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Saturday, 21 December, 2024
होमहेल्थक्या है WHO के नए एअर क्वॉलिटी गाइडलाइंस में, भारत के लिए इसके क्या मायने हैं

क्या है WHO के नए एअर क्वॉलिटी गाइडलाइंस में, भारत के लिए इसके क्या मायने हैं

डब्ल्यूएचओ के नवीनतम वैश्विक वायु गुणवत्ता मानदंडों (ग्लोबल एअर क्वॉलिटी नॉर्म्स) से यह संकेत मिलता है कि वायु प्रदूषक तत्व मानव स्वास्थ्य के लिए 2005 में तय किए गये स्तर से बहुत निचले स्तर पर भी हानिकारक हैं.

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नई दिल्ली: 15 वर्षों के अंतराल के बाद विश्व स्वास्थ्य संगठन ने वैश्विक वायु गुणवत्ता दिशानिर्देशों (ग्लोबल एअर क्वॉलिटी गाइडलाइंस) का एक नया और अद्यतन संस्करण जारी किया, जो पूरे विश्व से इकट्ठा किए गये नवीनतम वैज्ञानिक प्रमाणों के आधार पर इस दुनिया की समूची आबादी के स्वास्थ्य की रक्षा हेतु अनुशंसित वायु गुणवत्ता स्तरों की रूपरेखा तय करता है.

इस बारे में डब्ल्यूएचओ द्वारा 2005 में दिए गये आखिरी अपडेट के बाद से इस तरह के सबूतों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है जो यह दर्शाते हैं कि कैसे वायु प्रदूषण स्वास्थ्य के विभिन्न पहलुओं को प्रभावित करता है और कैसे लगातार इसके संपर्क में रहना स्वास्थ्य के अन्य प्रमुख वैश्विक खतरों, जैसे अस्वास्थ्यकर आहार और धूम्रपान के बराबर ही घातक होता है.

एक अनुमान के आधार पर हर साल वायु प्रदूषण के संपर्क में आने से वैश्विक स्तर पर 7 मिलियन (70 लाख) लोगों की समय से पहले ही मौत हो जाती है.

डब्ल्यूएचओ के ये नए दिशानिर्देश मुख्यतः छह प्रदूषकों- पार्टिकुलेट मैटर (पीएम), ओजोन (O₃), नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO₃) सल्फर डाइऑक्साइड (SO2) और कार्बन मोनोऑक्साइड (CO)- जो न केवल अपने आप में स्वास्थ्य के लिए बड़ा खतरा हैं बल्कि अन्य हानिकारक प्रदूषकों की मात्रा में भी वृद्धि करते हैं- के लिए वायु गुणवत्ता के स्तर तय करने की संस्तुति करते हैं.

इसके अनुसार 10 और 2.5 माइक्रोमीटर व्यास के बराबर या उससे कम व्यास वाले पार्टिकुलेट मैटर (अभिकणीय पदार्थ)- जिन्हें क्रमशः पीएम 10 और पीएम 2.5 के रूप में जाना जाता है- से जुड़े स्वास्थ्य संबंधी खतरे विशेष तौर पर चिंता का विषय हैं. ये अतिसूक्ष्म कण फेफड़ों में गहराई तक प्रवेश कर सकते हैं और पीएम 2.5 तो रक्तप्रवाह में भी प्रवेश कर सकता है, जिससे हृदय और श्वसन संबंधी बीमारियां हो सकती हैं.

2021 की गाइडलाइन में कहा गया है कि हवा में पीएम 10 का वार्षिक औसत 15 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक (घन) मीटर से अधिक नहीं होना चाहिए, जबकि 24 घंटे के दरम्यान यह औसत 45 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से अधिक नहीं होना चाहिए. इसकी तुलना में पहले इन की सीमा 20 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर प्रति वर्ष और एक दिन में 50 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर थी.

