नई दिल्ली: विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) को 12 देशों में मंकीपॉक्स के कम से कम 92 लैब- कनफर्म्ड मामलों की सूचना दी गई है. उत्तरी अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और यूके समेत कई युरोपियन देशों में इसके मामले सामने आए हैं.
अफ्रीका जैसे देशों में यह संक्रमण समय-समय पर फैलता रहा है. लेकिन फिलहाल सामने आए मामलों का संबंध इन्हीं देशों से है, इसका कोई लिंक कॉन्टैक्ट-ट्रेसिंग टीम को नहीं मिला है. इसलिए उपलब्ध आंकड़ों से तो ऐसा लगता है कि संक्रमण का मूल यूके ही था.
मंकीपॉक्स क्या है?
मंकीपॉक्स एक जूनोटिक बीमारी है जो जानवरों से इंसानों में फैलती है. आमतौर पर मध्य और पश्चिम अफ्रीका के जंगली हिस्सों में समय-समय पर सिर उठाता ये संक्रमण, मंकीपॉक्स वायरस के कारण होता है. इसका संबंध ऑर्थो पॉक्स वायरस फैमिली से है.जिसमें स्मॉल पॉक्स, कॉउ फॉक्स, हॉर्स फॉक्स और कैमलपॉक्स भी शामिल हैं.
मंकीपॉक्स ड्रॉपलेट्स के संपर्क में आने से फैल सकता है. अगर व्यक्ति किसी संक्रमित जानवर, संक्रमित त्वचा के घावों या दूषित पदार्थों के संपर्क में आता है, तो संक्रमण उसे आसानी से अपनी चपेट में ले लेता है.
मंकीपॉक्स का इनक्यूबेशन पीरियड आमतौर पर 6 से 13 दिनों का होता है, लेकिन कई बार इसकी रेंज 5 से 21 दिनों की भी हो सकती है. रोग के लक्षण दो से तीन सप्ताह के भीतर अपने आप ठीक हो जाते हैं.
मंकीपॉक्स आमतौर पर बुखार और दाने के रूप में दस्तक देता है. शरीर पर निकले ये दाने कई बार काफी गंभीर समस्या बन जाते हैं और व्यक्ति की जान को खतरा बढ़ जाता है.
इस बीमारी से बच्चों को ज्यादा खतरा है. गर्भावस्था के दौरान मंकीपॉक्स से जटिलताएं या बच्चे के पेट में ही मर जाने की संभावना भी बढ़ जाती हैं.
चूंकि, मंकीपॉक्स के मामूली लक्षणों का अक्सर पता नहीं चल पाता है, इसलिए संक्रमण जोखिम से इंकार नहीं किया जा सकता है.
यह भी पढ़ें : ‘एक हजार रुपये’ में 3डी ग्लव्स, IISC टीम स्ट्रोक के मरीजों के लिए लेकर आई सस्ती वर्चुअल फिजियोथेरेपी
वायरस के दो वेरिएंट की पहचान
शोधकर्ताओं ने मंकीपॉक्स वायरस के दो वेरिएंट की पहचान की है, एक पश्चिम अफ्रीकी क्लेड और दूसरा कांगो बेसिन (मध्य अफ्रीकी) क्लेड.
पश्चिम अफ्रीका में पाए जाना वाला वेरिएंट मामूली लक्षणों वाले संक्रमण का कारण बनता है. बहुत ही कम मामलों में इसके गंभीर लक्षण सामने आते हैं. इस वेरिएंट में मृत्यु दर का अनुपात लगभग 1 प्रतिशत है. वहीं दूसरी ओर कांगो बेसिन क्लेड यानी मध्य अफ्रीकी वेरिएंट में मृत्यु दर 10 प्रतिशत जितनी अधिक है.
पश्चिम और मध्य अफ्रीका के बाहर दुनिया के अधिकांश हिस्से कभी भी इस वायरस के संपर्क में नहीं आए हैं, यही वजह है कि लोगों में संक्रमण के प्रति प्रतिरोधक क्षमता कम है.
मंकीपॉक्स वायरस चेचक का कारण बनने वाले वायरस से काफी मिलता-जुलता है इसलिए चेचक के टीके को इस रोग के लिए प्रभावी माना गया है.
इसके अलावा एमवीए-बीएन नामक एक वैक्सीन और टेकोविरिमैट दवा को मंकीपाक्स के इलाज के लिए क्रमशः 2019 और 2022 को मंजूरी दी जा चुकी है. लेकिन ये अभी तक व्यापक रूप से उपलब्ध नहीं हैं.
यूके के संक्रमित लोगों में से किसी का भी पश्चिम या मध्य अफ्रीका का कोई हालिया यात्रा का इतिहास नहीं रहा है. मौजूदा समय में उपलब्ध जानकारी के आधार पर ऐसा लगता है कि संक्रमण स्थानीय रूप से यूके से ही शुरू हुआ है.
13 मई 2022 को यूनाइटेड किंगडम ने डब्ल्यूएचओ को मंकीपॉक्स के दो लैब-कंफर्मड मामलों और एक संभावित मामले की सूचना दी थी. ये तीनों मामले एक ही परिवार के हैं.
जिस व्यक्ति को मंकीपॉक्स के संभावित लक्षण थे फिलहाल वह पूरी तरह से ठीक हो गया है. जांच में जिस पहले व्यक्ति में इस रोग की पुष्टि की गई थी, उसके शरीर पर 5 मई को दाने निकलने शुरू हुए थे और 6 मई को लंदन के अस्पताल में उसे भर्ती कराया गया था.
9 मई को उसे एक स्पेशलिस्ट इनफेक्शियस डिजीज सेंटर में स्थानांतरित कर दिया गया था. 12 मई को मंकीपॉक्स की पुष्टि हुई थी. जबकि दूसरे पुष्ट मामले में 30 अप्रैल को उसके शरीर पर दाने दिखाई देने लगे थे और 13 मई को मंकीपॉक्स होने की पुष्टि की गई. उनकी हालत स्थिर है.
आरटी-पीसीआर जांच के जरिए इन दोनों मामलों में पश्चिम अफ्रीकी मंकीपॉक्स की पहचान की गई.
15 मई को डब्ल्यूएचओ को अतिरिक्त चार मामलों के बारे में सूचना दी गई थी. इन सभी में जांच के बाद पश्चिम अफ्रीकी वेरिएंट होने की पुष्टि की गई थी.
जानवरों से फैलने वाली इस बीमारी के कारणों का अभी तक पता नहीं चल पाया है, हालांकि संभावना ये भी जताई जा रही है कि काटने वाले जानवरों के जरिए भी इस वायरस के फैलने की आशंका है. शिकार करने या फिर जंगली जानवरों के मांस के संपर्क में आने से भी इसके होने का जोखिम बढ़ जाता है.
यूके में बढ़ रहा संक्रमण फिलहाल आया कहां से है, इसकी गहन जांच चल रही है. साथ ही संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने वाले व्यक्तियों की भी ट्रेसिंग की जा रही है.
(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ें : बेहतरीन कदम – भारतीय वैज्ञानिकों ने एक विदेशी कीट से निपटने के लिए अफ्रीका से आयात किया ततैया