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Sunday, 22 December, 2024
होमएजुकेशन100 एडहॉक शिक्षकों की जा सकती है नौकरी- DU के अंग्रेजी शिक्षकों ने 'काम का बोझ कम' करने का विरोध किया

100 एडहॉक शिक्षकों की जा सकती है नौकरी- DU के अंग्रेजी शिक्षकों ने ‘काम का बोझ कम’ करने का विरोध किया

यूनिवर्सिटी के नए अंडरग्रेजुएट करिकुलम फ्रेमवर्क में अनिवार्य पाठ्यक्रमों में पढ़ाई का माध्यम अंग्रेजी नहीं होगी, इसमें बिजनेस कम्युनिकेशन, पब्लिक स्पीकिंग, राइटिंग स्किल्स आदि शामिल है.

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नई दिल्ली: दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के अंग्रेजी शिक्षकों को डर सता रहा है कि नए अंडरग्रेजुएट करिकुलम फ्रेमवर्क के लागू होने से कई लोग अपनी नौकरी खो सकते हैं. एईसी में पढ़ाई के माध्यम से अंग्रेजी को हटाने से उनके कार्यभार में ‘एक तिहाई’ की कमी आएगी. दिप्रिंट को यह जानकारी मिली है.

शिक्षकों ने दावा किया है कि अगर फैसला नहीं बदला गया तो बोर्ड भर में लगभग 100 एड हॉक या गेस्ट शिक्षकों को अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ सकता है.

इस साल फरवरी में दिल्ली विश्वविद्यालय की कार्यकारी परिषद ने अंडरग्रेजुएट करिकुलम फ्रेमवर्क, 2022 को जारी किया था. इसमें राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी), 2020 के अनुसार पाठ्यक्रम की संरचना की गई है. इस फ्रेमवर्क में एबिलिटी इनहैंसमेंट कंपलसरी कोर्सेज (एईसीसी) में शिक्षा के माध्यम से अंग्रेजी को हटा दिया गया है. विकल्प के रूप में अब छात्रों को अन्य क्षेत्रीय भाषा में पढ़ने के विकल्प का चयन करना होगा.

पहले पढाए जा रहे इन चार कोर्सेज में, टाइप्स एंड थ्योरी ऑफ कम्युनिकेशन, कम्युनिकेशन स्किल फॉर बिजनेस, इंटरपर्सनल कम्युनिकेशन, सोशल कम्युनिकेशन, नॉन वर्बल कम्युनिकेशन, राइटिंग स्किल, ग्रुप डिस्कशन और पब्लिक स्पीकिंग जैसे विषय शामिल थे.

रविवार को फेसबुक पर जारी एक सार्वजनिक बयान में डीयू के किरोड़ीमल कॉलेज के प्रोफेसर रुद्राशीष चक्रवर्ती ने कहा कि इस फ्रेमवर्क में शिक्षा के माध्यम में एईसीसी से ‘अनिवार्य अंग्रेजी भाषा’ को हटा दिया गया और बीए और बी.कॉम कार्यक्रमों के लिए कोर अंग्रेजी विकल्प को बरकरार रखा है.

उन्होंने लिखा, ‘ अब जब कॉलेज फिर से खुलने वाले हैं, तो साफ है कि कॉलेजों में अंग्रेजी विभाग पर काम का बोझ कम से कम एक तिहाई कम हो जाएगा. और ऐसा ऊपर उल्लिखित पाठ्यक्रमों को हटाने की वजह से है.’

चक्रवर्ती ने अपनी पोस्ट में कहा कि विज्ञान कॉलेजों में पाठ्यक्रम पढ़ाने वाले अंग्रेजी शिक्षकों के लिए यह जोखिम काफी ज्यादा है. दिप्रिंट से बात करते हुए एक प्रोफेसर ने बताया कि डीयू में कुल मिलाकर लगभग 800 अंग्रेजी शिक्षक हैं. जिसमें से कुछ स्थायी हैं तो कुछ एड हॉक पर काम करते हैं.

चक्रवर्ती ने अपने फेसबुक पोस्ट में कहा कि 400 से अधिक शिक्षकों ने इस साल मार्च में दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति योगेश सिंह को एक याचिका दायर कर विश्वविद्यालय से इस फैसले को वापस लेने को कहा था. दिप्रिंट से बात करने वाले शिक्षक के मुताबिक, उन्हें अभी तक याचिका का जवाब नहीं मिला है.

नया फ्रेमवर्क शैक्षणिक वर्ष 2022-23 में लागू किया जाएगा, जब विश्वविद्यालय एनईपी के तहत अपने चार वर्षीय स्नातक कार्यक्रम शुरू करेगा.


