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Friday, 26 April, 2024
होमदेशगुम हो जाने के 10 साल बाद, दिल्ली पुलिस ने नेपाल और UP के दो परिवारों को अपने बेटों से मिलाया

गुम हो जाने के 10 साल बाद, दिल्ली पुलिस ने नेपाल और UP के दो परिवारों को अपने बेटों से मिलाया

17 वर्षीय शाहरुख़ को तस्करों ने 2010 में अग़वा कर लिया था. कैलाश, जो लुधियाना में एक मज़दूर था, 2011 में पिटाई किए जाने के बाद वहां से भाग निकला था.

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नई दिल्ली:  एक दशक इतना लंबा समय होता है, कि कोई भी परिवार अपने गुमशुदा बच्चे का चेहरा, फिर से देखने की उम्मीद छोड़ देता है. ख़ासकर समाज के पिछड़े और आर्थिक रूप से कमज़ोर तबक़ों में तो यही होता है, जिनके पास इतने साधन नहीं होते, कि वो बच्चों की तलाश जारी रख सकें.

लेकिन, कहते हैं कि कभी-कभी चमत्कार भी हो जाते हैं, और पिछले महीने दिल्ली पुलिस ने एक ऐसा ही कारनामा कर दिखाया, जब उन्होंने दो ऐसे लड़कों को ढूंढ निकाला, जो एक दशक से ग़ायब थे, और उन्हें फिर से अपने परिवारों से मिला दिया.

उनमें से एक लड़का नेपाल से है, और दिल्ली पुलिस के एक हैड कांस्टेबल ने, बस टिकट का पैसा तक दिया, जिसकी सहायता से उनकी मां, लंबे समय से बिछड़े अपने बेटे से मिलने के लिए, भारतीय राजधानी आ सकीं.

जांच तब शुरू हुई जब सलाम बालक ट्रस्ट ने- दिल्ली स्थित एक एनजीओ, जो राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में सड़क पर रहते, और काम करते बच्चों की सहायता करती हैं- फरवरी में दो लड़कों की एक गुमशुदगी रिपोर्ट दर्ज कराई, जो उनके पास रह रहे थे.

शाहरुख़, जो अब 17 साल का है, और कैलाश जो 17 से थोड़ा बड़ा है, 10 साल पहले अपने परिवारों से बिछड़ जाने के बाद से, सलाम बालक ट्रस्ट में रह रहे थे. वो दोनों 22 फरवरी को ग़ायब हो गए.

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23 फरवरी को सिविल लाइन्स थाने में, एक एफआईआर दर्ज होने के बाद, लड़कों का पता लगाने के लिए, पुलिस की एक टीम बनाई गई, जिसमें सब-इंस्पेक्टर रूप किशोर, हेड कॉन्सटेबल महेश एस बंसोड़, और कॉन्सटेबल रमेश शामिल थे.

तफ़तीश के दौरान, एनजीओ के रिकॉर्ड्स, पुरानी पुलिस फाइलों, और उनका पता चल जाने के बाद, ख़ुद लड़कों ने उन्हें जो बताया, उनसे पुलिस उनके अतीत का ताना-बाना बुनने में कामयाब हो गई. उन सबकी मदद से दोनों को अपने परिवारों से, फिर से मिलाने में कामयाबी मिल गई.

शाहरुख़ (तब 7) और उसके छोटे भाई अशरफ को, जो उस समय केवल 3 साल का था, 2010 में मानव तस्करों ने, दिल्ली के नेबसराय इलाक़े से अगवा कर लिया था. अशरफ को तो तीन महीने के अंदर बरामद कर लिया गया, लेकिन शाहरुख़ के पते-ठिकाने का, अभी तक पता नहीं चल पाया था.

कैलाश नेपाल के कैलाली का रहने वाला है, और वो पंजाब के लुधियाना से ग़ायब हो गया था, जहां वो एक सिख परिवार में, अपनी मां और बहन के साथ मज़दूरी का काम करता था. अब 17 साल का हो चुका ये लड़का, 2011 में अपने मालिक के हाथों पिटने के बाद, घर से निकल गया और दिल्ली की ट्रेन में सवार हो गया. वो तब से ही गुमशुदा चल रहा था.

इस बीच उसका परिवार नेपाल वापस चला गया, क्योंकि उन्हें समझ नहीं आ रहा था, कि उसे कहां और कैसे तलाश करें.

लड़कों को एक बार फिर उनके परिवारों से मिलाने में, पुलिस टीम के प्रयासों की सराहना करते हुए, डीसीपी नॉर्थ, एंटो एल्फॉन्स ने कहा, ‘हेड कॉन्सटेबल महेश, कॉन्सटेबल रमेश, और एसएचओ सिविल लाइन्स की पूरी टीम ने लड़कों- शाहरुख़ और कैलाश- का पता ढूंढ निकालने, और उन्हें एक दशक के बाद फिर से, अपने परिवारों से मिलाने का ज़बर्दस्त काम अंजाम दिया है.’

