नई दिल्ली: भारत में कोविड-19 का पहला केस जनवरी 2020 में केरल से सामने आया था. दो साल बाद अनुमान के मुताबिक़ महामारी में राज्य के हर 1 हजार लोगों में से एक की मौत हुई. और ये सिर्फ केरल की बात नहीं है. क्राउडसोर्सिंग प्लेटफॉर्म कोविड19भारत (जो राज्यवार स्वास्थ्य बुलेटिन्स से आंकड़े इकट्ठा करता है) के मुताबिक, कम से कम ऐसे चार राज्य और केंद्र-शासित क्षेत्र और हैं- गोवा, महाराष्ट्र, दिल्ली तथा पुदुचेरी- जहां वायरस ने लगभग इसी बेरहमी के साथ जानें ली हैं.
सभी राज्यों और केंद्र-शासित इलाकों के विश्लेषण से पता चलता है कि किसी भी राज्य में हुई कोविड-19 मौतों की संख्या का सीधा संबंध मामलों के प्रसार से है.
सबसे अधिक प्रभावित राज्यों में ऊंची मृत्यु दर और उनके अंदर अन्य बीमारियों के स्तर के बीच भी, एक सीधा संबंध नज़र आता है.
लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि कोविड मौतों के आंकड़ों में संभावित गैप्स, इस बिंदु पर किसी निश्चित निष्कर्ष तक नहीं पहुंचने देते.
2021 के लिए केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा उपलब्ध कराए गए जनसंख्या अनुमानों की सहायता से, दिप्रिंट ने अलग-अलग राज्यों तथा केंद्र-शासित क्षेत्रों में कोविड-19 मौतों का विश्लेषण किया.
ऐसा लगता है कि इनमें सबसे बुरी तरह प्रभावित राज्य गोवा है, जो काफी हद तक पर्यटन पर निर्भर रहता है.
जनगणना अनुमानों से अंदाज़ा होता है कि गोवा की आबादी क़रीब 15.59 लाख है. 12 जनवरी 2021 तक राज्य में 3,539 मौतें दर्ज हो चुकीं थीं. ये संख्या पड़ोसी महाराष्ट्र में मौतों की संख्या से बहुत कम है, जहां ये 1.4 लाख है. लेकिन, अगर इसे आबादी के पैमाने पर रखें तो संकेत मिलता है कि राज्य में हर 500 लोगों में से, कम से कम एक व्यक्ति की मौत कोविड-19 से हुई है.
महाराष्ट्र में यही आंकड़ा हर 1,000 में से एक व्यक्ति है. बुधवार तक राज्य में कोविड से 1,41,701 लोगों की मौत हो चुकी थी, जिसकी अनुमानित आबादी क़रीब 12.43 करोड़ है.
गोवा के बाद केरल आता है जहां असूचित मौतों के मिलान के बाद, बुधवार को कोविड-19 से हुई मौतों की संख्या 50,000 को पार कर गई. केरल की मौजूदा अनुमानित आबादी लगभग 3.5 करोड़ है, जिससे संकेत मिलता है कि कोविड-19 ने हर 1,000 लोगों में से एक की जान ली है.
दिल्ली में, जहां एक अनुमान के मुताबिक़ 2.07 करोड़ लोग रहते हैं, वहां 25,200 मौतें दर्ज हो चुकी हैं. यहां भी मृत्यु दर हर 1,000 लोगों में एक है. तमिलनाडु से घिरे एक केंद्र-शासित क्षेत्र पुदुचेरी में अब तक 1,883 मौतें दर्ज हुई हैं. इसकी अनुमानित आबादी 15.72 लाख है.
जिन पांच राज्य और यूटीज़ का जिक्र ऊपर किया है वे देश की आबादी का केवल 14 प्रतिशत हैं, लेकिन महामारी के दौरान भारत की लगभग आधी मौतें यहीं हुई हैं.
भारत में महामारी से हुई कुल मौतों का आंकड़ा 4,84,688 पहुंच गया है- हर 3,000 लोगों में क़रीब एक मौत.
इस बीच, सात राज्यों में- गुजरात, झारखंड, मध्य प्रदेश, राजस्थान, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश और बिहार- हर 10,000 लोगों पर कोविड से जुड़ी एक मौत हुई है.
कुल मिलाकर, इन सात राज्यों में भारत की लगभग आधी आबादी (48 प्रतिशत) रहती है, लेकिन देश की कुल कोविड मौतों का 15 प्रतिशत ही दर्ज हुई हैं.
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कोमोरबिडिटीज़ से कुछ समझ आ सकता है
सबसे अधिक प्रभावित राज्यों में देखी गई अधिक मृत्यु दर को शायद उनकी आबादी में मौजूद दूसरी बीमारियों के स्तर से समझा जा सकता है.
सोनीपत की अशोका यूनिवर्सिटी में फिज़िक्स और बायलॉजी के प्रोफेसर गौतम मेनन ने कहा, ‘इस विसंगति का कुछ आंशिक कारण ये हो सकता है कि मसलन भारतीय राज्यों में सबसे बुज़ुर्ग आबादी केरल की है, और वहां पर दूसरी बीमारियों की संख्या काफी है, जिससे संक्रमण होने की स्थिति में उनपर प्रतिकूल असर पड़ सकता है’.
उन्होंने आगे कहा, ‘उम्र के साथ कोविड-19 से मरने की संभावना तेज़ी के साथ बढ़ जाती है’.
