उप-मुख्यमंत्री दिनेश शर्मा उन लोगों के विरूद्ध अभियान का नेतृत्व करते हैं, जो विद्यार्थियों की गैरकानूनी सहायता करते हैं, परन्तु सरकार का यह कदम शैक्षणिक समुदाय और विरोधी दलों द्वारा आलोचना को आमंत्रण दे रहा है.
नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश में इस वर्ष 9 फरवरी से आरम्भ हुई बोर्ड परीक्षाओं में 66 लाख से अधिक विद्यार्थियों बैठने वाले थे. राज्य सरकार के आंकड़ों के अनुसार केवल चाल दिनों में 10.56 लाख विद्यार्थियों ने परीक्षा छोड़ दी.
इस 15 प्रतिशत से भी अधिक विद्यार्थियों का बाहर निकल जाने का कारण योगी आदित्यानाथ सरकार द्वारा परीक्षा में बड़े पैमाने की नकल रोकने के लिए चलाई मुहिम हो सकता है.
उप-मुख्यमंत्री व राज्य में शिक्षा प्रभारी डाॅ0 दिनेश शर्मा ने लखनऊ से दिप्रिंट को फोन पर बताया बताया, ‘आप यह जानकर हैरान हो जाएंगे कि उन ड्रापआऊट्स में से तकरीबन 70 प्रतिशत दूसरे राज्य से केवल परीक्षाओं में भाग लेने आए विद्यार्थी थे’.
‘परीक्षाओं में नकल हमारे राज्य में बहुत आम बन गई है, और हमें यह संकट खत्म करना है.’
फिर भी नकल पर इस अचानक इतने बड़े पैमाने की कार्यवाही की पूर्ति ने शैक्षिक व विरोधी दलों से आलोचना को बुलावा दिया है.
जल्द शुरूआत
पिछले वर्ष अगस्त में सरकार ने 2018 की नकल रहित परीक्षाओं के लिए खाका बनाना शुरू कर दिया था. दिनेश शर्मा ने शिक्षा विभाग के अधिकारियों के साथ रणनीति को अंतिम रूप देने के लिए कई मुलाकातों की अध्यक्षता की.
पहले कदम के रूप में, फरवरी की अधिसूचना पिछले साल अक्तूबर में प्रकाशित कर दी गई थी. ‘आमतौर पर अधिसूचना दिसम्बर के अन्त तक आती है, परन्तु सरकार की दृढ राय थी कि यह विद्यार्थियों को उनकी तैयारी के लिए पर्याप्त स्पष्टता दे देगा,’ उत्तर प्रदेश के माध्यमिक शिक्षा के निर्देशक डाॅ0 अवध नरेश शर्मा ने कहा.
प्रौद्योगिकी इस्तेमाल
सरकार ने स्वतन्त्र व निष्पक्ष परीक्षाएं सुनिश्चित करने के लिए, परीक्षा केन्द्रों के चुनाव से लेकर उत्तर पत्रिका की कोडिंग और सीसीटीवी कैमरा स्थापित करने तक हर मुमकिन तकनीक इस्तेमाल की है.
अतीत में, परीक्षा केन्द्र हाथ से ही आवंटित होते थे. अगर विद्यालय अपनी इमारत में परीक्षा संचालन करवाना चाहते हैं, तो पहली बार उनसे आॅनलाईन आवेदन मांगा गया है.
उप-मुख्यमंत्री ने कहा, ‘विशेष साॅफ्टवेयर ने केवल उन विद्यालयों को चुना जो कि सख्त मानदण्ड की सभी आवश्यकताओं जैसे हर कक्षा में सीसीटीवी लगाना, विद्यालय परिसर के आसपास चारदीवारी और विद्यालय परिसर के अन्दर छात्रावास या अध्यापकों के निवास गृह न होना को पूरा करते थे’.