इसी तरह, पीएम 2.5 के लिए की गयी संस्तुति के अनुसार इसका वार्षिक औसत 5 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर या एक दिन में 15 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से अधिक नहीं होना चाहिए. पहले की गाइडलाइन में यह सीमा 10 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर सालाना और एक दिन में 25 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर थी.

इस गाइडलाइन की अन्य सिफारिशों में कहा गया है कि 24 घंटे की अवधि के दौरान ओजोन का स्तर का औसत रूप से 100 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से अधिक नहीं होना चाहिए, वहीं नाइट्रोजन ऑक्साइड 25 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से अधिक नहीं होना चाहिए. सल्फर डाइऑक्साइड के मामले में यह 40 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से नीचे रहना चाहिए और कार्बन मोनोऑक्साइड का स्तर इसी समयावधि में 4 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से अधिक नहीं होना चाहिए.


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वायु की गुणवत्ता में सुधार की तत्काल आवश्यकता

सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट की कार्यकारी निदेशक अनुमिता रॉय चौधरी का कहना है कि इन दिशानिर्देशों में मुख्य ध्यान इनका स्वास्थ्य पर पड़ने वाला प्रभाव था न कि इन स्तरों को प्राप्त करने की व्यवहार्यता के प्रति.

उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘वैज्ञानिक प्रमाणों से अब जो दिख रहा है वह यह है कि ये वायु प्रदूषक स्वास्थ्य के लिए 2005 की तुलना में बहुत निचले स्तर पर भी हानिकारक हैं. इन मानकों के अनुसार तो अधिकांश भारतीय इन प्रदूषकों के स्वीकार्य ना किया जा सकने वाले स्तरों में ही सांस लेते हैं.’

इन आंकड़ों के संदर्भ को स्पष्ट करने के लिए रॉय चौधरी ने बताया कि साल 2020 में दिल्ली में पीएम 2.5 का स्तर औसत वार्षिक 98 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर था.

उन्होने कहा, ‘यह तब था जब कि दिल्ली ने पिछले तीन वर्षों में अपने वायु गुणवत्ता के स्तर में काफी अधिक सुधार किया है. लेकिन हमें हवा की गुणवत्ता में लगातार सुधार जारी रखने की जरूरत है.’

दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों की सूची में शामिल अन्य भारतीय शहरों में पीएम 2.5 का स्तर 2005 में की गई सिफारिशों की तुलना में काफी अधिक है. इसमें गाजियाबाद भी शामिल है, जहां 2019 में पीएम 2.5 के स्तर का वार्षिक औसत 110 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से अधिक था. इसी तरह नोएडा और गुड़गांव का वार्षिक औसत क्रमशः 97 और 93 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर था.

बच्चों के मामले में, ये प्रदूषक तत्व फेफड़ों की वृद्धि और कार्यशीलता को कम कर सकते हैं तथा श्वसन संबंधी संक्रमण और अस्थमा को बढ़ावा दे सकते हैं. वयस्कों में, हृदय रोग और हृदयाघात बाहरी वायु प्रदूषण के कारण होने वाली असामयिक मृत्यु के सबसे आम कारण हैं. साथ ही मधुमेह और न्यूरोडीजेनेरेटिव कंडीशन्स के रूप में इसके अन्य प्रभावों के प्रमाण भी सामने आ रहे हैं.

इस बारे में डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक टेड्रोस एडनॉम घेब्येयियस ने एक बयान में कहा कि ‘डब्ल्यूएचओ के नए वायु गुणवत्ता दिशानिर्देश हवा की गुणवत्ता में सुधार के लिए एक साक्ष्य-आधारित और व्यावहारिक उपकरण हैं, जिस पर हमारा सारा-का-सारा जन-जीवन निर्भर करता है. मैं सभी देशों और उन सभी लोगों से आग्रह करता हूं जो हमारे पर्यावरण की रक्षा करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं कि वे लोगों की पीड़ा को कम करने और मानव जीवन को बचाने के लिए इनका उपयोग करें.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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