डीसीपी ने ये भी कहा कि गुमशुदा बच्चों को उनके परिवारों के साथ मिलाना, उनके लिए एक प्राथमिकता थी.

उन्होंने कहा, ‘दिल्ली पुलिस प्रतिबद्ध है, और ऐसे गुमशुदा बच्चों का पता लगाने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी, भले ही ये काम शुरू में कितना भी कठिन दिखाई दे. गुमशुदा बच्चों को उनके परिवारों से मिलाना, दिल्ली पुलिस के लिए प्राथमिकता बना हुआ है’.

11 साल पहले शाहरुख़ को बिहार ले जाया गया था

दिल्ली पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, कि तस्कर पहले शाहरुख़ को बिहार, और फिर हरिद्वार ले गए, जहां से बचकर वो दिल्ली आने में कामयाब हो गया. राष्ट्रीय राजधानी आकर, वो किसी तरह सलाम बालक ट्रस्ट पहुंच गया, जहां उसने आत्म-रक्षा की प्रोफेशनल ट्रेनिंग हासिल की.

एक अधिकारी ने, जो नाम नहीं बताना चाहते थे, कहा कि ‘तफतीश के दौरान पता चला, कि वो पिछले दस साल से सलाम बालक ट्रस्ट में रह रहा था. हमें पता चला कि शाहरुख़ अभी भी कुछ दोस्तों के संपर्क में था, जो उसने अपने ट्रेनिंग कोर्स के दौरान बनाए थे. ये दोस्त अब नंद नगरी और गाज़ियाबाद में रहते हैं. एनजीओ रिकॉर्ड्स से पता चला, कि (बचपन में) वो दिल्ली के ख़ानपुर में, अपने परिवार के साथ रहा करता था’.

आख़िरकार, 25 फरवरी को शाहरुख को ग़ाज़ियाबाद में ढूंढ निकाला गया, जहां वो अपने दोस्तों संग रह रहा था, और फिर उसे वापस दिल्ली ले आया गया.

फिर उसने अपने अतीत से जुड़ी कुछ और जानकारियां मुहैया कराईं. पुलिस पुराने रिकॉर्ड्स भी खंगाल रही थी, कि उसके बारे में पहले कभी, गुमशुदगी की रिपोर्ट तो दर्ज नहीं कराई गई.

अधिकारी ने कहा, ‘नेब सराय थाने में दर्ज एफआईआर संख्या 191/10 का पता चला, जो लड़के के पिता आफताब ने लिखाई थी. टीम ने फाइल के फोटोग्राफ्स का, एनजीओ के रिकॉर्ड्स (जो शिकायत में थे) के साथ मिलान किया, और समानता दिखने की वजह से, परिवार से संपर्क साधने की कोशिश की गई. जब पुलिस उसके पुराने पते पर पहुंची, तो पता चला कि वो वापस अपने पैतृक स्थान अलीगढ़ चले गए थे. माता-पिता से संपर्क करके, उन्हें दिल्ली बुलाया गया’. 26 फरवरी को शाहरुख़ को उसके परिवार को सौंप दिया गया.

दिल्ली पुलिसकर्मी ने मां के नेपाल से आकर बेटे से मिलने का किराया दिया

27 फरवरी को पुलिस टीम ने कैलाश को, दिलशाद गार्डन इलाक़े में ढूंढ निकाला.

पूछताछ किए जाने पर, कैलाश ने पुलिस को बताया कि लुधियाना से क्यों और कैसे भागा था, और ये भी, कि उसका ताल्लुक़ नेपाल के दरवान ज़िले से है- जिसे अब कैलाली कहा जाता है.

लेकिन नेपाल का वो पता जो कैलाश बता पाया, पूरा नहीं था.

नेपाल में उसके परिवार का पता लगने की संभावना बहुत कम थी. लेकिन, हेड कॉन्सटेबल महेश ने हार नहीं मानी, और कॉन्स्टेबल रमेश के साथ मिलकर, कैलाश की काउंसलिंग करने लगा, ताकि उसके परिवार के बारे में, कुछ और जानकारी मिल सके. 46 वर्षीय हेड कॉन्सटेबल स्पेशल सेल में रह चुका था, और अपने संपर्कों के ज़रिए, वो कैलाली पुलिस स्टेशन के एसएचओ- इंस्पेक्टर दिनेश कुमार गौतम- तक पहुंचने में कामयाब हो गया.

अधिकारी ने कहा, ‘15-20 दिन के निरंतर प्रयास के बाद, परिवार का पता चल गया. महेश ने व्हाट्सएप वीडियो कॉल के ज़रिए, मां और बेटे का संपर्क कराया, और मां को दिल्ली आने के लिए कहा. जब उसने कहा कि वो यात्रा ख़र्च वहन नहीं कर सकती, तो महेश ने ख़ुद बस टिकट का पैसा दिया, और कैलाश को फिर से उसके परिवार से मिलवा दिया. 26 मार्च को लड़के को उसे सौंप दिया गया’.

दोनों पुनर्मिलन सलाम बालक ट्रस्ट हॉल में आयोजित कराए गए.


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