कच्चे तेल के बढ़ते दाम और विदेशी पोर्टफोलियो के देश से निरंतर बाहर जाने के बीच इस सप्ताह के शुरू में रुपये की कीमत एक दिन में 1 फीसदी से ज्यादा गिर कर प्रति डॉलर 77 के आंकड़े पर पहुंच गई.
रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण निवेशकों ने सोना और अमेरिकी डॉलर जैसी परिसंपत्तियों की ओर रुख कर लिया. वे भारतीय इक्विटी जैसी जोखिम वाली परिसंपत्तियों को बेच रहे हैं. इस साल के शुरू से ही विदेशी निवेशकों ने भारतीय शेयर बाज़ार से करीब 13 अरब डॉलर निकाल लिये हैं. यह डॉलर को मजबूत बनाए रखेगा और रुपये को और कमजोर करेगा.
कच्चे तेल की कीमत 130 डॉलर प्रति बैरल से ऊपर जाकर पिछले 14 साल में सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच गई है. रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों के कारण तेल की सप्लाई में ऐसे समय पर बाधा आई है जब बड़े तेल उत्पादकों ने मासिक तेल उत्पादन में थोड़ी वृद्धि करने का वादा किया था.
अगर तेल की कीमत 100 डॉलर प्रति बैरल के स्तर पर लंबे समय तक बनी रही तो मुद्रास्फीति में 1 प्रतिशत की वृद्धि हो सकती है. अनुमान है कि भारत का करेंट अकाउंट अक्टूबर-दिसंबर वाली तिमाही में जीडीपी के 2.8 प्रतिशत के बराबर हो जाएगा जबकि पिछली तिमाही में यह जीडीपी के 1.3 प्रतिशत के बराबर था.
जब तक तेल और ईंधन की कीमतें ऊंची रहेंगी तब तक रुपया कमजोर ही बना रहेगा. कीमतें तभी कम होंगी जब सप्लाई बढ़ेगी. तेल उत्पादक ज्यादा कच्चा तेल उत्पादन करेंगे तभी कीमतें घटेंगी. अगले कुछ सप्ताह में पता चल जाएगा कि ऐसा होता है या नहीं.
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रुपये में गिरावट कितनी तेज?
रुपये में गिरावट यूक्रेन संकट से पहले से दिख रही थी. अमेरिका में मुद्रस्फीति में तेज वृद्धि के कारण वहां के फेडरल रिजर्व द्वारा दरों में आक्रामक वृद्धि की अटकलें लगने लगी थीं और फरवरी के मध्य से ही रुपया कमजोर पड़ने लगा था. युद्ध शुरू होने के बाद भारत और यूरोपीय संघ जैसे बड़े तेल-आयातकों की मुद्राओं को झटका लगा.
रुपया अगर फरवरी के मध्य से ही कमजोर पड़ने लगा था, तो युद्ध जारी रहने के कारण यूरो में भी रुपये की तुलना में अधिक तेजी से गिरावट आने लगी. ताजा आंकड़े बताते हैं कि रुपये ने यूरो के मुक़ाबले अपनी स्थिति सुधारी है.
रुपये की कमजोरी के नतीजे
रुपये की कीमत में गिरावट के कारण आयात अब भारत के लिए महंगे हो जाएंगे. भारत की दो तिहाई तेल की जरूरत आयात से ही पूरी की जाती है. भारत खाद्य तेलों का भी सबसे बड़ा आयातक है. रुपये की कमजोरी से आयातित खाद्य तेल महंगे हो जाएंगे और खाद्य सामाग्री की महंगाई और बढ़ेगी.