जिला न्यायाधीश, जिला शिक्षा इन्सपेक्टर और अन्य अधिकारियों ने उन सभी स्कूलों का अंतिम अनुमोदन के लिए निरीक्षण किया, जिसका साॅफ्टवेयर ने चुनाव किया था. 2017 की परीक्षाओं के दौरान 55 लाख विद्यार्थियों के लिए 11,415 केन्द्र अनुमोदित किये गये थे. इस वर्ष 66 लाख से अधिक विद्यार्थियों के लिए केवल 8549 केन्द्र ही अनुमोदित किए गए ।
अतीत में, वह विद्यालय जहां वस्तुतः कोई आधारभूत संरचना भी नहीं थी, भी परीक्षा संचालित करते थे. ‘आॅनलाईन प्रणाली पड़ताल और जीपीएस ऐसे केन्द्रों की संख्या में कमी लाने में हमारी सहायक हुई है.’ दिनेश शर्मा ने आगे बताया, ‘मेरे पास बहुत सारे प्रतिनिधि,विधानसभा सदस्य से लेकर स्थानीय नेता, मानदंडों में छूट के लिए आए, परन्तु मैने कोई गुजांईश नहीं दी’.
विभिन्न नकल के तरीकों का सामना
केन्द्रों की पहचान करने के बाद, सबसे बड़ा कार्य नकल मॉड्यूल को तोड़ना था. ‘हमने निश्चित किया कि किसी विद्यार्थी या अध्यापक को गिरफ्तार किया या जेल नहीं भेजा जाएगा. जो लोग नकल को सुगम बनाते हैं उन्हें निशाना बनाया जाएगा’.
शर्मा ने कहा उत्तर प्रदेश में नकल को सुगम करने के चार प्रचलित मॉड्यूल हैं.
समाधानकर्ता ढंग: इसमें प्रत्याशी के स्थान पर कोई दूसरा व्यक्ति उपस्थित होता है और उत्तर लिखता हैं. इसे रोकने के लिए विद्यार्थियों के प्रवेश पत्र आधर लिंकिंग के द्वारा जाचें गए.
शर्मा ने कहा, ‘आज तक दो जगह से छः ऐसे लोग गिरफ्तार किए गए जो प्रत्याशी की जगह समाधानकर्ता की तरह उपस्थित हुए और उन्हें जेल भेज दिया गया’.
प्रश्नपत्र लीक: पहले यह प्रथा प्रबल थी. इसे रोकने के लिए, शुरू से ही प्रश्न पत्रों के तीन सेट तैयार किए गए, और जीपीएस के द्वारा प्रश्न पत्रों के संचलन पर नजर रखी गई.
7 फरवरी को, हरदोई से सूचना आई कि अंग्रेजी का प्रश्नपत्र विद्यालय प्रबंधक द्वारा लीक किया गया है. इस व्यक्ति को तुरन्त गिरफ्तार कर लिया गया, और बिना समय गवाए सारे केन्द्रों को नया प्रश्नपत्रों का सेट भेज दिया गया.
उत्तर पत्रिका की अदला-बदली: पहले सूचना आई थी कि बेहतर कार्य करने वाले विद्यार्थी की उत्तर पत्रिका के पिछले पन्ने एक दूसरे विद्यार्थी के पक्ष में बदल दिए गए थे.
इस बार हर उत्तर पत्रिका को विशेष कोड निर्दिष्ट किया गया और बाद की स्थिति में कोई भी पन्ना बढ़ाना या जोड़ना असम्भव कर दिया गया.
जौनपुर के एक छपाई परिसर पर छापा मारा गया और जो लोग प्रतिलिपि उत्तर पत्रिकाएं छापने की कोशिश कर रहे थे उन्हें गिरफ्तार किया गया.
उत्तर वर्णन करना: ग्रामीण क्षेत्रों में चौथा व सबसे प्रचलित तरीका केन्द्र प्रभारी की सहमति से एक व्यक्ति द्वारा सारी कक्षा या विद्यार्थी समूह को सारे उत्तर बताना था.
शर्मा के अनुसार, ‘इसे उन्मूलन करने में सीसीटीवी कैमरों ने हमारी मदद की. परीक्षा के लिए सारे निरीक्षकों को विशेष पहचान पत्रा भी जारी किए गए’. ऐसी दो घटनाएं ईलाहाबाद व प्रतापगढ़ से सूचित की गई, और दोनोें मामलों में शामिल व्यक्तियों को गिरफ्तार कर लिया गया.
परीक्षाओं की पूर्ण अवधि भी ढाई महीने से कम करके एक महीना कर दी गई है. कक्षा दस के लिए परीक्षाएं मार्च के शुरू में होली से पहले समाप्त होंगी और कक्षा बाहरवीेेें का आखिरी पेपर 9 मार्च को होगा.
