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Tuesday, 19 November, 2024
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हाथरस ‘सामूहिक बलात्कार’ की घटना का एक साल: गहराता जाति विभाजन, कोर्ट रूम ड्रामा और एक बेटी की यादें

यूपी के हाथरस जिले में पिछले साल सितंबर में चार ठाकुर युवकों ने 20 वर्षीय दलित लड़की का कथित तौर पर सामूहिक बलात्कार करने के बाद उसकी हत्या कर दी थी.

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हाथरस: हाथरस में ‘सामूहिक बलात्कार’ की पीड़िता 20 वर्षीय युवती के घर की दीवारों पर उसकी कोई तस्वीर नहीं लगी है.
बेटी के शव का जबरन दाह संस्कार किए जाने के दिन मां ने जो साड़ी पहनी थी, वह बरामदे की छत पर टंगी नजर आ रही है.

एक तुलसी के पौधे की ओर इशारा करते हुए उसकी मां ने कहा, ‘न्याय मिलने के बाद हम उसकी एक बड़ी तस्वीर बनवाकर लगवाएंगे. तब तक तो मैं उसके लगाए पौधे की देखभाल ही कर रही हूं, यह हमें उसकी याद दिलाता है, और काफी अच्छे से बढ़ रहा है.’

मां ने कहा कि जहां तक साड़ी की बात है तो ‘यह मुझे याद दिलाती है कि कैसे मुझे आखिरी बार उसका चेहरा नहीं देखने दिया गया था. अब तो जब भी मैं उसके बारे में सोचती हूं तो उसके लगाए तुलसी के पौधे को देख लेती हूं.’

एक साल हो गया है जब उत्तर प्रदेश में हाथरस जिले के बूलगढ़ी गांव में चार उच्च जाति के ठाकुर लोगों—संदीप (20 वर्ष), उसके चाचा रवि (35) और उनके दोस्तों रामू (26) और लव कुश (23)- ने 20 वर्षीय दलित लड़की का कथित तौर पर सामूहिक बलात्कार किया. बाद में उसकी मौत हो गई थी.

14 सितंबर 2020 की सुबह लड़की अपनी मां के साथ मवेशियों के लिए चारा लेने खेतों की तरफ जा रही थी, जब आरोपियों ने कथित तौर पर उसे पकड़ लिया.


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29 सितंबर को नई दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में उसकी मौत हो गई थी और उसे देर शाम गांव लाया गया था. हालांकि, उसके शव का 30 सितंबर को तड़के लगभग 2:25 बजे यूपी सरकार के अधिकारियों ने जबरन अंतिम संस्कार करा दिया था.
घटना को एक साल बीत चुका है लेकिन पीड़िता का परिवार आज भी न केवल अपने दुख से उबर नहीं पाया है, बल्कि पीड़िता के अंतिम संस्कार को लेकर जो रवैया अपनाया गया, उससे आहत भी है.

गांव में पहले से ही कायम जाति विभाजन और ज्यादा गहरा गया है, चारों आरोपी जेल में बंद हैं, लेकिन मुकदमा ‘उच्च जातियों की तरफ से धमकियों’ पर ज्यादा केंद्रित हो गया है. और कभी इस मामले में छाई रहीं सुर्खियां और राजनीतिक दलों की तरफ से दिखाई गई सरगर्मी सब कुछ नदारत हो चुका है.

दिप्रिंट ने पिछले गुरुवार को जब बूलगढ़ी का दौरा किया तो पाया कि सीआरपीएफ कर्मियों की तरफ से दी जा रही सुरक्षा को छोड़ दिया जाए तो परिवार को 20 वर्षीय पीड़िता के बारे में होने वाली कानाफूसी और ‘ऑनर किलिंग’ को लेकर लगाए जा रहे आरोपों से जूझने के लिए उसके हाल पर छोड़ दिया गया है.

