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Monday, 23 December, 2024
होमइलानॉमिक्सरेट्रोस्पेक्टिव टैक्स से छुटकारा अच्छा, पर विदेशी निवेशकों को लुभाने के लिए मोदी सरकार और भी कर सकती है

रेट्रोस्पेक्टिव टैक्स से छुटकारा अच्छा, पर विदेशी निवेशकों को लुभाने के लिए मोदी सरकार और भी कर सकती है

चीन द्वारा खाली की गई जगह भरने की कोशिश में जुटे वियतनाम जैसे देशों से होड़ लेने के लिए भारत को अपनी नियमन व्यवस्था और कानून के शासन में स्थिरता लाने की जरूरत है.

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मोदी सरकार ने इस महीने के शुरू में आयकर अधिनियम में संशोधन करके पिछली तारीख से टैक्स वसूलने की व्यवस्था खत्म कर दी. इस संशोधन के तहत मई 2012 से पहले भारतीय परिसंपत्तियों के अप्रत्यक्ष हस्तांतरण पर टैक्स की मांग वापस ले ली गई है. इसका मतलब यह हुआ कि केर्न एनर्जी और वोडाफोन जैसी कंपनियों से टैक्स की मांग वापस ले ली जाएगी. संशोधन में यह भी प्रस्ताव किया गया है कि जो कंपनियां सरकार पर दायर मुकदमा वापस लेंगी उनसे वसूला गया टैक्स रिफ़ंड कर दिया जाएगा. पिछली तारीख से टैक्स वसूलने की व्यवस्था खत्म होने से भारत के नियमन तथा टैक्स ढांचे में निजी निवेशकों का भरोसा बढ़ेगा.

पिछली तारीख से टैक्स वसूलने की व्यवस्था

यह व्यवस्था सरकार को ऐसा कानून बनाने की छूट देती है जिसके तहत कुछ मदों, सौदों और लेन-देन पर कानून के बनने की तारीख से पहले की तारीख से टैक्स लगाया जा सकता है. सरकारें अपनी टैक्स व्यवस्था की उन खामियों को दूर करने के लिए इस व्यवस्था का उपयोग करती हैं जिनका लाभ कंपनियां अतीत में उठा सकती थीं.

भारत में पिछली तारीख से टैक्स वसूलने की व्यवस्था 2007 में वोडाफोन-हचिंसन सौदे की वजह लागू की गई. मई 2007 में वोडाफोन ने हचिंसन में 67 फीसदी हिस्सेदारी खरीदी. सरकार ने इससे हुए पूंजीगत लाभ और टैक्स अदायगी रोके जाने पर कुल 7,900 करोड़ रुपये के टैक्स की मांग कर दी. वोडाफोन ने इस मांग को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी. सुप्रीम कोर्ट ने वोडाफोन समूह के पक्ष में फैसला सुना दिया कि इस समूह को इस खरीद पर कोई टैक्स देने की जरूरत नहीं है. यूपीए सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश को निष्प्रभावी करने के लिए वित्त अधिनियम के जरिए एक संशोधन किया और टैक्स अधिकारियों को ऐसे सौदों पर पिछली तारीख से टैक्स वसूलने के अधिकार दे दिए.


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व्यापार और निवेश को बढ़ावा

हाल के महीनों में कई विदेशी कंपनियां चीन से बाहर निकल रही हैं क्योंकि भू-राजनीतिक तनाव बढ़ रहा है और अमेरिकी सरकार ने चीन से आयातों पर शुल्क में बड़ी वृद्धि कर दी है. अमेरिका और चीन के बीच व्यापार युद्ध ने वैश्विक सप्लाई चेन को अस्त-व्यस्त कर दिया है और कंपनियां शुल्कों से बचने के लिए नये बाज़ार तलाश रही हैं. कई अमेरिकी कंपनियां अपना आधार वियतनाम और पड़ोसी देशों में स्थानांतरित करने की तैयारी में हैं. इन देशों से प्रतिस्पर्द्धा करने के लिए भारत को अपनी नियमन व्यवस्था और कानून के शासन को स्थिरता देनी होगी.

