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Monday, 25 November, 2024
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उत्तराखंड के आयुष अधिकारी बोले, पतंजलि की कोरोनिल Covid की दवा नहीं, केवल एक सप्लीमेंट की तरह है

उत्तराखंड की स्टेट लाइसेंसिंग अथॉरिटी के निदेशक का कहना है कि पतंजलि आयुर्वेद को स्पष्ट तौर पर निर्देशित किया गया है कि वह कोरोनिल को कोविड की दवा बताकर न बेचे, प्राधिकरण कंपनी पर ‘नजर’ रखेगा.

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नई दिल्ली: उत्तराखंड में आयुष मंत्रालय के एक शीर्ष अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि पतंजलि की कोरोनिल को केवल कोविड-19 से बचाव के लिए एक सप्लीमेंट के तौर बेचा जा सकता है, जैसे विटामिन सी, जिंक और अन्य मल्टीविटामिन की गोलियां होती हैं.

पतंजलि आयुर्वेद ने पिछले शुक्रवार को अपनी कोरोनिल टैबलेट ये कहते हुए फिर से लॉन्च की थी कि नरेंद्र मोदी सरकार की तरफ से इसे कोविड-19 के लिए ‘सहायक’ इलाज के तौर पर अपग्रेड किया गया है. दवा को इससे पहले ‘इम्युनिटी बूस्टर’ के तौर पर मंजूरी दी गई थी.

पतंजलि आयुर्वेद के संस्थापक रामदेव ने भी दावा किया था कि यह ‘कोविड-19 की पहली साक्ष्य-आधारित दवा’ है.

उत्तराखंड में स्टेट लाइसेंसिंग अथॉरिटी (एसएलए) के निदेशक डॉ. वाई.एस. रावत ने मंगलवार को दिप्रिंट से बातचीत में स्पष्ट किया कि इस दवा को एक ‘सहायक उपाय की श्रेणी में रखा गया है और खाली इसे ही इलाज के तौर पर कतई इस्तेमाल नहीं किया जा सकता.’

उन्होंने दिप्रिंट से कहा, ‘यह ओवरऑल ट्रीटमेंट में सहायक दवा के तौर पर इस्तेमाल की जा सकती है जैसे विटामिन सी, जिंक और मल्टीविटामिन दवाएं उपयोग की जाती हैं. कोरोनिल कोविड-19 के इलाज में एक प्राथमिक दवा के रूप में इस्तेमाल नहीं की जा सकती है.

आयुष मंत्रालय के तहत हर राज्य में स्थित एसएलए अपने संबंधित राज्यों में उत्पादों की मैन्युफैक्चरिंग और बिक्री लाइसेंस की मंजूरी के लिए जिम्मेदार होते हैं.

रावत के दावे महत्वपूर्ण हैं क्योंकि पतंजलि आयुर्वेद का मुख्यालय उत्तराखंड के हरिद्वार में स्थित है. उन्होंने आगे कहा कि कंपनी को ‘सख्ती’ से बता दिया गया है कि वह कोरोनिल को कोविड-19 का ‘इलाज’ बताने का दावा कतई न करे.


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आयुष ने कोरोनिल पर पत्र लिखा

दिप्रिंट ने केंद्रीय आयुष मंत्रालय की तरफ से रावत को लिखे गए एक पत्र को भी हासिल किया है जिसमें उक्त अधिकारी को दवा की श्रेणी अपग्रेड करने का निर्देश दिया गया है., इसमें इसे एक इम्युनिटी बूस्टर से सहायक इलाज के तौर पर वर्गीकृत करने को कहा गया है. लेकिन पत्र में यह भी स्पष्ट है कि इस उत्पाद को ‘इलाज’ के तौर पर प्रचारित नहीं किया जा सकता है.

मंत्रालय की तरफ से 14 जनवरी को लिखे पत्र में कहा गया है, ‘स्टेट लाइसेंसिंग अथॉरिटी कोरोनिल की गोलियां कोविड-19 का इलाज होने का दावा किया बिना एक सहायक उपाय के तौर पर इस्तेमाल करने के संबंध में कंपनी के आवेदन पर विचार कर सकती है.

रावत ने दिप्रिंट को बताया कि यह सुनिश्चित करने के लिए पतंजलि आयुर्वेद पर नजर रखी जाएगी कि वह कोरोनिल को कोविड-19 के इलाज के रूप में प्रचारित न करे. उन्होंने कहा, ‘हम यह जांच करते रहेंगे कि कहीं कंपनी इसे दवा के रूप में तो प्रचारित नहीं कर रही है. हालांकि, अभी तक हमें कोई शिकायत नहीं मिली है.’

हालांकि, यह पहला मौका नहीं है जब ‘कोविड के इलाज’ को लेकर योग गुरु रामदेव विवादों के घेरे में हैं. गत वर्ष जून में रामदेव ने कोविड किट—कोरोनिल नाम गोलियों समेत तीन उत्पादों वाला एक पैक–लॉन्च किया था और इसे नोवेल कोरोनोवायरस का ‘इलाज’ बताया था, जिसका अभी भी कोई ज्ञात इलाज नहीं है.

चिंताओं के बावजूद दवा को मंजूरी?

आयुष मंत्रालय के पत्र से पता चलता है कि पतंजलि के प्रस्ताव को मंजूरी देने वाली समिति की तरफ से कोरोनिल को लेकर सवाल उठाए गए थे.

आयुष मंत्रालय में डिप्टी एडवाइजर डॉ. चिन्ता श्रीनिवास के लिखे पत्र के अनुसार, पतंजलि की तरफ से किए गए आवेदन का शीर्षक ‘कोरोनिल गोलियों के लिए आयुष लाइसेंस इम्युनिटी बूस्टर से कोविड-19 की दवा किया जाना’ था.

कंपनी के इस प्रस्ताव पर एम्स के फार्माकोलॉजी विभाग के पूर्व प्रोफेसर डॉ. एस.के. मौलिक की अध्यक्षता वाली इंटरडिसिप्लिनरी रिव्यू कमेटी ने 17 और 18 दिसंबर को गौर किया था.

पत्र के मुताबिक, समिति ने दो बिंदु उठाए थे—एक ‘मानक देखभाल के बिना एक समूह में केवल प्लेसबो प्रशासन (बिना चिकित्सीय प्रभाव वाल डमी गोली का इस्तेमाल) होना और दूसरा था उम्र और कोमोर्बिडिटीज के आधार पर डाटा का अभाव.’

पत्र के अनुसार, समिति ने कहा था कि ‘केवल प्लेसबो प्रशासन (मानक देखभाल के बिना) नैतिक चिंताएं उत्पन्न करता और ग्रुप के आधार पर विश्लेषण उपलब्ध नहीं कराया गया है.’

हालांकि, समिति ने दवा को मंजूरी दे दी.

दिप्रिंट ने इस बात टिप्पणी के लिए डॉ. एस.के. मौलिक से संपर्क साधा लेकिन उन्होंने यह कहते हुए कोई जानकारी देने से इनकार कर दिया कि उन्हें प्रस्ताव का ब्योरा याद नहीं है. पत्र पर स्पष्टीकरण के लिए दिप्रिंट ने पतंजलि के प्रवक्ता और आयुष मंत्रालय को भी एक ईमेल भेजा, लेकिन रिपोर्ट प्रकाशित किए जाने के समय तक इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली थी.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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