आगरा: दिप्रिंट को मिली जानकारी के मुताबिक उत्तर प्रदेश के आगरा जिले में महामारी की पहली लहर की तुलना में दूसरी लहर में ज्यादा युवाओं की मौत हुई है.
दिप्रिंट द्वारा हासिल किए गए आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, वायरस के कारण इस साल 20 मार्च तक 21 से 40 आयु वर्ग के 12 फीसदी मरीजों दम तोड़ा, वहीं 21 मार्च से लेकर अब तक दूसरी लहर के दौरान यह संख्या बढ़कर 19.67 फीसदी हो गई है.
जिले के डॉक्टरों ने युवाओं की ज्यादा मौतों के पीछे इस पीढ़ी में अधिक गंभीर लक्षण दिखने के ट्रेंड को जिम्मेदार ठहराया है.
एसएन मेडिकल कॉलेज कोविड फैसिलिटी के सर्जरी विज्ञाग के अधीक्षक डॉ. प्रशांत गुप्ता ने कहा, ‘पहले 21 से 40 आयु वर्ग के मरीजों में हल्के लक्षण दिखते थे जो कोविड-19 से संक्रमित होने के बाद लगभग पांच दिनों तक रहते थे. दूसरी लहर में इस उम्र के मरीजों में मध्यम से गंभीर लक्षण नजर आने लगे और जिससे अधिकांश मरीजों को ठीक होने में 15 से 32 दिन तक लगे.’
उन्होंने कहा, ‘इस बार हमने ऐसे मरीजों को भी देखा है जो टेस्ट में निगेटिव आने के बाद भी चलने-फिरने में असमर्थ हैं, जबकि पहली लहर में ऐसा नहीं था.’
दिप्रिंट ने जब इस अस्पताल का दौरा किया, तो 65-बेड वाली आईसीयू फैसिलिटी में 28 मरीज ऑक्सीजन सपोर्ट पर थे जिसमें कम से कम 7 युवा मरीज थे.
शुक्रवार तक, जिले में कोविड मामलों का कुल आंकड़ा 25,485 था—जिसमें 10,572 पहली लहर में और 14,913 पिछले दो महीनों में सामने आए हैं. कुल मौतें 414 हुई हैं जिसमें से 239 (42 प्रतिशत) मौतें दूसरी लहर में हुई हैं. सक्रिय मामलों की संख्या 456 थी.
आधिकारिक आंकड़े बताते हैं कि दूसरी लहर में 21 से 40 आयु वर्ग का कुल केस लोड करीब 45 फीसदी है जिसमें पहली लहर की तुलना में 3.19 प्रतिशत की वृद्धि हो गई है.
दूसरी लहर में इस आयु वर्ग के 6,695 लोग कोविड के लिए टेस्ट में पॉजिटिव पाए गए, जबकि पिछले साल से लेकर इस साल मार्च तक पहली लहर के दौरान केवल 4,408 युवाओं को पॉजिटिव पाया गया था.
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इस बार गंभीर निमोनिया और फेफड़ों में क्षति
आगरा के डॉक्टरों के मुताबिक, पहली लहर में कम आयु वर्ग के केवल 15 प्रतिशत मामलों में ही मध्यम से गंभीर लक्षण दिखाई दे रहे थे. लेकिन दूसरी लहर में यह आंकड़ा तेजी से बढ़कर करीब 50 फीसदी तक पहुंच गया है.
डॉ. गुप्ता ने कहा कि इस बार गंभीर निमोनिया के कारण ऑक्सीजन स्तर में गिरावट और फेफड़ों को पहुंची क्षति की वजह से मृत्यु दर बढ़ी है. उन्होंने कहा, ‘इस वजह से हमारे पास उपलब्ध तमाम दवाओं और उपचार के बाद भी इन मरीजों की जान बचाना बेहद मुश्किल हो गया है.’
उन्होंने बताया, ‘इनमें से अधिकांश मरीजों को कोविड टेस्ट में निगेटिव आने के बाद भी स्टेप डाउन फैसिलिटी में शिफ्ट करना पड़ता है, जहां गंभीर स्तर की फाइब्रोसिस के लिए उनका इलाज किया जाता है. यह भी एक फैक्टर है जो पहली लहर के विपरीत इस लहर में युवाओं के लिए जानलेवा साबित हो रहा है.’
उनके मुताबिक, एक नई बात यह देखने में आई है कि ‘युवा पीढ़ी में लक्षणों की गंभीरता वायरस के संक्रमण की चपेट में आने के तीन से पांच दिनों के भीतर तेजी से बढ़ जाती है, जबकि पहले ऐसा नहीं था.’
उन्होंने आगे जोड़ा, ‘जब भी लक्षण मध्यम से गंभीर श्रेणी में रहेंगे, मृत्यु दर अधिक होगी क्योंकि मरीज हर तरह के सपोर्ट सिस्टम के बावजूद बीमारी से लड़ने में सक्षम नहीं होगा.’
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किन कारणों से बढ़ रहे मामले
स्थानीय प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारियों और डॉक्टरों ने मुख्य रूप से तीन कारणों को मामले बढ़ने के लिए जिम्मेदार ठहराया है—45+ का टीकाकरण होना, युवाओं का कामकाज के लिए बाहर जाना और चुनाव.
आगरा के जिला मजिस्ट्रेट प्रभु एन. सिंह ने कहा, ‘टीकाकरण एक बड़ा कारण रहा है क्योंकि हमने केवल 45 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों का टीकाकरण शुरू किया. कम आयु वर्ग के लोग जोखिम में रहे, जिसके कारण इनमें गंभीर लक्षण सामने आए.’
सिंह ने आगे कहा कि एक अन्य फैक्टर यह भी है कि पिछले साल के विपरीत इस बार लॉकडाउन के दौरान उद्योग-धंधे चालू रहे हैं.
उन्होंने कहा, ‘बड़ी उम्र वाली आबादी, जो पहली लहर में सबसे ज्यादा प्रभावित हुई थी, इस बार जब तक एकदम जरूरी नहीं हुआ घर के अंदर ही बंद रही. उन्होंने काफी सावधान भी बरती और दोहरा मास्क लगाते रहे. पिछले साल के लॉकडाउन के विपरीत इस साल उद्योग पूरी तरह से चालू हैं और काम करने वाले लोग नियमित रूप से बाहर निकल रहे हैं, जिसकी वजह से भी संक्रमण ज्यादा फैला है.’
दिप्रिंट से बातचीत के दौरान अपना नाम न छापने की शर्त पर एक वरिष्ठ डॉक्टर ने यूपी पंचायत चुनावों को इस आयु वर्ग में मामले और मृत्यु दर बढ़ने का एक प्रमुख कारण के तौर पर जिम्मेदार ठहराया.
अधिकारी ने कहा, ‘चुनाव और चुनाव प्रचार के कारण दूसरी लहर के दौरान मामलों में वृद्धि हुई. युवा आबादी बड़ी संख्या में ग्रामीण क्षेत्रों में आती-जाती रही जिससे वायरस का संक्रमण तेजी से फैला. उनमें से कुछ लोग गंभीर रूप से बीमार पड़ गए.’
हालांकि, सिंह ने चुनाव को एक फैक्टर मानने से इनकार किया. उन्होंने कहा, ‘शुरुआत में हमें आशंका थी कि पंचायत चुनाव से कोविड-19 मामलों में तेजी से वृद्धि होगी, लेकिन वास्तव में इसका यहां इतना प्रभाव नहीं पड़ा.’
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