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Friday, 26 April, 2024
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अलीगढ़ विश्वविद्यालय के साथ साथ, मॉडर्न भारत को जिन्ना की विरासत के इन अंशों से भी है तक़लीफ़

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भारत-पाकिस्तान विभाजन के बाद भी भारतीय संस्थानों में मोहम्मद अली जिन्ना की तस्वीरों ने कई व्यक्तियों और राजनीतिक दलों को काफी परेशान किया है।

नई दिल्लीः अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी, छात्रसंघ हॉल में लगी पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना की दशकों पुरानी तस्वीर को हटाने के लिए हुए विरोध प्रदर्शन की साक्षी रही है।

अलीगढ़ के भाजपा सांसद सतीश गौतम ने एक पत्र लिखकर कुलपति से जिन्ना की तस्वीर लटकाए जाने पर विरोध जताया, दो दिन बाद बुधवार को हिन्दू युवा वाहिनी के कार्यकर्ताओं ने परिसर पर हमला कर दिया था।

एएसयू के प्रवक्ता शफी किदवई ने इस मामले पर सफाई देते हुए कहा कि जिन्ना विश्वलिद्यालय के संस्थापकों में से एक हैं और इनको जीवन पर्यन्त छात्र संघ की सदस्यता प्रदान की गई थी, यही कारण जिन्ना की तस्वीर को छात्र संघ के हॉल में लटकाने के योग्य बनाते हैं। लेकिन अब जिन्ना की तस्वीर को हॉल से हटा दिया गया है और सैकड़ों छात्र इसका विरोध कर रहे हैं।

हालांकि, एएसयू भारत के इतिहास में जिन्ना के योगदान का जश्न मनाने वाला पहला संस्थान नहीं है और न ही यह अपने पुराने निजी इतिहास का टुकड़ा है जिसके कारण आधुनिक भारत को खतरे का सामना करना पड़े।

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बॉम्बे हाई कोर्ट

1896 में जारी किए गए जिन्ना के बैरिस्टर प्रमाण पत्र को एक स्मृति के रूप में बॉम्बे हाईकोर्ट संग्रहालय में स्थापित किया गया था, जिसका उद्घाटन 14 फरवरी 2015 को स्वयं नरेन्द्र मोदी ने किया था। कोर्ट के इतिहास में उनके द्वारा दिए गए योगदान के लिए जिन्ना के प्रमाण पत्र को महात्मा गाँधी के साथ स्थापित किया गया है। इसी कोर्ट में जिन्ना ने स्वतंत्रता सेनानी बाल गंगाधर तिलक का दो बार बचाव किया था, इसी में भारत की स्वतंत्रता में मील का पत्थर 1961 का राजद्रोह मामला भी था इसमें जिन्ना के द्वारा दिए गए तर्क इतने प्रभावशाली थे कि न्यायाधीश को मजबूर होकर तिलक के पक्ष में फैसला देना पड़ा था।

जिन्ना पीपुल्स मेमोरियल हॉल

एक बार मुंबई में लैंमिगटन रोड पर स्थित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस भवन के अंदर एक विशेष हॉल जिन्ना पीपुल्स मेमोरियल हॉल के अंदर जिन्ना के सम्मान में लगाई गई पट्टिका पाई गई थी। जिन्ना और उनकी पत्नी रत्तनबाई के नेतृत्व में बॉम्बे के औपनिवेशक गवर्नर लार्ड विलिंगटन का बड़े स्तर पर विरोध किया गया था, उसी विरोध प्रदर्शन की स्मृति में 1918 में इस हॉल का निर्माण करवाया गया था।

आंदोलन में शामिल प्रदर्शकारियों को पुलिस की लाठियों का सामना करना पड़ा था, जिसके फलस्वरूप तत्कालीन बॉम्बे के लोगों के मध्य जिन्ना एक नायक के रूप में उभरे थे। कुछ ही समय के भीतर ही जिन्ना के प्रशंसकों और कांग्रेस के सदस्यों के योगदान से 30,000 रूपये एकत्र किए गए और जिन्ना के लिए इस हॉल का निर्माण करवाया गया था।

1980 के दशक में यह हॉल राजनीतिक गतिविधियों का केन्द्र था, जहाँ इन्दिरा गाँधी और मोरारजी देसाई की सभाओं का आयोजन किया जाता था। हालांकि, कुछ साल पहले शिव सेना के सदस्यों द्वारा इस पट्टिका को जबरन हटा दिया गया था।
जिन्ना हाउस

शिवसेना और भाजपा कार्यकर्ताओं ने मुंबई में स्थित प्रसिद्ध जिन्ना हाउस को भी ध्वस्त करने का प्रयास किया है। समुद्र के सामने स्थित इस घर में विभाजन के समय तक जिन्ना रहा करते थे, अब करीब तीन दशकों से यह खाली पड़ा है, पाकिस्तान अपने संस्थापक के घर पर कब्जा करने का इच्छुक है।

जिन्ना और रत्तनबाई की इकलौती संतान, दीना वाडिया ने अपनी संपत्ति पर कब्जा करने और अपने जीवन का अंतिम समय अपने बचपन के घर में बिताने के लिए बॉम्बे हाई कोर्ट में एक याचिका दायर की थी। नवंबर 2017 में वाडिया की मृत्यु हो गई थी।

पहले और इसके बाद, इस घर को भाजपा एक युद्ध स्मारक, सांस्कृतिक केन्द्र या संग्रहालय के रूप में फिर से स्थापित करने की कोशिश कर रही है।

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