कोविड मौतों की प्रवृत्ति को समझने का शायद एक तरीक़ा ये हो सकता है कि राज्य विशेष के ग़ैर-संचारी रोगों (एनसीडीज़) के बोझ को देखा जाए- जैसे कैंसर, दिल की बीमारियां, डायबिटीज़, सांस की पुरानी बीमारियां, और वो तमाम रोग जो दूसरों के संपर्क में आने से नहीं फैलते.
राज्यों में बीमारियों के कुल बोझ में एनसीडीज़ का हिस्सा एक रिपोर्ट में दर्ज किया था, जिसका शीर्षक था ‘इंडिया: हेल्थ ऑफ दि नेशंस स्टेट्स’ और जिसे 2017 में (2016 तक का डेटा), भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर), तथा स्वास्थ्य नीति थिंक टैंक पब्लिक हेल्थ फाउण्डेशन ऑफ इंडिया (पीएफएचआई), और वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ मेडिसिन की एक स्वतंत्र स्वास्थ्य शोश संस्था, इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ मीट्रिक्स एंड इवेलुएशन (आईएचएमई) ने, साझा रूप से प्रकाशित किया था.
इस रिपोर्ट में कोविड मौतों के आंकड़ों की दी गई जानकारी के विश्लेषण से पता चलता है कि किसी राज्य के ग़ैर-संचारी बीमारियों (एनसीडी) के बोझ का हर 1,000 लोगों पर हुई कोरोनावायरस मौतों के साथ, एक सीधा और सकारात्मक संबंध होता है.
सभी राज्यों के लिए कोविड मौतों और एनसीडी के बोझ के बीच सहसंबंध गुणांक 0.7 था- जो मध्यम उच्च होता है. सरल शब्दों में कहें, तो देखे गए राज्यों में जहां एनसीडी का प्रचलन अधिक था, वहां कोविड मृत्यु दर भी ऊंची थी, और इसका विपरीत भी था.
मसलन, गोवा में ग़ौर-संचारी बीमारियों का एक भारी बोझ है जो 71 प्रतिशत है (सभी बीमारियों से ग्रस्त कुल मरीज़ों या बीमारी के कुल बोझ में एनसीडी मरीज़ों का अनुपात).
2017 की रिपोर्ट के अनुसार, केरल, महाराष्ट्र और दिल्ली में भी, एनसीडी बोझ 60 प्रतिशत से अधिक था.
इस बीच, कम कोविड मौतों वाले राज्यों में एनसीडी बोझ भी कथित रूप के कम है- बिहार में 47.6 प्रतिशत, उत्तर प्रदेश में 47.9 प्रतिशत, झारखंड में 48.3 प्रतिशत, राजस्थान में 49.3 प्रतिशत, और मध्यप्रदेश में 50.5 प्रतिशत.
मेनन ने कहा, ‘निश्चित रूप से, बहुत सी दूसरी बीमारियां जिनमें एनसीडी से जुड़े रोग शामिल हैं, कोविड-19 से मौत का ख़तरा बढ़ा सकती हैं. इसके अलावा, ज़्यादा उम्र की आबादी औसत रूप से, डायबिटीज़ और सीओपीडी (क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिज़ीज़) जैसी बीमारियों से ज़्यादा ग्रसित होगी, और इसका ध्यान रखा जाना चाहिए था. आम स्थिति में ऐसा संबंध कोई हैरानी की बात नहीं होगा, बल्कि शायद अपेक्षित होगा’.
लेकिन, मेनन ने आगे कहा, ‘ऐसे संबंधों का होना बताई जाने वाली मौतों की संख्या के ठीक होने पर निर्भर करता है’.
मेनन ने कहा, ‘जो कुछ हम जानते हैं वो मौतों की सूचना की एक बहुत असमान स्थिति की ओर इशारा करता है, जिसमें राज्यों के बीच इ, मामले में बहुत अंतर होता है. उस कारण से मैं इस संबंध को गंभीरता से लेने में एहतियात बरतूंगा’.
मौतों के आंकड़े बदल सकते हैं
राज्यों द्वारा बताई गई मौतों की संख्या के, सुप्रीम कोर्ट के 2021 के एक फैसली की रोशनी में बदल जाने की संभावना है- जिसके अंतर्गत राज्य सरकारों को उस प्रक्रिया को सरल बनाना होगा, जिसमें किसी मौत के कोविड से जुड़ाव को प्रमाणित किया जा सकता है, और मृतकों के परिवारों को अनुग्रह राशि दी जा सकती है.
इस आदेश के बाद, केरल सरकार पिछले साल अक्तूबर के बाद से 15,564 अतिरिक्त मौतें जोड़ चुकी है.
महाराष्ट्र में, दिसंबर अंत तक क़रीब 1.62 लाख लोग मुआवजे के लिए आवेदन कर चुके थे, जबकि केवल 1.46 लाख कोविड के कारण बताई गई हैं. इससे संकेत मिलता है कि संभावित बक़ाया का और मिलान किया जा सकता है, हालांकि महाराष्ट्र में प्राधिकारी किसी संभावित दोहराव के लिए आवेदनों की जांच कर रहे हैं.
गोवा की तालिका में भी बक़ाया मौतें दिखनी शुरू हो गई हैं, क्योंकि लोग मुआवजों के दावों के लिए सामने आ रहे हैं.
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