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Friday, 22 November, 2024
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2020 में Covid के चलते भारत में लाखों बच्चों के छूट गए होंगे नियमित टीके : WHO

WHO और UNICEF की ओर से जारी आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2020 में दुनिया भर में 23 करोड़ बच्चों के, नियमित टीकाकरण सेवाओं के ज़रिए लगने वाले बुनियादी टीके छूट गए होंगे- ये संख्या 2019 की अपेक्षा 37 लाख अधिक है.

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नई दिल्ली: एक नई रिपोर्ट से पता चला है कि 2020 में भारत में संभवत: 30,38,000 बच्चों के डिफथीरिया, टेटनस, और काली खांसी के टीकों की पहली ख़ुराक छूट गई होगी. 2019 में ये संख्या 14,03,000 थी.

WHO और UNICEF की ओर से जारी आंकड़ों के अनुसार, इसका मतलब ये है कि कोविड-19 से पैदा हुई बाधाओं की वजह से अतिरिक्त 16 लाख बच्चों के डिफथीरिया, टेटनस और वैक्सीन से रोके जा सकने वाले बाल रोगों के नियमित टीके छूट गए होंगे, जिसके नतीजे में भविष्य में बीमारियों के प्रकोप और मौतों का जोखिम बढ़ सकता है.

आंकड़ों के अनुसार 2020 में दुनिया भर में 23 करोड़ बच्चों के नियमित टीकाकरण सेवाओं के ज़रिए लगने वाले बुनियादी टीके छूट गए होंगे- ये संख्या 2019 से 37 लाख अधिक है. दुनियाभर में व्यापक बाल टीकाकरण के इन पहले आधिकारिक ताज़ा आंकड़ों से, जो कोविड से वैश्विक सेवा में हुई बाधाओं को दर्शाते हैं, पता चलता है कि पिछले साल अधिकतर देशों में बाल टीकाकरण दरों में गिरावट देखी गई.

लगभग 170 लाख बच्चों को इस साल के दौरान संभवत: एक भी टीका नहीं लगा और टीकाकरण पर सबसे अधिक असर दक्षिणी एशिया में देखा गया.

इस बीच, बृहस्पतिवार को दि लांसेट पत्रिका में छपी एक और स्टडी में पता चला है कि भारत में खसरा टीके की पहली ख़ुराक की कवरेज घटकर संभवत: 86 प्रतिशत से नीचे आ गई है और डिफथीरिया, टेटनस और काली खांसी के टीकों की तीसरी ख़ुराक की कवरेज 75 प्रतिशत से कम हो गई है.

दि लांसेट में छपे रिसर्च पेपर के मुख्य लेखक केट कॉज़े ने दिप्रिंट को बताया, ‘2021 में और उससे आगे, भारत जैसे देशों को कोविड-19 की वजह से लगातार चुनौतियों का सामना रहेगा. नए वेरिएंट्स के सामने आने से कोविड-19 में नई लहरें, महामारी के आर्थिक प्रभावों की वजह से बहुत से देशों में बढ़ती ग़रीबी और कोविड-19 टीकाकरण अभियान को तेज़ी से चलाने की ज़रूरत, सब मिलकर संभवत: स्वास्थ्य प्रणालियों पर दबाव बनाए रखेंगी’.

वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी में दि इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ मीट्रिक्स एंड इवैलुएशन (आईएचएमई) के रिसर्चर कॉज़े ने कहा, ‘अगर इन गैप्स को नहीं भरा गया, तो महामारी की वजह से टीकाकरण में आई बाधाएं, आने वाले महीनों और सालों में वैक्सीन से रुकने वाली बीमारियों के फिर से सर उठाने का ख़तरा पैदा कर सकती हैं- ख़ासकर उन देशों और समुदायों में, जो महामारी से पहले ही भारी जोखिम में थे’.

खसरा, डिफ्थीरिया, टेटनस, और काली खांसी, वैक्सीन से रुकने वाले वो बाल रोग हैं, जिन्हें दुनियाभर के टीकाकरण कार्यक्रमों में निशाने पर लिया जाता है और जिनमें अकेली खसरा ने 2019 में, 207,000 से अधिक ज़िंदगियां ले लीं.

डब्लूएचओ और यूनिसेफ ने मिले-जुले टीकों के अनुमानित आंकड़े भी जारी किए, जिनसे पता चला कि भारत में वर्ष 2020 में, संभवत: 30,38,000 बच्चों के डिफथीरिया, टेटनस, और काली खांसी के टीकों की पहली ख़ुराक छूट गई होगी. 2019 में ये संख्या 14,03,000 थी. डब्ल्यूएचओ ने एक बयान में कहा कि भारत में इसमें अच्छी ख़ासी गिरावट देखी जा रही है, जहां डीटीपी-3 कवरेज 91 प्रतिशत से घटकर 85 प्रतिशत पर आ गई है.