जिस दिन बेटी के शव का जबरन दाह संस्कार करने के दिन मां ने जो साड़ी पहनी थी वह बरामदे की छत से लटकी हुई | फोटो: मनीषा मंडल/दिप्रिंट

डराने-धमकाने के आरोपों से सुनवाई बाधित

सीबीआई ने मामला अपने हाथ में ले लिया था और 11 अक्टूबर को प्राथमिकी दर्ज की थी. प्रमुख जांच एजेंसी ने 18 दिसंबर को अपनी चार्जशीट दायर की और यूपी पुलिस पर लापरवाही का आरोप लगाते हुए चार लोगों पर सामूहिक बलात्कार और हत्या का आरोप लगाया.

हाथरस स्थित विशेष एसटी/एससी अदालत में मुकदमा इस साल जनवरी में शुरू हुआ. अब तक लगभग 20 सुनवाई हो चुकी हैं और अभियोजन पक्ष के गवाहों के बयानों और सबूतों के आधार पर कार्यवाही कम से कम अक्टूबर तक तो जारी रहने के आसार है, जिसके बाद बचाव पक्ष अपने गवाहों यानी चार आरोपियों को पेश करेगा. बचाव पक्ष ने पीड़िता के बड़े भाई पर गला घोंटने का आरोप लगाया है.

हालांकि, मार्च में अदालत में खासा हंगामा हुआ, जिसके कारण परिवार ने ‘उच्च जाति की तरफ से धमकाने’ का आरोप लगाया.
दलित परिवार की वकील सीमा कुशवाहा के मुताबिक, 5 मार्च को जिला जज बीडी भारती की अदालत को उस समय कार्यवाही स्थगित करनी पड़ी जब एक ‘नशे में धुत वकील’ तरुण हरि शर्मा वहां पहुंचा और उसने उन्हें और पीड़िता के बड़े भाई- जो इस मामले में अभियोजन पक्ष का पहला गवाह है- को धमकाना शुरू कर दिया.

उन्होंने यह आरोप भी लगाया कि बचाव पक्ष के वकील मुन्ना सिंह पुंधीर ने ‘वकीलों के एक गुट’ के साथ मिलकर परिवार और अभियोजन पक्ष को उस समय ताने मारना शुरू कर दिया, जब 20 वर्षीय पीड़िता के अंडरगारमेंट्स अदालत के समय पेश किए जाने वाले थे.

कुशवाहा और पीड़िता के भाई के मुताबिक, ‘सीमा को सीमा याद दिला देंगे, ‘अच्छे से दिखाओ’ आदि कुछ ऐसी टिप्पणियां हैं जो कथित तौर पर वकील की तरफ से उस समय की गईं जब पीड़िता के अंडरगारमेंट कोर्ट के समक्ष पेश किए गए. 5 मार्च की इस घटना के बाद से बंद कमरे में कार्यवाही शुरू कर दी गई.

पुंधीर ने इन आरोपों से इनकार करते हुए उन्हें ‘झूठा’ और ‘पब्लिसिटी स्टंट’ बताया.

उनके मुताबिक, ‘यह ऑनर किलिंग का मामला है; कोई उन्हें धमकी नहीं दे रहा है. परिवार सिर्फ इसलिए गांव से भागना चाहता है क्योंकि बड़े भाई ने लड़की को मार डाला था.’

हाथरस की विशेष अदालत जहां सुनवाई चल रही है | फोटो: मनीषा मंडल/दिप्रिंट

‘अदालत जाते समय होती है बेचैनी’

कुशवाहा ने बताया कि हालांकि घटना के बाद उन्होंने पुलिस सुरक्षा मांगी थी.

कुशवाहा ने कहा, ‘मैंने अदालत से सुरक्षा प्रदान करने का अनुरोध किया और पुलिसकर्मी मुझे हाथरस सीमा तक ले गए.’ साथ ही जोड़ा कि शर्मा ‘गुंडा टाइप’ है और पहले ‘हत्या का आरोपी’ भी रहा है.

