बेंगलुरू: भारत में कोविड वैक्सीन प्राप्तकर्ताओं को हुए दुष्प्रभावों पर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से जारी आंकड़ों से पता चलता है कि बहुत से लोगों में ऐसे लक्षण दिखे जो चिंता से जुड़े हो सकते हैं. इसका मतलब है कि इन लोगों को टीका लगवाने के बाद जो बीमारी महसूस हुई वो कथित रूप से वैक्सीन से जुड़े किसी कारण से नहीं थी, जैसे कोई खामी या गलत ढंग से टीका लगना आदि.
इसी महीने सरकारी एडवर्स इवेंट्स फॉलोइंग इम्यूनाइजेशन (एआएफआई) कमेटी द्वारा तैयार की गई एक रिपोर्ट के अनुसार वैक्सीन के संदिग्ध दुष्प्रभावों की जांच के लिए विश्लेषण किए गए 60 में से 50 प्रतिशत से अधिक नमूनों- 37- में ‘चिंता से जुड़े रिएक्शंस’ थे.
ये रिपोर्ट 8 जुलाई को मंत्रालय को पेश की गई थी.
12 जुलाई को सरकार को पेश की गई अगली रिपोर्ट में ये संख्या 88 मामलों में से 22- या 25 प्रतिशत थी और राष्ट्रीय एईएफआई कमेटी की 4 जून को दाखिल की गई रिपोर्ट में ये संख्या 31 में से 1 थी. 8 जुलाई से पहले पेश की जाने वाली वो आखिरी रिपोर्ट थी.
रिपोर्ट्स में ये परिभाषित नहीं किया गया कि कौन से लक्षणों को चिंता से जुड़े रिएक्शंस के तौर पर वर्गीकृत किया गया है. लेकिन कमेटी के एक सदस्य डॉ राजीब दासगुप्ता ने दिप्रिंट को बताया कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) इसे ऐसी प्रतिक्रिया के तौर पर दर्ज करता है जिसमें ‘कई सारे लक्षण’ होते हैं, जिनमें तीव्र तनाव प्रतिक्रिया वैसोवेगल रिएक्शन शामिल होते हैं जिसमें किसी अचानक तनाव से- जैसे खून और सीरिंज आदि देखकर- किसी को चक्कर या बेहोशी हो सकती है.
‘चिंता से जुड़ी बीमारियां अधिक महत्वपूर्ण होती हैं और उच्च-दबाव वाले टीकाकरण अभियानों के लिए ज्यादा प्रासंगिक होती हैं और कोविड में विशेषकर महिलाओं के बीच हम यही देख रहे हैं’, ये कहना था दासगुप्ता का जो जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में सेंटर फॉर सोशल मेडिसिन एंड कम्यूनिटी हेल्थ के अध्यक्ष भी हैं.
दिप्रिंट से बात करते हुए कमेटी के सलाहकार डॉ एनके अरोड़ा ने कहा, ‘समय के साथ ये कम हो जाएगा, ये गायब हो जाएगा…टीकाकरण के शुरू में लोगों के दिमाग में बहुत शंकाएं थीं और उसी कारण से चिंताएं थीं लेकिन समय के साथ लोगों का भरोसा बढ़ेगा और चिंता से होने वाले रिएक्शंस में कमी आ जाएगी’.
स्वतंत्र विशेषज्ञ जो इस कमेटी से जुड़े नहीं हैं उनका मानना है कि चिंता से होने वाले रिएक्शंस का कारण ये है कि कोविड टीकाकरण को लेकर प्राप्तकर्ताओं की पर्याप्त काउंसलिंग नहीं की गई. उन्होंने ऐसी प्रतिक्रियाओं को एईएफआई के तौर पर वर्गीकृत करने पर भी सवाल खड़े किए.
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टीकाकरण चिंता से जुड़ी प्रतिक्रियाएं
जिस डब्ल्यूएचओ दस्तावेज़ का दासगुप्ता ने उल्लेख किया उसमें टीकाकरण चिंता से जुड़ी प्रतिक्रिया को ऐसे परिभाषित किया गया है- ‘टीकाकरण से पैदा हो सकने वाले ऐसे लक्षण और संकेत जिनका संबंध ‘चिंता’ से होता है ना कि वैक्सीन उत्पाद, वैक्सीन की क्वालिटी में खराबी या टीकाकरण कार्यक्रम की किसी गलती से’.