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दुनियाभर में स्वास्थ्य देखभाल पर दबाव

दि लांसेट की स्टडी में अनुमान लगाया गया कि खसरा टीके (एमसीवी1) के पहले और डिफ्थीरिया, टेटनस तथा काली खांसी (डीटीपी3) के तीसरे वैक्सीन डोज़, दोनों की कवरेज 2020 में 80 प्रतिशत से नीचे आ गई होगी- अगर महामारी न आई होती तो दोनों वैक्सीन्स में, अपेक्षित स्तर से कम से कम 7 प्रतिशत की सापेक्ष गिरावट होती.

रिसर्चर्स का कहना है कि कोविड-19 और दुनियाभर में स्वास्थ्य देखभाल पर उसका दबाव, जीवन रक्षक टीकाकरण कार्यक्रमों के इतिहास में सबसे बड़ा और सबसे व्यापक वैश्विक व्यवधान साबित हो सकता है जो ‘ग़रीब और अमीर सभी देशों में लाखों बच्चों पर खसरा, डिफ्थीरिया, टेटनस और काली खांसी का ख़तरा पैदा कर सकता है’.

शोधकर्ताओं का कहना है कि वर्ष 2020 में योजनाबद्ध सामूहिक टीकाकरण अभियानों में आए व्यवधानों के साथ मिलकर, नियमित टीकाकरण में आई ये गिरावटें भविष्य में, खसरा के प्रकोप और मौतों का ख़तरा पैदा कर सकती हैं.

वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी में दि इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ मीट्रिक्स एंड इवैलुएशन (आईएचएमई) के रिसर्चर कॉज़े ने दिप्रिंट से कहा, ‘भारत के लिए हमने अनुमान लगाया कि अगर कोविड-19 न होता तो 2020 में वैक्सीन कवरेज डीटीपी3 के लिए 88.1% और एमसीवी1 के लिए 95.1% रही होती’.

लेकिन, भारत में कोविड-19 महामारी से पैदा हुए व्यवधानों की वजह से, 2020 में डीटीपी3 और एमसीवी1 के अनुमानित वार्षिक स्तर, क्रमश: 74.2% और 85.7%, रह सकते हैं.

इसका मतलब है डीटीपी3 टीकाकरण में 15.8 प्रतिशत और एमसीवी1 टीकाकरण में 9.8 प्रतिशत की गिरावट है. कॉज़े ने कहा, ‘ये अनुमान इंडियन हेल्थ मैनेजमेंट इनफॉर्मेशन सिस्टम से, जून 2020 तक मिले मासिक आंकड़ों पर आधारित हैं’. उन्होंने आगे कहा कि बाक़ी वर्ष के अनुमान मॉडल के प्रोजेक्शंस पर आधारित हैं.

हालांकि 2020 में वैक्सीन डिलीवरी में आए व्यवधान उप सहारा अफ्रीका में सबसे कम थे, लेकिन रिसर्चर्स आगाह करते हैं कि उप सहारा अफ्रीका में बहुत से देशों में, नियमित वैक्सिनेशन कवरेज महामारी से पहले ही कम थी.

उच्च-आय वर्ग के देशों में 2020 में महामारी से उत्पन्न व्यवधानों के कारण, हर टीके की खुराक मिस करने वाले बच्चों की संख्या दोगुनी हो गई- जिसमें डीटीपी3 की छूटी हुई ख़ुराकों की संख्या अपेक्षित 600,000 से बढ़कर 12 लाख के अनुमान पर पहुंच गई और एमसीवी1 की छूटी ख़ुराकों की संख्या 700,000 से बढ़कर 15 लाख पहुंच गई.

दक्षिण एशिया 2020 में सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्र

हालांकि निष्कर्षों से पता चलता है कि दिसंबर 2020 तक, दुनिया भर में दी जा रही मासिक ख़ुराकों की संख्या, अपेक्षित स्तरों तक पहुंचनी शुरू हो गई थी, लेकिन चल रहे कोविड-19 संक्रमण, नए वेरिएंट्स के उभार और कोविड-19 वैक्सीन के लाने पर फोकस इन सकारात्मक रुझानों को रोक या पलटा सकते हैं.

स्टडी में पता चला कि 2020 में दक्षिण एशिया सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्र था, जहां महामारी की वजह से पात्र बच्चों ने डीटीपी3 के अनुमानत: 36 लाख और एमसीवी1 के 22 लाख टीके मिस किए- जो अपेक्षित संख्या से तक़रीबन दोगुना थे.

अपेक्षित स्तरों के मुक़ाबले, डीटीपी3 की क्षेत्रीय कवरेज में 13% और एमसीवी1 में 4% की गिरावट देखी गई.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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