कमजोर रुपया भारत के निर्यातों को सैद्धांतिक रूप से बढ़ावा देगा लेकिन अनिश्चितता के माहौल में और कमजोर वैश्विक मांग तथा रुपये की बाह्य कीमत में गिरावट के कारण निर्यातों में वृद्धि नहीं हो पाएगी. मुद्राओं की कीमतों में उथल-पुथल के चालू दौर में निर्यातक यह तय नहीं कर पा रहे कि वे मौजूदा विनिमय दर पर निर्यात के ऑर्डर बुक करें या नहीं. रुपये में और गिरावट हो सकती है. ऐसे में मौजूदा दरों पर निर्यात के करार करना घाटे का सौदा साबित हो सकता है.
भारत जिन चीजों का निर्यात करता है उनमें जवाहरात और गहनों, रसायनों, और ऑटो वाहनों जैसी चीजों के उत्पादन में आयात का हिस्सा ज्यादा होता है. जींसों की कीमतों में वृद्धि के कारण निर्यातों के लिए किए जाने वाले उत्पादनों की लागत बढ़ जाएगी.
रिजर्व बैंक के लिए चुनौतियां
मौजूदा अनिश्चितताओं के कारण भारतीय रिजर्व बैंक के लिए चुनौतियां बढ़ रही हैं. तेल की कीमत में वृद्धि और रुपये की कीमत में गिरावट कुछ सप्ताह और जारी रही तो रुपये की कीमत को थामने के लिए रिजर्व बैंक को 631 अरब डॉलर के विदेशी मुद्रा भंडार में हाथ लगाना पड़ेगा. अनुमान है कि रुपये में उथल-पुथल को रोकने के लिए रिजर्व बैंक 2 अरब डॉलर पहले ही बेच चुका है.
मंगलवार को रिजर्व बैंक ने तरलता की खातिर डॉलर हासिल करने और रुपये को निकालने के लिए 5 अरब डॉलर-रुपये की परस्पर नीलामी की. उसने बैंकों को 5.135 अरब डॉलर बेचे और दो साल बाद डॉलर वापस खरीदने का वादा किया. इस प्रक्रिया में, उसने 76.91 रुपये प्रति डॉलर की दर से 5.135 अरब डॉलर मूल्य के रुपये निकाले. केंद्रीय बैंक के हस्तक्षेप से रुपये पर दबाव घटेगा और आयातित मुद्रास्फीति को कम करने में मदद मिलेगी. परस्पर नीलामी के बाद रुपये ने कुछ मजबूती हासिल की. रुपये की गिरावट को रोकने के लिए किया गया हस्तक्षेप अति-उदार मुद्रा नीति को उलटने के अनुरूप है, जिसका सहारा कई केंद्रीय बैंकों ने हाल के महीनों में लिया है.
रिजर्व बैंक ने ब्याज दरों को बढ़ाने से परहेज किया लेकिन तरलता के जरिए मुद्रा नीति को सामान्य स्तर पर लाने में उसके हस्तक्षेप और परस्पर नीलामी से अपेक्षित परिणाम मिलेंगे.
बाजार यह तो उम्मीद करेंगे कि रिजर्व बैंक रुपये की रक्षा के लिए हस्तक्षेप और परस्पर नीलामी का सहरा लेगा लेकिन युद्ध और तनाव लंबा चला तो रिजर्व बैंक रुपये की कीमत को गिरने दे सकता है. अगर बाजार को यह लगता है कि वह ऐसा नहीं कर रहा है और रुपये को मजबूती देने की कोशिश कर रहा है तो रुपये पर अटकलों की मार पड़ सकती है क्योंकि जब भारत में मुद्रास्फीति ऊंची होगी, ब्याज दरें नीची होंगी और 100-200 डॉलर गंवाना जमेगा नहीं तब इसे मजबूत रणनीति नहीं माना जाएगा.
इस बीच, रिजर्व बैंक उथल-पुथल को रोकने के लिए हस्तक्षेप कर सकता है लेकिन दबाव बढ़ेगा तब वह बड़े पैमाने पर बिक्री नहीं करेगा. अभी तक तो इसकी संभावना कम दिखती है.
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