उसमें ऐसे रिएक्शंस को तीन हिस्सों में बांटा गया है- तीव्र तनाव प्रतिक्रिया यानी ‘किसी (महसूस किए गए) खतरे को लेकर एक आंतरिक शारीरिक प्रतिक्रिया’ जो हृदय गति तेज़ होने और धड़कन बढ़ने तथा वोवेगल रिएक्शन के रूप में सामने आती है जिससे हल्के चक्कर या कुछ पल की बेहोशी हो जाती है क्योंकि तनाव से रक्तचाप गिर जाता है और मस्तिष्क तक रक्त का पर्याप्त प्रवाह नहीं हो पाता, और अलग करने वाले न्यूरोलॉजिकल लक्षण रिएक्शंस जो कमज़ोरी लकवा या असामान्य हरकतों की सूरत में सामने आते हैं.
8 जुलाई की रिपोर्ट में चिंता प्रक्रिया के 36 मामलों में से 27 में अस्पताल में भर्ती की जरूरत पड़ी. 12 जुलाई की रिपोर्ट में ये संख्या 22 में से 18 थी जबकि 4 जून की रिपोर्ट में एक अकेला केस भी अस्पताल में भर्ती के बाद ठीक हो गया था.
ये पूछे जाने पर कि चिंता से जुड़े इतने रिएक्शंस क्यों सामने आ रहे हैं, दासगुप्ता ने कहा कि ऐसे मामलों की खबर दिए जाने का रुझान अधिक होता है. उन्होंने कहा, ‘चिंता स्वाभाविक रूप से फोकस में आ जाती है जबकि बुखार हो सकता है न आए…अपेक्षाकृत कम बताए जाने की स्थिति में ये कुछ हद तक कलाकृति की तरह है और अगर रिपोर्टिंग बढ़ जाती है तो ये 50 प्रतिशत घटकर 20-30 के पास आ जाएगा.
दासगुप्ता ने आगे कहा कि राष्ट्रीय एईएफआई कमेटी ने किस तरह ‘चिंता जताई थी कि सभी राज्यों में एईएफआई ने मामले कम बताए थे’. कमेटी कथित रूप से रिपोर्टिंग के वैकल्पिक चैनल्स पर चर्चा कर रही है, जिनमें कोविन में बदलाव भी शामिल हैं जिससे कि प्राप्तकर्ता खुद से अपने लक्षण रिपोर्ट कर सकें. फिलहाल टीका लगाने वाले ही ऐसा कर सकते हैं.
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‘पारिस्थितिक’
दिप्रिंट से बात करते हुए विशेषज्ञों ने, जो एईएफआई पैनल से जुड़े हुए नहीं हैं, कहा कि वैक्सीन के बारे में उपयुक्त काउंसलिंग करने से चिंता से जुड़े रिएक्शंस की रोकथाम में सहायता मिल सकती थी.
वायरस विज्ञानी टी जेकब जॉन ने कहा, ‘अगर लोगों को टीकाकरण की जानकारी तथा सलाह दी जाए और टीके के लिए राजी किया जाए, तो किसी टीके से चिंता प्रतिक्रिया नहीं होती…ये वैक्सीन उत्पाद की प्रतिक्रिया नहीं है बल्कि पारिस्थितिक है या खराब संचार या शिक्षा की वजह से मानव-निर्मित प्रतिक्रिया है’.
उन्होंने आगे कहा, ‘ये कोई जैविक प्रतिक्रिया नहीं है और मेरा मानना है कि गैर-अस्पताल भर्ती की चिंता प्रतिक्रिया को गंभीर विपरीत प्रतिक्रिया की श्रेणी में नहीं रखना चाहिए’.
महामारीविद जयप्रकाश मुलीयिल इस बात से तो सहमत थे कि उपयुक्त जानकारी देने से ऐसे रिएक्शंस कम हो जाएंगे, लेकिन उन्होंने देश में एईएफआई रिपोर्टिंग की दशा पर सवाल खड़े किए.
‘करोड़ों लोगों का अध्ययन करने के बाद भी अगर हम अभी तक कोई सीख नहीं ले पाए हैं और आने वाली रिपोर्ट्स से कोई उपयोगी जानकारी नहीं निकाल पाए हैं जबकि दूसरे देशों ने वैध निष्कर्ष निकाल लिए हैं तो इसका मतलब है कि जिस तरह से एईएफआईज़ रिपोर्ट किए जा रहे हैं उसमें ज़रूर कहीं कुछ भारी गड़बड़ी है’, ये कहना था मुलीयिल का जो भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के अंतर्गत नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एपिडेमियोलॉजी की वैज्ञानिक सलाहकार समिति के अध्यक्ष हैं.
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