कथित रूप से बक्करवाल को सबक सिखाने के लिए 8 वर्षीय लड़की का बलात्कार कर उसकी हत्या कर दी गई थी। दिप्रिंट के नजरिए से खानाबदोश बक्करवाल समुदाय और उनके ‘बहिष्कार’ के बारे में बताया गया है।
नई दिल्ली: जम्मू के कथुआ जिले में जनवरी में खानाबदोश बक्करवाल समुदाय की एक आठ वर्षीय सदस्य असिफा का सामूहिक बलात्कार कर उसकी निर्मम हत्या कर दी गई थी। इस घटना ने क्षेत्र में सांप्रदायिक तनाव को और अधिक बढ़ावा देने का काम किया है।
दिप्रिंट द्वारा रिपोर्ट के तहत, पुलिस ने दावा किया कि इस क्षेत्र से बक्करवाल समुदाय को बहिष्कृत करने के लिए योजनाबद्ध तरीके से उसका अपहरण कर उसे मार दिया गया था। एक बलात्कारी ने कथित रूप से पुलिस को बताया कि असिफा का अपराध केवल यह था कि उसका जन्म बक्करवाल समुदाय के एक परिवार में हुआ था।”
सूत्रों के अनुसार, स्थानीय हिंदुओं और बक्करवाल समदाय के बीच भूमि पर अतिक्रमण और घुसपैठी की वजह से नियमित तकरारों के कारण “बक्करवाल समुदाय को सबक सिखाने” का विचार था।
दिप्रिन्ट यह देखता है कि कम विख्यात बक्करवाल कौन हैं
‘जम्मू और कश्मीर के दलित’
आदिवासी कार्यकर्ता जाविदराही के अनुसार, जम्मू कश्मीर में बक्करवाल समुदाय के साथ उसी तरह का व्यवहार किया जाता है जैसा कि देश के बाकी हिस्सों में दलितों के साथ किया जाता है।
राही ने कहा, कश्मीर हमें आदिवासी समझता है और जम्मू हमें मुसलमान (कश्मीर हमें आदिवासी समझता है और जम्मू हमें मुसलमान मानता है)।
जम्मू और कश्मीर में गुज्जर बक्करवाल मुख्य रुप से देहाती आदिवासी जातीय समूह है। वह राज्य में तीसरा सबसे बड़ा जातीय समूह है। गुज्जर बक्करवाल में अधिकाशतः सुन्नी मुसलमान हैं।
एक अनुमान के मुताबिक, राज्य की आबादी का लगभग 12 प्रतिशत बक्करवाल समुदाय का है। घाटी में, वे अधिकतर कुपवाड़ा, शोपियां, अनंतनाग, पुलवामा, कुलगाम और बड़गाम जैसे क्षेत्रों में केंद्रित हैं। जम्मू में, वे ज्यादातर पुंछ, राजौरी और कठुआ में रहते हैं।
सरकार द्वारा 1991 में, इस समुदाय को अनुसूचित जनजाति घोषित किया गया था।
बक्करवाल समुदाय के लोग अक्टूबर से अप्रैल तक मैदानी इलाकों में रहते हैं और गर्मियों के महीनों के दौरान वे उत्तर-पश्चिमी हिमालय की तरफ चले जाते हैं।
वे क्या करते हैं?
बक्करवाल लोग मुख्य रूप से बकरियों और भेड़ों का पालन करते हैं। साथ ही वे घोड़ों, कुत्तों और भैंसों को भी पालते हैं। राज्य के ऊपरी इलाकों में या तो उनके पास घर ही नहीं हैं, या तो वे पूरी तरह से भूमिहीन घुमक्कड़ या अर्ध-खानाबदोश हैं। कुछ बक्करवाल हमेशा खेती करने में लगे रहते हैं।
बहिष्कृत जीवन
राही ने बताया कि कश्मीरियों ने बक्करवाल समुदाय को उनके खानाबदोश रहन-सहन के लिए बाहर कर दिया और हिंदू बहुसंख्यक जम्मू भी उन्हें शामिल नहीं करते क्योंकि वे मुस्लिम हैं। जम्मू के निवासियों ने बक्करवाल समुदाय को बाहर से आकर अपनी जमीन पर बसते हुए लोगों के रूप में देखा और अपने जनसांख्यिकीय एवं राजनीतिक प्रतिनिधित्व के लिए खतरा माना।
यह कथित खतरा उसके बलात्कार और हत्या के साम्प्रदायीकरण को बयां करता है| कई हिंदू समूहों, स्थानीय राजनेताओं और वकीलों ने एक साथ आरोपी के पक्ष में अपनी आवाज बुलंद की है, यह लोग बाद में भी प्रयास कर रहे थे, लेकिन आरोप पत्र दाखिल करने से पुलिस को रोकने के लिए असफल रहे।
राही का कहना है कि ‘‘कोई भी कश्मीरी या डोगरा कभी भी हमारे लिए खड़ा नहीं होगा, केवल हमारे समुदाय के लोग ही हमारे साथ खड़े हैं।‘‘
कश्मीर से संबंधित शिक्षक और एक सक्रिय कार्यकर्ता मसूद चौधरी ने यह भी कहा कि बक्करवालों की दुर्दशा देश भर की अनुसूचित जातियों और जनजातियों की तुलना में कम दयनीय नहीं थी।
चौधरी ने हमले का वर्णन करते हुए इन्हें हाल के वर्षों में पूरे देश में हो रहे “कुछ निश्चित और हाशिये पर पहुँच चुके समुदायों के खिलाफ बढ़ते हुए दुर्लभ और चिंतनशील अत्याचार” करार दिया।
उन्होंने यह भी कहा कि “अब, चीजें बदल रही हैं – पूरे देश में एक बड़े पैमाने पर लोगों को दिन दहाड़े मारा पीटा जा रहा है और हत्याएं हो रही हैं। हो सकता है कि हमारे लोगों का इस बात से प्रोत्साहन मिल रहा हो कि अन्य राज्यों में क्या घट रहा है।
शिक्षा का निम्न स्तर
कश्मीर के 12 आदिवासी समूहों के बीच में बक्करवाल सबसे कम साक्षरता वाला समुदाय है। 2011 की जनगणना के अनुसार, बक्करवाल समुदाय के केवल 7.8 प्रतिशत लोग ही कक्षा बारहवीं पास हैं।
राही का अनुमान है कि 10 में से 8 बक्करवाल महिलाएं अशिक्षित होती हैं, हालांकि समुदाय में साक्षरता के मामले में बड़े पैमाने पर चीजों में काफी सुधार हुआ है।
सामाजिक बुराइयों के साथ संघर्ष
बक्करवाल समुदाय में बाल विवाह और दहेज जैसी कुप्रथाएं बड़े पैमाने पर हैं। कभी कभी नवजात लड़कियों की जन्म के तुरंत बाद ही लगन कर दी जाती है तथा नव युवतियों की शादी अक्सर उम्र दराज मर्दो से कर दी जाती है। बक्करवाल केवल अपने समुदाय में ही शादी करते हैं।
राही के मुताबिक, बक्करवाल प्रथा बहुविवाह के तहत, प्रत्येक पुरुष दो से सात महिलाओं के साथ शादी करता है।
साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि वे महिलाओं को सिर्फ एक मानव संसाधन के रूप में देखते हैं जो उनका जानवर पालन में सहयोग करेंगी। एक पुरूष की जितनी अधिक पत्नियां होंगी, जानवर पालन में उसके सहयोग के लिए उतने ही ज्यादा हाथ होंगे।