नई दिल्ली: अर्थशास्त्रियों का कहना है कोविड-19 महामारी की घातक दूसरी लहर ग्रामीण क्षेत्रों को तेजी से अपनी चपेट में ले रही है, लगभग आधे नए मामले ग्रामीण क्षेत्रों से ही सामने आ रहे हैं.
ग्रामीण जिलों में संक्रमण के बारे में विभिन्न अनुमान भले ही अलग-अलग आंकड़े बताएं लेकिन इनमें वृद्धि पिछले साल जुलाई-अगस्त के दौरान पीक के स्थिति के करीब नजर आ रही है.H
लेकिन ज्यादा चिंता की बात यह है कि दूसरी लहर में भारत में कुल कोविड मामलों में 300 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई है. इसका मतलब है कि ग्रामीण क्षेत्रों में आवश्यक बुनियादी स्वास्थ्य ढांचे के अभाव में यह तेजी देखी जा रही है.
इनमें से कई ग्रामीण जिलों में दिल्ली जैसे शहरों, जहां स्वास्थ्य ढांचा सबसे बेहतर है, को घुटनों पर ला देने वाली इस महामारी से निपटने के लिए मजबूत बुनियादी स्वास्थ्य ढांचे का अभाव है.
यह भी पढ़ें : अस्पतालों को COVID मरीजों से 2 लाख रुपये से ऊपर का नकद भुगतान लेने की छूट
हालांकि, ये साबित करने वाले साक्ष्य अपुष्ट है कि उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों के गांवों में, जहां टेस्टिंग की पुख्ता व्यवस्था नहीं है, इसके अभाव में बड़ी संख्या में नए मामलों का पता ही नहीं चल पा रहा होगा.
15वें वित्त आयोग के अनुमानों के मुताबिक, इन दोनों राज्यों में प्रति व्यक्ति स्वास्थ्य खर्च 2018-19 में देश के अन्य राज्यों की तुलना में सबसे कम था.
‘चिंताजनक ट्रेंड’
एसबीआई रिसर्च की 7 मई की एक रिपोर्ट में कहा गया कि ग्रामीण इलाकों में मामले बढ़ना एक ‘चिंताजनक ट्रेंड’ है.
समूह के मुख्य आर्थिक सलाहकार सौम्य कांति घोष की तरफ से तैयार रिपोर्ट में कहा गया है कि अप्रैल में नए केस में ग्रामीण जिलों की हिस्सेदारी बढ़कर 45.5 प्रतिशत और मई में 48.5 प्रतिशत हो गई, जो कि मार्च में 37 फीसदी रही थी.
एसबीआई के पिछले अनुमानों के मुताबिक, नए केस में ग्रामीण जिलों की हिस्सेदारी अगस्त 2020 में पीक पर आकर 54 फीसदी तक पहुंच गई थी जो बाद के महीनों में धीरे-धीरे कम हुई. हालांकि, अप्रैल में फिर से इसमें वृद्धि नजर आई.
एसबीआई ने अनुमान लगाया कि शीर्ष 15 सबसे खराब ग्रामीण जिलों में से छह महाराष्ट्र, पांच आंध्र प्रदेश, दो केरल और एक-एक कर्नाटक और राजस्थान के हैं.
रेटिंग एजेंसी क्रिसिल ने भी एसबीआई की चिंताओं सहमति जताई है. एजेंसी ने 3 मई को जारी एक रिपोर्ट में कहा है, ‘बेहद चिंताजनक संकेत. अभी तक इसे शहरों तक सीमित माना जाता रहा है, पर दूसरी लहर ग्रामीण भारत को भी चपेट में ले रही है. अप्रैल में नए केस में 30 फीसदी ग्रामीण जिलों से सामने आए हैं, जो कि मार्च में 21% थे. यह अब भी पहली लहर (अगस्त 2020 में 40% पर) के दौरान पीक की स्थिति से कम ही है.’
दोनों फर्म के बीच अनुमानों के इस अंतर की वजह इसे भी माना जा सकता है कि ग्रामीण जिलों का चयन कैसे किया गया.
इन क्षेत्रों में टेस्टिंग सुविधा के अलावा पुख्ता स्वास्थ्य ढांचे का भी अभाव होने की ओर ध्यान आकृष्ट करते हुए ईवी के चीफ पॉलिटिकल एडवाइजर डी.के. श्रीवास्तव ने कहा, ग्रामीण क्षेत्रों में लॉकडाउन का कोई मतलब नहीं हैं क्योंकि इसे लागू करना मुश्किल है.’
उन्होंने कहा, ‘कोविड मामलों में वृद्धि होने पर भी ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक गतिविधियां जारी रहेंगी. लेकिन ग्रामीण इलाकों में संक्रमण शहरों की तुलना में उतना ज्यादा फैलना तो नहीं चाहिए क्योंकि शहरों की तुलना में गांवों में जनसंख्या घनत्व अपेक्षाकृत कम होता है.
उन्होंने साथ ही जोड़ा कि हालांकि, कोविड प्रभावित ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों को अब भी टेस्टिंग और इलाज के लिए शहरों का रुख करने की जरूरत पड़ सकती है.
आरबीआई, सरकार की उम्मीदें बरकरार
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) और नरेंद्र मोदी सरकार दोनों इस बात को लेकर आशावादी रहे हैं कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था महामारी के हमले को झेल लेगी.
इस हफ्ते के शुरू में आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा था कि 2020-21 में रिकॉर्ड खाद्यान्न उत्पादन और बफर स्टॉक निर्यात के साथ ग्रामीण मांग, रोजगार और कृषि इनपुट और आपूर्ति के रूप में खाद्य सुरक्षा और अर्थव्यवस्था जुड़े अन्य सेक्टरों के मददगार साबित होगा.
उन्होंने कहा कि भारतीय मौसम विभाग की तरफ से सामान्य मानसून के पूर्वानुमान से 2021-22 में ग्रामीण मांग और समग्र उत्पादन में स्थिरता बनी रहने की उम्मीद है.
वित्त मंत्रालय ने शुक्रवार को जारी मासिक आर्थिक समीक्षा में आरबीआई की जैसी ही राय जताई. इसमें कहा गया है कि सामान्य मानसून की भविष्यवाणी के आधार पर आगामी फसल चक्र में रिकॉर्ड खाद्यान्न उत्पादन के साथ कृषि क्षेत्र की स्थिति बेहतर रहेगी. इसने साथ ही कहा कि ग्रामीण मांग मजबूत रहने के संकेत साफ हैं.
(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने में लिए यहां क्लिक करें)