जिला प्रशासन और उप-मुख्यमंत्री भी स्कूलों में नकल रोकने के लिए नियमित तौर पर केन्द्रों पर छापे मारते रहते हैं.
समीक्षा: सरकारी कार्यवाही की सामाजिक और राजनैतिक कई हिस्सों पर आलोचना हुई है.
लखनऊ के युवा समाजशास्त्राी विनोद चन्द्र ने कहा, ‘परीक्षाओं में नकल एक आरोपित समस्या बन गई है और इसका सतही इलाज नहीं किया जा सकता’.
‘नकल असंगत अध्यापन का नतीजा है, और विद्यार्थाी केवल तन्त्र पीड़ित हैं, जिसने वर्षों से उन्हें ऐसी चीजें अपनाने पर विवश कर दिया. शिक्षा प्रणाली को तत्काल सुधर की आवश्यकता है जिसमें प्राथमिक विद्यालय स्तर से ही अध्यापक दूसरे कार्यो की अपेक्षा अध्यापन कार्यो में लगे रहें’.
चन्द्रा ने कहा कि योगी सरकार इस कदम के कारण राजनीतिक गर्मी महसूस कर सकती है. उन्होनें कहा, ‘वो युवा, जिन्होनें पिछले चुनावों में बड़ी संख्या में बीेजेपी को मत दिया था, इसके विरूद्ध जा सकते हैं’.
विशेषज्ञ उस घटना का स्मरण करते हैं जब कल्याण सिंह की सरकार में, शिक्षा मंत्राी की हैसियत से राजनाथ सिंह, एक नकल विरोधी अध्यादेश लाए थे. उस वर्ष परीक्षाओं के दौरान बड़ी संख्या में छात्रा और अध्यापक गिरफ्तार किए गए थे. बाद में 1993 विधनसभा चुनाव में मुलायम सिंह यादव ने इसे बड़ा चुनावी मुद्दा बनाया था. राजनाथ अपनी ही मोहाना सीट हार गए. जबकि मुलायम ने बीएसपी की सांझेदारी में सरकार बनाई.
समाजवादी पार्टी के एमएलसी और संवाददाता सुनील यादव ‘साजन’ ने कहां ‘योगी सरकार का यह एक दिखावटी सुधार है. यह शिक्षा के स्तर व अध्यापकों की अनुपलब्ध्ता के लिए परेशान नहीं हैं. विद्यार्थियों को पढ़ाया ही नहीं गया तो उनकी सफलता की आशा कैसे कर सकते हैं?’
बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के सेवानिवृत समाजशास्त्र के प्राध्यापक मनजीत चर्तुवेदी ने कहा कि बेहतर होगा कि सरकार व्यावसायिक शिक्षा के विकल्प को बढ़ावा दे. ‘समय आ गया है कि सरकार साधारण शिक्षा की जगह व्यावसायिक शिक्षा को बढ़ावा देने की सोचें. नकल पर दिखावटी कार्यवाही किसी काम की नहीं’, उन्होनें कहा.
पूर्ण सुधार पाईपलाईन में: उप-मुख्यमंत्री शर्मा ने फिर भी विश्वस्त किया कि निकट भविष्य में शिक्षा प्रणाली को सुधरने के लिए कई उपाय किए जा रहे हैं.
उन्होनें कहा ‘अगले सत्र से हम एनसीईआरटी पाठ्यक्रम शुरू करने जा रहे हैं, और सारे अध्यापकों को इसका ढाई महीनों का प्रशिक्षण मिलेगा. हमने छुट्टियों की संख्या कम कर दी है और सभी विद्यार्थियों को अपील करेगें कि वे विद्यालय में उपस्थित हों जहां उन्हें उचित विषय पढ़ाया जाएगा’.
परन्तु जहां तक परीक्षाओं में नकल का सवाल है, कोई भी राहत नहीं दी जा सकती, उन्होंने दृढ़ता से कहा. ‘कुछ भी हो, यह बदल नहीं सकता. मैं स्वयं एक अध्यापक हूँ और शिक्षा का महत्व जानता हूँ’, उन्होंने कहा.