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Monday, 18 November, 2024
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‘टीकों की आपूर्ति में कमी और झिझक’ – आखिर क्यों कोविड वैक्सीनेशन में पिछड़ रहा है पंजाब

23 जून तक पंजाब ने अपनी कुल आबादी में से केवल 4.3 प्रतिशत (8.9 लाख लोगों) का हीं पूरी तरह टीकाकरण किया था, जबकि 57 लाख लोगों (28.2 प्रतिशत) को पहली खुराक मिल चुकी थी.

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नई दिल्ली: जैसा कि राज्य के स्वास्थ्य अधिकारियों ने दिप्रिंट को बताया, आपूर्ति में कमी, टीकाकरण के प्रति झिझक और निजी स्वास्थ्य केंद्रों में टीके लगवाने के प्रति लोगों की अनिच्छा के कारण हीं कोविड -19 वैक्सीन के कवरेज पर अन्य राज्यों की बराबरी करने के पंजाब के प्रयासों में बाधा आ रही है.

23 जून तक पंजाब ने अपनी कुल आबादी में से केवल 4.3 प्रतिशत (8.9 लाख लोगों) का ही पूरी तरह टीकाकरण किया था, जबकि 57 लाख लोगों (28.2 प्रतिशत) को पहली खुराक मिल चुकी थी. राज्य के अधिकारियों के अनुसार, यह संख्या भी तब है जब राज्य में पर्याप्त स्वास्थ्य सम्बन्धी बुनियादी ढांचा और मैनपावर उपलब्ध है तथा किसी तरह की कोई भौगोलिक बाधा भी नहीं है.

इसकी तुलना में हिमाचल प्रदेश जैसा पहाड़ी राज्य 23 जून तक अपनी 6.4 प्रतिशत आबादी का पूरी तरह से टीकाकरण करने में कामयाब रहा था जो की राष्ट्रीय औसत – 3.8 प्रतिशत से दोगुना था.

गुजरात, जिसकी आबादी पंजाब से दोगुनी है, भी पंजाब में प्रति दिन 1.15 लाख लोगों के टीकाकरण की तुलना में एक दिन में औसतन 3 लाख से भी अधिक लोगों को टीकाकरण कर रहा है. 12 जून तक के आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार इस पश्चिमी राज्य ने 45 लाख से अधिक लोगों का पूरी तरह से टीकाकरण (दोनों टीके) कर लिया है और यहां 1.55 करोड़ लोगों का आंशिक रूप से टीकाकरण (एक टीका) किया जा चुका है.


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‘टीको की कमी की वजह से हुई देरी’

दिप्रिंट से बात करते हुए, राज्य के स्वास्थ्य विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने टीकाकरण की इस धीमी रफ़्तार के लिए ‘टीकों की आपूर्ति में कमी’ को जिम्मेदार ठहराया.

राज्य के स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों के अनुसार, जनवरी में टीकाकरण अभियान की शुरुआत के बाद से पंजाब को टीकों की 68 लाख खुराक की आपूर्ति की गई है, जिसमें से 65 लाख से अधिक खुराक का उपयोग किया जा चुका है. इन्हीं आंकड़ों से पता चला है कि वैक्सीन की बर्बादी लगभग 1.5 फीसदी है.

इस अधिकारी ने अपना नाम न बताने की शर्त पर कहा, ‘अगर हमें टीकों की आपूर्ति हीं नहीं हुई तो राज्य भला क्या करेगा? हमें जो भी कुछ वैक्सीन प्राप्त होते हैं उससे हम सिर्फ एक दिन के अंतराल के साथ टीकाकरण का काम कर रहे हैं और इसके लिए आंकड़ा भी उपलब्ध है. अगर हमें अधिक संख्या में टीके दिए जाएं, तो हम पंजाब की समूची आबादी को कुछ ही समय में टीका लगाने में सक्षम होंगे. टीकों की उपलब्धता में कमी से ही हमें पिछड़ रहें है.’

