंगा में शाही स्नान के लिए निर्धारित चार विशेष तिथियों के दौरान किसी घाट पर पवित्र डुबकी के लिए तीर्थयात्रियों को पहले से ही एक वेबसाइट पर पंजीकरण करना होगा. हर श्रद्धालु को घाट पर जाने और स्नान के लिए 15 मिनट का समय दिया जाएगा.

उत्तराखंड के शहरी विकास मंत्री मदन कौशिक ने कहा है कि अगले साल कुंभ मेले के दौरान प्रतिदिन 35 से 50 लाख लोगों के गंगा में पवित्र स्नान करने की उम्मीद है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें )

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