वियतनाम अंतरराष्ट्रीय कंपनियों को अपने यहां वस्तुओं के उत्पादन के कारखाने लगाने के लिए इसलिए प्रोत्साहित कर रहा है कि उसने कई मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) किए हैं, जो निर्यात की लागत को घटाने की पेशकश करते हैं. वियतनाम ने एक्सचेंज कंट्रोल प्रतिबंधों में ढील तो दी ही है, अंतरराष्ट्रीय कंपनियों को सबसे बड़ा प्रोत्साहन यह दिया है कि कई एफटीए के कारण उन्हें शुल्कों में रियायत की उम्मीद बंधती है. उदाहरण के लिए, यूरोपीय संघ (ईयू) और वियतनाम के बीच एफटीए से पहले वियतनाम से ईयू को निर्यातों पर 30 प्रतिशत तक शुल्क देना पड़ता था. लेकिन एफटीए के बाद अगस्त 2020 से यह शून्य हो गया, जिसके चलते वियतनाम से निर्यात करने वालों को बड़ा लाभ मिला. वियतनाम में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) तो मुख्यतः निर्यात केंद्रित उत्पादन के लिए होता है लेकिन भारत में, इसके विपरीत, निवेश के लिए प्रोत्साहन इसके विशाल घरेलू बाज़ार की वजह से मिलता है.

हाल के वर्षों में सरकार ने निजी क्षेत्र की भागीदारी को प्रोत्साहित करने के लिए कई कदम उठाए हैं. मौजूदा कंपनियों के लिए कॉर्पोरेट टैक्स की दरों को 2019 में 30 फीसदी से घटाकर 22 फीसदी कर दिया गया. नयी मैन्युफैक्चरिंग फर्मों के लिए इसे 25 फीसदी से घटाकर 15 फीसदी किया गया. इन कदमों के बाद भारत निवेश करने का पसंदीदा ठिकाना बन गया क्योंकि यहां टैक्स दरें ऐसी अर्थव्यवस्थाओं में लागू दरों के अनुरूप थीं. हाल में सरकार ने कई सेक्टरों में एफडीआई की सीमा बढ़ा दी है. रक्षा उत्पादन सेक्टर में एफडीआई की सीमा ऑटोमैटिक रूट से 49 फीसदी से बढ़ाकर 74 फीसदी कर दी गई है. बीमा सेक्टर में भी एफडीआई की सीमा 49 फीसदी से बढ़ाकर 74 फीसदी कर दी गई है. भारत और अमेरिका के बीच व्यापार वार्ता इसलिए बाधित हुई क्योंकि भारत में बीमा क्षेत्र में विदेशी निवेश की गुंजाइश सीमित थी. इन सीमाओं में वृद्धि से विदेश व्यापार और निवेश में भी वृद्धि होगी.

सरकारी कदमों के फलस्वरूप देश में आने वाले एफडीआई में वृद्धि हुई है. वित्त वर्ष 2020-21 में भारत को अब तक का सबसे बड़ा एफडीआई— 81.72 अरब डॉलर का—हासिल हुआ. जबकि महामारी के कारण वैश्विक एफडीआई आवक बुरी तरह प्रभावित थी, भारत ने 2020-21 में दुनिया में पांचवां सबसे बड़ा एफडीआई हासिल किया.

और क्या किया जा सकता है?

निवेशों को प्रोत्साहित करने के लिए तो काफी कुछ किया गया है लेकिन द्विपक्षीय निवेश संधियों (बीआईटी) का स्वागत करने से भारत में विदेशी निवेश को और बढ़ावा मिलेगा. 2016 में मॉडल बीआईटी जारी होने के बाद से भारत ने ब्राज़ील, किर्गिस्तान, बेलारूस जैसे कुछ देशों के साथ बीआईटी पर दस्तखत किए हैं. विदेशी निवेशकों को प्रायः डर लगता है कि वे भारत को अच्छी तरह नहीं समझते या वे उसकी न्याय व्यवस्था के कामकाज की गति पर भरोसा नहीं करते. बीआईटी से सूचना की गड़बड़ियों को दूर करने और विदेशी निवेशकों के लिए नियंत्रणों व संतुलन का ढांचा तैयार करने में मदद मिलती है. उदाहरण के लिए, विवाद की एक तटस्थ मंच पर सुनवाई से नीति संबंधी जोखिमों से सुरक्षा मिलती है और जल्दी न्याय मिलने की उम्मीद भी बंधती है.

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

(इला पटनायक एक अर्थशास्त्री और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी में प्रोफेसर हैं. राधिका पांडे एनआईपीएफपी में सलाहकार हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)


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