वे आगे कहते है, ‘जब हम सीधे कंपनियों को वैक्सीन का ऑर्डर दे रहे थे, तब भी उपलब्धता की समस्या थी. हमने सीरम इंस्टिट्यूट को 30 लाख टीकों का ऑर्डर दिया और उनमें से हमें सिर्फ 4.29 लाख ही मिले. हमने भारत बायोटेक से भी संपर्क किया और स्पुतनिक के लिए भी बातचीत कर रहे थे.’

उन्होंने कहा, ‘केंद्र सरकार द्वारा वैक्सीन नीति में नवीनतम बदलाव के माध्यम से टीकों की खरीद पर पुनः एकाधिकार प्राप्त कर लेने के बाद भी टीकों की उपलब्धता की स्थिति में बहुत अधिक बदलाव नहीं हुआ है. मिलने वाले टीकों की संख्या पहले जैसी ही है, इसलिए इससे बहुत फर्क नहीं पड़ेगा. टीकों की उपलब्धता अभी भी एक प्रमुख मुद्दा बनी हुई है,’
विकास गर्ग, एक सिविल सर्वेंट, जो पंजाब में टीकाकरण के प्रभारी हैं, ने भी टीकों की आपूर्ति का मुद्दा उठाया और गुजरात जैसे राज्य के साथ तुलना को ‘अनुचित’ कहा, क्योंकि वहां ‘टीकों की नियमित रूप से आपूर्ति हो रही है’.

गर्ग के अनुसार, 1 जून से 10 जून के बीच १८ से 44 आयु वर्ग में टीके की एक भी खुराक नहीं दी गई क्योंकि वैक्सीन की आपूर्ति ही नहीं थी. उन्होंने बताया कि इस दौरान सारे टीकाकरण दल बेकार बैठे थे

उन्होंने कहा कि यह अभियान 11 जून को एक बार फिर से शुरू हुआ, जब टीकों की खुराक आ गई और इस दिन 1 लाख से अधिक ठीके दिए गए.

गर्ग कहते हैं, ‘यही कारण है कि टीकाकरण में देरी हो रही है. हमने टीकों के इंतजार में 10 दिन बर्बाद कर दिए. यदि हमारे पास पर्याप्त आपूर्ति होती, तो हम उन दिनों का उपयोग 10 लाख से अधिक लोगों को टीका लगाने में कर सकते थे. जब हमारे पास पर्याप्त आपूर्ति होती है, तो हम एक दिन में 1.5 लाख से भी अधिक लोगों का टीकाकरण कर रहे हैं.’

गर्ग ने यह भी बताया कि 1 से 15 जुलाई तक की अवधि में राज्य को केवल 9 लाख खुराक ही मिलने वाली है, जो बहुत कम है. वे कहते है, ’15 दिनों के लिए हमारे पास सिर्फ 9 लाख खुराक होंगे, जो प्रति दिन एक लाख भी नहीं है … हम अभियान को कैसे गति प्रदान कर सकते हैं?’

गर्ग का कहना है कि अधिकांश जिलों में आपूर्ति के साथ लगभग बराबर संख्या में टीकाकरण का कार्य प्रगति कर रहा है. प्राप्त खुराक को उसी दिन लगा दिया जाता है.

अधिकारी यह भी बताते हैं कि जब लोग टीके लेने के इच्छुक होते हैं तो वे अस्पताल जाते हैं और टीके की कमी के वापस कर दिए जाते हैं. ऐसे लोग आमतौर पर टीकाकरण के लिए वापस नहीं आते हैं.

एक वरिष्ठ अधिकारी, जो अपना नाम नहीं बताना चाहते थे, ने कहा, ‘यदि कोई व्यक्ति अपने घर से टीका लगाने के लिए आता है, घंटो कतार में खड़ा होता है और फिर टीके की कमी के कारण वापस कर दिया जाता है, तो वह व्यक्ति फिर से इस पूरे कार्यक्रम के लिए अस्पताल नहीं लौटना चाहता है.’

