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Wednesday, 20 November, 2024
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हेल्थकेयर पर UP और केरल करते हैं सबसे ज्यादा खर्च, राष्ट्रीय स्तर पर इनपेशेंट केयर का है बड़ा हिस्सा

स्वास्थ्य सेवाओं के भुगतान के लिए उपलब्ध वित्तीय सुरक्षा के स्तर का मुख्य संकेतक है आउट-ऑफ-पॉकेट खर्च है. नेशनल हेल्थ अकाउंट्स की रिपोर्ट कई खुलासे करती है.

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नई दिल्ली: केंद्र सरकार द्वारा बुधवार को जारी नेशनल हेल्थ अकाउंट्स (एनएचए) के अनुमान से पता चला है कि भारत में कुल स्वास्थ्य व्यय (टीएचई) का आउट-ऑफ-पॉकेट व्यय (ओओपीई) वित्तीय वर्ष 2021-2022 में 39.4 प्रतिशत रहा जो कि वित्त वर्ष 2014-2015 के 64.2 प्रतिशत से काफी कम है.

ओओपीई, वह राशि है जो परिवार स्वास्थ्य सेवा प्राप्त करने के लिए चुकाते हैं और यह स्वास्थ्य सेवाओं के भुगतान के लिए उपलब्ध वित्तीय सुरक्षा के स्तर का एक महत्वपूर्ण संकेतक है.

एनएचए का यह नौवां संस्करण, “भारत में एक वित्तीय वर्ष के लिए स्वास्थ्य व्यय और धन के प्रवाह” के बारे में बताता है. एनएचए के अनुमान के अनुसार, वित्त वर्ष 2022 में परिवारों का कुल ओओपीई 3,56,254 करोड़ रुपये था, जो लगभग प्रति व्यक्ति के हिसाब से 2,600 रुपये था.

इसमें कहा गया है कि वित्त वर्ष 2022 में भारत के लिए कुल स्वास्थ्य व्यय 9,04,461 करोड़ रुपये था, जो कि सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 3.83 प्रतिशत था और प्रति व्यक्ति 6,602 रुपये था.

एनएचए के अनुसार, 113 डॉलर प्रति व्यक्ति के साथ, भारत विश्व स्वास्थ्य संगठन के वैश्विक स्वास्थ्य व्यय डेटाबेस (2021) द्वारा रैंक किए गए 189 देशों की सूची में प्रति व्यक्ति ओओपीई में 69वें स्थान पर था. यह नेपाल ($117 प्रति व्यक्ति) से ऊपर और बांग्लादेश ($112 प्रति व्यक्ति) से नीचे था.

कुल व्यय में से, पूंजीगत व्यय सहित सरकारी स्वास्थ्य व्यय (जीएचई) 4,34,163 करोड़ रुपये या 48 प्रतिशत था. तुलनात्मक रूप से, 2014-2015 में जब रिपोर्ट पहली बार जारी की गई थी, तब कुल स्वास्थ्य व्यय का जीएचई 29 प्रतिशत था.

इसके अतिरिक्त, इसने दिखाया कि जीएचई में केंद्र सरकार का हिस्सा लगभग 41.8 प्रतिशत है, जबकि राज्य सरकारों का हिस्सा लगभग 58.2 प्रतिशत है.

हालांकि ये आँकड़े स्वास्थ्य सेवा पर केंद्र सरकार के खर्च में वृद्धि की प्रवृत्ति को दर्शाते हैं, लेकिन कुछ सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ इस पर संदेह करते हैं.

पूर्व केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव के. सुजाता राव ने दिप्रिंट से कहा, “मुझे आश्चर्य है कि नवीनतम एनएचए स्वास्थ्य सेवा में जीडीपी का 1.84 प्रतिशत सरकारी खर्च दिखा रहा है, जबकि मुद्रास्फीति को समायोजित करने के अलावा स्वास्थ्य मंत्रालय को आवंटन में कोई साल-दर-साल वृद्धि नहीं हुई है.”

उन्होंने सुझाव दिया कि स्वास्थ्य सेवा की लागत की गणना करते समय, सरकार संभवतः स्वच्छता और जल आपूर्ति की लागत को भी ध्यान में रख रही है, जो सीधे स्वास्थ्य सेवा लागत नहीं है.

महाराष्ट्र के एक सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ. अभिजीत मोरे ने बताया कि आयुष्मान भारत-प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना जैसी स्वास्थ्य बीमा योजनाओं, जिसके तहत सरकार लगभग 40 करोड़ भारतीयों को 5 लाख रुपये का अस्पताल में भर्ती होने का कवरेज देती है, ने स्वास्थ्य पर सरकारी व्यय को संभवतः बढ़ाया है, लेकिन यह “मौलिक रूप से त्रुटिपूर्ण मॉडल” हो सकता है.

जन स्वास्थ्य अभियान से भी जुड़े डॉ. मोरे ने कहा, “केंद्र और राज्य निजी क्षेत्र से स्वास्थ्य सेवाएँ खरीद रहे हैं, इसका मतलब है कि सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा वितरण प्रणाली को मजबूत करने और सुधारने पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है, जबकि लोग दवाओं, परामर्श शुल्क और डायग्नोस्टिक सर्विस पर खर्च करना जारी रखते हैं, जो ओओपीई के प्राथमिक घटक हैं.

केरल सबसे ज़्यादा OOPE वाले राज्यों में शामिल

जिन 21 राज्यों के लिए राज्य-स्तरीय OOPE डेटा विस्तृत किया गया है, उनमें से 9 राज्यों के लिए OOPE राष्ट्रीय औसत से ज़्यादा है.

