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Monday, 18 November, 2024
होमदेश100 बहते हुए शव, हड्डियों के लिए लड़ते कुत्ते और कौवे -UP से बिहार तक गंगा की नाव यात्रा में ऐसा दिखा नजारा

100 बहते हुए शव, हड्डियों के लिए लड़ते कुत्ते और कौवे -UP से बिहार तक गंगा की नाव यात्रा में ऐसा दिखा नजारा

गाजीपुर के गहमर के कुछ लोगों का कहना है कि मौतों की अधिक संख्या, दाह संस्कार की बढ़ती लागत के कारण उन्हें शवों को गंगा में विसर्जित करना पड़ा है.

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गहमर/गाजीपुर: गंगा नदी के किनारे तीन मृत लाशों के बगल में पांच कुत्ते सो रहे हैं. हमारी मोटरबोट का शोर सुनकर एक कुत्ता अपने सिर को देखने के लिए ऊपर उठाता है और फिर तुरंत वापस सोने के लिए मुंह नीचे कर लेता है.

अमित साह, जो उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के गहमर गांव से बिहार के बक्सर जिले के चौसा की सीमा तक दिप्रिंट के साथ आठ किलोमीटर की नाव की सवारी में साथ रहे हैं, कहते हैं कि पिछले पांच से अधिक दिनों से शवों को खाने के कारण इन कुत्तों का पेट भरा हुआ है. हिंदू परंपरा में सबसे पवित्र नदी से निकाले गए दर्जनों शव अब मैला ढोने वालों की दया पर है.

Birds pick at remains floating in the Ganga river between Gahmar in Ghazipur, UP, and Chausa in Buxar, Bihar | Photo: Sajid Ali | ThePrint
उत्तर प्रदेश के गाजीपुर में गहमर और बक्सर, बिहार में चौसा के बीच गंगा नदी में तैरते अवशेषों पर मंडराते पक्षी | फोटो: साजिद अली | दिप्रिंट

बृहस्पतिवार को चार घंटे की लंबी यात्रा में, दिप्रिंट ने लगभग 100 से अधिक लाशों और कंकाल को देखा है. हालांकि संख्या को सही ढंग से सत्यापित नहीं किया जा सकता है. इस हफ्ते की शुरुआत में, चौसा के महादेव घाट पर 71 शवों को देखा था, जिनमें से ज्यादातर की आंशका ये थी कि ये सभी कोविड -19 रोगियों की होगी, और अभी भी कई शव नदी में तैर रहे हैं.

अगर अमित की बात को सच मानें तो वह बताते हैं कि कुत्तों से कुछ मीटर की दूरी पर कौवे और चील नदी के किनारे झाड़ी में फंसे शवों की हड्डियों के लिए लड़ रहे हैं.

Human remains stuck to the riverbank | Photo: Sajid Ali | ThePrint
नदी के किनारे फंसे शव/फोटो: साजिद अली/दिप्रिंट

गहमर के रहने वाले अमित पूछते हैं कि ‘इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा? चारों तरफ लाशें तैर रही हैं… नमामि गंगे परियोजना का क्या होगा? अमित अपने दोस्तों के साथ भोजन और अन्य जरूरतों के लिए गरीबों की मदद भी करते रहे हैं.

वह आगे कहते हैं, ‘ये लाशें कहां से आईं, इसे लेकर यूपी और बिहार के बीच आरोप-प्रत्यारोप का खेल चल रहा है. क्या वो ऊपर की ओर तैर सकती हैं? क्या कोई इन शवों पर दावा करेगा?’

गहमर, जिसे कुछ रिपोर्ट में एशिया का सबसे बड़ा गांव कहा जाता है, में कुछ दिनों में 15-19 मौतें हुई हैं, जबकि नारायण घाट पर श्मशान की क्षमता एक बार में तीन है. इसके अलावा, यहां दूसरे गांवों से भी शव लाए जा रहे हैं, एक दिन में 70 से अधिक शव भी लाए जाते हैं, अमित का दावा है, ‘इसलिए गहमर और दूसरे गांवों के शव गंगा में बहाए जा रहे हैं.’