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दिप्रिंट ने फोन पर डीयू के रजिस्ट्रार विकास गुप्ता से संपर्क किया है. उनका जवाब मिलने पर रिपोर्ट को अपडेट कर दिया जाएगा.

हालांकि इस साल जनवरी में दि इंडियन एक्सप्रेस को दिए एक बयान में गुप्ता ने इन आरोपों से इनकार किया था कि इस ढांचे से काम का बोझ कम होगा. उन्होंने कहा कि कार्यभार छात्र-शिक्षक अनुपात द्वारा निर्धारित किया जाता है – यानी किसी संस्थान में छात्रों की संख्या को शिक्षकों की संख्या से विभाजित किया जाता है.

परिवर्तन

शिक्षकों ने दिप्रिंट को बताया कि डीयू के पाठ्यक्रम के तहत, पर्यावरण अध्ययन और एईसीसी ऐसे दो कोर्सेज हैं जिनका सभी विभागों के छात्रों को अनिवार्य रूप से अध्ययन करना चाहिए.

एक वरिष्ठ अंग्रेजी प्रोफेसर ने शिक्षा के माध्यम में बदलाव और यह अब एक समस्या क्यों हो सकती इस बारे में बताया. उन्होंने कहा कि पहले छात्र अंग्रेजी, हिंदी या संस्कृत में दो कोर्सेज- एईसीसी के साथ-साथ पर्यावरण अध्ययन – लेने का विकल्प चुन सकते थे.

प्रोफेसर ने कहा, ‘लेकिन अधिकांश छात्र यह सोचकर कि अंग्रेजी भाषा में पढ़ाई का विकल्प चुनते थे कि इससे उन्हें पर्सनालिटी डेवलपमेंट में मदद मिलेगी.’

अंडर ग्रेजुएट करिकुलम फ्रेमवर्क 2022 में भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची के तहत 22 भाषाओं को रखा गया है. इसमें से छात्र किसी भी भाषा में पढ़ाई करने का विकल्प चुन सकते हैं. हालांकि इसमें अंग्रेजी को शामिल नहीं किया गया है.

प्रोफेसर ने कहा, ‘इसका मतलब साफ है कि एक छात्र के पास अब वैश्वीकृत अर्थव्यवस्था का हिस्सा बनने का विकल्प नहीं होगा’

फैकल्टी पर प्रभाव

अपने फेसबुक पोस्ट में, चक्रवर्ती ने चर्चा की कि पढ़ाई के माध्यम में बदलाव शिक्षकों को कैसे प्रभावित करेगा.

उन्होंने लिखा, ‘मेरे कॉलेज (डीयू के किरोरीमल कॉलेज) में अगले सेमेस्टर में 60 लेक्चर का नुकसान है, हंसराज कॉलेज में प्रभावित लेक्चर की संख्या 50 है तो रामजस में लगभग 60 से ज्यादा. सभी कॉलेजों में यही कहानी है’

उन्होंने कहा कि सबसे ज्यादा प्रभावित उन कॉलेजों के अंग्रेजी शिक्षक होंगे जहां न तो अंग्रेजी ऑनर्स की क्लास होती है और न ही बी.ए. की, जैसे केशव महाविद्यालय, जीजीएस कॉलेज ऑफ कॉमर्स, इंस्टीट्यूट ऑफ होम इकोनॉमिक्स, लेडी इरविन कॉलेज, भास्कराचार्य और राजगुरु कॉलेज ऑफ एप्लाइड साइंसेज.

उन्होंने कहा, ‘उनका ज्यादातर कार्यभार मुख्य रूप से एईसीसी की वजह से था, जो अब खत्म हो गया है. यह फ्रेमवर्क स्थायी शिक्षकों को लगभग बेमानी बना रहा है, एड हॉक शिक्षकों को तो भूल ही जाओ’

वाम-गठबंधन डेमोक्रेटिक टीचर्स फ्रंट की सचिव आभा देव हबीब ने दिप्रिंट को बताया कि इस बदलाव से च्वाइस-बेस्ड क्रेडिट सिस्टम (सीबीसीएस) -– एक ऐसी नीति जो छात्रों को निर्धारित पाठ्यक्रमों के एक सेट से चुनने की अनुमति देती है – के ठीक बाद काम पर रखे गए अतिरिक्त फैकल्टी को खतरा है. इसे विश्वविद्यालय में 2015 में लागू किया गया था.

उन्होंने कहा, ‘पिछले कुछ सालों में सीबीसीएस द्वारा लाए गए अतिरिक्त कार्यभार को साझा करने के लिए शिक्षकों को काम पर रखा गया था. अब उन्होंने फिर से पैटर्न बदल दिया है. जिन शिक्षकों को पिछले पांच सालों में नियुक्त किया गया था, उन्हें अब अपनी नौकरी खोने का खतरा है.’

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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