इस मामले में शीर्ष पर उत्तर प्रदेश है, जहां ओओपीई कुल स्वास्थ्य व्यय का 63.7 प्रतिशत है. इसके बाद केरल (59.1 प्रतिशत), पश्चिम बंगाल (58.3 प्रतिशत), पंजाब (57.2 प्रतिशत), आंध्र प्रदेश (52 प्रतिशत), झारखंड (47.5 प्रतिशत), मध्य प्रदेश (43.3 प्रतिशत), बिहार (41.3 प्रतिशत) और हिमाचल प्रदेश (39.6 प्रतिशत) का स्थान है.

यहां, यह जानकर आश्चर्य होता है कि केरल- जहां प्रति व्यक्ति सरकारी स्वास्थ्य व्यय 4,338 रुपये है, देश में दूसरे सबसे अधिक ओओपीई वाला राज्य है. सबसे अधिक हिमाचल प्रदेश है, जो प्रति व्यक्ति 5,581 रुपये खर्च करता है.

अपनी मजबूत सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा प्रणाली के लिए जाने जाने वाले दक्षिणी राज्य में, कुल स्वास्थ्य व्यय 48,034 करोड़ रुपये है, जिसका अर्थ है कि प्रति व्यक्ति टीएचई- इसकी 3.6 करोड़ की आबादी को देखते हुए- 13,343 रुपये है, जो भारतीय राज्यों में सबसे अधिक है.

दूसरी ओर, देश में सबसे अधिक ओओपीई वाले उत्तर प्रदेश में, वित्त वर्ष 2022 में कुल ओओपीई 69,932 करोड़ रुपये या 3,014 रुपये प्रति व्यक्ति था.

कुल मिलाकर, 21 राज्यों में, निवासियों ने वित्त वर्ष 2022 में स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच के लिए अपनी जेब से 28,400 करोड़ रुपये या प्रति व्यक्ति 7,889 रुपये खर्च किए. दिलचस्प बात यह है कि रिपोर्ट में कहा गया है कि इस अवधि के लिए राज्यों के लिए जेब से किए गए खर्च की गणना करने के लिए 75वें दौर के राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण (2017-18) के व्यय डेटा का इस्तेमाल किया गया.

इन-पेशेंट क्यूरेटिव केयर ने CHE का सबसे बड़ा हिस्सा

रिपोर्ट से पता चलता है कि वर्तमान स्वास्थ्य व्यय (CHE) 7,89,760 करोड़ रुपये या THE का 87.32 प्रतिशत है, जबकि पूंजीगत व्यय 1,14,701 करोड़ रुपये (12.68 प्रतिशत) रहा.

रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकारी अस्पतालों द्वारा वर्तमान स्वास्थ्य व्यय 1,49,900 करोड़ रुपये (CHE का 18.99 प्रतिशत) और निजी अस्पतालों द्वारा 2,12,948 करोड़ रुपये (CHE का 26.96 प्रतिशत) था.

सर्विस प्रोवाइडर्स के संदर्भ में, अन्य सरकारी स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं (प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों, डिस्पेंसरी और परिवार नियोजन केंद्रों सहित) द्वारा किया गया व्यय 56,477 करोड़ रुपये (सीएचई का 7.15 प्रतिशत) था और निजी क्लीनिकों सहित अन्य निजी स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं का व्यय 30,080 करोड़ रुपये (सीएचई का 3.81 प्रतिशत) था.

दूसरी ओर, रोगी को लाने-ले जाने और इमरजेंसी रेस्क्यू प्रोवाइडर्स पर 28,906 करोड़ रुपये (सीएचई का 3.65 प्रतिशत) खर्च हुए; मेडिकल और डायग्नोस्टिक लैबोरेटरीज़ पर 26,238 करोड़ रुपये (सीएचई का 3.32 प्रतिशत); और फार्मेसियों पर 1,52,910 करोड़ रुपये (सीएचई का 19.35 प्रतिशत) खर्च हुए.

इसके अलावा, प्रदान की गई सेवाओं में, सीएचई के मुताबिक इन-पेशेंट क्यूरेटिव केयर पर 2,99,587 करोड़ रुपये (37.94 प्रतिशत); डे क्यूरेटिव केयर पर 7,327 करोड़ रुपये (0.93 प्रतिशत) खर्च हुए; आउट पेशेंट क्यूरेटिव केयर पर 1,20,816 करोड़ रुपये (15.30 प्रतिशत); रोगियों को लाने-ले जाने पर 28,906 करोड़ रुपये (3.65 प्रतिशत); प्रयोगशाला और इमेजिंग सेवाओं पर 26,238 करोड़ रुपये (3.32 प्रतिशत), और निर्धारित दवाओं की लागत 1,26,225 करोड़ रुपये (या 15.98 प्रतिशत) थी.

इसके अतिरिक्त, ओवर-द-काउंटर दवाओं पर होने वाला खर्च 25,458 करोड़ रुपये (सीएचई का 3.22 प्रतिशत) था. कुल मिलाकर, प्रेस्क्राइब्ड मेडिसिन, ओवर-द-काउंटर मेडिसिन और इनपेशेंट, आउटपेशेंट या स्वास्थ्य प्रणाली के संपर्क में आने वाली किसी अन्य घटना के दौरान प्रदान की जाने वाली दवाओं सहित दवाओं पर कुल खर्च, सीएचई का 30.84 प्रतिशत था.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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