कुछ ही समय बाद, राज्य प्रशासन के कुछ लोग सिविलियन नाव में गश्त करते हुए लाउडस्पीकर पर घोषणा करते हुए सुनाई देते हैं. ‘लोगों से अनुरोध है कि वे शवों को गंगा जी में न विसर्जित करें. दाह संस्कार के लिए प्रशासन ने सारे इंतजाम कर लिए हैं. हम सभी नाव मालिकों से अनुरोध करते हैं कि किसी भी शव को गंगा जी में विसर्जन के लिए न ले जाएं. जो कोई भी इन आदेशों का पालन नहीं करता है, उसे कानून के अनुसार सख्ती से निपटा जाएगा.’

इन घोषणाओं को सुनकर नदी के किनारे किनारे सड़क पर एक थोड़ी सी भीड़ जमा हो जाती है,

गाजीपुर के जिला अधिकारियों ने पहले ही गरीबों को आर्थिक मदद देनी शुरू कर दी है ताकि वे नदी में शवों को बहाने की बजाय अपने प्रियजनों का अंतिम संस्कार कर सकें. लाशों के विसर्जन को रोकने के लिए गहमर से लेकर गाजीपुर-बक्सर सीमा पर गंगा की सहायक नदी करमनासा नदी तक घाट की सीढ़ियों पर पुलिस की मौजूदगी बढ़ा दी गई है.


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‘मामूली बुखार मेरे पति की जान कैसे ले सकता है?’

गहमर गांव के चकवा मोहल्ले में, 38 वर्षीय उर्मिला देवी अपने 42 वर्षीय पति शम्भू नाथ भींड की मौत से दुखी हैं.

वह कपड़ों को एक बक्से में मोड़ मोड़ कर रखते हुए कहती हैं,’ मैं अभी तक समझ नहीं पा रही हूं कि कैसे हल्के से बुखार ने मेरे पति की जिंदगी ले ली’.’

शंभू नाथ गांव में राजमिस्त्री का काम करता था, लेकिन 19 अप्रैल को उसे बुखार हो गया. ‘उन्होंने कुछ पैरासिटामोल की गोलियां लीं और काम पर जाना जारी रखा. लेकिन 22 अप्रैल की रात को, उन्होंने सांस के लिए हांफना शुरू कर दिया. शंभू नाथ के भाई श्याम नारायण भींड कहते हैं, ऐसा लग रहा था जैसे उसका दम घुट रहा था. अस्पताल ले जाते समय शंभू की मौत हो गई, जो उनके घर से सिर्फ तीन किलोमीटर दूर है.

अगले ही दिन सुबह उनके 35 साल के दूसरे भाई स्वामी नाथ को बुखार हुआ और उसकी मौत घर में ही हो गई.

श्याम नारायण कहते हैं कि शंभू की अंतिम यात्रा में करीब 70 लोग शामिल हुए थे लेकिन स्वामी नाथ में डर के कारण महज दस लोग ही शामिल हुए.

श्याम नारायण कहते हैं,’ शंभू की अंतिम क्रिया के लिए हमारे रिश्तेदारों ने मदद की लेकिन जब बारी स्वामी की आई तो हम निसहाय और अकेले थे.’

परिवार वालों ने स्वामी के शव को ट्रैक्टर ट्रॉली पर लेकर नारायण घाट पर पहुंचे और उसका संस्कार गंगा में कर दिया.

सोशल मीडिया पर गंगा के घाटों पर तैरती और किनारों पर लगे शवों के वीडियो सामने आने के बाद भींड का पूरा 20 सदस्यीय परिवार आंगन में एक साथ सोने लगा.

सबसे छोटे भींड भाई, नरसिंह कुमार बताते हैं, ‘हमने यह सुनिश्चित करने की बहुत कोशिश की कि हमारे बच्चे ये दृश्य न देखें, लेकिन वे अब घबरा गए हैं. दिन के समय, हम उन्हें कार्टून देखने के लिए मजबूर करते हैं ताकि वे इस सदमें से उबर सकें. वह आगे कहते हैं कि हम रात में एक तिरपाल फैलाते हैं और फिर आंगन में गद्दे बिछाते हैं, और यथासंभव कोशिश करते हैं कि सभी साथ रहें और घरों में ही रहें.’

The Bhind family of Chawka Mohalla, Gahmar | Photo: Sajid Ali | ThePrint
चकवा मोहल्ला, गहमर में भींड परिवार के सदस्य/फोटो: साजिद अली/दिप्रिंट

लेकिन स्वामी नाथ की विधवा कविता देवी कहती हैं: ‘जब मैं गंगा के किनारे ढेर सारे शवों के इन वीडियो को देखती हूं, तो मुझे लगता है कि वह बार-बार मर रहे हैं.’


