बेंगलुरू: वर्ल्ड हेल्थ स्टेटिस्टिक रिपोर्ट 2021 के मुताबिक, दुनिया भर में लोगों के जिंदा रहने की आयु के औसत यानी जीवन प्रत्याशा में तो वृद्धि हुई है. लेकिन, एक लंबा जीवन हमेशा स्वस्थ जीवन नहीं होता है.
पिछले माह जारी वर्ल्ड हेल्थ स्टेटिस्टिक रिपोर्ट के अनुसार, 2019 में वैश्विक औसत जीवन प्रत्याशा 73.3 वर्ष रही, जबकि स्वस्थ जीवन प्रत्याशा का आंकड़ा 63.7 वर्ष था.
जीवन प्रत्याशा (एलई) जहां जनसंख्या की समग्र मृत्यु दर को दर्शाती है, स्वस्थ जीवन प्रत्याशा (एचएएलई) उन वर्षों की औसत संख्या बताती है जितने समय तक कोई व्यक्ति पूर्ण रूप से स्वस्थ जीवन जीने की उम्मीद कर सकता है.
भारत के संदर्भ में जीवन प्रत्याशा 70.8 वर्ष थी, और स्वस्थ जीवन प्रत्याशा 60.3 वर्ष रही.
डाटा बताता है कि भारत में जीवन प्रत्याशा देखें तो पुरुषों की तुलना में महिलाएं 2.7 वर्ष अधिक जीती हैं, लेकिन स्वस्थ जीवन प्रत्याशा की बात करें तो इसमें पुरुषों के मुकाबले महिलाएं का आंकड़ा सिर्फ 0.1 वर्ष ही आगे रहता है.
एक एनजीओ पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया की कार्यकारी निदेशक, पूनम मुत्तरेजा ने दिप्रिंट को बताया, ‘भारत पुरुषों और महिलाओं के बीच स्वस्थ जीवन प्रत्याशा में सबसे कम अंतर वाले देशों में से एक है. भारत में महिलाओं की जीवन प्रत्याशा पुरुषों की तुलना में औसतन 2.7 वर्ष अधिक है; हालांकि, स्वस्थ जीवन प्रत्याशा में पुरुष-महिला अंतर केवल 0.1 वर्ष है. यह दर्शाता है कि यह जरूरी नहीं है कि भारत में महिलाएं स्वस्थ जीवन जीती हों.’
जैसा कि पहले बताया गया है जेंडर स्पेसिफिक डाटा ने यह भी दिखाया कि दुनिया भर में यद्यपि महिलाएं अधिक समय तक जीवित रहती हैं, लेकिन जरूरी नहीं कि उनका जीवन स्वस्थ हो.
रिपोर्ट के अनुसार, जब पुरुषों की औसत जीवन प्रत्याशा महिलाओं की तुलना में ‘लगातार लगभग 5 वर्ष’ कम थी, तब पुरुषों की स्वस्थ जीवन प्रत्याशा महिलाओं की तुलना में 2.4 वर्ष कम थी.
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क्या बताता है डाटा
रिपोर्ट, जीवन प्रत्याशा और स्वस्थ जीवन प्रत्याशा के बीच अंतर को स्पष्ट करती है. मुंबई स्थित इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पॉपुलेशन साइंस (आईआईपीएस) के अरोकियासामी ने बताया कि स्वस्थ जीवन प्रत्याशा को ‘कार्यात्मक अक्षमता’ से जोड़ा जाता है.
उन्होंने कहा, ‘आमतौर पर अगर हम लंबे समय तक जीवित रहते हैं, तो गठिया जैसी कार्यात्मक अक्षमताएं सामने आती है…डब्ल्यूएचओ सरकारों पर इस मीट्रिक को अपनाने का दबाव डालने की कोशिश कर रहा है और कई यूरोपीय देश यह अंतर कम करने की कोशिश कर रहे हैं.’
आंकड़ों के मुताबिक, उदाहरण के तौर पर पाकिस्तान में जहां कुल जीवन प्रत्याशा 65.6 वर्ष थी, स्वास्थ्य जीवन प्रत्याशा 56.9 है. और यद्यपि देश में जीवन प्रत्याशा महिलाओं में 2.1 वर्ष अधिक थी, स्वस्थ जीवन प्रत्याशा पुरुषों में 0.1 वर्ष अधिक पाई गई है.
बांग्लादेश में भी कुल मिलाकर जीवन प्रत्याशा 74.3 वर्ष रही, स्वस्थ जीवन प्रत्याशा 64 है. पुरुषों के लिए जीवन प्रत्याशा महिलाओं की तुलना में 2.6 वर्ष कम थी और स्वस्थ्य जीवन प्रत्याशा मात्र 0.2 वर्ष कम थी.
अमेरिका ने यह भी देखा कि स्वस्थ जीवन प्रत्याशा की बात आती है तो महिलाओं की जीवन प्रत्याशा काफी कम हो रही है- यद्यपि महिलाएं औसतन 4.4 वर्ष अधिक जीवित रहती हैं, लेकिन स्वास्थ्य जीवन प्रत्याशा केवल 1.8 वर्ष ही अधिक है.
बोलीविया, भारत, लाइबेरिया, बांग्लादेश और नीदरलैंड उन देशों में से हैं जहां स्वस्थ जीवन प्रत्याशा के मामले में पुरुषों और महिलाओं के बीच अंतर सबसे कम है. स्विट्जरलैंड, नॉर्वे और फ्रांस और स्वीडन जैसे देशों, जिनकी जीवन प्रत्याशा सबसे अधिक है, में जीवन प्रत्याशा की तुलना में स्वस्थ जीवन प्रत्याशा के बीच अंतर बहुत कम है.
क्या कहते हैं विशेषज्ञ
दिप्रिंट ने जिन विशेषज्ञों से बात की उन्होंने इस बात को रेखांकित किया कि जीवन प्रत्याशा हमेशा स्वस्थ जीवन प्रत्याशा में तब्दील नहीं हो पाती है तो इसका कारण है महिलाओं के लिए स्वास्थ्य सुविधाओं की पहुंच की कमी होना.
मुत्तरेजा ने कहा, ‘इस असमानता के कई कारण हैं, जिसमें स्वास्थ्य सुविधाओं तक महिलाओं की पहुंच में कमी और अपने शरीर के बारे में निर्णय लेने में उनका पीछे रहना शामिल है. सामाजिक मानदंड और समाज में महिलाओं की स्थिति स्वास्थ्य प्रणालियों और स्वास्थ्य सुविधा प्रदाताओं के बीच महिलाओं के संवाद को प्रभावित करती है.’
पी. अरोकियासामी कहते हैं, ‘महिलाएं अधिक समय तक जीवित रहती हैं…लेकिन हाइपरटेंशन जैसी असाध्य बीमारियों की शुरुआत 45-55 वर्ष के आयु वर्ग में हो जाती है. एक तरह से असाध्य बीमारियों का एक बड़ा बोझ है…साथ ही कई महिलाएं 60 वर्ष की आयु के बाद विधवा हो जाती हैं क्योंकि पुरुष जल्दी मर जाते हैं… अकेले रहने वाली उम्रदराज महिलाओं का अनुपात भी अधिक होता है,’
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