इस बारे में दिप्रिंट से बात करते हुए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि प्रत्येक राज्य को पहले से बताया जाता है कि उन्हें कितने टीके दिए जाएंगे, और फिर यह उन पर निर्भर है कि वे उनका विवेकपूर्ण उपयोग करें. हालांकि, इस अधिकारी ने स्वीकार किया कि टीकों के निर्माण क्षमता भी एक ‘लिमिटिग फैकटर’ है.

इस अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा. ‘हर राज्य, चाहे वह पंजाब हो या कोई अन्य राज्य, को पहले ही यह बता दिया जाता है कि उसे कितनी खुराक उपलब्ध होगी. अब यह उन पर निर्भर है कि वे इसका इस तरह उपयोग करें ताकि वे पूरे महीने टीकाकरण जारी रख सके.’

अधिकारी ने आगे बताया, ‘अगर कोई अति उत्साह अथवा उन्माद में दो या चार दिनों में बहुत सारे टीकाकरण कर देते हैं और फिर महीने के बाकी दिनों के लिए टीके खत्म हो जाते हैं तो हम इसमें उनकी कोई मदद नहीं कर सकते क्योंकि टीकों की निर्माण क्षमता एक लिमिटिंग फैक्टर है और भारत सरकार उद्योग जगत से लगातार बात कर रही हैं और उनकी संख्याओं को बढ़ाने की पूरी कोशिश कर रही है.’


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‘लोग टीकों के लिए पैसे देना नहीं चाहते’

अधिकारियों के अनुसार, अपनी आबादी का टीकाकरण करने में पंजाब के खराब प्रदर्शन का एक और कारण निजी अस्पतालों में टीके लगवाने के प्रति लोगों की अनिच्छा है.

स्वास्थ्य सचिव हुसन लाल ने कहा कि ‘लोग सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं में ही मुफ्त टीकाकरण का इंतजार करते हैं, जो पहले से ही टीकों की कमी का सामना कर रहे हैं, जिससे और देरी हो रही है. नतीजतन, निजी अस्पताल अपने टीकों की खुराक का पूरी तरह से उपयोग नहीं कर पा रहे हैं.’

लाल कहते हैं, ‘यहां सशुल्क वैक्सीन का विकल्प चुनने वाले ज्यादा लोग नहीं हैं और वे सब मुफ्त टीके की प्रतीक्षा कर रहे हैं. यहां निजी अस्पताल अपना कोटा नहीं उठा रहे हैं और जो टीके उनके पास हैं उनका उपयोग भी नहीं कर पा रहे हैं.’

वे आगे कहते हैं ‘इसी वजह से, निजी अस्पताल उनके लिए आवंटित 25 प्रतिशत टीकों की खुराक भी नहीं उठा रहे हैं. अब हम केंद्र सरकार से निजी अस्पतालों के लिए दी जाने वाली खुराक का एक हिस्सा हमें आवंटित करने के लिए कहने की योजना बना रहे हैं ताकि हम उनका उपयोग कर सकें.’

मैक्स और फोर्टिस सहित प्रमुख निजी अस्पतालों ने भी कहा कि टीके के लिए आने वाले लोगों की संख्या में कमी आई है और उन्होंने अभी तक उन सभी खुराकों का भी उपयोग नहीं किया है जो उन्होंने वैक्सीन नीति में बदलाव से पहले खरीदी थीं.

भावना आहूजा, जो फोर्टिस मोहाली में टीकों की प्रभारी हैं, ने कहा ‘हम नहीं जानते कि ऐसा इसलिए है क्योंकि लोग भुगतान करने को तैयार नहीं हैं, लेकिन शुरुआती भीड़ के बाद, चीजें थम सी गई हैं और आने वाले लोगों की संख्या में कमी आई है. वर्तमान में हम एक दिन में लगभग 250 लोगों का टीकाकरण कर रहे हैं और अभी तक हमारे पुराने स्टॉक को समाप्त करना बाकी है.’