परिवार ने आरोप लगाया कि कुछ वकील मामले को कमजोर करने में जुटे हैं. बड़े भाई ने कहा, ‘यहां वकीलों का एक गिरोह है, जो कहते हैं कि ऊंची जाति के लोगों को झूठा फंसाया गया है. वे नहीं चाहते कि सीमा कुशवाहा हमारा केस लड़ें; इसलिए धमकियों और डराने-धमकाने का सहारा लेते हैं.’

भाई ने यह भी कहा कि अदालत में पेश होना परिवार के लिए किसी त्रासदी से कम नहीं है.

उसने बताया, ‘सुनवाई वाले दिन मैं कुछ खा नहीं पाता हूं, ऐसा लगता है कि बीमार हो गया हूं. कोशिश करता हूं कि आरोपियों की तरफ न देखूं लेकिन उनकी मौजूदगी से मेरा सिर घूमने लगता है. पूछताछ के दौरान लंबे समय तक खड़े रहने से मुझे मिचली आने लगती है.’

मां ने बताया, ‘मेरे बेटे सो तक नहीं पाते हैं, हर दिन पूछे जाने वाले वही सवाल उनके दिमाग में घूमते रहते हैं. बड़ा वाला तो सोते से उठकर भी अदालत में पूछे गए सवालों के जवाब बड़बड़ाने लगता है.’

परिवार और उनकी वकील ने जबरन दाह संस्कार मामले की सुनवाई कर रही इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ के समक्ष ‘उत्पीड़न’ के खिलाफ एक याचिका दायर की थी. पिछले महीने, हाई कोर्ट ने सीआरपीएफ और जिला जज की तरफ से दायर स्थिति रिपोर्ट के आधार पर केस को स्थगित करने या हाथरस से बाहर ट्रांसफर करने से इनकार कर दिया था.

कुशवाहा ने कहा, ‘रिपोर्ट कोर्ट में एक सीलबंद लिफाफे में पेश की गई थी. मैंने उसे नहीं देखा है, लेकिन जो जानकारी मिली है उसके मुताबिक जिला जज ने इस बात से इनकार किया है कि हमें धमकाया जा रहा है और इसे केवल मेरे और वकीलों के बीच एक मौखिक झगड़ा बताया है.’

उसने कहा कि एचसी की बर्खास्तगी को चुनौती देने वाली एक याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर की जाएगी क्योंकि कथित तौर पर उन्हें ‘डराने’ का प्रयास जारी है.

गांव वाले कर रहे इनकार

एक बार फिर बूलगढ़ी की ओर लौटते हैं, जिस गांव को एक जबर्दस्त सन्नाटे ने घेर रखा है. इस घटना के बाद यहां जाति विभाजन और ज्यादा गहरा गया है.

कुछ ब्राह्मणों के साथ ठाकुर यहां सबसे प्रभावशाली समुदाय है. तीन दलित परिवार हैं जो एक-दूसरे से संबंधित हैं. भले ही बारिश ने दीवारों पर लिखीं उन इबारतों को मिटा दिया हो जिस पर लिखा था कि यहां केवल उच्च जातियों को ही प्रवेश की अनुमति है लेकिन ठाकुर-ब्राह्मणों के मंदिरों के दरवाजे अभी भी दलितों के लिए बंद हैं. मंदिर के बगल में रहने वाली एक ब्राह्मण महिला ने कहा, ‘लड़के इन दीवारों पर फिर से लिख देंगे.’

कोई भी 20 वर्षीय युवती के बारे में बात नहीं करता है, लेकिन इसको लेकर कानाफूसी चलती रहती है कि कैसे चार ‘निर्दोष युवकों’ को ‘ऑनर किलिंग’ में फंसाया गया है, और यह कि लड़की का ठाकुर युवकों में से एक के साथ रिश्ता थी.

दलित परिवार न सिर्फ अलग-थलग हो गया है, बल्कि न ही किसी काम के लिए बाहर जाता है और न ही किसी से बातचीत करता है. लड़की की मां ने कहा, ‘हमें ऊंची जातियों ने सामाजिक रूप से बहिष्कृत कर दिया है.’