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चिता के लिए लकड़ी नहीं खरीद सकते

सड़क के उस पार एक और परिवार रहता है जिसने 65 वर्षीय बिमला देवी के शरीर को गंगा में विसर्जित किया.

बिमला के बहनोई राकेश सिंह बताते हैं कि ऐसा क्यों है, ‘इसके कई कारण हैं. एक, लकड़ी की कीमतों में आग लग गई है. हम दाह संस्कार कर सकने की हालत में नहीं है. दूसरा, परिवार में संक्रमण को रोकने के लिए हमें अपने परिवार के सदस्यों को शव पर रोने से रोकने की जरूरत थी. इसलिए, इन स्थितियों में, हम उसके शरीर को घाट पर ले गए और उसे सभी संस्कारों के साथ विसर्जित कर दिया.

राकेश का दावा है कि पिछले चार हफ्तों में इलाके में करीब 70 फीसदी शव नदी में बहाए गए हैं, ज्यादातर आर्थिक तंगी और श्मशान घाट पर भीड़ के कारण.

Brijesh Bhind, a BSP worker in Gahmar | Photo: Sajid Ali ThePrint
गहमर में बीएसपी कार्यकर्ता ब्रजेश भींड/फोटो: साजिद अली/दिप्रिंट

बहुजन समाज पार्टी के कार्यकर्ता ब्रजेश भींड एक अलग गिनती करते हुए बताते हैं- वे कहते हैं कि अकेले चकवा मोहल्ले के 7 में से 4 शव पिछले तीन हफ्तों में बहाए गए थे.

ब्रजेश कहते हैं, ‘यहां ज्यादातर परिवार दिहाड़ी मजदूर है. उनके पास कोई बचत नहीं है. इसलिए, इस तरह की स्थिति में, कोविड -19 के दौरान या पहले भी, वे अपने प्रियजनों को गंगा में विसर्जित करते रहे हैं.’

वह दिप्रिंट को अपने साथ एक परिवार से मिलवाने के लिए ले जाते हैं जिसकी मालकिन फूलवासी देवी हैं. फूलवासी कहती हैं, जनवरी में उसकी बहू मंजू का गर्भपात हो गया और उसे सर्जरी कराने की सलाह दी गई. उसे वाराणसी के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया था और सर्जरी से पहले डॉक्टरों ने उसे दवा पर रखा था. लेकिन 20 अप्रैल को, उसे बुखार और खांसी हुई और 23 तारीख को उसकी मृत्यु हो गई.

ब्रजेश का कहना है कि परिवार को गंगा पर तैर रहे शवों के बारे में कोई जानकारी नहीं है क्योंकि उनके घर में बिजली का कनेक्शन भी नहीं है.

‘हमने गिनती करनी छोड़ दी है’

घाटों से आने वाले शवों के अवशेषों को निपटाने के लिए अभी भी गंगा के किनारे कब्रें खोदी जा रही हैं, उन्हें ‘डोम’ जाति की मदद से निकाला जा रहा है जो श्मशान में काम करते हैं.

जिला प्रशासन और यूपी पुलिस के जवानों के साथ एक के बाद एक शव दफनाने में जुटे समुदाय के करण और डब्लू थके-थके स्वर में कहते हैं कि गुरुवार की स्थिति वास्तव में तीन दिन पहले की तुलना में बेहतर है.

Labourers dig graves beside the Ganga in Gahmar, Ghazipur district, to dispose of hundreds of bodies floating down the river | Photo: Sajid Ali | ThePrint
नदी में तैर रहे सैकड़ों शवों को निकाल कर दफनाने के लिए गाजीपुर जिले के गहमर में गंगा के किनारे मजदूर खुदाई करते हुए | फोटो: साजिद अली | दिप्रिंट

करण कहते हैं, ‘अगर आप 3 दिन पहले यहां आए होते, तो आपके लिए इस नदी की चट्टान से नीचे की ओर झांकना भी असंभव होता. किनारे पर शव पड़े थे, और इस स्थिति को नियंत्रित करने के लिए प्रशासन को बहुत प्रयास करना पड़ा.’

अधिक कब्र खोदने के लिए स्टील की कुदाल खींचते हुए डब्लू कहते हैं: ‘हमने 11 मई के बाद से कितने शव देखे और दफन किए हैं, इसकी गिनती नहीं है.’


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