अफवाहों, टीकों के प्रति झिझक से लड़ना

दिप्रिंट द्वारा जुटाए गए आंकड़ों के अनुसार, 12 जुलाई तक, 10 लाख की आबादी वाला मोहाली ही एकमात्र ऐसा जिला है, जिसने अपनी आबादी के 80.2 प्रतिशत से अधिक लोगों का टीकाकरण किया है. होशियारपुर 51.49 प्रतिशत टीकाकरण के साथ सूची में अगले स्थान पर है. यह डेटा टीके की पहली खुराक पर आधारित है.

सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले जिले संगरूर( 19.60 प्रतिशत), मनसा (18.01 प्रतिशत), फाजिल्का (19.99 प्रतिशत) और फिरोजपुर (20.09 प्रतिशत) हैं. फतेहगढ़ साहिब, जो 27 मई तक केवल 12 प्रतिशत लोगों के टीकाकरण से काफी पिछड़ रहा था, अब आगे आया है और अपनी 30.88 प्रतिशत आबादी का टीकाकरण कर चुका है.
कुछ जिलों के अधिकारियों ने कहा कि उनके खराब प्रदर्शन के पीछे टीकाकरण के प्रति झिझक/ हिचकिचाहट प्रमुख कारण है.

उदाहरण के लिए, मानसा के उपायुक्त मोहिंदर पाल ने ‘सोशल मीडिया पर चल रही अफवाहों’ को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया.

उन्होंने कहा, ‘हमारे जिले में, सोशल मीडिया पर बहुत से फॉरवर्ड मैसेज चक्कर लगा रहे थे, लोगों को टीका लगवाने से रोक रहे थे, और इसी वजह से देरी हुई. लोग डॉक्टरों ने उन्हें जितना बताया प्रति उससे कहीं ज्यादा अफवाहों और फॉरवर्ड मैसेज पर विश्वास करते हैं और टीकाकरण के लिए आने से इनकार कर देते हैं.’

पाल ने अब टीकों प्रति प्रचार करने के लिए जिले के हर गांव में एक अधिकारी को प्रभारी बनाया है. उन्होंने कहा, ‘हमें हर गांव एक अधिकारी रखना पड़ा जो लोगों से बात करने के लिए और उन्हें समझाने के लिए जिम्मेदार था, इसलिए, अब यह काम बढ़ना शुरू हो गया है.’

फतेहगढ़ साहिब में टीके के प्रति लोगो की झिझक के साथ ही शुरू के दिनों में मैनपावर की भी कमी थी.

फतेहगढ़ साहिब की उपायुक्त सुरभि मलिक ने कहा, ‘शुरुआत में, हमारी टीमें जिले को औद्योगिक ऑक्सीजन प्रदान करने में लगी हुई थी, और कर्मचारियों की भारी कमी थी, जिसके कारण देरी हुई लेकिन अब ऐसा नहीं है. मुख्य मुद्दा लोगों की झिझक है, जिससे अब निपटा जा रहा है और लोगों को आगे आने के लिए राजी किया जा रहा है.‘

अधिकारियों ने बताया कि जून माह के मध्य तक, 6.5 लाख की आबादी वाले इस जिले में प्रति दिन केवल 550 लोगों का टीकाकरण हो रहा था. हालांकि, अब इस अभियान ने गति पकड़ी है और महीने के अंत तक औसतन 1,300 लोगों को प्रतिदिन एक खुराक मिल रही है.

मलिक कहती हैं, ‘अगर हमें पर्याप्त मात्रा में टीके की खुराक मिलती है तो हम एक महीने के भीतर पूरे जिले का टीकाकरण कर पाएंगे.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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