स्थानीय निवासी अगर बताएं नहीं तो हरे-भरे खेतों के बीच उस जगह का पता लगाना मुश्किल है जहां लड़की का अंतिम संस्कार हुआ था. गांव में रहने वाली ईश्वरी देवी बताती हैं, ‘हमने घटना के बाद ही यहां काम पर आना बंद कर दिया था; कई दिनों तक भारी पुलिस बैरिकेडिंग रही थी. हमने इस साल मई के बाद ही यहां आना शुरू किया है.

दलित परिवार के घर से सड़क की दूसरी तरफ आरोपियों के रिश्तेदारों की शिकायत है कि उन्हें अपने बेटों से मिलने नहीं दिया जाता है.

संदीप के दादा ने कहा, ‘रामू और रवि के बच्चे बड़े हो रहे हैं, अपने पिता के बारे में पूछते हैं, हम उन्हें क्या बताएं? उनकी पत्नियां तो एकदम चुप रहने लगी हैं. उनसे जो दो मिनट की मुलाकात हुई उसमें सिसकते हुए यही कहा कि वे निर्दोष हैं.’

उन्होंने कहा कि उन्हें तो अपने बेटों के लौटकर आने की कोई उम्मीद ही नहीं बची है क्योंकि यह एक ‘मीडिया ट्रायल’ है. उन्होंने कहा, ‘जब अदालत में सुनवाई होती है, तो हम उन्हें केवल दूर से ही देख पाते हैं.’

लव कुश का परिवार आज भी यही मानना है कि वो निर्दोष है क्योंकि उनके मुताबिक, लड़की को जब पहली बार उसकी मां ने देखा तो तब उसने उसे पानी दिया था. उसके पिता ने कहा, ‘कोई पानी क्यों देगा? क्या वो भागेंगे नहीं?’

यह पूछे जाने पर कि क्या उन्हें पिछले सितंबर में उनकी तरफ से प्रदर्शन करने वाले दक्षिणपंथी समूहों- बजरंग दल, करणी सेना और क्षत्रिय महासभा के सदस्यों- का समर्थन मिला है, पिता ने कहा कि उनमें से किसी ने भी इस मामले पर उनसे मुलाकात या बात नहीं की है और न ही कोई समर्थन दिया है.

लव कुश के पिता ने कहा, ‘वे तब राजनीति के लिए आए थे. अब मेरे बेटे को जेल में बंद हुए एक साल हो गया है. वे कहां हैं?’

अलग-थलग पड़ा परिवार

20 वर्षीया युवती अपने भाई-बहनों में सबसे छोटी थी- उसके दो भाई और एक बहन है.

दोनों भाइयों ने उसके साथ अपने आखिरी रक्षाबंधन की तस्वीरें भी दिखाईं- गुलाबी और पीले रंग का सूट पहने वह अपने भाइयों को राखी बांधती दिख रही है. उसे मिले उपहार अब भी वैसे ही पड़े हैं.

युवती की मां ने कहा, ‘राखी पर उसके दोनो भाई बहुत रोए, दो बहनें राखी बांधती थीं और अब एक रह गई, सबसे छोटी वाली नहीं है.’

पिता ने बड़े गर्व के साथ दरवाजे डाली जाने वाली चटाइयां दिखाईं जो युवती ने बची चीजों से बुनकर बनाई थी. यह बताते हुए कि ‘वह बहुत प्रतिभाशाली थी’ वह भी अपनी पत्नी की तरह सुबकने लगे.

उन्हें रोता देख उनकी छोटी-छोटी पोतियां भी जोर-जोर से रोने लगीं.

युवती की भाभी ने कहा, ‘हमने सबसे बड़ी बेटी को अपने मायके भेज दिया है; यहां पास में कोई स्कूल नहीं है और मैं नहीं चाहती कि मेरी बेटियां ऐसे प्रतिकूल माहौल में पले-बढ़ें.’

