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Wednesday, 24 April, 2024
होमदेशछात्रों के विरोध के बीच मोदी सरकार टीआईएसएस की वित्तीय स्वास्थ्य जांचने के लिए पैनल बनाने की तैयारी में

छात्रों के विरोध के बीच मोदी सरकार टीआईएसएस की वित्तीय स्वास्थ्य जांचने के लिए पैनल बनाने की तैयारी में

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फरवरी में टीआईएसएस ने अनुसूचित जाति व जनजाति के छात्रों को दी जाने वाली आर्थिक सहायता हटा देने का ऐलान किया, जिसके विरूद्व छात्रों में बेहद भारी उत्तेजना है.

नई दिल्ली: मुम्बई में टाटा इन्स्टिट्यूट आफ सोशल साईंसेस में हो रहे विरोधों ने, जो कि एससी व एसटी छात्रों को दी जाने वाली आर्थिक सहायता को हटा लिए जाने के कारण है, केन्द्रीय सरकार का ध्यान अपनी ओर खींचा है. सरकार ने संस्था की आर्थिक सेहत का अनुमान लगाने के लिए एक कमेटी का गठन करने का फैसला किया है.

इसने यह भी फैसला किया है कि मुख्य संस्था अपने पूर्व छात्रों, इन्डस्ट्री व शुभचिन्तकों में फंड इकट्ठे करे, ताकि अगर किसी तरह की कोई कमी है, तो इसकी भरपाई हो सके.

मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा बनाया जा रहा पैनल टीआईएसएस के वित्त, इसकी सम्पत्ति, देनदारियां व खर्च पर पैनी नजर रखेगा. दिप्रिंट को पता चला है कि मंत्रालय अपनी रिपोर्ट 30 मार्च तक पेश करेगा. इस कमेटी में ‘युनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन’, टीआईएसएस, संस्था की विद्यार्थी संघ और एचआरडी मंत्रालय के लोग शामिल होगें.

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सरकार का मानना है कि एससी/एसटी छात्रों के लिए छूट की स्कीम के लिए जरूरी वित्तीय संपर्क ज्यादा मजबूत करने की कोशिश टीआईएसएस ने नहीं की. इस साल फरवारी में संस्था ने स्कीम वापिस लेने की बात, फंड की कमी का कारण बताते हुए, कही जिससे हलचल को हवा मिली.

यह भी पता चला है कि सरकारी प्रतिनिधियों द्वारा समर्थित एक प्रस्ताव टीआईएसएस की 13 मार्च की बोर्ड मीटिंग में पेश किया जाएगा, जिसमें ऐच्छिक रूप से पूर्व छात्रों इंडस्ट्री और शुभचिन्तकों से आर्थिक सहायता मांगी जाएगी, ताकि पूरी छूट आगे भी होती रहे जिसकी मांग विरोध कर रहे छात्र कर रहे हैं.

‘टीआईएसएस एक प्रमुख संस्था है और हम चाहते हैं कि यह अच्छे हूनर की खोज करती रहे, जो कि सरकार का भी मार्ग दर्शन कर सकती है. हमारे विचार में टीआईएसएस ने स्कीम को नेक इरादे से डिजाइन किया था, परन्तु वित्तीय सहायता के साथ इसे पूरी तरह से जोडा नहीं’, एक सूत्र ने दिप्रिंट को बताया.

टीआईएसएस आठ पूर्णतय फंडेड डीम्ड विश्वविद्यालयों में से एक है जो सरकार की प्रगतिशील निधी कटौती का सामना 2015 से कर रही है ताकि संस्थान आत्म निर्भर हो सके.

वित्तीय सहायता हटाने के ताजा फैसले से करीब 1100 छात्र प्रभावित हुए हैं. टीआईएसएस ने अपने सर्क्यूलर में 20 करोड़ रूपये की कमी का उल्लेख किया है.

ऐसा अनुमान है कि एक डोनर को एक छात्र की मदद करने का खर्चा 50000 रूपये सालाना से अधिक नहीं आएगा. इस हिसाब से टीआईएसएस की बोर्ड मीटिंग में ‘ईच वन, फंड वन’ के नाम से मुहिम का प्रस्ताव रखा जाएगा.

‘योगदान मिशन’ को संस्था के लिए अतिरिक्त फंड पैदा करने के लिए एक विकल्प के रूप में अभियान प्रणाली पर चलाने का विचार है. टीआईएसएस ने ‘एचआरडी’ मंत्रालय का दखल 2015-16 में भी मांगा था, तांकि ‘यूजीसी’ द्वारा फंड दिये जाने में होने वाली देरी से निपटा जा सके, जिस की वजह से संस्था को स्टाफ के वेतन भुगतान के लिए बैंकों से उधार लेना पड़ रहा था.

आन्दोलन

आन्दोलन तब शुरू हुआ जब टीआईसीसी ने सरकार की ‘पोस्ट मैट्रिक स्कालरशिप स्कीम’ के लिए योग्य एससी व एसटी छात्रों की मदद के लिए दी जाने वाली वित्तीय सहायता वापिस ले ली.

पहले स्कालरशिप की रकम संस्थान में आती थी. अब ‘डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर’ लागू होने से,स्कालरशिप की राशि सीधे छात्रों के खातों में आएगी. इसलिए नए टीआईएसएस सर्क्यूलर के अनुसार छात्रों को छात्रावास व भोजन के चार्ज संस्थान को देने पडेगें. इस सर्क्यूलर ने परिसर में जबरदस्त विरोध को हवा दी. छात्रों का कहना है कि यह कदम पात्र छात्रों को अवांछित रूप से प्रभावित करेगा.

जिनके पास सीधे-सीधे संस्थान को देने लायक भुगतान नहीं होने की सूरत में उन्हें सरकारी अदाएगी का इंतजार करना पड़ सकता है. छात्रों की यह भी मांग है कि 2016-2018 और 2017-19 बैंच के छात्रों को इस नई क्रिया विधि से छूट होनी चाहिए. छात्रों ने टीआईएसएस के इस कदम को अनुसूचित जाति व जनजाति छात्रों के खिलाफ बताया है. बहुत-सी सामाजिक व राजनीतिक संस्थाओं ने भी उनके विरोध को अपना समर्थन दिया है.

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