उसकी मझली बेटी, जो हाल में पांच साल की हुई है, ने अपने चाचा के फोन पर युवती की तस्वीर की ओर इशारा किया और कहा, ‘बुआ को मार डाला.’

लड़की की माँ अपने सबसे छोटे पोते के साथ जो 26 अगस्त को एक साल की हो गया | फोटो: मनीषा मंडल/दिप्रिंट

सबसे छोटी, जो घटना के वक्त महज 14 दिन की थी, 26 अगस्त को एक साल की हो गई.

फोन पर उसका एक और चचेरा भाई 2017 में किसी शादी के दौरान के दो वीडियो चलाता है जिसमें वह युवती गुलाबी चुन्नी ओढ़े राजस्थानी गाने- ‘आरा रा रा’ पर डांस करते दिखती है. परिवार के सभी लोग वह वीडियो देखने लग जाते हैं.
पिता ने कहा, ‘हम यह गांव कभी नहीं छोड़ेंगे, यह हमारा घर है, हर कोने में उसकी यादें बसी हैं.’

बहरहाल, परिवार का उन 18-20 सीआरपीएफ कर्मियों के साथ एक भी एक रिश्ता बन गया है जो तीन शिफ्ट में पहरे के लिए वहां तैनात रहते हैं.

हाथरस में परिवार के घर पर तैनात सीआरपीएफ के जवान | फोटो: मनीषा मंडल/दिप्रिंट

नवंबर से ही यहां तैनात ये कर्मी, दरवाजे पर आगंतुकों की तलाशी लेते हैं और एक रजिस्टर में ब्योरा दर्ज करते हैं जिसे अदालत में जमा किया जाता है. एक कंप्यूटर रूम, छत पर बनी चौकियां और घर में विभिन्न जगहों की निगरानी के लिए आठ सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं. कर्मचारी परिवार के सदस्यों को हर जगह ले जाते हैं, यहां तक कि फल-सब्जियों जैसी दैनिक आवश्यक की चीजें लाने के दौरान भी उनके साथ जाते हैं.

‘कोई नेता नहीं आया’

20 वर्षीय युवती के परिवार के सदस्यों ने कहा कि घटना के बाद पिछले एक साल में किसी भी राजनीतिक नेता ने उन्हें फोन नहीं किया और न ही उनसे मिलने आया. छोटे भाई ने कहा, ‘सपा, बसपा, कांग्रेस और यहां तक कि चंद्रशेखर आजाद सहित भीम आर्मी का कोई भी नेता हमसे मिलने नहीं आया.’

दिप्रिंट ने विजिटर्स रजिस्टर को देखने पर पाया कि उसमें केवल रिश्तेदारों और पत्रकारों के नाम दर्ज हैं.
राहुल गांधी, प्रियंका गांधी, कांग्रेस के अन्य नेताओं के अलावा अखिलेश यादव, मायावती भी उस समय दलित परिवार के समर्थन में आगे आए थे, उन्होंने न केवल आरोपियों बल्कि हाथरस के तत्कालीन जिलाधिकारी प्रवीण कुमार लक्षकर के खिलाफ भी कार्रवाई की मांग की थी.

हाथरस से बसपा के पूर्व विधायक गेंदालाल चौधरी ने कहा कि परिवार को बसपा का पूरा समर्थन है. हालांकि, वह ‘पिछले सितंबर-अक्टूबर से उनसे मिलने नहीं गए हैं.’

पूर्व भाजपा विधायक (हाथरस) राजवीर पहलवान, जिन्होंने उस समय आरोपियों के समर्थन में प्रदर्शन किया था, कहते हैं कि वह अब भी अपने उस रुख पर कायम हैं. उन्होंने कहा, ‘यहां कोई बलात्कार नहीं हुआ, कोई जातिवाद नहीं है, कोई उत्पीड़न नहीं हुआ. बाहरी लोगों ने मामले को बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया. अदालती कार्यवाही भी यही दर्शाती है.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें )

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